Friday, June 26, 2020

ऑनलाइन मीडिया वालों को भी सभी सुविधाएं मिलें-नरेंदर भंडारी

 नए सिरे से 'मीडिया' व 'पत्रकार' की परिभाषा तय हो 
नई दिल्ली//सोशल मीडिया: 26 जून 2020: (कार्तिका सिंह//मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन)::
महासचिव नरेंद्र भंडारी 
देश के ज्यादातर मीडियाकर्मियों का मानना है कि केंद्र सरकार को जल्द से जल्द मीडिया आयोग का गठन करना चाहिये। माड़ियाकर्मियों का ये भी मानना है कि देश के सभी मीडिया संगठनों को पत्रकारो की मांगों को मनवाने के लिये एक्जुट होना चाहिये। देश के पत्रकारो के शीर्ष संगठन वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया, सम्बद्ध भारतीय मजदूर संघ की तरफ से देश के मीडियाकर्मियों के बीच मीडिया रिफॉर्म्स को लेकर एक सर्वे अभियान चलाया गया है। इस सर्वे अभियान में अलग अलग राज्यो के पत्रकारो ने अपनी राय जतायी है।             वालों            
यूनियन के राष्ट्रीय अध्य्क्ष श्री अनूप चौधरी के अनुसार मीडिया रिफॉर्म्स सर्वे में ज्यादातर पत्रकारो का मानना है कि देश मे व्यापक स्तर पर मीडिया सुधारो की आवश्यकता है। ज्यादातर पत्रकारो का मानना है कि केंद्र सरकार को मीडिया आयोग बनाने की आवश्यकता है। श्री चौधरी के अनुसार देश मे पहले 2 प्रेस कमीशन बने थे। पर जिस तरह से मीडिया का विस्तार हुआ है, उसे देखते हुए अब मीडिया आयोग बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि मीडिया आयोग को नए सिरे से "मीडिया" व " पत्रकार" की परिभाषा तय करनी होगी।                 
यूनियन के राष्ट्रीय महासचिव नरेंद्र भंडारी के अनुसार मीडिया रिफॉर्म्स सर्वे फॉर्म में ज्यादातर पत्रकारो की राय है कि सरकार को ऑनलाइन मीडिया को मान्यता देनी चाहिये। श्री भंडारी के मुताबिक लॉकडाउन के बाद ये सामने आया है कि मीडिया जगत में ऑनलाइन मीडिया एक बड़ी ताकत बनकर उभरकर सामने आया है। देश मे बड़े माड़िया घरानों का भी झुकाव ऑनलाइन मीडिया की तरफ हुआ है। श्री भंडारी के अनुसार ऑनलाइन मीडिया के पत्रकारो को भी वे सभी सुविधाएं दी जानी चाहिये जो प्रिंट व इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारो को दी जाती है।                               
इस अभियान के संयोजक व यूनियन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्री संजय उपाध्याय के अनुसार सर्वे में ज्यादातर पत्रकारो का मानना है कि पत्रकारो की मांगों को लेकर सभी मीडिया संस्थ्यओ को एकजुट होना चाहिये। श्री उपाध्याय के मुताबिक इस सर्वे में मीडियाकर्मियों की तरफ से जतायी गयी राय के अनुसार वर्किंग जर्नलिस्ट्स ऑफ इंडिया अपने आगे के आंदोलन की रणनीति तय करेगी।

Tuesday, June 23, 2020

पत्रकार सुप्रिया शर्मा के खिलाफ FIR प्रेस को खामोश करने की कोशिश

वरिष्ठ पत्रकार सुप्रिया शर्मा के मुद्दे को NWMI ने ज़ोरदार ढंग से उठाया 
नई दिल्ली: 20 जून 2020: (समकालीन जनमत)::
नेटवर्क ऑफ वुमेन इन मीडिया, इंडिया (एनडब्ल्यूएमआई) ने प्रधानमंत्री द्वारा 2018 में गोद लिये गये वाराणसी के पास के डुमरी गाँव के निवासियों की आजीविका छिन जाने और उनके भूख के बारे में स्क्रोल डॉट इन की कार्यकारी सम्पादक सुप्रिया शर्मा की रिपोर्ट को निशाना बनाते हुये उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज की गयी एफआईआर की निन्दा की है और इसे प्रेस को खामोश करने का प्रयास बताया है। एनडब्ल्यूएमआई ने एफ.आई.आर. को वापस लेने और सुप्रिया शर्मा को गिरफ्तारी से बचाने की मांग की है। 
शुक्रवार को जारी एक बयान में एनडब्ल्यूएमआई ने कहा कि नोवल कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये लागू कठोर लाॅक डाउन ने भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ठेका और दैनिक वेतनभोगी मजदूरों को घोर तंगी और अनिश्चितता में झोंक दिया है। ऐसे समय में सार्वजनिक बहसों और नीतिनिर्धारण के लिये ग्रामीण क्षेत्रों और संवेदनशील समुदायों की सूचनायें बहुत महत्वपूर्ण हो गयी हैं। फिर भी पूरे भारत में और खासतौर पर उत्तर प्रदेश में सरकार और पुलिस विभाग ने यह जरूरी कर्तव्य निभानेवाले पत्रकारों को निशाना बनाते हुये मार्च में जारी लाॅक डाउन की तिथि से अब तक कम से कम 55 शिकायतें दर्ज की हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार सुप्रिया शर्मा को निशाना बनाते हुये एफ0आई0आर0 दर्ज किया जाना इसी कड़ी का ताज़ा उदाहरण है।
वाराणसी के हाशिये के दलित समुदायों और अनौपचारिक श्रमिकों पर लाॅक डाउन के प्रभावों के गहन शोधों के आधार पर सुप्रिया शर्मा ने आठ विस्तृत रिपोर्टें जारी की हैं। डुमरी के निवासियों, पंचायत के कर्मचारियों और जिले के अधिकारियों से साक्षात्कार पर आधारित उनकी रिपोर्ट में गाँव के लोगों की भयंकर भूख का वर्णन है और यह भी कहा गया है कि कैसे सरकार के वायदों के बावजूद उन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ी है- उनकी जीविका छिन गयी और उन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली से राशन भी नहीं मिल सका. जातीय पूर्वाग्रहों के चलते हालात और भी बिगड़ गये.
13 जून की एफ.आई.आर. में उन्हीं माला देवी को शिकायतकर्ता बनाया गया है जिनका साक्षात्कार सुश्री शर्मा ने किया था, और कहा गया है कि माला देवी ने लाॅक डाउन के दौरान भूखे रहने की शिकायत नहीं की थी।  एफ.आई.आर. में माला देवी का आरोप है कि अपनी स्टोरी में सुप्रिया शर्मा ने अपना कर्तव्य और अपने लाॅक डाउन के अनुभव का ठीक ढंग से प्रतिनिधित्व नहीं किया है। एफ.आई.आर. में शिकायतकर्ता ने कहा है कि वह किसी नागरिक संगठन के लिये काम कर रही थी। सुश्री शर्मा के रिपोर्ट में उन्होंने कहा था कि उनका बेटा किसी नागरिक संगठन के लिये काम कर रहा था और वह एक घरेलू सहायिका थी।
पुलिस ने सुप्रिया शर्मा सुश्री के ऊपर पत्रकार बिरादरी को आतंकित करने के उद्देश्य से भा.द.वि. की धारा 501 (मानहानि) के अलावा अनुसूचित जाति एवं जनजाति (नृशंसता निवारण) कानून, 1989 के अन्तर्गत भी मुकदमा कायम किया है। 
हाँलाकि, एफ.आई.आर. में उल्लिखित अनुसूचित जाति एवं जनजाति (नृशंसता निवारण) कानून की दो धाराओं का सुश्री शर्मा की रिपोर्ट से कोई सम्बन्ध नहीं है, और न ही उनमें ऐसा कुछ दिखायी देता है जिसका जिक्र माला देवी ने अपनी शिकायत में किया है। पुलिस ने एफ.आई.आर. में बिना किसी आधार के भा.द.वि. की धारा 269- लापरवाही की धारा, जिससे संक्रमण फैलता है, भी लगाया है।
सुश्री शर्मा की रिपोर्ट से इन धाराओं का कुछ भी लेना-देना नहीं है. आदिवासियों और दलित कार्यकर्ताओं के वर्षों के सतत संघर्ष से ही अनुसूचित जाति एवं जनजाति (नृशंसता निवारण) कानून में 2015 और 2018 के संशोधन अस्तित्व में आये हैं। एक ओर तो पुलिस अनवरत रूप से दलितों और आदिवासियों के विरुद्ध किये गये गम्भीर अपराधों पर एफ.आई.आर. दर्ज करने से मना करके उनका दमन और उनके प्रति शत्रुवत व्यवहार कर रही है और दूसरी ओर उनकी संवेदनशीलता की रिपोर्टिंग करने पर पत्रकारों के विरुद्ध उसी कानून का प्रयोग कर रही है, यह पत्रकारों के प्रति पुलिसिया अत्याचार और उनके दमन की ख़तरनाक़ नयी प्रवृत्ति है।
ऐसे मामले एक पत्रकार और स्क्रोल.इन जैसे छोटे मीडिया संगठनों के वित्तीय संसाधनों की बर्बादी का सबब बनते हैं। फिर भी स्क्रोल.इन अपनी साहसी रिपोर्टिंग पर ऐसे खुल्लमखुल्ला हमले की कोशिशों से बिना डरे अपनी रिपोर्ट के मन्तव्य पर अटल है।
नेटवर्क ऑफ वुमेन इन मीडिया इंडिया, सुप्रिया शर्मा और स्क्रोल डॉट इन के पक्ष में मजबूती के साथ खड़ा है और प्रेस को ख़ामोश करने और उसे समाज के सर्वाधिक वंचित तबके के हालात पर रिपोर्टिंग करने के कर्तव्य से रोके जाने के ऐसे प्रयासों की पुरजोर मजम्मत करता है. हम माँग करते हैं कि यह एफ0आई0आर0 वापस ली जाय और शर्मा को गिरफ्तारी से बचाया जाय.  ---by समकालीन जनमत June 20, 2020


वरिष्ठ पत्रकार सुप्रिया शर्मा की  रिपोर्ट  को आप यहाँ पढ़ सकते हैं:










( नेटवर्क ऑफ वुमेन इन मीडिया के बयान का हिन्दी अनुवाद दिनेश अस्थाना ने किया है)

Saturday, June 13, 2020

वीडियो ब्लॉगिंग प्रतियोगिता ‘मेरा जीवन, मेरा योग’

13th June 2020 10:14AM  PIB Delhi
 प्रविष्टियां जमा करने की अंतिम तिथि 21 जून, 2020 तक बढ़ाई  
नई दिल्ली: 13 जून 2020: (पीआईबी)::
प्रधानमंत्री श्री नरेन्‍द्र मोदी द्वारा हाल ही में घोषित वीडियो ब्लॉगिंग प्रतियोगिता ‘मेरा जीवन, मेरा योग’ के लिए प्रविष्टियां जमा करने की अंतिम तिथि 21 जून, 2020 तक बढ़ा दी गई है। डिजिटल प्लेटफॉर्म पर यह वैश्विक प्रतियोगिता आयुष मंत्रालय और भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (आईसीसीआर) द्वारा छठे अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर संयुक्त रूप से आयोजित की जा रही है।

इससे पहले इस प्रतियोगिता के लिए प्रविष्टियां जमा करने की अंतिम तिथि 15 जून 2020 तय की गई थी। यह तिथि बढ़ाने के लिए देश-विदेश से मांग की जा रही थी, ताकि योग बिरादरी को वीडियो तैयार करने के लिए अधिक समय मिल सके। भारी मांग को ध्‍यान में रखते हुए ही मंत्रालय और आईसीसीआर ने प्रविष्टियां जमा करने की अंतिम तिथि को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस यानी 21 जून तक बढ़ाने का निर्णय लिया है।

प्रधानमंत्री ने 31 मई को अपने ‘मन की बात’ कार्यक्रम के दौरान राष्ट्र को संबोधित करते हुए सभी से वीडियो ब्लॉगिंग प्रतियोगिता ‘मेरा जीवन, मेरा योग’ में भाग लेने का आह्वान किया था। यह प्रतियोगिता लोगों के जीवन पर योग के उल्‍लेखनीय परिवर्तनकारी प्रभावों पर फोकस करती है और यह छठा अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस मनाए जाने से जुड़ी विभिन्‍न उत्‍कृष्‍ट गतिविधियों में से एक अहम गतिविधि के रूप में उभर कर सामने आई है।

इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए प्रतिभागियों को 3 योगाभ्यासों (क्रिया, आसन, प्राणायाम, बंध या मुद्रा) का 3 मिनट की अवधि वाला वीडियो अपलोड करना होगा, जिसमें इस आशय का एक लघु वीडियो संदेश भी शामिल करना होगा कि योगाभ्यासों से किस तरह उनके जीवन में उल्‍लेखनीय सकारात्‍मक परिवर्तन हुए हैं। वीडियो को प्रतियोगिता के हैशटैग #MyLifeMyYogaINDIA और उपयुक्त श्रेणी के हैशटैग के साथ फेसबुक, ट्विटर, इंस्टाग्राम या माईगव प्लेटफॉर्म पर अपलोड किया जा सकता है। इसमें भागीदारी के लिए विस्तृत दिशा-निर्देश आयुष मंत्रालय के योग पोर्टल (https://yoga.ayush.gov.in/yoga/) पर उपलब्‍ध हैं।

यह प्रतियोगिता दो चरणों में होगी। प्रथम चरण में देश-वार वीडियो ब्लॉगिंग प्रतियोगिताएं शामिल हैं, जिनके विजेताओं का चयन देश के स्तर पर किया जाएगा। इसके बाद वैश्विक पुरस्कार विजेताओं का चयन किया जाएगा जिन्हें विभिन्न देशों के विजेताओं में से चुना जाएगा। यह प्रतियोगिता लोगों के जीवन पर योग के उल्‍लेखनीय परिवर्तनकारी प्रभावों का पता लगाने का एक अहम प्रयास है, जिसके बारे में प्रत्येक प्रतिभागी स्‍वयं के द्वारा प्रस्‍तुत किए जाने वाले वीडियो में बताएंगे।

इस प्रतियोगिता के लिए प्रतिभागियों द्वारा प्रविष्टियों को तीन श्रेणियों के तहत प्रस्तुत किया जा सकता है जिनमें युवा (18 वर्ष से कम आयु), वयस्क (18 वर्ष से अधिक उम्र) और योग प्रोफेशनल शामिल हैं और इसके साथ ही ये श्रेणियां पुरुष एवं महिला प्रतिभागियों के लिए अलग-अलग होंगी। भारत के प्रतिभागियों के मामले में प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार पाने वालों को प्रथम चरण में प्रत्येक श्रेणी के लिए 1 लाख रुपये, 50,000 रुपये और 25,000 रुपये का पुरस्कार दिया जाएगा, जबकि वैश्विक पुरस्कार प्रथम, द्वितीय और तृतीय पुरस्कार पाने वालों के लिए 2500 डॉलर, 1500 डॉलर और 1000 डॉलर के होंगे।  

आयुष मंत्रालय ने सभी को बढ़ी हुई अवधि का उपयोग करने और बिना अधिक विलंब किए वीडियो प्रस्तुत करने के लिए आमंत्रित किया है। (PIB)
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Thursday, June 11, 2020

अमेरिका में विरोध-प्रदर्शनों के दौरान पत्रकारों पर बल प्रयोग की निन्दा


 मीडियाकर्मियों को अपना काम करने की पूरी आज़ादी हो 
10 जून 2020:मानवाधिकार
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिकी राष्ट्रों के संगठन (OAS) द्वारा नियुक्त स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने नस्लभेद विरोधी आन्दोलनों की कवरेज कर रहे पत्रकारों के ख़िलाफ़ बल प्रयोग की निन्दा की है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि लोकतान्त्रिक समाज में प्रैस की अहम भूमिका है और विरोध प्रदर्शनों के दौरान मीडिया को आज़ादी से काम करने की व्यवस्था का सुनिश्चित किया जाना चाहिए।  
पहरेदार की भूमिका
यूएन और अन्तर-अमेरिकी आयोग के विशेषज्ञों ने कहा कि लोकतान्त्रिक समाजों में प्रैस की एक बेहद आवश्यक पहरेदार (वॉचडॉग) के रूप में अहम भूमिका है। 

उनके मुताबिक अमेरिका में संघीय, प्रान्तीय और स्थानीय प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि मीडियाकर्मियों को अपना काम करने की पूरी आज़ादी हो और उन्हें पूर्ण सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए।  

क़ानून एजेंसियों का यह दायित्व है कि पत्रकारों के ख़िलाफ़ ताक़त के इस्तेमाल या फिर ऐसी धमकियाँ दिए जाने से परहेज़ किया जाए और किसी अन्य पक्ष द्वारा की जा रही हिन्सा के दौरान पत्रकारों की रक्षा की जाए। 

“पत्रकारीय ज़िम्मेदारी को निभाने में जुटे मीडियकर्मियों को निशाना बनाए जाने पर अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों के अन्तर्गत पाबन्दी है और यह पुलिस के लिए निर्धारित सर्वश्रेष्ठ मानकों के भी विपरीत है।”

बयान में आगाह किया गया है कि अगर इन नियमों की अवहेलना होती है तो फिर जवाबदेही तय करने के लिए अनुशासनात्मक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए। 

विशेषज्ञों ने अफ़सोस ज़ाहिर किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति पिछले कई सालों से अपने बयानों में मीडिया को जनता का दुश्मन बताकर हमला करते रहे हैं जिससे टकराव और असहिष्णुता को बढ़ावा मिलता है। 

साथ ही अमेरिका में पुलिस का सैन्यीकरण हो रहा है जिससे ना सिर्फ़ जनता के शान्तिपूर्ण ढँग से एकत्र होने का अधिकार प्रभावित होता है बल्कि विरोध-प्रदर्शनों की कवरेज करने की मीडिया की आज़ादी पर भी असर होता है।  

इसी को ध्यान में रखकर विशेषज्ञों ने असैन्यीकरण को प्रोत्साहन देने और प्रदर्शनों से निपटने के लिए अन्तरराष्ट्रीय मानकों का पालन करने की बात कही है। 

स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है। ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है। 

स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं। 

अभिव्यक्ति की आज़ादी पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ (विशेष रैपोर्टेयर) डेविड काए और मानवाधिकारों पर अन्तर-अमेरिकी आयोग के विशेषज्ञ एडीसन लान्ज़ा ने बुधवार को एक साझा बयान जारी करके पत्रकारों पर हमले, उनके उत्पीड़न, उन्हें हिरासत में रखने और गिरफ़्तार किए जाने पर चिन्ता जताई है। 

ग़ौरतलब है कि अमेरिका के मिनियापॉलिस शहर में एक काले अफ़्रीकी व्यक्ति जियॉर्ज फ़्लॉयड की गर्दन पर एक श्वेत पुलिस अधिकारी ने कई मिनटों तक घुटना टिकाए रखा था और समझा जाता है कि दम घुटने और हालत बिगड़ने पर बाद में पुलिस हिरासत में ही उनकी मौत हो गई। 

उनकी मौत के बाद बड़े पैमाने पर अमेरिका के कई शहरों और अन्य देशों में नस्लीय न्याय की माँग करते हुए प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे हैं। 

संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने हाल ही में जानकारी देते बताया कि कम से कम 200 ऐसी घटनाएँ दर्ज की गई हैं जिनमें प्रदर्शनकारियों को कवर करने वाले पत्रकारों पर शारीरिक रूप से हमला किया गया, उन्हें डराया धमकाया गया या मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तार किया गया, जबकि वो पत्रकार अपने प्रैस कार्ड पहने हुए थे। 

ताज़ा बयान में कहा गया है कि पत्रकारों के साथ ऐसा बर्ताव तब हुआ जब वे अमेरिका में ढाँचागत नस्लवाद और पुलिस क्रूरता के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों को कवर करने की अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे थे। 

उन्होंने ध्यान दिलाया है कि विरोध-प्रदर्शनों की कवरेज कर रहे पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना क़ानून-व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों का कर्तव्य है। 

साथ ही यह ज़रूरी है कि जनता तक ऐसे प्रदर्शनों से सम्बन्धित जानकारी पहुँच सके, यह उनका अधिकार है। 

इंडिया क्वार्टरली पत्रिका अब हिंदी में भी

 वैश्विक मामलों पर 1945 से हो रहा है लगातार प्रकाशन  
10 जून, 2020  
इंडिया क्वार्टरली, विश्व मामलों की भारतीय परिषद का वैश्विक मामलों पर 1945 से प्रमुख प्रकाशन है जिनका भारत के हितों पर प्रभाव पड़ता है। यह एक विचारक और विद्वत् समीक्षक पत्रिका है। इस पत्रिका का उद्देश्य भारत और विदेशों के विद्वानों, विश्लेषकों, नीति निर्माताओं को अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और राष्ट्रीय विदेश नीतियों से संबंधित विषयों पर मौलिक लेख लिखने के लिए प्रोत्साहित करना है। इसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय अभिज्ञान के महत्व के किसी भी विषय पर महत्वपूर्ण और वस्तुनिष्ठ विश्लेषण को बढ़ावा देना है।
इंडिया क्वार्टरली, अब पहली बार, हमारे पाठकों के लिए हिंदी में उपलब्ध करवाई गई है। इसका पहला अंक - खंड 11, अंक 11, जनवरी 2020 का www.icwa.in अथवा www.sagebhasha.com पर ऑनलाइन अवलोकन किया जा सकता है। इंडिया क्वार्टरली का हिंदी संस्करण आईसीडब्ल्यूए द्वारा मेसर्स सेज प्रकाशन इंडिया प्राइवेट लिमिटेड के सहयोग से प्रकाशित किया जाएगा।
आईसीडब्ल्यूए, इस महत्वपूर्ण पहल के माध्यम से, भारत में अंतर्राष्ट्रीय मामलों और विदेश नीति से जुड़े मामलों पर हिंदी में संसूचित और सुदृढ़ संवाद करने में योगदान देना चाहता है।

Tuesday, June 2, 2020

कामरेड तारिक दा को जैसा मैंने देखा--एम एस भाटिया

कामरेड तारिक दा ने इस साजिश को बहुत पहले भांप लिया था 
लुधियाना2 जून 2020: (कामरेड एम एस भाटिया का विशेष पोस्ट कामरेड स्क्रीन में भी ):: गांव गांव में बिजली का की तारें, गांव गांव में टेलीफोन का नेटवर्क, घर घर तक बैंक की सुविधा और हर गांव के हर घर तक स्वास्थ्य लाभ की सुविधाएँ। इस सब को हर गांव के हर घर तक पहुंचना आसान नहीं था।  सरकारी कर्मचारियों ने बहुत ही मुश्किलें उठा कर इस काम को पूरा किया। इस सब के पूरा होते ही इस पर आंख लग गयी पूंजीपतियों की। वे सारे का सारा विकसित ढांचा अपनी मुट्ठी में करने के लिए अपना जाल बिछाने लगे। इसके साथ ही शुरू हो गया देश की नई गुलामी का सिलसिला। बहुत सी कंपनियां हमारी मालिक बन बैठी। 
देश के पब्लिक सेक्टर को निजी हाथों में सौंपने की तैयारियां वास्तव में बहुत पहले से ही शुरू हो गईं थीं और कामरेड तारकेश्वर दा जैसे लोग इस सारी साजिश को बहुत पहले से ही भांप गए थे। खतरे ही खतरे थे। अँधेरा ही अंधेरा था। हालात नाज़ुक रुख अख्तियार कर रहे थे। कामरेड तारिक दा ने देख लिया था इस खतरनाक अँधेरे भविष्य का भयावह दृश्य कि नौकरियां भी खतरे में आ जाएंगी और पूरे का पूरा पब्लिक सेक्टर भी। उनकी दूरदर्शी निगाहों ने यह सब बहुत पहले देख लिया था। सत्ता पर बैठे लोग किस तरफ जा रहे हैं इसकी भनक उन्हें लग गयी थी। पूंजीवाद की हवा आंधी की तरह चलने लगी थी। 
उस वक्त उन्होंने इस साजिश के खिलाफ ज़ोरदार आवाज़ बुलंद की। इस तरह का सारा विवरण और सभी घटनाएँ बता रहे हैं उन्हें बहुत ही नज़दीक से देखने वाले कामरेड एम एस भाटिया जो पत्रकार होने के साथ साथ सीपीआई की लुधियाना इकाई के वित्तीय सचिव भी हैं---पढिये कामरेड तारिक दा के सम्बन्ध में कामरेड भाटिया का विशेष पोस्ट कामरेड स्क्रीन में भी---