Monday, October 24, 2022

सम्राट सिंह की फिल्म Samaan का सवाल-हम हत्यारे तो नहीं?

दिवाली पर पटाखों के आतंक का कहर दर्शाती फिल्म "सामान"

मोहाली: 24 अक्टूबर 2022: (कार्तिका सिंह//मीडिया स्क्रीन):


अगर कभी आपको भी किसी तेज़ सी आवाज़ ने झटके के साथ नींद से उठाया हो
और खीझ कर उठते हुए आपके मुँह से सरसरा ही निकल गया हो कि हाय !यार!, सोने भी नहीं देते! .......  या फ़िर यूँही गली में टहलते वक़्त, किसी तीख़ी सुगंध ने आपके गले को खाँसने पर मज़बूर किया हो, या किसी मोड़ से गुज़रते हुए, मज़ाक में फेंकी गई एक छोटी सी चीज़ ने दिल को कुछ सेकंड्स के लिए दहला दिया हो, और गुस्सा आने पर भी आपने कह दिया हो कि, दिवाली है, पटाखे तो बनते हैं।  हाय.... कितना बड़ा दिल है न आपका।  तो आज मैं आपसे एक छोटी सी गुजारिश करती हूँ, कि इतना बड़ा दिल रखना छोड़ दीजिये।  इस बार जब दिवाली का सामान लेने जाएं, तो उस फ़ेहरिस्त में, सबसे ऊपर इस 'सामान' को रखें। एक छोटी सी 9 मिनट 17 सेकण्ड्स की एक शार्ट फ़िल्म, धुंए से भरी आपकी आँखों को एक नई रौशनी के साथ-साथ नई दिशा में देखने पर मज़बूर कर सकती है कि कहीं घर पर रौशनी भरी खुशियां मनाते हुए, किसी के घर की चिरागों को हम बुझा तो नहीं रहे? 

Lucky26 Films के बैनर तले बनी ये शार्ट-फ़िल्म आपसे सवाल कर सकती है, कि हर साल दिवाली पर अपनी जान गवां देने वाले लोगों और अनगिनत जानवरों की मौत के जिम्मेदार कहीं हम ख़ुद तो नहीं? खुद को सकते में मत रखियेगा, मन में ज़रा सी भी शंका का उठना, या हाथों का कंपन, शायद आपके जिंदा दिल और इंसान होने का सबूत दे जाये। 

'सामान' में ज़्यादा डायलॉग्स नहीं है, पर सिनेमैटोग्राफी और कंसेप्ट बहुत स्ट्रांग है। आई एम् बी डी रेटिंग्स और ब्लॉकबस्टर हिट्स के दौर में, ऐसी फिल्में बहुत कम होती है, जो मुनाफ़े को नकारते हुए, जिंदगियां बचाने का काम करती हैं। फिल्म का कांसेप्ट और  निर्देशन डायरेक्टर सम्राट सिंह ने बख़ूबी ढंग से किया है।  

इसकी पूरी कहानी यहां नहीं बताऊंगी, उसके लिए आप झट से नीचे दिए हुए लिंक पर क्लिक कीजिए और सिर्फ़ 10 मिनट के लिए इस फ़िल्म की अनकही बातों को अपनी आँखों से पढ़ने दीजिये। और साथ ही अपने मन को सवाल करने दीजिये, कि इस बार आप खुद को रोक सकेंगें, चंद घड़ियों की इस शोर-नुमा बेहूदा ख़ुशी से?

हमें बचपन से आंसू पोछना और छुपाना सिखाया जाता है, आज एक-दूसरे के लिए कुछ बूंदों को बहने दीजिये। शायद यही बची है एक निशानी जो बता सकती है हमारे अंदर कुछ मानवीय संवेदना बची है या नहीं? 

जानती हूँ दिवाली है, सजावट और मिठाई के साथ ही पटाखे भी तो शगुन  होते हैं, अरे हमारे बच्चे नहीं चलाएंगे तो बाजू वाले क्या कहेंगे? इसलिए थोड़े-बहुत तो बनते ही हैं। ये तो हर साल का बहाना है, इस बार चलिए पटाखे न चलाकर, धौंस जमाते हैं, कुछ तो सबसे अलग बनता हैं ना।  अब अपने 250 किलो की फोकी शौहरत और ईगो को साइड पे रखिये और शाम ढलने से पहले फटाफट ये शार्ट-फिल्म 'सामान" देख लीजिए। बस आपसे एक  शायद इस फिल्म को देख कर समाज के लिए इस बार की दिवाली या अगली बार की दिवाली सचमुच ही रौशन हो जाए। इस रौशनी की ज़रूरत अब हमें सबसे ज़यादा है। 


क्लिक की दूरी पर है।
 

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