Thursday, March 21, 2013

यूएनआई के 52वें वार्षि‍क समारोह में श्री मनीष ति‍वारी

21-मार्च-2013 19:44 IST
देश भर में वायर से जुड़ी और समाचार एजेंसि‍यों की आवश्‍यकता पर जोर 
सूचना और प्रसारण मंत्री श्री मनीष ति‍वारी ने मीडि‍या क्षेत्र की बढती संभावनाओं और समाचार के क्षेत्र में सूचना के प्रवाह को देखते हुए देश भर में वायर से जुड़ी और समाचार एजेंसि‍यां स्‍थापि‍त करने की आवश्‍यकता बताई है। उन्‍होंने कहा कि‍ इसकी अत्‍यधि‍क संभावनाएं हैं क्‍योकि‍ ये एजेंसि‍यां उप-क्षेत्रीय, क्षेत्रीय और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर सूचना के प्रवाह को बनाए रखती हैं। समाचार एजेंसि‍यों की संख्‍या बढ़ने से न केवल स्‍थानीय खबरें राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहुंचेंगी बल्‍कि‍ इससे ये एजेंसि‍यां राष्‍ट्रीय और स्‍थानीय स्‍तर पर समाचार के प्रसार में संतुलन स्‍थापि‍त कर पाएंगी। सूचना के पहुंचाने में वि‍वि‍धता को देखते हुए ऐसी व्‍यवस्‍था से स्‍थानीय मुद्दों को वि‍शि‍ष्‍टता से राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहुंचाया जा सकेगा। सूचना और प्रसारण मंत्री ने आज दि‍ल्‍ली में यूनाइटेड न्‍यूज ऑफ इंडि‍या के 52वें वार्षि‍क समारोह को संबोधि‍त करते हुए ये बात कही। 

श्री ति‍वारी ने वहन कि‍ए जाने वाले राजस्‍व मॉडल की रूप रेखा तैयार करने की तत्‍काल आवश्‍यकता बताई। डि‍जीटलीकरण प्रक्रि‍या का जि‍क्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि‍ यह प्रसारण क्षेत्र में पारदर्शि‍ता तथा दीर्घकालीन टि‍काउ प्रक्रि‍या लाने का प्रयास है जि‍ससे सभी संबंद्ध पक्षों को मदद मि‍लेगी। उन्‍होने कहा कि‍ नई मीडि‍या और त्‍वरि‍त संचार व्‍यवस्‍था के आगमन के साथ ही राजस्‍व मॉडलों को उन मापदंडों के बारे में भी वि‍चार करना होगा जो वि‍भि‍न्‍न दर्शक/श्रोता वर्गों के लि‍ए हों।


यूएनआई के 52वें वार्षि‍क समारोह में हुई विस्तृत चर्चा 
वि. कासोटिया/अजीत/सुजीत-1539

Tuesday, March 19, 2013

दूरदर्शन के लिए राजस्‍व अर्जन

19-मार्च-2013 19:11 IST
मुम्‍बई दूरदर्शन के कर्मचारियों द्वारा वाणिज्यिक धारावाहिकों का निर्माण 
सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री मनीष ति‍वारी ने राज्‍य सभा में पूछे गए एक प्रश्‍न के लि‍खि‍त उत्‍तर में जानकारी देते हुए बताया कि‍मुंबई दूरदर्शन घरेलू धारावाहिकों का निर्माण कर रहा है जोकि दूरदर्शन के लिए राजस्‍व अर्जन कर सकते हैं। तथापि, मुंबई दूरदर्शन के स्‍टाफ-सदस्‍य बाहर के वाणिज्‍यिक धारावाहिकों पर कार्य नहीं कर रहे हैं। 

उन्‍होंने बताया कि‍जब कभी कोई शिकायत जानकारी में लाई जाती है, तो उसकी जांच प्रसार भारती में एक पूर्णकालिक मुख्‍य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) की अध्‍यक्षता में स्‍थापित सतर्कता प्रकोष्‍ठ द्वारा की जाती है। 

*****वि. कासोटिया/संजीव/राजीव-1463

खबरों को गलत बताया

19-मार्च-2013 12:43 IST
प्रधानमंत्री कार्यालय ने टू-जी मामले पर हिन्‍दू में छपी खबर को गलत बताया प्रधानमंत्री कार्यालय ने कल के हिन्दू समाचार पत्र में छपी उन खबरों को गलत बताया है कि जिनमें कहा गया है कि उसने टू-जी मामले से पहले 2007 में तत्‍कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा की कार्रवाइयों से सहमति जतायी थी। जिन दस्तावेजों के आधार पर खबर लिखी गई है, उनमें कोई नई सूचना नहीं थी और वे पहले से ही पब्लिक डोमेन में मौजूद थे। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी नोट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने महसूस किया था कि इस मामले का दूरसंचार विभाग द्वारा ट्राई और अन्‍य के साथ विस्‍तार से विचार-विमर्श करने की जरूरत है। 

बयान के अनुसार प्रधानमंत्री ने महसूस किया था कि इस विषय पर ट्राई और अन्‍य विभागों के साथ सलाह किए बिना कोई फैसला करना उचित नहीं होगा, इसीलिए प्रस्‍ताव को अनौपचारिक सुझाव के रूप में भेजा गया था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से कोई निर्देश जारी किया गया था। नोट में प्रस्‍ताव था कि नये ऑपरेटरों से सामान्‍य शुल्‍क लेकर ‘थ्रेशहोल्‍ड स्‍तर’ तक स्‍पेक्‍ट्रम आवंटन किया जा सकता है। उसके बाद उन लोगों के बीच बाकी बचे स्‍पेक्‍ट्रम की नीलामी की जा सकती है जिनके पास न्‍यूनतम सीमा तक ही स्‍पेक्‍ट्रम हैं। 

प्रधानमंत्री संसद में इसके बारे में स्थिति पहले ही स्‍पष्‍ट कर चुके हैं और प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गई थी। 

मीणा/शुक्‍ल/मधुप्रभा-1434

मीडिया का मालिकाना हक

19-मार्च-2013 19:10 IST
                      प्रतिस्‍पर्धा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं 
सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री मनीष ति‍वारी ने राज्‍य सभा में पूछे गए एक प्रश्‍न के लि‍खि‍त उत्‍तर में जानकारी देते हुए बताया कि‍मंत्रालय ने प्रसारण क्षेत्र में मीडिया स्‍वामित्‍व के मुद्दों पर 16 मई, 2012 को भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) को एक पत्र लिखा है। ट्राई से मीडिया स्‍वामित्‍व के समस्‍त मुद्दों की जांच करने तथा प्रसारण क्षेत्र में विभिन्‍न खंडों के भीतर ऊर्ध्‍वाधर और क्षैतिज एकीकरण पर सिफारिशें मुहैया कराने हेतु अनुरोध किया गया है। 
उक्‍त पत्र में मंत्रालय ने ट्राई से निम्‍नलिखित मुद्दों की पुन: जांच करने और उपयुक्‍त सिफारिशें करने का अनुरोध किया था:- 
• उभर रहे मौजूदा परिदृश्‍य में टेलीविजन चैनलों पर स्‍वामित्‍व रखने वाली अधिकाधिक प्रसारण कंपनियां विभिन्‍न वितरण प्‍लेटफार्मों नामत: केबल टीवी वितरण, डीटीएच और आईपीटीवी आदि के क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं। इसी प्रकार से वितरण प्‍लेटफार्मों पर स्‍वामित्‍व रखने वाली कई कंपनियां टेलीविजन प्रसारण के रूप में भी प्रवेश कर रही हैं। इस प्रकार के ऊर्ध्‍वाधर एकीकरण से प्रतिस्‍पर्धा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं और 
• एकाधिकारिक प्रवृत्‍तियों को प्रोत्‍साहन मिल सकता है इसलिए ऐसे ऊर्ध्‍वाधर एकीकरण के मुद्दे का निदान किए जाने की आवश्‍यकता है। ट्राई प्रसारण क्षेत्र के समुचित विकास का सुनिश्‍चयन करने के उद्देश्‍य से ऊर्ध्‍वाधर एकीकरण के मुद्दे का निदान करने हेतु किए जाने वाले उपायों का सुझाव दे सकता है। 
• एक अन्‍य परिदृश्‍य में कंपनियों का प्रिंट, टीवी और रेडियो पर नियंत्रण/स्‍वामित्‍व है जिसके फलस्‍वरूप क्षैतिज एकीकरण संभव होता है। इस समय किसी भी कंपनी द्वारा रेडियो, टेलीविजन और प्रिंट माध्‍यमों पर स्‍वामित्‍व रखने हेतु कोई प्रतिबंध नहीं है। ऐसी स्‍थिति से समाचारों एवं विचारों की बहुलता पर रोक लग सकती है और इसके अनेक संभावित परिणाम हो सकते हैं जिनमें उचित कीमतों पर स्‍तरीय सेवाओं का सुनिश्‍चि‍त कि‍या जाना शामिल है। ट्राई इस मुद्दे की भी जांच कर सकता है और इस संबंध में उपयुक्‍त उपायों के बारे में सुझाव दे सकता है। 
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वि. कासोटिया/संजीव/राजीव-1462

कॉपीराइट नियम 2013

18-मार्च-2013 19:48 IST
वैधानिक लाइसेंस के वास्‍ते नए नियम उपलब्‍ध कराए गए
मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उच्‍च शिक्षा विभाग की कॉपीराइट डिविजन ने 14 मार्च, 2013 को कॉपीराइट नियम, 2013 अधिसूचित कर दिए हैं। कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के मौजूदा प्रावधानों में संशोधन तथा कॉपीराइट संशोधन अधिनियम, 2012 के तहत नए प्रावधानों की शुरुआत (जो 21 जून, 2012 को प्रभावी हुए थे) कॉपीराइट नियम, 1958 में संशोधन के लिए आवश्‍यक हो गई थी। नियमों का मसौदा 28 अगस्‍त, 2012 को कॉपीराइट कार्यालय की वेबसाइट पर जारी किया गया था। इस पर सभी हितधारकों और विशेषज्ञों से सुझाव मांगे गए थे। सुझाव देने की अंतिम तिथि 20 सितंबर, 2012 थी। मंत्रालय ने नियमों के मसौदे पर सुझाव के लिए विभिन्‍न हितधारकों और कॉपीराइट विशेषज्ञों के साथ 8 अक्‍तूबर, 2012 को बैठक की। 

कॉपीराइट नियम 2013 के तहत शामिल संस्‍करण और साहित्यिक एवं संगीत कार्य के प्रसारण और ध्‍वनि रिकार्डिंग के लिए वैधानिक लाइसेंस के वास्‍ते नए नियम उपलब्‍ध कराए गए हैं। 

विविध कार्यों के वास्‍ते कॉपीराइट के पंजीकरण के लिए शुल्‍क तथा कॉपीराइट बोर्ड के निर्देशों/आदेशों के तहत कॉपीराइट के रजिस्‍ट्रार की ओर से जारी किए गए लाइसेंस के लिए शुल्‍क कॉपीराइट नियम 2013 के तहत बढ़ाए गए हैं। प्र‍त्‍येक कार्य के पंजीकरण के लिए न्‍यूनतम शुल्‍क 50 रुपये से बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया है तथा अधिकतम शुल्‍क 600 रुपये से बढ़ाकर 5,000 रुपये कर दिया गया है। लाइसेंस के लिए शुल्‍क प्रति कार्य 200 रुपये से बढ़ाकर 2,000 रुपये और अधिकतम शुल्‍क 400 रुपये प्रति कार्य से बढ़ाकर 40,000 रुपये कर दिया गया है। शुल्‍क की नई संरचना नियमों की दूसरी अनुसूची के तहत उपलब्‍ध कराई गई है जो कॉपीराइट नियम 2013 के लागू होने की तिथि अर्थात 14 मार्च, 2013 से प्रभावी होंगे। नियमों की प्रति कॉपीराइट कार्यालय की वेबसाइट (copyright.gov.in) पर उपलब्‍ध कराई गई है। 


वि कासौटिया/प्रदीप -1424

Tuesday, March 12, 2013

मीडिया: कोयले की दलाली से कोयले के व्यापार तक

बड़ी-बड़ी बहस चलाने वाला मीडिया चुप्पी साधे खड़ा है
भारत में कोयला घोटाले ने एक बार फिर तथाकथित लोकतांत्रिक संस्थाओं के चेहरे से नकाब हटाने के काम किया है। एक लाख छियासी हजार करोड़ की कोयले की दलाली में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ पक्ष-विपक्ष के कई नेता तो कटघरे में हैं ही, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दम भरने वाला समाचार मीडिया भी इससे अछूता नहीं है। इस घोटाले में दैनिक भास्कर चलाने वाली कंपनी डीबी कॉर्प लिमिटेड, प्रभात खबर की मालिक कंपनी ऊषा मार्टिन लिमिटेड, लोकमत समाचार समूह और इंडिया टुडे समूह में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले आदित्य बिड़ला समूह का नाम सामने आया है। छोटी-छोटी बातों पर बड़ी-बड़ी बहस चलाने वाला सरकारी और कॉरपोरेट मीडिया इन कंपनियों की करतूत पर या तो चुप्पी साधे खड़ा है या खबर को घुमा-फिराकर पेश कर रहा है।
इसी मार्च में सरकारी ऑडिटर, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में कोयला खदान आवंटन में हुई गड़बड़ी सामने आई तो इसमें कई मीडिया कंपनियों के शामिल होने की चर्चाएं भी थीं। आखिरकार इंटर मिनिस्टीरियल ग्रुप (अंतर मंत्रिमंडलीय समूह) की बैठक में यह साफ हो गया कि कौन-कौन सी मीडिया कंपनियां इस घोटाले में शामिल हैं। इस घटना से एक बार फिर यह भी छिपा नहीं रहा है कि किस तरह कॉरपोरेट मीडिया जनता के साथ धोखेबाजी करता है। पहले भी टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले और कॉमनवेल्थ घोटाले में मीडिया की आपराधिक भूमिका सामने आ चुकी है। यह इस बात का भी उदाहरण है कि किस तरह भारतीय लोकतंत्र का प्रहरी (वॉच डॉग) खुद लूट में शामिल होकर लोकतंत्र का मजाक बना रहा है। सीएजी की रिपोर्ट से पता चलता है कि दो हजार चार से दो हजार नौ के दौरान हुए कोयला खदानों के आवंटन में भारी घोटाला किया गया। रिपोर्ट कहती है कि सरकार ने को औने-पौने दामों में कोयला खदानों को निजी कंपनियों के हवाले कर दिया। इस भ्रष्टाचार से सरकारी खजाने को एक लाख छियासी हजार करोड़ की रकम का नुकसान हुआ। यह घोटाला इस बात का भी पुख्ता सबूत है कि देश के बहुराष्ट्रीय व्यापारी घराने सरकारी नीतियों को मन मुताबिक तोडऩे-मोडऩे में किस तरह जुटे हुए हैं।

यह बात जग जाहिर है कि विज्ञापन और अन्य प्रलोभनों के चलते समाचार मीडिया लगातार पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली बना रहता है। पूंजीपति भी अपने पक्ष में जनमत बनाने और सत्ता पर प्रभाव जमाने में मीडिया की भूमिका से अनजान नहीं हैं, इसलिए कई पूंजीपति सीधे मीडिया को अपने नियंत्रण में ले लेते हैं। कोयला घोटाले में फंसी कंपनियों ने भी इसी रणनीति के तहत मीडिया को अपने कब्जे में लिया है, उनके गैरकानूनी काम इस बात की खुलेआम गवाही देते हैं। यह कॉरपोरेट मीडिया का ही कमाल है कि कोयला घोटाले की पोल खुलने के बाद भी बहस सिर्फ कोयला खदानों के आवंटन में हुई गड़बड़ी पर केंद्रित है। यह सवाल नहीं उठाया जा रहा है कि आखिर कोयला खदानों को निजी हाथों में सौंपने की जरूरत ही क्या है? इस तरह के नीतिगत सवाल कॉरपोरेट मीडिया के खिलाफ जाते हैं इसलिए वह मरे मन से सिर्फ आवंटन का सवाल उठा रहा है (ऐसा करना उसकी विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए जरूरी है)।

कोयला घोटाले में शामिल चार मीडिया कंपनियों का जायया लिया जाए तो यह बात साबित हो जाएगी कि किस तरह कॉरपोरेट, मीडिया और सरकार को चला रहे हैं। इससे कॉरपोरेट साजिशों को समझना भी और आसान होगा। पहले बात करते हैं लोकमत समूह की। यह अखबार अपने प्रसार के हिसाब से मराठी का सबसे बड़ा अखबार है। महाराष्ट्र के कई जिलों से इसका प्रकाशन होता है। मराठी के अलावा हिंदी में भी लोकमत समाचार प्रकाशित होता है। इस कंपनी का रिश्ता मुकेश अंबानी-राघव बहल-राजदीप सरदेसाई से भी है, मराठी न्यूज चैनल आइबीएन-लोकमत इसका उदाहरण है। लोकमत के मालिक विजय दर्डा कांग्रेस पार्टी के सांसद भी हैं और कंपनी के दूसरे मालिक और विजय के भाई राजेंद्र दर्डा महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री हैं। विजय दर्डा पत्रिकारिता के उसूलों की धज्जियां उड़ाते हुए पत्रकार, व्यापारी और राजनीतिज्ञ एक साथ हैं। उन्हें 1990-91 में फिरोज गांधी मेमोरियल अवॉर्ड फॉर एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म मिल चुका है। इसके अलावा 1997 में जायंट इंटरनेशनल जर्नलिज्म अवॉर्ड और दो हजार छह में ब्रिजलालजी बियानी जर्नलिज्म अवॉर्ड भी मिला हुआ है।

विजय दर्डा मीडिया मालिकों के प्रभाव वाली संस्था ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के अध्यक्ष रहने के अलावा इंडियन न्यूज पेपर सोसायटी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। ये दोनों संस्थाएं मीडिया मालिकों के प्रभाव और उनका हित देखने वाली संस्थाएं हैं। दर्डा साउथ एशियन एडिटर्स फोरम के अध्यक्ष रहकर भी उसे धन्य कर चुके हैं। भारत में प्रेस की नैतिकता को बनाये रखने वाली संस्था प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआइ) के सदस्य रहकर भी उन्होंने पत्रकारीय नैतिकता की रक्षा की है! वल्र्ड न्यूज पेपर एसोसिएशन के सदस्य होने के साथ और भी कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों के सदस्य हैं। कुल मिलाकर पत्रकारिता के नाम पर मालिक होकर भी जितने फायदे हो सकते हैं उन्होंने दोनों हाथों से बटोरे हैं। फिर, कोयले पर तो उनका हक बनता ही था! जब पेड न्यूज का मामला जोर-शोर से उठ रहा था तब लोकमत का नाम उसमें सबसे ऊपर था। अब कोयला घोटाले में भी विजय दर्डा और राजेंद्र दर्डा आरोपी कंपनी जेडीएस यवतमाल कंपनी के मालिक/डायरेक्टर होने के साथ ही दूसरी आरोपी कंपनी जैस इंफ्रास्ट्रक्चर के भी सात फीसदी के मालिक हैं।

दूसरी मीडिया कंपनी है दैनिक भास्कर अखबार को प्रकाशित करने वाली कंपनी डीबी कॉर्प लिमिटेड। दैनिक भास्कर के उत्तर भारत के सात राज्यों से कई संस्करण प्रकाशित होते हैं। यह हिंदी का दूसरा सबसे बड़ा अखबार है। डीबी स्टार, बिजनेस भास्कर, गुजराती में दिव्य भास्कर और अहा जिंदगी पत्रिका भी इसी के प्रकाशन हैं। चार राज्यों से निकलने वाले अंग्रेजी अखबार डीएनए में भी इसकी हिस्सेदारी है। भोपाल के गिरीश, रमेश, सुधीर और पवन अग्रवाल कंपनी के मालिक हैं। पिछले कुछ वर्षों में दैनिक भास्कर मीडिया बाजार में अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को किनारे लगाते हुए बड़ी तेजी से उभरा है। मार्केटिंग का हर हथकंडा अपनाते हुए इसने उत्तर भारत में अपने लिए एक खास जगह बनाई है लेकिन इसके कर्मचारियों और पत्रकारों पर छंटनी की तलवार हमेशा लटकी रहती है। प्रबंधन की नीतियों के मुताबिक उनकी नौकरी कभी भी छीनी जा सकती है। डीबी कॉर्प के चार भाषाओं में प्रकाशित होने वाले अखबारों के उनहत्तर संस्करण और एक सौ पैंतीस उप-संस्करण जनता के बीच पहुंचते हैं। कंपनी माई एफएम नाम से देश के सत्रह शहरों से रेडियो भी संचालित करती है।

डीबी कॉर्प का धंधा सिर्फ मीडिया ही नहीं है। इसकी मौजूदगी और भी कई धंधों में है। भारतीय बाजार के रेग्युलेटर सेक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने इस कंपनी की वित्तीय स्थिति के बारे में कहा है कि इसके पास उनहत्तर अन्य कंपनियों का मालिकाना भी है। जिनमें खनन, ऊर्जा उत्पादन, रियल एस्टेट और टैक्सटाइल जैसे कई धंधे शामिल हैं। कहा जाता है कि कंपनी ने भोपाल में जो मॉल बनाया है वैसा भव्य मॉल एशिया में और कहीं नहीं है। मुनाफा कमाने के लिए जहां भी इस कंपनी को रास्ता दिखता है ये वहीं चल पड़ती है और रास्ते में कोई दिक्कत आ गई तो मीडिया का इतना बड़ा साम्राज्य किस दिन के लिए है! डीबी कॉर्प के कामों को आगे बढ़ाने में दैनिक भास्कर लगातार उसके साथ रहता है। जहां-जहां कंपनी को धंधा करना होता है वहां से वो अखबार निकालना नहीं भूलती ताकि जनमत और सत्ता को साधने में आसानी रहे। कोयला घोटाले में नाम आने से पहले ही छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में जनता के विरोध के बावजूद भाजपा सरकार ने इसे 693.2 हेक्टेयर जमीन स्वीकृत कर दी, वहां जनता का आक्रोश फूट पड़ा और आखरिकार छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने पाया कि कंपनी ने पर्यावरण के मानकों का बुरी तरह उल्लंघन किया है। कोर्ट ने आदेश दिया कि आगे से इस कंपनी को पर्यावरण मानकों को लेकर हरी झंडी न दी जाए। हाईकोर्ट में कंपनी के खिलाफ याचिका डालने वाले डीएस मालिया का कहना है कि दैनिक भास्कर ने उनके तथ्यों को झुठलाने के लिए अपने अखबार के कई पृष्ठ रंग डाले और सही खबर को दबाने के लिए हर संभव कोशिश की। दैनिक भास्कर ने राहुल सांस्कृत्यायन के ‘भागो नहीं, दुनिया को बदलो’ की तर्ज पर ‘अपने लिए जिद करो, दुनिया बदलो’ की टैग लाइन चुनी है। जिस तरह से भास्कर देश के संसाधनों की लूट में शामिल है उससे जाहिर है कि वह कैसी बेशर्म जिद का शिकार है! लोकमत समाचार की तरह ही यह कंपनी भी पेड न्यूज छापकर अपना नाम कमा चुकी है! पेड न्यूज पर भारतीय प्रेस परिषद की परंजॉय गुहा ठकुरता और के श्रीनिवास रेड्डी वाली रिपोर्ट में इन दोनों कंपनियों का नाम दर्ज है।

कोयले की दलाली में शामिल तीसरा अखबार प्रभात खबर है। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से इसके कई संस्करण निकलते हैं। इसका प्रकाशन उन्नीस सौ चौरासी में खनन उद्योग से जुड़ी कंपनी उषा मार्टिन लिमिटेड ने शुरू किया। उषा मार्टिन समूह के और भी कई धंधे हैं। अपने राजनीतिक संपर्कों के लिए पहचाने जाने वाले हरिवंश उन्नीस सौ नवासी से इसके संपादक हैं। चंद्रशेखर के प्रधानमंत्रित्व काल में वह प्रधानमंत्री ऑफिस में पब्लिक रिलेशन का काम भी कर चुके हैं। ऊषा मार्टिन कंपनी का मुख्य धंधा बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में ही चलता है। कंपनी पर आरोप लगता रहा है कि इस इलाके में अपने धंधे के पक्ष में माहौल बनाने के लिए ही उसने अखबार का भी सहारा लिया है। कोयला घोटाले में नाम आने से इस सच्चाई पर पक्की मोहर लग जाती है।

चौथी दागी कॉरपोरेट आदित्य बिड़ला समूह है। यह एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी है जिसका धंधा देश-विदेश में कई क्षेत्रों में फैला हुआ है। यह समूह खाद, रसायन सीमेंट रीटेल, टेलीकॉम जैसे अनगिनत धंधों से जुड़ा हुआ है। हिंडाल्को, आइडिया सेल्यूलर और अल्ट्राटेक सीमेंट इसकी कुछ कंपनियों के नाम हैं। इस समूह ने अरुण पुरी के लिविंग मीडिया इंडिया ग्रुप में 27.5 फीसदी की हिस्सेदारी है। अरुण पुरी इंडिया टुडे के विभिन्न प्रकाशनों और टीवी टुडे समूह के चैनलों के मालिक हैं, जिनमें आजतक और हेडलाइंस टुडे जैसे चैनल भी शामिल हैं। आदित्य बिड़ला समूह ने मीडिया में क्यों पैसा लगाया है इसके लिए किसी शोध की जरूरत नहीं है!

जिन भी कंपनियों का नाम कोयला घोटाले में आया है क्या उनसे उम्मीद की जा सकती है कि वे अपने मालिकाने वाले मीडिया में कोयला घोटाले को सही तरह से रिपोर्ट कर पाएंगे? इस सरल से सवाल के जवाब को आज का मीडिया परिदृश्य काफी कठिन बना देता है जिससे हकीकत पर हमेशा के लिए पर्दा पड़ा रहे। बाजार अर्थव्यवस्था जन-पक्षधर नियमों को ढीला किए बिना चल ही नहीं सकती। सरकारें भी कॉरपोरेट दबाव में मीडिया नियमन के सवाल को लगातार अनदेखा करती रहती हैं। इस मौके का फायदा उठाते हुए बड़े-बड़े बिजनेस समूह मीडिया को खरीदकर उसकी आड़ में अपने बाकी धंधों को चमका रहे हैं। उन्हें ऐसा कदम उठाने से रोकने वाला कोई कानून नहीं है, यही वजह है कि चावल से लेकर सीमेंट का धंधा करने वाली और बिल्डरों से लेकर कोयला बेचने वाली कंपनियां तक मीडिया में पैसा लगा रही हैं। नई आर्थिक नीतियों को अपनाने और तथाकथित सूचना क्रांति के अस्तित्व में आने के बाद सरकारें निजी कंपनियों के सामने ज्यादा आत्मसमर्पण की मुद्रा में हैं। कॉरपोरेट अपराधों के खिलाफ कोई नियम बनाने से उन्हें लगता है कि इससे देश की विकास दर मंदी पड़ जाएगी, विदेशी निवेश घट जाएगा।

वैसे आजादी के बाद से ही व्यापारिक घरानों द्वारा मीडिया को इस्तेमाल करने की शुरुआत हो चुकी थी, इसलिए उस दौरान भारतीय प्रेस को जूट प्रेस भी कहा जाता था। टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे अखबारों के मालिक तब जूट मिलें चलाया करते थे। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन जूट प्रेस की आलोचना करते रहे लेकिन उन्होंने कभी मीडिया में दूसरे धंधों के मालिकों के आने के खिलाफ कोई नियम नहीं बना पाए। बाद में भारतीय प्रेस को स्टील प्रेस भी कहा जाने लगा क्योंकि टाटा जैसी कंपनी का तब के प्रभावशाली अखबार द स्टेट्समैन में पैसा लगा था। इसी तरह इंडियन एक्सप्रेस के मालिक रामनाथ गोयनका ने भी पिछली सदी के साठ के दशक में इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी का नियंत्रण अपने हाथ में लेने की कोशिश की थी। ये कंपनियां हमेशा से अपने व्यापारिक हितों की रक्षा व उन्हें बढ़ाने के लिए मीडिया का इस्तेमाल करती रही हैं। कुछ समय पहले जिस तरह मुकेश अंबानी की कंपनी रियायंस इंडस्ट्रीज ने नेटवर्क 18 और तेलुगू अखबार समूह इनाडु का अधिग्रहण किया है उसे भी इसी क्रम में देखा जा सकता है। इसी तरह कहा जाता है कि कई मीडिया कंपनियों में मुकेश के भाई अनिल अंबानी और रतन टाटा का भी पैसा लगा हुआ है।

भारत में मीडिया के मालिकाने पर बात करते हुए इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि बड़ी पूंजी का मीडिया पर कब्जा बढ़ता जा रहा हैं। अखबार, टेलीविजन, रेडियो और इंटरनेट से लेकर सभी प्रकार के मीडिया को वे अपने नियंत्रण में ले रहे हैं। मीडिया संकेंद्रण और एकाधिकार की यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे छोटी पूंजी के बल पर निकलने वाले स्वतंत्र समाचार मीडिया को खत्म कर रही है। मीडिया के मालिकाने का केंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। इसका उपाय यही है कि क्रास मीडिया होल्डिंग यानी एक ही मीडिया कंपनी के सभी तरह के मीडिया में पैसा लगाने पर रोक लगाई जाए। बहुसंस्करणों पर रोक हो। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पूंजीवादों देशों में भी मीडिया में पूंजी निवेश को लेकर कोई न कोई नियम हैं लेकिन भारत सरकार इस मामले में अब तक सोयी हुई है। फिलहाल देश के प्रिंट मीडिया पर 9 बड़े मीडिया घरानों का प्रभुत्व हो चुका है। टाइम्स (ऑफ इंडिया) समूह, हिंदुस्तान टाइम्स समूह, इंडियन एक्सप्रेस समूह, द हिंदू समूह, आनंद बाजार पत्रिका समूह, मलयाला मनोरमा समूह, सहारा समूह, भास्कर समूह और जागरण समूह ने लगभग पूरे मीडिया बाजार पर कब्जा कर रखा है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्टार इंडिया, टीवी 18, एनडीटीवी, सोनी, जी समूह, इंडिया टुडे समूह और सन नेटवर्क का बोलबाला है। यही हाल रहा तो जल्दी ही देश में पूरी तरह से मीडिया एकाधिकार (मोनोपली) के हालात पैदा हो सकते हैं। दो हजार नौ में टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राइ) ने क्रॉस मीडिया ऑनरशिप संकेंद्रण को लेकर अपनी चिंता जताई थी। अपने आधार पत्र में उसने सख्त नियम बनाने की वकालत भी की थी लेकिन कमजोर राजनीतिक इच्छा शक्ति की वजह से इसको लेकर कोई ठोस कानून नहीं बन पाया है।

जिस तरह कई मीडिया समूहों के नाम कोयला घोटाले में आये हैं उससे सबक लेते हुए ऐसे नियम बनाने की जरूरत है जिससे देश में मीडिया स्वामित्व को अन्य उद्योगों से मालिकाने से स्वतंत्र रखा जा सके।

(समयांतर)


मीडिया की काली करतूत//अमलेन्दु उपाध्याय

Wednesday, March 6, 2013

आकाशवाणी-केन्‍द्रों का कार्यकरण

कुछ आकाशवाणी केंद्रों को कार्यशील नहीं बनाया जा सका  05-मार्च-2013 20:01 IST
सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री मनीष तिवारी ने आज लोकसभा में एक प्रश्‍न के लि‍खि‍त उत्‍तर में बताया कि‍ प्रसार भारती ने सूचित किया है कि कुछ आकाशवाणी केंद्रों को कार्यशील नहीं बनाया जा सका, जिनका ब्‍यौरा निम्‍नानुसार है:- i. विभिन्‍न राज्‍यों में नए 9 आकाशवाणी केंद्रों का निर्माण-कार्य पूरा कर लिया गया है।
इन्‍हें प्रचालन एवं अनुरक्षण स्‍टाफ की पदस्‍थापना होने पर कार्यशील बनाया जा सकेगा। 
ii. उज्‍जैन स्‍थित 5 किवा एफएम ट्रांसमीटर प्रचालन के अग्रिम चरण में है। 
iii. रीवा स्‍थित आकाशवाणी का 20 किवा मीवे केंद्र वर्ष 02.10.1977 से कार्यशील है। 
सरकार ने मितव्‍ययता संबंधी आदेशों के बावजूद महत्‍वपूर्ण संगठनात्‍मक जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रसार भारती में 1150 पदों को हाल ही में भरने की अनुमति भी दी है। (PIB)
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Tuesday, March 5, 2013

स्‍लॉटों की नीलामी

05-मार्च-2013 19:59 IST
निजी प्रसारकों को 92.05 करोड़ रु.के लिए 37 स्‍लॉटों की नीलामी
सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री मनीष तिवारी ने आज लोकसभा में एक प्रश्‍न के लि‍खि‍त उत्‍तर में बताया कि‍ प्रसार भारती ने सूचित किया है कि दूरदर्शन ने अभी तक निजी प्रसारकों को 92.05 करोड़ रु. की कुल राशि के लिए 37 स्‍लॉटों की नीलामी की है। नीलामी के अगले चक्र को अभी निर्धारित किया जाना है। (PIB)
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मीणा/राजेन्‍द्र /राजीव-1066

मीडिया नीति में संशोधन

05-मार्च-2013 20:00 IST
गैर-समाचार क्षेत्र में 100 प्रतिशत तक विदेशी निवेश की अनुमति
सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री मनीष तिवारी ने आज लोकसभा में एक प्रश्‍न के लि‍खि‍त उत्‍तर में बताया कि‍ मौजूदा प्रिंट मीडिया नीति के अनुसार, गैर-समाचार क्षेत्र अर्थात प्रिंट मीडिया के विशिष्‍टीकृत/तकनीकी/वैज्ञानिक क्षेत्र में 100 प्रतिशत तक विदेशी निवेश की अनुमति है जबकि समाचारपत्रों और समाचारों एवं समसामयिक विषयों से संबंधित पत्रिकाओं का प्रकाशन करने वाली भारतीय कंपनियों में 26 प्रतिशत तक विदेशी निवेश की अनुमति है। तथापि, पूर्ण रूप से स्‍वामित्‍व वाली सहायक कंपनी के माध्‍यम से अपने स्‍वंय के समाचारपत्रों के अनुलिपि संस्‍करण निकालने वाले विदेशी प्रकाशन घरानों के मामले में 100 प्रतिशत तक विदेशी निवेश की अनुमति है। 

उन्‍होंने यह भी बताया है कि‍ प्रसारण क्षेत्र में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश अनुज्ञेय है और मौजूदा नीति के अनुसार, विभिन्‍न खण्‍डों में प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश की सीमाएं औद्योगिक नीति एवं संवर्धन विभाग के प्रेस नोट सं. 7 (2012 श्रृंखला), दिनांकित 20.09.2012 में दर्शाई गई हैं। सरकार ने प्रिंट और साथ ही, इलेक्‍ट्रॉनिक मीडिया में भी प्रत्‍यक्ष विदेशी निवेश की अनुमति पहले ही दे दी है। (PIB)

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मीणा/राजेन्‍द्र /राजीव-1072


मीडिया: कोयले की दलाली से कोयले के व्यापार तक

प्रसार भारती में अंशकालिक संवाददाता

05-मार्च-2013 20:00 IST
अंशकालिक संवाददाताओं को संलग्‍न नहीं किया-मनीष तिवारी
सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री मनीष तिवारी ने आज लोकसभा में एक प्रश्‍न के लि‍खि‍त उत्‍तर में बताया कि‍ दूरदर्शन ने किन्‍हीं भी अंशकालिक संवाददाताओं को कार्य पर संलग्‍न नहीं किया है। 
उन्‍होंने यह भी बताया कि‍ क्षेत्रीय समाचार इकाइयों में तैनात संवाददाताओं व संपादकों को समाचार संकलन में सहायता करने हेतु संविदा व अंशकालिक आधार पर आकाशवाणी केंद्रों में अंशकालिक संवाददाता कार्यरत हैं। वे प्रसार भारती के पूर्णकालिक कर्मचारी नहीं हैं और प्रति वर्ष उनकी संविदाओं का नवीनीकरण उनके कार्य-निष्‍पादन के आधार पर किया जाता है। वे अपने जीविकोपार्जन के लिए अन्‍य व्‍यवसाय/रोजगार में भी संलग्‍न होने के लिए स्‍वतंत्र हैं। अंशकालिक संवाददाताओं के शुल्‍क में दिनांक 01.04.2010 से वृद्धि की गई थी। (PIB)

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मीणा/राजेन्‍द्र /राजीव-1070

Friday, March 1, 2013

दूरदर्शन समाचार का प्रधानमंत्री से साक्षात्‍कार

01-मार्च-2013 15:51 IST
अगले वर्ष के बजट पर हुयी कई मुद्दों पर चर्चा    -साक्षातकर्ता- एम.के.वेणु 
प्रश्‍न- प्रधानमंत्री जी, बजट पर आपके मन में पहला विचार क्‍या आता है ?
प्रधानमंत्री- हमारी अर्थव्‍यवस्‍था के सामने मौजूद चुनौतियों को ध्‍यान में रखते हुए वित्‍त मंत्री ने सराहनीय कार्य किया है। श्रमिकों की बढ़ती संख्‍या को देखते हुए देश में प्रतिवर्ष लगभग 1 करोड़ लोगों के लिए रोजगार उपलब्‍ध कराने की आवश्‍यकता है। इसके लिए हमें अपनी विकास दर को तेज करना होगा। जैसा कि बारहवीं पंचवर्षीय योजना में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है, हमें लगभग 8 प्रतिशत विकास दर की आवश्‍यकता है। यह विकास दर हमारी अंतर्निहित क्षमता के अनुरूप है। हमें इसे प्राप्‍त करना है। हालांकि यह सफर मुश्किल है, इसे एक साल में हासिल नहीं किया जा सकता, लेकिन वित्‍त मंत्री ने निवेश के माहौल के प्रति, हमारी विकास क्षमता के प्रति और हमारी अर्थव्‍यवस्‍था की संभावनाओं के प्रति निराशाजनक दृष्टिकोण को बदलने के लिए महत्‍वपूर्ण कदम उठाये हैं1

प्रश्‍न- अगले 6 महीनों में आप किस तरह के सुधार ला रहे हैं?

प्रधानमंत्री- ऐसा है, वित्‍त मंत्री ने इसकी रूपरेखा बनाई है। प्रत्‍येक मंत्रालय के लिए पर्याप्‍त मसाला है, जिसका वह उपयोग कर सकता है और प्रत्‍येक मंत्रालय को खुद से यह सवाल पूछना है- यदि भारत को 8 प्रतिशत विकास दर हासिल करनी है और यह विकास समावेशी और सतत भी होना चाहिए, तब प्रत्‍येक मंत्रालय को क्‍या करना चाहिए? मेरा खयाल है, वित्‍त मंत्री ने इन चुनौतियों का जिक्र किया है। अब यह मेरे मंत्रि परिषद के सामूहिक विवेक पर निर्भर करता है कि विकास की गति को तेज करने के लिए और इसे अधिक समावेशी तथा सतत बनाने के लिए वह इन चुनौतियों को अवसरों में बदले।

प्रश्‍न- क्‍या आपकी सरकार को संसद में पर्याप्‍त समर्थन मिलेगा? विपक्ष के दृष्टिकोण में स्‍पष्‍ट बदलाव नजर आ रहा है, लेकिन क्‍या अफसरशाही इसके लिए तैयार है? क्‍या परियोजनाओं को मंजूरी दी जा रही है?

प्रधानमंत्री- परियोजनाओं को मंजूरी के सिलसिले में समस्‍यायें हैं। ये समस्‍यायें पर्यावरण संबंधी मंजूरी, वन विभाग की मंजूरी, भूमि अधिग्रहण आदि से जुड़ी हैं, जिनमें से अधिकतर राज्‍य सरकार की जिम्‍मेदारी हैं। केन्‍द्र सरकार के अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत जितना संभव है, उसके लिए हम प्रतिबद्ध हैं कि अपनी व्‍यवस्‍था में मौजूद इन परेशानियों से निपटने के लिए हम निवेश संबंधी मंत्रिमंडल समिति की प्रणाली का इस्‍तेमाल करेंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि रास्‍ते की रूकावटें, चाहे वे पर्यावरण संबंधी हैं या वन-क्षेत्र संबंधी हैं अथवा अन्‍य रूकावटें हैं उन पर ध्‍यान दिया जाये और उन्‍हें दूर किया जाये।

प्रश्‍न- क्‍या आपको विश्‍वास है कि परियोजनाओं की स्‍वीकृति के लिए सकारात्‍मक माहौल मौजूद है?
प्रधानमंत्री- वित्‍त मंत्री पूरे मंत्रिमंडल की ओर से कह रहे हैं और मेरा भी यह निश्चित मत है कि देश की भावना भी इसके अनुरूप है कि देश को अपना समय नहीं गंवाना चाहिए। हमें आर्थिक विकास, सतत विकास, न्‍याय संगत विकास की गति को तेज करने के लिए मिलकर काम करना चाहिए और मेरा विश्‍वास है कि अगर देश की आम सोच सही है, तो इसका अफसरशाही पर भी असर पड़ेगा, विपक्ष पर भी असर पड़ेगा और इस में न किसी की जीत है न किसी की हार। अगर भारत 8 प्रतिशत या इससे अधिक की विकास दर हासिल करने के रास्‍ते पर चलता है, तो मेरे विचार में जीत भारत के लोगों की होगी, विजेता हमारे युवक और युवतियां होंगी, जिन्‍हें रोजगार के नये उपयोगी अवसरों की सख्‍त जरूरत है।

प्रश्‍न- हमारी अर्थव्‍यवस्‍था में ढांचा संबंधी जो कमियां आ गई हैं, उनके बारे में आपकी चिंताएं कितनी हैं?
प्रधानमंत्री- तीन प्रकार की रूकावटें हैं, जो हमारी विकास क्षमता को हासिल करने पर असर डाल सकती हैं। एक है- वित्‍तीय घाटा। वित्‍त मंत्री ने वित्‍तीय घाटे को नियंत्रण में रखने के लिए रूपरेखा तैयार की है और अगर हम उस दिशा में कामयाब होते हैं तो मेरा ख्‍याल है हम निवेश के लिए बेहतर माहौल पैदा कर लेंगे। हम मुद्रास्‍फीति को और अधिक सामान्‍य स्‍तर पर लाने के लिए भी बेहतर माहौल पैदा कर सकेंगे, जो पिछले दो वर्षों में नहीं हो पाया।

     दूसरी समस्‍या, मुद्रास्‍फीति की है, जो नियंत्रण से बाहर हो गई है। इसलिए अगर वित्‍तीय घाटा नियंत्रण में आता है, तो इससे मुद्रास्‍फीति की रफ्तार को भी धीमा करने में मदद मिलेगी।

     तीसरी समस्‍या है, चालू खाता घाटा। हम एकबारगी चालू खाता घाटा कम नहीं कर सकते। जैसा कि वित्‍त मंत्री ने कहा है हमारा चालू खाता घाटा लगभग 75 अरब डॉलर का है। कुछ समय तक हमें इसके लिए वित्‍त पूर्ति करनी होगी। अगले कुछ समय में इसे कम किया जाना चाहिए। हमें तेल, कोयला, सोना और पैट्रोलियम पदार्थों के आयात पर निर्भरता कम करनी होगी। यह मध्‍य अवधि लक्ष्‍य है और इसे प्राप्‍त किया जा सकता है, कुछ तो गैर-जरूरी आयात को कम करके और कुछ देश के निर्यात को बढ़ाकर।

     इसलिए, इन तीनों समस्‍याओं- वित्‍तीय घाटा, मुद्रास्‍फीति और चालू खाता घाटा से निपटने के लिए और विश्‍वसनीय समाधान के लिए एक बहु-सूत्री नीति अपनानी होगी।

प्रश्‍न- हमारे लिए सुरक्षित चालू खाता घाटा क्‍या है?

प्रधानमंत्री- मेरे विचार में सकल घरेलू उत्‍पाद के 2.5 से 3 प्रतिशत जितना घाटा एक सुरक्षित चालू खाता घाटा होगा।

प्रश्‍न- अगले वित्‍त वर्ष में सकल घरेलू उत्‍पाद में आप कितनी वृद्धि की उम्‍मीद रखते हैं?

प्रधानमंत्री- वित्‍त मंत्री ने बताया है और आर्थिक समस्‍या से भी संकेत मिलता है कि लगभग 6.2 से 6.7 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल करना यथार्थपरक होगा और इसे तीन वर्षों में प्राप्‍त करना होगा। अगर हम कड़ी मेहनत करते हैं और अगर वैश्विक अर्थव्‍यवस्‍था में भी सुधार आता है तो हम 2 से 3 वर्ष के समय में 8 प्रतिशत की वृद्धि दर हासिल कर सकते हैं।(PIB)
मीणा/राजगोपाल/चन्‍द्रकला-772