Sunday, February 16, 2014

पेंगुइन को एक वाजिब व जिम्मेदाराना फटकार...जरुर पढ़ें...

पेंगुइन तुम इतना डर किस बात से गए?  --अरुंधति रॉय
सुनीता भास्कर shared a link on Facebook on Yesterday (Saturday 15 Feb 2014 को बजे 
अमेरिकी लेखक वेंडी डॉनिगर की `द हिन्दू: एन ऑलटरनेटिव हिस्ट्री` को पेंगुइन ने एक अनजान से कट्टर हिंदू संगठन के दबाव में `भारत` के अपने ठिकानों से हटाने का फैसला किया है। मशहूर लेखिका-एक्टिविस्ट अरुंधति रॉय जिनकी खुद की किताबें भी इस प्रकाशन से ही आई हैं, ने पेंगुइन को यह कड़ा पत्र लिखा है जो Times of India में छपा है।पत्र का हिंदी अनुवाद:
सुनीता भास्कर 
तुम्हारी इस कारगुजारी से हर कोई स्तब्ध है। तुमने एक अनजान हिंदू कट्टरवादी संस्था से अदालत के बाहर समझौता कर लिया है और तुम वेंडी डॉनिगर की `द हिन्दू: एन ऑलटरनेटिव हिस्ट्री` को भारत के अपने किताबघरों से हटाकर इसकी लुगदी बनाने पर राजी हो गए हो। कोई शक नहीं कि प्रदर्शनकारी तुम्हारे दफ्तर के बाहर इकट्ठा होकर अपनी निराशा का इजहार करेंगे। 

कृपया हमें यह बताओ कि तुम इतना डर किस बात से गए? तुम भूल गए कि तुम कौन हो? तुम दुनिया के सबसे पुराने और सबसे शानदार प्रकाशकों में से हो। तुम प्रकाशन के व्यवसाय में बदल जाने से पहले और किताबों के मॉस्किटो रेपेलेंट और खुशबुदार साबुन जैसे बाज़ार के दूसरे खाक़ हो जाने वाले उत्पादनों जैसा हो जाने से पहले से (प्रकाशन में) मौज़ूद हो। तुमने इतिहास के कुछ महानतम लेखकों को प्रकाशित किया है। तुम उनके साथ खड़े रहे हो जैसा कि प्रकाशकों को रहना चाहिए। तुम अभिव्यक्ति की आजादी के लिए सबसे हिंसक और भयावह मुश्किलों के खिलाफ लड़ चुके हो। और अब जबकि न कोई फतवा था, न पाबंदी और न कोई अदालती हुक्म तो तुम न केवल गुफा में जा बैठे, तुमने एक अविश्वसनीय संस्था के साथ समझौते पर दस्तखत करके खुद को दीनतापूर्ण ढंग से नीचा दिखाया है। आखिर क्यों? कानूनी लड़ाई लड़ने के लिए जरूरी हो सकने वाले सारे संसाधन तुम्हारे पास है। अगर तुम अपनी ज़मीन पर खड़े रह पाते तो तुम्हारे साथ प्रबुद्ध जनता की राय और सारे न सही पर तुम्हारे अधिकांश लेखकों का समर्थन भी होता। तुम्हें हमें बताना चाहिए कि आखिर हुआ क्या। आखिर वह क्या है, जिसने तुम्हें आतंकित किया? तुम्हें अपने लेखकों को कम से कम स्पष्टीकरण देना तो बनता ही है।
चुनाव में अभी भी कुछ महीने बाकी हैं। फासिस्ट् अभी दूर हैं, सिर्फ अभियान में मुब्तिला हैं। हां, ये भी खराब लग रहा है पर फिर भी वे अभी ताकत में नहीं हैं। अभी तक नहीं। और तुमने पहले ही दम तोड़ दिया।

हम इससे क्या समझें? क्या अब हमें सिर्फ हिन्दुत्व समर्थक किताबें लिखनी चाहिए। या `भारत` के किताबघरों से बाहर फेंक दिए जाने (जैसा कि तुम्हारा समझौता कहता है) और लुगदी बना दिए जाने का खतरा उठाएं? शायद पेंगुइन से छपने वाले लेखकों के लिए कुछ एडिटोरियल गाइडलाइन्स होंगी? क्या कोई नीतिगत बयान है?
साफ कहूं, मुझे यकीन नहीं होता, यह हुआ है। हमें बताओ कि यह प्रतिद्वंद्वी पब्लिशिंग हाउस का प्रोपेगंडा भर है। या अप्रैल फूल दिवस का मज़ाक था जो पहले ही लीक हो गया। कृपया, कुछ कहिए। हमें बताइए कि यह सच नहीं है।
अभी तक मैं से पेंगुइन छपने पर बहुत खुश होती थी। लेकिन अब?
तुमने जो किया है, हम सबके दिल पर लगा है।                       -अरुंधति रॉय

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ब्लूस्टार को जनरल शाहबेग का "महंगा बदला" बताया इण्डिया टुडे ने


Tuesday, February 11, 2014

भाषा के सवाल पर गंभीर विमर्श प्रस्तुत करती किताब-"भाषा का सच"

अपने हिंदी भाषी होने पर अफसोस आखिर क्यूँ ?
गर लोकतंत्र में काबलियत की बजाये आंकड़ा तंत्र छाता जा रहा है, सियासत में सत्ता लोलुपता बढ़ रही है तो हालत मीडिया की भी अच्छी नहीं रही। अगर कोई वेश्या किसी मजबूरी के कारण अपना  जिस्म बेचती है तो हमारे आज के बहुत से कलमकार अपनी दिमागी और जिस्मानी मेहनत के साथ साथ अपनी सोच भी बेच रहे हैं--अपने ख्यालात भी बेच रहे हैं और जनता के सामने लगातार वही सच सामने ला रहे हैं जिसे उनके मालिक लोग देखना चाहते हैं। पेड न्यूज़ का सबसे अधिक दुष्प्रभाव पड़ने वाला है आम आदमी पर। सच को दबाने  बदलने की जितनी साज़िशें आज हो रही हैं पहले शायद कभी नहीं थीं। कुछ महीने पूर्व जब अनिल चमड़िया लुधियाना के एक गांव की सभा में आये थे तो उन्होंने बहुत सी सच्चाईयों से आम जनता को वाकिफ करवाया था। तब से एक उम्मीद बंधी थी कि सच की मशाल को थामने वाले अभी भी हैं। एक बार फिर यह विश्वास हुआ कि सच की आवाज़ फिर बुलंद होगी। चमक दमक के इस दौर में हकीकत अपने असली रूप में सबके सामने आकर रहेगी। "भाषा का सच" के बारे में जान कर यह उम्मीद और मज़बूत हुई। 
फेसबुक पर जारी हुईं अवनीश राय की पोस्टों के  मुताबिक "भाषा का सच" भाषा के सवाल पर गंभीर विमर्श प्रस्तुत करती किताब है। यह उन नीतियों को भी विस्तार से रखती है जिनसे मातृभाषाओं को धीरे-धीरे खत्म किया जा रहा है। मातृभाषा के खिलाफ और अंग्रेजी के पक्ष में फैलाई गई बहुत सी धारणाओं को भी यह किताब तमाम शोधों के माध्यम से दूर करती है। जाहिर है इंसाफ का सवाल भी इससे अलग नहीं है। यह किताब Media Studies Groupedia Studies Group ने प्रकाशित की है। इसके बारे में ज्यादा जानकारी भाषा का सच पर जाकर देखा जा सकता है।
हम अपने हिंदी भाषी होने पर अफसोस करते रहते है और अंग्रेजी सीखने के लिए दिन-रात लगे रहते है। यह भी जानने की कोशिश नहीं करते है कि जब तक हम अपनी ही भाषा को ठीक से नहीं समझेंगे, तब तक अन्य भाषाओं को कैसे समझ पाएंगे। अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं को सीखने में भी आसानी होती है, यह बात विदेशों में भी मानी गई। और यूनेस्को के सर्वेक्षणों में यह बात साबित हुई है।
इससे कोई इँकार नहीं कर सकता कि सही समझ और बेहतर संचार के लिए मातृभाषा का बहुत महत्व है। इस किताब में इसी विषय को लेकर शोधपरक लेख सम्मिलित किए गए हैं। साथ ही इस विषय पर भी गंभीर चर्चा है कि किस तरह कुछ एक भाषाएं बाकी भाषाओं पर कब्जा कर रही हैं। यह किताब आपको विश्व पुस्तक मेले में Media Studies Group के स्टैंड पर मिलेगी।
हम अपने हिंदी भाषी होने पर अफसोस करते रहते है और अंग्रेजी सीखने के लिए दिन-रात लगे रहते है। यह भी जानने की कोशिश नहीं करते है कि जब तक हम अपनी ही भाषा को ठीक से नहीं समझेंगे, तब तक अन्य भाषाओं को कैसे समझ पाएंगे। अपनी भाषा के साथ अन्य भाषाओं को सीखने में भी आसानी होती है, यह बात विदेशों में भी मानी गई। और यूनेस्को के सर्वेक्षणों में यह बात साबित हुई है।

email- msgroup.india@gmail.com

9968771426
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ब्लूस्टार को जनरल शाहबेग का "महंगा बदला" बताया इण्डिया टुडे ने


Monday, February 10, 2014

ऐतराज़ उठने पर पेगुइन ने तत्काल प्रभाव से वापिस ली पुस्तक

Mon, Feb 10, 2014 at 8:46 PM 
शिक्षा बचाओ आन्दोलन को मिली सफलता 
नई दिल्ली: 10 फरवरी 2014: (राजीव गुप्ता//मीडिया स्क्रीन):
आज दिनांक 10 फरवरी 2014 को श्री दीनानाथ बत्रा तथा अन्य और पेगुइन पब्लिसर्स के मध्य में सिविल सूट नं. 360/2011 के मध्य अनुबंध हुआ है जिसमें:-
      पेगुइन बुक इंडिया प्राईवेट लिमिटेड ने तत्काल प्रभाव से हिन्दुत्व तथा वैकल्पिक इतिहास की पुस्तक को तत्काल वापस ले लिया है तथा उसके द्वारा अपने खर्च पर सम्पूर्ण पुस्तकें देश से एकत्रित करा ली जाएगी और उनको नष्ट कर दिया जाएगा.
·         यह पुस्तक पुनः से प्रकाशित नहीं होगी.
·         पुस्तक में हिन्दु देवी-देवताओं का अपमान, क्रान्तिकारियों तथा इतिहास को विकृत रूप से प्रस्तुत करने के परिणामस्वरूप यह मुकदमा अतिरिक्त जिला न्यायाधीश साकेत की अदालत में केस दर्ज किया गया था.

आपत्तिजनक अंश जैसे:-
      गांधी जी एक विचित्र व्यक्ति थे जो छोटी-छोटी लड़कियों के साथ सोते थे - पृष्ठ-625
     स्वामी विवेकानन्द ने लोगों को गोमांस भक्षण का सुझाव दिया- पृष्ठ-639
     लक्ष्मीबाई अंग्रेजों के प्रति निष्ठावान थी- पृष्ठ-586
     हिन्दुओं का कोई मूलग्रन्थ नहीं है- पृष्ठ-25
     सीता लक्ष्मण पर आरोप लगाती है कि लक्ष्मण की उनके प्रति कामभावना है - पृष्ठ-14

शिक्षा बचाओ आन्दोलन के मीडिया प्रभारी राजीव गुप्ता ने बताया कि पेगुइन बुक इंडिया प्राईवेट लिमिटेड की ओर से कहा गया कि हम सब धर्मों का सम्मान करते है. अतः वें इस पुस्तक को वापस ले रहे है. अब यह पुस्तक न आगे से छापी जाएगी और बची हुई पुस्तकों को बेचा नहीं जाएगा. यह अनुबंध श्री बलबंत राय बंसल ए.डी. जे कोर्ट नं. 615 के न्यायालय में प्रस्तुत किया गया. माननीय न्यायधीश ने इसे स्वीकृति प्रदान की. याचिकाकर्ता की ओर से अधिवक्ता श्रीमती मोनिका अरोड़ा उपस्थित रही.

ब्लूस्टार को जनरल शाहबेग का "महंगा बदला" बताया इण्डिया टुडे ने 

Saturday, February 8, 2014

ब्लूस्टार को जनरल शाहबेग का "महंगा बदला" बताया इण्डिया टुडे ने

संत भिंडरांवाले को बताया ग्रंथी और विद्रोही गुट का नेता 
लुधियाना: ब्लू स्टार आपरेशन में ब्रिटिश दखल की बात उठी तो सिख समाज के साथ साथ मीडिया में भी एक फिर तूफ़ान आ गया।  इसके साथ ही शुरू हुई सिख समाज के दर्द को भुनाने की एक और नयी कोशिश। क्यूंकि व्यापारी समाज के लिए हर बात  एक व्यापार  आंसुयों का व्यापर, जज़बात का व्यापार और खबरों का सिलसिला भी अब एक व्यापार बन गया है। कहा कुछ जाता है पर उसका छुपा मकसद कुछ और ही होता है।   बात को घुमा फिरा कर अर्थों का अनर्थ।  इण्डिया टुडे  (हिंदी)  नाज़ुक और संवेदनशील मामले को एक बार फिर सनसनी का आवरण औड़ाते हुए बहुत से नए तथ्य सामने लाने का दावा करता महसूस होता है।  इस आवरण स्टोरी में जहाँ कुछ काम की बातें भी हो सकती हैं वहीँ पत्रिका के इरादे छुपे नहीं रह सके। पत्रिका ने अपना पक्षपात एक बार फिर ज़ाहिर कर  दिया है। जहाँ पत्रिका ने गुरु गोबिंद सिंह साहिब जी की ओर से स्थापित  दमदमी टकसाल के चौहदवें उत्तराधिकारी संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले को एक "तेज़तर्रार ग्रंथी" बताया है वहीँ ब्लू स्टार ऑपरेशन को सही करार देने के प्रयास में यह भी कहा है कि उसके नेतृत्व में सिखों के एक विद्रोही गुट ने "जंग" छेड़  रखी थी और 1981 से 1984 तक 100 से अधिक आम नागरिकों और सुरक्षाकर्मियों की जान ले ली थी। यह भी कहा कि भिंडरांवाला अपने हथियारबंद साथियों के घेरे में सिखों के सबसे पवित्र गुरुद्धारे में छिपा बैठा था। इस पत्रिका की इस आवरण कथा का चालाक लेखक यह नहीं बताता कि अगर समस्या केवल सवर्ण मंदिर में ही थी तो पंजाब के अन्य 36 गुरुद्धारों में सैनिक एक्शन क्यूँ किया गया?  क्या इतना बड़ा मीडिया हाऊस नहीं जानता कि सिखों के लिए वे अन्य गुरुद्धारे भी बहुत महत्वपूर्ण और पवित्र थे और रहेंगे।
आगे जाकर इण्डिया टुडे इंदिरा गांधी को बेहद संवेदनशील साबित करने के प्रयास में कहता है कि इंदिरा गांधी ने आपरेशन सनडाऊन की उस परियोजना को केवल इस लिए रद्द कर दिया था क्यूंकि उसमें अधिक नुक्सान होने का खतरा था। गौरतलब है कि इस योजना के अंतर्गत  हेलीकाप्टरों और स्पेशल ट्रेंड कमांडोज़ के ज़रिये होना था और  संत जरनैल सिंह भिंडरांवाले का अपहरण किया जाना था।
अपनी इस सारी "सच्ची कहानी" में पत्रिका ने यही प्रभाव देने का प्रयास किया कि जैसे वहाँ हमला करने गए सेनिक तो बेचारे सिखों का शिकार हो रहे थे। पत्रिका ने कहीं नहीं कहा कि इंदिरा गांधी ने इस एक्शन के लिए श्री गुरु अर्जुन देव जी के शहीदी पर्व का दिन क्यूँ चुना? वहाँ उस पावन दिवस पर माथा टेकने गए श्रद्धालुयों में बच्चे भी थे--महिलाएं भी और बज़ुरग भी---उनमें से किसी के  नहीं थे। सेना ने उन को भी निशान बनाया जिसकी हकीकत एक बार नहीं बहुत बार मीडिया में आ चुकी है। इसके बावजूद इण्डिया टुडे बताता है कि जब इंदिरा गांधी को खबर मिली कि बहुत बड़ी संख्या में सैनिक और असैनिक मरे गए हैं तो इंदिरा गांधी के मुँह से निकला"हे भगवान"। इसके साथ ही स्व्तंत्र भारत के इस इतने बड़े युद्ध के वास्तविक कारणों पर पर्दा डालने ले नापाक प्रयास में इण्डिया टुडे इसे जनरल शाहबेग सिंह का एक व्यक्तिगत बदला बताता है।  पत्रिका ने लिखा है-"सेना के नायक रह चुके शाबेग ने सेना से बहुत महंगा बदला लिया।"
फिर भी इस पत्रिका को बड़े पैमाने पर पढ़ा जाना चाहिए ख़ास तौर पर सिख सियासत और सिख इतिहास से जुड़े कलमकारों और पाठकों दोनों को।  तभी इस तरह साज़िशी कलमों का जवाब कलम से दिया जा सकेगा। आपके विचारों की इंतज़ार बनी रहेगी। चुनावी मौसम है इसलिए इस तरह के बहुत से नए मामले सामने आएंगे सनसनी के आवरण मेंलपेटे हुए तांकि आम लोगों को दाल रोटी का सच भूला रहे, क्रांति का सच भूला रहे--सियासतदानों के घोटालों का सच भूला रहे---और लोग उलझे रहे साम्प्रदायिक टकरावों में। इस तरह के मामले जनता का ध्यान असली सच से हटाने की साज़िश मात्र हैं। -रेकटर कथूरिया 
ब्लू स्टार को जनरल शाहबेग का महंगा बदला बताया इण्डिया टूडे ने