Monday, December 9, 2013

छत्तीससगढ़ में पत्रकार कल्याण कोष

मीडिया स्क्रीन में हम मीडिया से जुड़ी जानकारी अक्सर देते रहते हैं। इसी सिलसिले में इस बार प्रस्तुत है छत्तीसगढ़ में जारी पत्रकार कल्याण कोष  विवरण। इसे आप छत्तीसगढ़ मेल में भी पढ़ सकते हैं। 
छत्तीसगढ़ पत्रकार कल्याण कोष नियम 2001
छत्तीसगढ़ राजपत्र
प्राधिकार से प्रकाशित  


क्रमांक 17,   रायपुर, शुक्रवार, दिनांक 27 अप्रैल 2001 - वैशाख 7, शक 1923

छत्तीसगढ़ पत्रकार कल्याण कोष नियम 2001
जनसम्पर्क विभाग
मंत्रालय, डी.के.एस. भवन, रायपुर
रायपुर, दिनांक 27 अप्रैल 2001

   क्रमांक 1176 एच./जसंसं/2001.-छत्तीसगढ़ पत्रकार कल्याण समिति के विधान के अधीन छत्तीसगढ़ पत्रकार कल्याण कोष के उद्देश्यों को पूरा करने के लिये प्रबंध समिति अपने कार्य संचालन के लिए नीचे दी गयी नियमावली बनाती है, अर्थात :-

   नियम (1) नाम-यह नियम छत्तीसगढ़ पत्रकार कल्याण कोष नियम 2001 कहलायेंगे.

   नियम (2) पत्रकारों के कल्याण के लिये शासन द्वारा आबंटित राशि का वितरण इन नियमों के अनुसार किया जायेगा.

   नियम (3) पत्रकार कल्याण कोष का आहरण और संवितरण जनसंपर्क संचालक अथवा उनके द्वारा  नामजद अधिकारी द्वारा किया जायेगा.

   नियम (4) पात्रता-छत्तीसगढ़ के श्रमजीवी पत्रकार और ऐसे पत्रकार जिन्हें समिति सहायता के लिये पात्र समझती है और उन पर आश्रित परिवार के सदस्य इस निधि से सहायता पाने के पात्र होंगें.

   नियम (5) सहायता निम्नलिखिल स्थितियों में दी जा सकेगी :-

   (क) नियम 4 से उल्लिखित पत्रकार अथवा उनके परिवार के सदस्यों को लंबी अथवा गंभीर बीमारी या दुर्घटना में आहत होने पर इलाज के लिये.

   (ख) किसी दैवी विपत्ति से पीड़ित होने पर.

   (ग) पत्रकारिता के क्षेत्र में कम से कम 30 वर्ष की सेवा करने के बाद वृध्दावस्था में विपन्नता के कारण.

   (घ) नियम (4) में उल्लेखित श्रमजीवी पत्रकार की मृत्यु हो जाने पर यदि उस परिवार के पास आजीविका का कोई साधन न हो.

नोट - (परिवार से आशय यथास्थिति पति/पत्नी आश्रित  माता-पिता और नाबालिक बच्चों से है)

   नियम (6) सहायता की राशि-पत्रकार कल्याण निधि से एक वर्ष में एक व्यक्ति को एक बार कम से कम 5,000 रूपए एवं अधिकतम 50,000 (पचास हजार) रूपये की सहायता दी जा सकेगी.
टीप -विशेष परिस्थितियों में जनसंपर्क संचालक को यह अधिकार होगा कि समिति की दो बैठकों के बीच के अंतराल में वे इस सीमा तक सहायता स्वीकृत कर सकें. ऐसे प्रकरण समिति की अगली बैठक में कार्योत्तर अनुमोदन के लिये रखे जाएंगे.

   नियम (7) सहायता प्राप्त करने का तरीका - (क) सहायता प्राप्त करने के लिये परिशिष्ट एक में निर्धारित प्रपत्र पर संबंधित श्रमजीवी पत्रकार/परिवार के सदस्य को आवेदन करना होगा.

   (ख) लेकिन यदि अशक्त होने के कारण सहायता प्राप्त करने के इच्छुक पत्रकार/परिवार के सदस्य निर्धारित प्रपत्र में आवेदन नहीं भर सकें तो उन्हें निकट से जानने वाले दो पत्रकार उनकी ओर से आवेदन कर सकेंगे.

   (ग) विशेष परिस्थितियों में समिति स्वविवेक से सहायता स्वीकृत कर सकेगी.

टीप :- नियम 6 की टीप के अधीन नियम 7 क ख ग के अंतर्गत जनसंपर्क संचालक द्वारा सहायता सव्ीकृत की जा सकेगी.

   नियम (8)-प्राप्त आवेदन पत्रों पर समिति का निर्णय अंतिम होगा.

   नियम (9)  व्याख्या-नियम की व्याख्या के संबंध में शासन का निर्णय अंतिम होगा.

छत्तीसगढ़ के राज्यपाल के नाम से तथा आदेशानुसार
सी.के. खेतान, अपर सचिव

प्रपत्र परिशिष्ट एक
आवेदन - पत्र
(1) आवेदक का  पूरा नाम
(2) आवेदक के पिता/पति का नाम
(3) आवेदक का पता
(4) पत्रकारिता के क्षेत्र में आवेदक की सेवा की संक्षिप्त जानकारी

नोट- आश्रितों द्वारा आवेदन किये जाने पर दिवंगत पत्रकार की सेवाओं का संक्षिप्त विवरण दिया जाये.
(5) समस्त स्रोतों से आवेदक /आश्रितों की आय
(6) परिवार के आश्रित सदस्यों के बारे में निम्नानुसार जानकारी दें :-

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   क्र.        नाम        आयु        संबंध        सभी स्रोतों से वार्षिक आय
   (1)        (2)        (3)        (4)            (5)

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(7) अपने/पति/पत्नी अथवा परिवार के आश्रित सदस्यों के पास, यदि कोई हो तो, अचल संपत्ति का विवरण और उससे होने वाली वार्षिक आय.
(8) प्रयोजन जिसके लिये सहायता अपेक्षित है.
(9) यदि अन्य किसी कोष से सहायता मिली हो तो उसकी जानकारी.
(10) अन्य जानकारी ..........................................................
(11) स्थान और दिनांक ...................................................
 

जहां श्रमजीवी पत्रकार/आश्रित खुद आवेदन नहीं करते एवं उसके बदले उन्हें जानने वाले दो पत्रकार आवेदन करते हैं, तो दोनों के हस्ताक्षर होंगे और बिंदु 10 के तहत यह स्पष्ट बतायेंगे कि किन परिस्थितियों में आवेदक/आश्रित आवेदन नहीं कर रहे हैं।

नोट- आवेदन प्रपत्र में निर्दिष्ट सभी बिंदुओं पर सुवाच्च अक्षरों में पूरी जानकारी दी जानी चाहिए
हस्ताक्षर

(आवेदक का पूरा नाम)

Date:  5 March 2007 - 6:52pm         

छत्तीससगढ़ में पत्रकार कल्याण कोष 

Friday, October 11, 2013

"इंडोनेशिया पड़ोस में सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी"

10-अक्टूबर-2013 19:24 IST
इंडोनेशिया के कोम्पास समाचार पत्र को प्रधानमंत्री का साक्षात्कार
प्र. भारत और इंडोनेशिया के बीच पुरानी सभ्यता से संबंध चले आ रहे हैं और हम

रणनीतिक साझेदार हैं। आपकी यात्रा से इंडोनेशिया को क्या मुख्य उम्मीदें हैं ?

उत्तर . हम इंडोनेशिया को अपने पड़ोस में सबसे महत्वपूर्ण सहयोगी और भारत की पूर्व की ओर देखो नीति के एक महत्वपूर्ण घटक के रूप में मानते हैं। हमारे दोनों देश दुनिया में सबसे अधिक आबादी वाले देशों में भी शामिल हैं। हम दोनों बहुलवादी लोकतंत्र हैं जिनके समुद्री सुरक्षा और शांतिपूर्ण, स्थिर और समृद्ध एशिया के उद्भव सहित अनेक साझा हित हैं।  हमारे सभ्यतागत संबंधों पर आधारित जो सिर्फ कला और संस्कृति का ही संगम नहीं है बल्कि विचारों , मूल्यों और सामाजिक लोकाचार का एक संगम है, इसमें व्यापार और निवेश सहित अनेक व्यापक क्षेत्रों में द्विपक्षीय सहयोग की अपार संभावनाएं मौजूद हैं। रामायण और महाभारत , प्राचीन मंदिरों और स्तूप की वास्तुकला , डिजाइन और हथकरघा वस्त्रों की रूपांकनों में समानता , बुजुर्गों और बुद्धिमानों के लिए सम्मान, सब हमारी साझा विरासत हैं। हमारे दोनों देशों के नेताओं ने भी हमारे अपने स्वतंत्रता संघर्ष , एफ्रो एशियाई एकजुटता के दौरान अपने अनुभवों को साझा किया और गुट निरपेक्ष आंदोलन का नेतृत्व किया।

     हमारे संबंध आज मजबूत , बहुआयामी सामरिक साझेदारी के रूप में निखरे हैं।  हम संयुक्त राष्ट्र , गुटनिरपेक्ष आंदोलन , जी -20 , ईएएस और अन्य आसियान तंत्र , आईओआर-एआरसी तथा विश्व व्यापार संगठन जैसे  क्षेत्रीय , बहुपक्षीय और अंतरराष्ट्रीय मंचों पर मिलकर काम करते हैं।  2011 में राष्ट्रपति युधोयोनो की भारत यात्रा से हमारे संबंधों को अधिक गति मिली। मैं अपनी यात्रा से मजबूत और प्रगाढ़ सामरिक संबंधों, व्यापार और निवेश संबंधों को मजबूत बनाने  और लोगों से लोगों के बीच संबंधों को व्यापक बनाने की उम्मीद कर रहा हूं।

प्र. भारत और इंडोनेशिया के बीच व्यापार 20 अरब डॉलर का है। वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के संदर्भ में, आप क्या सोचते हैं कि हमारे देशों के बीच व्यापार/निवेश संबंधों पर कैसे सुधार किया जा सकता है ? एक उपयोगी भारत-इंडोनेशिया भागीदारी के लिए महत्वपूर्ण क्षेत्र कौन से हैं?

उत्तर . द्विपक्षीय व्यापार में रुझान सकारात्मक हैं, हालांकि वैश्विक वित्तीय स्थिति के कारण व्यापार में 2012-13 में मामूली गिरावट देखी गई  और 20 अरब डॉलर का हुआ। हमें 2015 तक 25 अरब अमरीकी डॉलर के द्विपक्षीय व्यापार लक्ष्य को हासिल करने का पूरा भरोसा है। हमें विश्वास है कि हमारी क्षमता इससे बहुत अधिक है।

     हमें अपने व्यापार में विविधता लानी चाहिए, व्यापार और निवेश करने के लिए बाधाओं को सुलझाने और दोनों दिशाओं में निवेश के उच्च प्रवाह को प्रोत्साहित करना चाहिए।  द्विपक्षीय व्यापक आर्थिक सहयोग समझौते (सीईसीए) से पर दोनों पक्षों के लिए द्वार खुलेंगे और वृद्धि को मजबूत प्रोत्साहन मिलेगा।

     आसियान भारत सेवाओं और निवेश समझौते पर शीघ्र हस्ताक्षर करने, 2015 के अंत तक क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी पर वार्ता (आरसीइपी) और आसियान आर्थिक समुदाय के रूप में उभरने से  भी इंडोनेशिया के साथ हमारे व्यापार एवं निवेश संबंधों पर सकारात्मक असर होगा।

     इंडोनेशिया से हमारा आयात बड़े पैमाने पर होता रहा है जो विविधतापूर्ण चाहिए। भारत कृषि उत्पाद, ऑटोमोबाइल घटकों , इंजीनियरिंग सामान , आईटी , फार्मा, मांस और मांस उत्पादों तथा जैव प्रौद्योगिकी उत्पादों सहित माल की एक विस्तृत श्रृंखला के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत हो सकता है।

     भारतीय कंपनियां इंडोनेशिया को आकर्षक निवेश राष्ट्र के रूप में देखती हैं।  हम पहले ही आपके देश में बुनियादी सुविधाओं , बिजली , कपड़ा , इस्पात , मोटर वाहन , खनन , बैंकिंग और एफएमसीजी के निर्माण में महत्वपूर्ण निवेश कर चुके हैं।   टाटा , बिड़ला , रिलायंस , एसबीआई , और कई अन्य सहित सभी प्रमुख भारतीय कंपनियों की इंडोनेशिया में उपस्थिति है।  इसकी तुलना में भारत में इंडोनेशिया के निवेश अपेक्षाकृत सीमित हैं। मैं इंडोनेशियाई कंपनियों को आमंत्रित करता हूं कि वे उन भारी निवेश के अवसरों को देखें जो भारत बुनियादी ढांचे, रसद , आतिथ्य सत्कार और सेवा क्षेत्रों में उपलब्ध कराता है।  यह दोनों देशों के आपसी हित में होगा यदि इंडोनेशिया शिक्षा, स्वास्थ्य , दवाइयों और बंदरगाह के विकास के क्षेत्र में भारतीय निवेश को आमंत्रित करे।

प्र. आपकी यात्रा के दौरान कौन से मुख्य करारों / समझौता ज्ञापनों पर हस्ताक्षर होने जा रहे है ?

उत्तर . दोनों पक्षों ने अनेक समझौता ज्ञापन तैयार किए हैं।  उनमें से कुछ सरकारी मंत्रालयों और एजेंसियों के बीच हैं  और अन्य शिक्षा और प्रशिक्षण संस्थानों के बीच हैं।  ये हमारे संबंध के बहुआयामी चरित्र को प्रतिबिंबित करेंगे।

प्र. आसियान समुदाय 2015 में अस्तित्व में आ जाएगा।  भारत ने दिसंबर, 2012 में भारत आसियान स्मारक शिखर सम्मेलन की सफल मेजबानी की। आप आसियान समुदाय में भारत की क्या भूमिका देखते हैं?

उत्तर . मैं ब्रुनेई से सीधे जकार्ता आ रहा हूं जहां हमने 11 वां आसियान भारत शिखर सम्मेलन आयोजित किया। मैंने कई अवसरों पर कहा है कि आसियान के साथ हमारे संबंध हमारी पूर्व की ओर देखो नीति पर आधारित हैं। हम आसियान सहयोग और एकीकरण में प्रगति और व्यापक क्षेत्रीय सहयोग और एकीकरण की कोशिश में आसियान नेतृत्व की प्रशंसा करते हैं। हमें दृढ़ विश्वास है कि इस प्रक्रिया में आसियान की केन्द्रीयता सहकारी , नियम आधारित खुली और समावेशी क्षेत्रीय संरचना के विकास के लिए महत्वपूर्ण है।

     हम आसियान और आसियान केंद्रित प्रक्रियाओं में इंडोनेशिया के नेतृत्व की भूमिका को महत्व देते हैं।  हम पिछले साल दिसंबर में नई दिल्ली में आयोजित स्मारक शिखर सम्मेलन के दौरान अपने संबंधों को सामरिक भागीदारी के स्तर तक लाए। आसियान के साथ हमारे संबंधों में  राजनीतिक , सुरक्षा, आर्थिक और सामाजिक, सांस्कृतिक सहयोग के व्यापक क्षेत्र शामिल हैं।

     हम 2015 तक आसियान समुदाय के विकास की बेसब्री से उम्मीद कर रहे हैं और हर संभव सहायता देने के लिए प्रतिबद्ध हैं। हमारा ध्यान क्षमता निर्माण पर और कनेक्टिविटी पर रहा है ।  हमने कई उद्यमिता विकास केंद्र, अंग्रेजी भाषा प्रशिक्षण के लिए केंद्र और सीएलएमवी देशों में आइटी केंद्र और व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों की स्थापना की है। हम आसियान देशों को 1000 से अधिक छात्रवृत्ति प्रदान करते हैं।  हम भारत और आसियान को और करीब लाने के लिए भारत - म्यांमार- थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग के निर्माण की अपनी पहल के जरिए और कनेक्टिविटी पर आसियान मास्टर प्लान को समर्थन दे के लिए सक्रिय रूप से भौतिक और संस्थागत कनेक्टिविटी की पहल में लगे हुए हैं।

प्र. चीन एशिया प्रशांत क्षेत्र में प्रमुख भागीदार बन गया है।  इस संदर्भ में आप एशिया प्रशांत क्षेत्र में भारत की भूमिका को कैसे देखते हैं? एशिया प्रशांत क्षेत्र में क्षेत्रीय विवादों, सीमा मुद्दों और जापान एवं चीन और भारत एवं चीन के बीच अन्य मुद्दों के बीच कैसे मजबूत संबंध बन सकता है ?

उत्तर . भारत और चीन दो सभ्यतागत पड़ोसी हैं। आर्थिक सहयोग हमारे संबंधों का बहुत महत्वपूर्ण भाग है और यह हमारी दो अर्थव्यवस्थाओं की विकास क्षमता को अधिक से अधिक सहयोग के लिए इंजन प्रदान कर सकता है और यह एशिया और उससे परे भी समृद्धि में योगदान कर सकता है।  हमारे बीच मतभेद हैं लेकिन हमने लगातार एक परिपक्व और पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों का निर्माण किया है।  हमने अपनी सीमाओं पर शांति और सौहार्द बनाए रखा है। हमने क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर सहयोग किया है।

     मैं मानता हूं कि आज दुनिया में अपनी जरूरतों और आकांक्षाओं को पूरा करने के लिए सभी पक्षों से सहकारी प्रयासों के लिए पर्याप्त जगह है।  इस सदी में, जब वैश्विक और अंतर - निर्भरता क्षेत्रीय निर्भरता तेजी से बढ़ रही हैं तब सभी देशों की शांति, सुरक्षा और समृद्धि के लिए  सहयोग , परामर्श और समन्वय , शांतिपूर्ण बातचीत के जरिए मतभेद की अंतरराष्ट्रीय कानून और संकल्प के रूप में भी सम्मान अपरिहार्य हैं।  क्षेत्रीय मंचा इस प्रक्रिया में उपयोगी भूमिका निभा सकते हैं।  इसलिए हम पूर्वी एशिया शिखर सम्मेलन , आसियान क्षेत्रीय मंच , एडीएमएम $ और क्षेत्र में अन्य सहकारी व्यवस्थाओं कोबहुत महत्वपूर्ण मानते हैं।  क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक भागीदारी भी हमारे क्षेत्र के लिए प्रमुख पहल है।

प्र. भारतीय अर्थव्यवस्था उच्च वृद्धि दर से नीचे आ रही है। ज्यादातर विकासशील अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित करने वाली वैश्विक मंदी के अलावा भारतीय अर्थव्यवस्था के सुस्त प्रदर्शन के लिए कौन से मुख्य कारण हैं ?

उत्तर . आप पिछले साल के आर्थिक प्रदर्शन को एक तरफ रख दें , तो पिछले नौ वर्षों में , भारतीय अर्थव्यवस्था प्रतिवर्ष लगभग 8 प्रतिशत की औसत वार्षिक दर से बढ़ी है।  यह किसी भी पिछले एक दशक में भारत द्वारा हासिल की गई उच्चतम वृद्धि दर है।  पिछले साल हमारी वृद्धि दर यूरो क्षेत्र और अमरीका एवं जापान में धीमी गति से वृद्धि सहित , आंशिक रूप क्योंकि वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के कारण घटकर  5 प्रतिशत पर आ गई है।  भारत अपनी तेल की आवश्यकता का करीब 80 प्रतिशत आयात करता है और तेल की बढ़ती कीमतों एवं निर्यात घटने ने हमारे व्यापार संतुलन को चोट पहुँचाई है। भारत में कुछ आपूर्ति संबंधी बाधाएं भी हैं जिनसे हम नीति और प्रशासनिक सुधारों के माध्यम से निपट रहे हैं।

     हालांकि, हमारे आर्थिक बुनियादी कारक मजबूत बने हुए हैं।  हमारी बचत और निवेश दर अब भी सकल घरेलू उत्पाद के 30 प्रतिशत से अधिक है। अपने पूंजी उत्पादन अनुपात को देखते हुए हम मध्यम अवधि में प्रति वर्ष 8 प्रतिशत की वृद्धि दर को बहाल कर सकते हैं।  हमने घरेलू निवेश को बढ़ावा देने के लिए और अधिक विदेशी निवेश को आकर्षित करने, वित्तीय क्षेत्र को मजबूत बनाने तथा कर व्यवस्था में सुधार लाने एवं उसे सरल करने के लिए अनेक उपाय किए हैं।  हमने अपनी आबादी के कमजोर वर्गों के लिए पात्रता कार्यक्रमों की एक विस्तृत रेंज शुरू की है जिसके लिए सरकार के विशेष ध्यान की जरूरत है।  हम राजकोषीय और चालू खाता घाटे से उद्देश्यपूर्ण ढंग से निपट रहे हैं। इसके साथ ही, हम अपनी उदार  व्यापार व्यवस्था बनाए रखेंगे। मुझे विश्वास है कि इन उपायों का असर जल्द दिखाई देगा।

प्र. भारतीय रुपये में तेज गिरावट चिंता का विषय रहा है। इंडोनेशियाई रुपिया भी गिरा है।  हमें कौन सी सावधानियों /उपायों की जरूरत है जो विकासशील देश मुद्रा में स्थिरता लाने के लिए कर सकते हैं?

उत्तर . उभरती अर्थव्यवस्थाएं  लंबे समय से वैश्विक आर्थिक संकट और इसके पटरी पर आने की गति असमान एवं अनिश्चित रहने से प्रभावित हुई हैं। हमारे निर्यात में और निवेश की आवक में मंदी ने वृद्धि और भुगतान संतुलन को प्रभावित किया है।  भारत और इंडोनेशिया जी -20 के हिस्सा हैं। नीतियों पर अंतरराष्ट्रीय समन्वय और संचार बढ़ाने की जरूरत पर सितंबर में सेंट पीटर्सबर्ग में जी -20 शिखर सम्मेलन में बल दिया गया था। निरंतर वैश्विक आर्थिक सुधार से उभरती अर्थव्यवस्थाओं को फायदा होगा।

     हालांकि, हम में से प्रत्येक को भी, आर्थिक विकास में तेजी लाने के लिए विदेशी निवेश आकर्षित करने और निर्यात को बढ़ावा देने , मुद्रा अवमूल्यन से उत्पन्न प्रतिस्पर्धा से लाभ उठाने सहित उपयुक्त राष्ट्रीय कदम उठाने की जरूरत है।

प्र. भारत और इंडोनेशिया में 2014 के चुनावों के लिए कमर कस रहे हैं । वे कौन से मुख्य मद्दें हैं जो भारत में मतदाताओं को प्रभावित करेंगे ?

उत्तर . हम दोनों ही मजबूत लोकतंत्र हैं और चुनाव दोनों के जीवन का एक हिस्सा है।  आज के भारत में करीब 800 मिलियन  मतदाताओं शिक्षित है और राजनीतिक रूप से अच्छी तरह से वाकिफ हैं।  कई युवा हैं और ऊर्जा से भरपूर हैं, उद्यमी और महत्वाकांक्षा से भरे हुए हैं।  उन्हें अवसरों , रोजगार, शिक्षा , कौशल विकास , भोजन और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच के जरिए अपने और अपने बच्चों के लिए बेहतर जीवन की तलाश है।  ये सभी मुद्दे आने वाले चुनावों में छाए रहने की उम्मीद है।

प्र. भारत विशेष रूप से व्यावसायिक प्रशिक्षण केंद्रों , प्रशिक्षण और शिक्षा की स्थापना में , विकास भागीदारी में बड़ी भूमिका निभा रहा है। इसे और अधिक प्रभावी बनाने के लिए आपकी नजर में और क्या किया जा सकता है ?

उत्तर . भारत विकासशील देश है, यह राष्ट्रीय विकास और लोगों के जीवन स्तर में सुधार पर केंद्रित है। साथ ही,  हम अपने अनुभव , विशेषज्ञता और संसाधनों को साझा करके जिस हद तक भी हम कर सकते हैं, अन्य देशों के विकास के प्रयासों में भागीदार होने के लिए खुश हैं।  मानव संसाधन किसी देश की सफलता की कुंजी है। इसीलिए हमने अपने विकास के लिए साझेदारी में शिक्षा , प्रशिक्षण और संस्थाओं पर जोर दिया है। हम अपने साथी देशों में बुनियादी ढांचे के विकास में मामूली योगदान भी करते हैं। उदाहरण के लिए,  हम अफ्रीकी देशों को 9.5 अरब अमरीकी डॉलर की रियायती सहायता के लिए प्रतिबद्ध हैं।

     वर्तमान में, हम विभिन्न योजनाओं के तहत इंडोनेशिया के छात्रों और अधिकारियों को करीब 100 छात्रवृत्तियां प्रदान करते हैं और इंडोनेशिया भी इस तरह की छात्रवृत्तियां प्रदान करता है।  हमने भी इंडोनेशिया के विश्वविद्यालयों में भारतीय अध्ययन के लिए चेयर का गठन किया है।  हर साल, हम कई छात्रों, शिक्षाविदों, वैज्ञानिकों , इंडोनेशिया से विद्वानों और मीडिया के लोगों को भारत की यात्रा करने के लिए आमंत्रित करते हैं। हमने  इंडोनेशिया में जकार्ता और बांदा आचे में दो वीटीसी की स्थापना की है जो अच्छा काम कर रहे हैं और हम पापुआ में इसी तरह का एक केंद्र स्थापित करने के लिए तैयार हैं। हमारे विदेश मंत्रालय में हाल ही में स्थापित विकास भागीदारी एजेंसी हमारे अंतरराष्ट्रीय विकास भागीदारी के प्रयासों के लिए नई दृष्टि प्रदान कर रही है।

     मुझे विश्वास है कि भारत और इंडोनेशिया के रूप में ऐसी गतिशील उभरती अर्थव्यवस्थाओं को अपने विकास के अनुभव और विशेषज्ञता को साझा करना चाहिए क्योंकि यह अधिक संवेदनशील क्षेत्रों और दुनिया के देशों में आर्थिक विकास को बढ़ावा देने में अधिक प्रासंगिक और प्रभावी हो सकता है। (PIB)

वि कासौटिया/प्रदीप/सागर-6581 

Sunday, August 25, 2013

राष्ट्रीय मीडिया केंद्र: शुभारंभ पर यूपीए अध्यक्ष का भाषण

25-अगस्त-2013 17:35 IST
मीडिया और सरकार:दोनों के बीच आंतरिक विरोध की जरूरत नहीं
नई दिल्ली में 24 अगस्त 2013  का दिन एक ऐतिहासिक दिन था। ज्यों ही प्रधानमन्त्री डाक्टर मनमोहन सिंह ने नैशनल मीडिया सेंटर के उद्घाटन का पर्दा उठाया तो वहां मौजूद राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरपर्सन सुश्री सोनिया गाँधी और सूचना व् प्रसारण मंत्री मुनीश तिवारी ने तालियाँ बजा कर अपना हर्ष व्यक्त किया। इस सुअवसर पर सूचना व प्रसारण मंत्रालय के सचिव बिमल शुल्क और पीआईबी की  प्रिंसिपल दयेरेक्त्र जनरल सुश्री नीलम कपूर भी नजर आ रही हैं।              फोटो: (PIB)
इस शुभ अवसर पर राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की चेयरपर्सन सुश्री सोनिया गाँधी ने भी सम्बोधन किया।  इस मौके पर प्रधान मंत्री डाक्टर मनमोहन सिंह, सूचना व प्रसारण मंत्रालय म्न्त्र्रे मुनीश तिवारी, मंत्रालय सचिव बिमल जुल्का भी मौजूद थे। (PIB)
यह कोई तुच्छ उपलब्धि नहीं है कि अनेक मुद्दों पर कितनी संतोषजनक और तेज सार्वजनिक बहस होती है। जाहिर है, सार्वजनिक बहस में परस्पर-विरोधी और विपरीत विचारों के लिए जगह होती है और भारतीय मीडिया निश्चित रूप से इस गुंजाइश को उपलब्ध न कराकर दोषी नहीं बन सकता। शायद कभी मीडिया चर्चा की भाषा और प्रतिष्ठा इच्छित जगह पहुंच जाए। मुझे यह भी मानना होगा कि मीडिया कभी-कभी राजनीतिक स्थापना को बेचैन कर देता है। शायद इसलिए हम किसी समय अपने विचारों को ज्यादा असरदार ढंग से आगे रखने में असमर्थ हो जाते हैं। 

आज हमें याद करना चाहिए कि संचार और सूचना की जरूरत सरकार की जिम्मेदारी जितनी बड़ी ही है। यह सही है कि मीडिया और सरकार प्रायः असहमत होते हैं। अखबारों के संपादकीय और मुख्य समाचारों पर दृष्टिकोण इस बात का प्रचुर प्रमाण उपलब्ध कराते हैं। लेकिन यह स्वस्थ हो सकता है तथा दोनों के बीच आंतरिक विरोध की जरूरत नहीं है। हम मीडिया की निगरानी वाली भूमिका और हमारी नीतियों एवं कार्यक्रमों की व्यवस्थित एवं सदाशयपूर्ण आलोचनाओं का का स्वागत करते हैं। हम मानते हैं कि कुछ ऐसी खामियां होंगी जो सामने लाने की जरूरत हैं। 

साथ ही, कार्यक्रमों, नीतियों, फैसलों और सूचना के प्रचार-प्रसार में सरकार और मीडिया के साझा हित हैं। ऐसे समय राष्ट्रीय प्रेस केंद्र जैसा संस्थान महत्वपूर्ण हो जाता है। मुझे उम्मीद है कि यह उस भागीदारी का प्रतिनिधित्व करेगा जिसमें दोनो पक्ष अपनी निर्धारित जिम्मेदारियां निभाने में समर्थ होंगे। 

मैं यह स्पष्ट करती हूं कि, हम महज सरकार के पाइंट बनाने के लिए प्रचार या प्रचार अभियानों के पक्ष में नहीं हैं। लेकिन लोगों को अपने कानूनी और अन्य हक जानने का अधिकार है। उनहें सूचना हासिल करने का अधिकार है तथा उन्हें सूचना हासिल करने के बाद निर्णय लेने में सक्षम होने का अधिकार है। सिर्फ जागरूक और चेतन नागरिक ही उम्मीद कर सकता है कि सिस्टम अच्छे से काम करे और सरकार एवं राजनीतिक दलों को जिम्मेदार ठहरा सकता है। 

अंत में, यह याद रखिए कि जिस खूबसूरत इमारत का हम शुभारंभ कर रहे हैं वह सिर्फ ईंट और गारे से नहीं बनी हैं। यह आप, मीडिया प्रोफेशनलों, सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के अधिकारियों तथा अन्य पर है जो इसे लोगों की सेवा करने और उन्हें सशक्त बनाने के साधन के रूप में अमल में लाएंगे। मैं इस प्रयास में सफल होने के लिए आपको शुभकामना देती हूं। ” 

वि.कासोटिया/पी.के./एस.पी./एस.के./एस.एस./एस.बी.- 5803

Saturday, June 22, 2013

मामला लुधियाना में एक डाक्टर को ब्लैकमेल करने का

ड्यूटी मेजिस्ट्रेट ने दिया एक दिन का पुलिस रिमांड
कई और खुलासे होने की सम्भावना 
लुधियाना में ई एस आई अस्पताल से सबंधित एक डाक्टर को ब्लैकमेल करने के मामले में सतीश प्रणामी को पुलिस ने ड्यूटी मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया जहाँ  ड्यूटी मजिस्ट्रेट ने पुलिस को सतीश परनामी का तो एक दिन का रिमांड दे दिया जबकि उसके साथ महिला साथी जसमीत कौर को न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। सूत्रों के मुताबिक फिलहाल पुलिस इस सारे प्रकरण से सबंधित हर पहलू और व्यक्ति का पता लगाना चाहती है।  ूछताछ में कई और नए मामले भी सामने आने की सम्भावना है। सुविज्ञ सूत्रों के मुताबिक इस मामले में पकड़े गए सतीश प्रणामी का अतीत भी खंगाला जा रहा है। इसी बीच प्रणामी का शिकार बने कई लोग अब खुल कर सामने आने की तैयारी में हैं। इसके साथ ही उन शिकायतों का भी पता लगाया जा रहा है जिन्हें आधार बनाकर इन तथाकथित पत्रकारों ने डाक्टर को ब्लैकमेल किय। शिकायत करने वालों के अते-पते भी पूरी गहराई से जांचे जा रहे हैं तांकि पता चल सके कि कहीं डाक्टर को दिखाए गए दस्तावेज़ फर्जी तो नहीं थे या फिर कहीं इन लोगों ने किसी की उकसाहट या दबाव में आकर तो अपनी शिकायतें नहीं दीं? शक की सूई ई एस आई अस्पताल की सबंधित डिस्पेंसरी नम्बर तीन के स्टाफ की तरफ भी घूम रही है। गौरतलब है कि इस स्टाफ में से भी कुछ लोग सबंधित डाक्टर के साथ किसी न किसी बहाने विवाद करते रहते थे। यह  विवाद ही किसी न किसी तरह बाहर पहुंचा और मामल ब्लैकमेलिंग तक पहुँच गया। प्रिंट मीडिया ने इस खबर को काफी प्रमुखता से कवरेज दी थी। पंजाब के प्रमुख समाचार पत्र पंजाब केसरी ने अपनी खबर का शीर्षक दिया था,"डाक्टर को ब्लैकमेल करने वाले 2 तथाकथित पत्रकार काबू" इसके बाद अख़बार ने पूरी खबर कुछ यूं दी।
लुधियाना: अपने आपको एक न्यूज चैनल का पत्रकार बताकर एक सरकारी डाक्टर को ब्लैकमेल करके पैसे मांगने वाले एक पुरूष व महिला को थाना डिवीजन नं. 7 की पुलिस ने काबू किया है। सरकारी डिस्पैंसरी में सेवारत डाक्टर द्वारा लोगों से पैसे लेकर इलाज करने की शिकायत मिलने पर तथाकथित पत्रकारों ने न्यूज चैनल पर खबर चलाने की धमकी देकर 10 हजार रुपए की मांग की थी।
ए.सी.पी. सतीश मल्होत्रा ने बताया कि बीते दिन फोकल प्वाइंट निकट रॉकमैन फैक्टरी स्थित ई.एस.आई. डिस्पैंसरी नं. 3 में बतौर डाक्टर काम कर रहे डा. स्वर्णजीत सिंह ने पुलिस को शिकायत दी कि एक महिला व पुरुष खुद को एम.एच. 1 चैनल का पत्रकार बताकर ब्लैकमेल कर पैसे मांग रहे हैं। डाक्टर ने शिकायत में बताया कि उक्त दोनों ने 17 जून को उसे फोन करके कहा कि तुम्हारे खिलाफ पैसे लेकर इलाज करने की शिकायत मिली है, जिस बारे हमने रिपोर्ट बना ली है व न्यूज चैनल पर चलाई जाएगी। यदि तुम हमें आकर मिलोगे तो न्यूज रोक सकते हैं। इसके बाद उन्होंने फिर 18 जून शाम को फोन करके मिलने के लिए धमकाया। इसके बाद डाक्टर ने एम.एच. 1 चैनल के स्टाफ रिपोर्टर हरमिन्द्र सिंह रॉकी से सम्पर्क किया व उक्त तथाकथित पत्रकारों बारे जानकारी मांगी जिस पर रॉकी ने ऐसे किसी भी पत्रकार के एम.एच. वन से न जुड़े होने की बात कही। 
ए.सी.पी. मल्होत्रा ने बताया कि इसके बाद थाना डिवीजन नं. 7 के इंचार्ज इंस्पैक्टर सुमित सूद की अगुवाई वाली पुलिस ने जांच शुरू करके डाक्टर से फोन की डिटेल लेकर मामले की जांच शुरू कर दी। इसके लिए स्टाफ रिपोर्टर ने भी उक्त जालसाजों को काबू करने के लिए पुलिस का साथ दिया। थाना पुलिस ने डा. स्वर्णजीत सिंह के बयानों पर सतीश परनामी पुत्र देसराज, वासी जोशी नगर, हैबोवाल व जसमीत कौर पत्नी कुलतार सिंह वासी एम.आई.जी. फ्लैट सैक्टर 32 पर विभिन्न धाराओं के तहत मामला दर्ज कर लिया है।
 इसी तरह दैनिक जागरण ने भी इस खबर को प्रमुखता से प्रकाशित किया। दैनिक जागरण का शीर्षक था,"पत्रकार बन सरकारी डाक्टर को कर रहे थे ब्लैकमेल"यह तीन कालमी खबर जागरण सिटी के पृष्ठ नंबर सात पर प्रकशित की गयी। दैनिक भास्कर और अन्य अख़बारों ने भी इसे प्रमुखता से प्रकाशित किया।
अब देखना यह है कि लगातार बढ़ रही इस तरह की घटनायों की तह तक जाने में कौन कौन निकलता है इसके लिए ज़िम्मेदार? कैसे बनते हैं इस तरह के लोग पत्रकार? कैसी मिलते हैं इनको पहचान पत्र? क्यूं झुकते हैं सही लोग इन गलत तत्वों के सामने? इस तरह के कई सवाल हैं जिनका जवाब तलाशने का प्रयास किया जायेगा किसी अलग पोस्ट में? मामला लुधियाना में एक डाक्टर को ब्लैकमेल करने का

मामला लुधियाना में एक डाक्टर को ब्लैकमेल करने का

ਮੀਡੀਆ ਵਿੱਚ ਅਖੌਤੀ ਪੱਤਰਕਾਰਾਂ ਦੀ ਭਰਮਾਰ ਜਾਰੀ 


लुधियाना में ब्लैकमेलिंग के आरोपी का पुलिस रिमांड

Friday, May 10, 2013

25 मई से एक चैनल और

तीन और चैनलों की तैयारी भी अंतिम चरण में
इसी महीने अर्थात 25 मई तक आपके सामने आ रहा है एक नया चैनल-समाचार प्लस-राजस्थान। इस चैनल को आपके सामने ला रहे हैं बेस्ट मीडिया के बैनर से काम कर रहे इस क्षेत्र के कुछ अनुभवी लोग। इससे पूर्व समाचार प्लस उत्तराखंड/उत्तरप्रदेश के कार्य से अपना लोहा मनवा चुकी इस टीम ने इस बार और कमर कस ली है। पहले यह नया चैनल आना था 14 अप्रैल को लेकिन कुछ कारणों से अब इसकी तारीख है 25 मई। इसके बाद 15 जून को हरियाणा चैनल और 18 दिसम्बर को मध्यप्रदेश छतीसगढ़ के लिए विशेष चैनल। - इस मकसद के लिए न्यूज़ रूम तैयार हो चुका है, टीम का चयन भी कर लिया गया है, सम्पादकीय और प्रशासकीय जिम्मेदारियां भी शुरु हो चुकी हैं। इसके साथ ही शुरू हो चुके हैं टेस्ट सिग्नल। यानि सब तैयारियां मुक्कमल।

मासि‍क पत्रि‍का का वि‍मोचन

10-मई-2013 19:54 IST
कुमारी शैलजा ने कि‍या ‘सामाजि‍क न्‍याय संदेश’ का वि‍मोचन
सामाजि‍क न्‍याय और अधि‍कारि‍ता मंत्री कुमारी शैलजा ने आज यहां डॉ. अंबेडकर प्रति‍ष्‍ठान द्वारा प्रकाशि‍त ‘सामाजि‍क न्‍याय संदेश’ नामक मासि‍क पत्रि‍का का वि‍मोचन कि‍या। इस अवसर पर मंत्री महोदया ने कहा कि‍ भारत के इति‍हास में डॉ अंबेडकर का एक अत्‍यंत महत्‍वपूर्ण स्‍थान है। भारतीय संवि‍धान का मसौदा तैयार करने में उनके व्‍यापक योगदान के बारे में सभी जानते है। उन्‍होंने कहा कि‍बाबासाहेब एक सच्‍चे राष्‍ट्रवादी थे जो समाज के सभी हि‍स्‍सों के कल्‍याण में और एक न्‍याय आधारि‍त समाज में वि‍श्‍वास करते थे। उन्‍होंने बताया कि‍यह पत्रि‍का बाबा साहेब के वि‍चारों और संदेशों को लोगों तक पहुंचाएगी। 

इस अवसर पर उपस्‍थि‍त लोगों में सचि‍व श्री सुधीर भार्गव, अपर सचि‍व श्री अनूप कुमार श्रीवास्‍तव, संयुक्‍त सचि‍व और डॉ. अंबेडकर प्रति‍ष्‍ठान के सदस्‍य सचि‍व श्री संजीव कुमार, डॉ. अंबेडकर फाउंडेशन के नि‍देशक श्री वि‍नय कुमार पॉल आदि‍शामि‍ल थे। (PIB)

वि.कासोटिया/सुधीर/राजीव-2324

Tuesday, April 16, 2013

द संडे इंडियन का नया अंक

चीन साईबर युद्ध की पूरी तैयारी में है
द संडे इंडियन का नया अंक भी बाज़ार में है। हमेशां की तरह हर बात अर्थ पूर्ण और हर बात तथ्यों और आंकड़ों के साथ। अंदाज़ भी दिलचस्प यानि कि हर अंक की तरह यह अंक भी विशेषांक। इस अंक में सुखदेव के नाम भगत सिंह का पत्र भी है और साथ ही चेतावनी भी कि चीन साईबर युद्ध की पूरी तैयारी में है। समाज में शुरू हो चुके नए ट्रेंड सेक्स कोचिंग की भी चर्चा भी इसी अंक में है और तेज़ी से गधी जा रही एक अद्भुत मानव जाति का विस्तृत विवरण भी। घरों में काम करने वाली बाई के असंगठित श्रमिक होने का दर्द भी और देश में लगातार बढ़ रहे टैक्स चोरों का दर्द भी। बारबार एफ आई आर के बावजूद लगातार जारी खनन। यूपी में अखिलेश यादव के दावों और वादों की चर्चा भी दिलचस्प है।रियासत की बिसात पर नीतीश कुमार की चाल को भी विशेष जगह मिली है और मध्यप्रदेश में इंटरनेट के विकास की बात भी।भरपेट भोजन फिर भी कुपोषण नामक रिपोर्ट में काफी कुछ है। अपराध, खेल और साहित्य की चर्चा भी है। --रेक्टर कथूरिया 

ताज़ा हवा के झोंके की तरह--मुस्लिम टुडे

कुछ ऐसा करें जिससे मीरा के आंसू मीर के आँखों से निकलें
लगातार बढ़ रहीं साम्प्रदायिक भावनायों की घुटन में एक हिंदी मासिक पत्रिका मुस्लिम टुडे ताज़ा हवा के झोंके की तरह आई है।सदभावना का संदेश लेकर आई इस पत्रिका (वर्ष-3 अंक 9) का कहना है कि  हिन्दू व मुसलमान हमारे देश की दो आँखें हैं। दोनों समुदाय सदियों से एक साथ रहते चले आ रहे हैं लेकिन इतनी सदियों के बाद भी दोनों के बीच एक दुसरे के बारे में बहुत सी भ्रांतियां फैली हुई हैं। वर्तमान समय में तो यह दूरिय और भी बढ़ गईं है। अब समय आ गया है कि मुस्लिम समुदाय इस क्षेत्र में विशेष कार्य करे। मुस्लिम टुडे का यही प्रयास है कि वह दोनों समुदायों को क़रीब लाने का भरकस प्रयास करे जिससे देश की एकता और अखंडता पर कोई सवालिया निशान न लगे। गंगा जमुनी सभ्यता को बढ़ावा देकर ऐसा वातावरण पैदा करे जिससे मीरा के आंसू मीर के आँखों से निकलें। मुस्लिम टुडे ऐसे प्रयासों के लिए वचनबद्ध है।पत्रिका में नर्म हिंदुत्व---गर्म हिंदुत्व जैसे कई महत्वपूर्ण आलेख भी हैं और राजनीति के साथ साथ अपराध पर भी चर्चा है और बहुत से दुसरे मुद्दों के साथ ही गजल का रंग भी मिलता है। कुल 62 पृष्ठों की पत्रिका का मूल्य है केवल 15 रुपये। बहुत ही खूबसूरती से प्रकाशित इस पत्रिका सफलता की उंचाईयों पर पहुंचे इसी कामना के साथ।--रेक्टर कथूरिया

Tuesday, April 9, 2013

मीडिया स्‍वामित्‍व पर ट्राई

09-अप्रैल-2013 17:58 IST
ट्राई के परामर्श पत्र पर टिप्‍पणी देने की तारीख बढ़ी 
भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) ने ''मीडिया स्‍वामित्‍व संबंधी विषय'' पर एक परामर्श पत्र 15 फरवरी, 2013 को जारी किया था। इस पत्र पर हितधारकों से 8 मार्च, 2013 तक टिप्‍पणियां और 15 मार्च, 2013 तक प्रति-टिप्‍पणियां आमंत्रित की गई थीं। बाद में इन दोनों तारीखों को बढ़ाकर 8 अप्रैल, 2013 और 15 अप्रैल, 2013 कर दिया गया था। 

हितधारकों के निवेदन पर टिप्‍पणियों और प्रति-टिप्‍पणियों की तारीख बढ़ाकर 22 अप्रैल, 2013 और 29 अप्रैल, 2013 कर दिया गया था। प्राधिकरण ने निर्णय किया है कि तारीखें अब आगे नहीं बढ़ाई जाएंगी। 

टिप्‍पणियां और प्रति-टिप्‍पणियां उपरोक्‍त तारीखों तक इलेक्‍टॉनिक रूप में श्री वसी अहमद, सलाहकार (बी एंड सीएस), भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण, महानगर दूरसंचार भवन, जवाहर लाल नेहरू मार्ग, नई दिल्‍ली-110002 पर भेजी जा सकती हैं। इसके अलावा, इन्‍हें ई-मेल advbcs@trai.gov.in/traicable@yahoo.co.in पर भी भेजा जा सकता है। 
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वि. कासोटिया/अरुण/मनोज-1779

Saturday, April 6, 2013

गलत आर्थिक नीतियों के कारण पिछड़ रहा पंजाब

06-अप्रैल-2013 20:24 IST
लुधियाना में शीघ्र खुलेगा एफएम रेडियो स्‍टेशन : मनीष तिवारी 
हौजरी एसोसियेशन लुधियाना ने सूचना एवं प्रसारण मंत्री को सम्‍मानित किया 

निटवियर क्‍लब के शिष्‍ट मंडल ने किया श्री मनीष तिवारी  का अभिनंद (PIB)
लुधियाना के विकास को एक और शिखर प्रदान करने का कदम उठाने की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री मनीष तिवारी ने लुधियाना में रेडियो स्टेश खोलने का स्पष्ट संकेत दे दिया है। गौरतलब है कि लुधियाना में रेडियो स्टेशन खोलने की मांग भी बहुत पुरानी है और इस सम्बन्ध में बनाई गई परियोजना भी। अगर पंजाब के हालात खराब नहीं होते तो पंजाब के हर जिले में रेडियो स्टेशन खुल भी चूका होता। आकाशवाणी केंद्र पटियाला के निदेशक मोहन लाल मनचंदा की हत्या ने तो रेडियो स्टेशनों के विस्तार को पूरी तरह से ठंडे बसते में डाल दिया था। अब केन्द्रीय मंत्री मनीष तिवारी ने पंजाब के लिए इस मांग को ठंडे बसते से निकाल कर एक बार फिर यह साबित कर दिया है कि वह उन सभी योजनायों को सिरे चढ़ायेंगे जिनकी शुरूयात उनके सम्वेदनशील साहित्यकार पिता डा विश्वनाथ तिवारी ने बहुत पहले से बनवाया था।
सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री मनीष तिवारी ने कहा है कि पंजाब के लुधियाना में शीघ्र एक एफएम रेडियो स्‍टेशन खोला जायेगा। लुधियाना में कल शाम संवाददाताओं से बातचीत में श्री तिवारी ने कहा कि एफएफ रेडियो स्‍टेशन स्‍थापित करने के लिए दो एकड़ भूमि की आवश्‍यकता होगी। उन्‍होंने स्‍थानीय विधायकों और उद्योगपतियों से भूमि की व्‍यवस्‍था करने को कहा ताकि इस प्रस्‍ताव पर आगे काम किया जा सके। श्री तिवारी ने कहा कि देश में 294 शहरों में 839 एफएम रेडियो स्‍टेशनों के लिए बोलियों का काम अगले छह महीनों में पूरा कर लिया जायेगा। उन्‍होंने कहा कि एक एफएम रेडियो स्‍टेशन लुधियाना में खोला जाना चाहिए। इससे यहां के निवासियों और आस-पास के लोगों को न केवल सूचना और मनोरंजन मिलेगा बल्कि स्‍थानीय युवकों के लिए रोजगार के अवसरों का भी सृजन होगा। इससे पहले लुधियाना के हौजरी उद्योग और निटवियर क्‍लब के शिष्‍ट मंडल ने होजरी की कुछ वस्‍तुओं पर उत्‍पाद शुल्‍क समाप्‍त कराने के लिए श्री तिवारी का अभिनंदन किया। शिष्‍ट मंडल के सदस्‍यों ने कहा कि इससे न केवल लुधियाना के हौजरी उद्योग को फायदा मिलेगा बल्कि समूचे देश में ऐसी इकाइयों को भी मदद मिलेगी। इस अवसर पर श्री तिवारी ने कहा कि राज्‍य सरकार की गलत आर्थिक नीतियों के कारण पंजाब, देश के अन्‍य राज्‍यों से पिछड़ रहा है। उन्‍होंने कहा कि गतिशील नेतृत्‍व से ही पंजाब को फिर प्रगति पथ पर लाया जा सकता है। 

Thursday, April 4, 2013

केन्‍द्रीय प्रैस प्रत्‍यायन समिति का पुनर्गठन

04-अप्रैल-2013 15:57 IST
समिति का कार्यकाल पहली बैठक की तारीख से दो वर्ष होगा
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने सेन्‍ट्रल प्रैस एक्रेडिटेशन कमेटी (केन्‍द्रीय प्रैस प्रत्‍यायन समिति) का पुनर्गठन किया है। यह समिति आवेदनों पर विचार करके मीडिया के सदस्‍यों को प्रत्‍यायन प्रदान करने के लिए अनुमोदन करती है। इस समिति के सदस्‍यों के नाम हैं-

श्री हिमांशु चटर्जी (इंडियन फेडरेशन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्‍टस), श्री बी.एम. शर्मा (ऑल इंडिया स्‍मॉल एंड मीडियम न्‍यूजपेपर्स फेडरेशन), श्री प्रमोद माथुर (वर्किंग न्‍यूज कैमरामेन्‍स एसोसिएशन), श्री सुरिन्‍दर कपूर (न्‍यूज कैमरामेन्‍स एसोसिएशन), सुश्री कूमी कपूर (एडिटर्स गिल्‍ड ऑफ इंडिया), श्री शाज़ी ज़मा (इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन), श्री स्‍वराज थापा (प्रैस एसोसिएशन), श्री मनोरंजन भारती (न्‍यूज ब्रॉडकास्‍टर्स एसोसिएशन), श्री सुप्रिया प्रसाद (ब्रॉडकास्‍ट एडिटर्स एसोसिएशन), श्रीमती मंगीपुडी अरूणा (एसोसिएशन ऑफ स्‍मॉल एंड मीडियम न्‍यूजपेपर्स ऑफ इंडिया), श्री त्‍यागराज (इंडियन फेडरेशन ऑफ स्‍मॉल एंड मीडियम न्‍यूजपेपर्स), श्री गीतार्थ पाठक (इंडियन जर्नलिस्‍टस यूनियन), श्री जगदीश यादव (एसोसिएशन ऑफ एक्रेडिटेड न्‍यूज कैमरामैन), श्री पद्मधर पति त्रिपाठी (ऑल इंडियन जर्नलिस्‍टस वेलफेयर एसोसिएशन), श्री राधेश्‍याम शर्मा (ऑल इंडिया न्‍यूजपेपर्स एडिटर्स कांफ्रेंस), श्री सुभाष निगम (नेशनल यूनियन ऑफ जर्नलिस्‍टस), श्री पंकज वोहरा, श्री निर्मल पाठक, सुश्री नीरजा चौधरी, सुश्री पल्‍लवी घोष, श्री विनोद अग्निहोत्री, श्री दिवाकर, श्री वर्गीस के. जॉर्ज, श्री सुनील गटाडे और श्री नवीन ग्रेवाल (नामांकित)। 

इस समिति का कार्यकाल इसकी पहली बैठक की तारीख से दो वर्ष होगा। 


मीणा/शुक्‍ल/यशोदा- 1712

Thursday, March 21, 2013

यूएनआई के 52वें वार्षि‍क समारोह में श्री मनीष ति‍वारी

21-मार्च-2013 19:44 IST
देश भर में वायर से जुड़ी और समाचार एजेंसि‍यों की आवश्‍यकता पर जोर 
सूचना और प्रसारण मंत्री श्री मनीष ति‍वारी ने मीडि‍या क्षेत्र की बढती संभावनाओं और समाचार के क्षेत्र में सूचना के प्रवाह को देखते हुए देश भर में वायर से जुड़ी और समाचार एजेंसि‍यां स्‍थापि‍त करने की आवश्‍यकता बताई है। उन्‍होंने कहा कि‍ इसकी अत्‍यधि‍क संभावनाएं हैं क्‍योकि‍ ये एजेंसि‍यां उप-क्षेत्रीय, क्षेत्रीय और राष्‍ट्रीय स्‍तर पर सूचना के प्रवाह को बनाए रखती हैं। समाचार एजेंसि‍यों की संख्‍या बढ़ने से न केवल स्‍थानीय खबरें राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहुंचेंगी बल्‍कि‍ इससे ये एजेंसि‍यां राष्‍ट्रीय और स्‍थानीय स्‍तर पर समाचार के प्रसार में संतुलन स्‍थापि‍त कर पाएंगी। सूचना के पहुंचाने में वि‍वि‍धता को देखते हुए ऐसी व्‍यवस्‍था से स्‍थानीय मुद्दों को वि‍शि‍ष्‍टता से राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहुंचाया जा सकेगा। सूचना और प्रसारण मंत्री ने आज दि‍ल्‍ली में यूनाइटेड न्‍यूज ऑफ इंडि‍या के 52वें वार्षि‍क समारोह को संबोधि‍त करते हुए ये बात कही। 

श्री ति‍वारी ने वहन कि‍ए जाने वाले राजस्‍व मॉडल की रूप रेखा तैयार करने की तत्‍काल आवश्‍यकता बताई। डि‍जीटलीकरण प्रक्रि‍या का जि‍क्र करते हुए उन्‍होंने कहा कि‍ यह प्रसारण क्षेत्र में पारदर्शि‍ता तथा दीर्घकालीन टि‍काउ प्रक्रि‍या लाने का प्रयास है जि‍ससे सभी संबंद्ध पक्षों को मदद मि‍लेगी। उन्‍होने कहा कि‍ नई मीडि‍या और त्‍वरि‍त संचार व्‍यवस्‍था के आगमन के साथ ही राजस्‍व मॉडलों को उन मापदंडों के बारे में भी वि‍चार करना होगा जो वि‍भि‍न्‍न दर्शक/श्रोता वर्गों के लि‍ए हों।


यूएनआई के 52वें वार्षि‍क समारोह में हुई विस्तृत चर्चा 
वि. कासोटिया/अजीत/सुजीत-1539

Tuesday, March 19, 2013

दूरदर्शन के लिए राजस्‍व अर्जन

19-मार्च-2013 19:11 IST
मुम्‍बई दूरदर्शन के कर्मचारियों द्वारा वाणिज्यिक धारावाहिकों का निर्माण 
सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री मनीष ति‍वारी ने राज्‍य सभा में पूछे गए एक प्रश्‍न के लि‍खि‍त उत्‍तर में जानकारी देते हुए बताया कि‍मुंबई दूरदर्शन घरेलू धारावाहिकों का निर्माण कर रहा है जोकि दूरदर्शन के लिए राजस्‍व अर्जन कर सकते हैं। तथापि, मुंबई दूरदर्शन के स्‍टाफ-सदस्‍य बाहर के वाणिज्‍यिक धारावाहिकों पर कार्य नहीं कर रहे हैं। 

उन्‍होंने बताया कि‍जब कभी कोई शिकायत जानकारी में लाई जाती है, तो उसकी जांच प्रसार भारती में एक पूर्णकालिक मुख्‍य सतर्कता अधिकारी (सीवीओ) की अध्‍यक्षता में स्‍थापित सतर्कता प्रकोष्‍ठ द्वारा की जाती है। 

*****वि. कासोटिया/संजीव/राजीव-1463

खबरों को गलत बताया

19-मार्च-2013 12:43 IST
प्रधानमंत्री कार्यालय ने टू-जी मामले पर हिन्‍दू में छपी खबर को गलत बताया प्रधानमंत्री कार्यालय ने कल के हिन्दू समाचार पत्र में छपी उन खबरों को गलत बताया है कि जिनमें कहा गया है कि उसने टू-जी मामले से पहले 2007 में तत्‍कालीन दूरसंचार मंत्री ए राजा की कार्रवाइयों से सहमति जतायी थी। जिन दस्तावेजों के आधार पर खबर लिखी गई है, उनमें कोई नई सूचना नहीं थी और वे पहले से ही पब्लिक डोमेन में मौजूद थे। प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा जारी नोट में कहा गया है कि प्रधानमंत्री ने महसूस किया था कि इस मामले का दूरसंचार विभाग द्वारा ट्राई और अन्‍य के साथ विस्‍तार से विचार-विमर्श करने की जरूरत है। 

बयान के अनुसार प्रधानमंत्री ने महसूस किया था कि इस विषय पर ट्राई और अन्‍य विभागों के साथ सलाह किए बिना कोई फैसला करना उचित नहीं होगा, इसीलिए प्रस्‍ताव को अनौपचारिक सुझाव के रूप में भेजा गया था। लेकिन इसका मतलब यह नहीं निकाला जाना चाहिए कि प्रधानमंत्री कार्यालय की तरफ से कोई निर्देश जारी किया गया था। नोट में प्रस्‍ताव था कि नये ऑपरेटरों से सामान्‍य शुल्‍क लेकर ‘थ्रेशहोल्‍ड स्‍तर’ तक स्‍पेक्‍ट्रम आवंटन किया जा सकता है। उसके बाद उन लोगों के बीच बाकी बचे स्‍पेक्‍ट्रम की नीलामी की जा सकती है जिनके पास न्‍यूनतम सीमा तक ही स्‍पेक्‍ट्रम हैं। 

प्रधानमंत्री संसद में इसके बारे में स्थिति पहले ही स्‍पष्‍ट कर चुके हैं और प्रेस विज्ञप्ति भी जारी की गई थी। 

मीणा/शुक्‍ल/मधुप्रभा-1434

मीडिया का मालिकाना हक

19-मार्च-2013 19:10 IST
                      प्रतिस्‍पर्धा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं 
सूचना और प्रसारण राज्‍य मंत्री (स्‍वतंत्र प्रभार) श्री मनीष ति‍वारी ने राज्‍य सभा में पूछे गए एक प्रश्‍न के लि‍खि‍त उत्‍तर में जानकारी देते हुए बताया कि‍मंत्रालय ने प्रसारण क्षेत्र में मीडिया स्‍वामित्‍व के मुद्दों पर 16 मई, 2012 को भारतीय दूरसंचार विनियामक प्राधिकरण (ट्राई) को एक पत्र लिखा है। ट्राई से मीडिया स्‍वामित्‍व के समस्‍त मुद्दों की जांच करने तथा प्रसारण क्षेत्र में विभिन्‍न खंडों के भीतर ऊर्ध्‍वाधर और क्षैतिज एकीकरण पर सिफारिशें मुहैया कराने हेतु अनुरोध किया गया है। 
उक्‍त पत्र में मंत्रालय ने ट्राई से निम्‍नलिखित मुद्दों की पुन: जांच करने और उपयुक्‍त सिफारिशें करने का अनुरोध किया था:- 
• उभर रहे मौजूदा परिदृश्‍य में टेलीविजन चैनलों पर स्‍वामित्‍व रखने वाली अधिकाधिक प्रसारण कंपनियां विभिन्‍न वितरण प्‍लेटफार्मों नामत: केबल टीवी वितरण, डीटीएच और आईपीटीवी आदि के क्षेत्र में प्रवेश कर रही हैं। इसी प्रकार से वितरण प्‍लेटफार्मों पर स्‍वामित्‍व रखने वाली कई कंपनियां टेलीविजन प्रसारण के रूप में भी प्रवेश कर रही हैं। इस प्रकार के ऊर्ध्‍वाधर एकीकरण से प्रतिस्‍पर्धा पर गंभीर प्रभाव पड़ सकते हैं और 
• एकाधिकारिक प्रवृत्‍तियों को प्रोत्‍साहन मिल सकता है इसलिए ऐसे ऊर्ध्‍वाधर एकीकरण के मुद्दे का निदान किए जाने की आवश्‍यकता है। ट्राई प्रसारण क्षेत्र के समुचित विकास का सुनिश्‍चयन करने के उद्देश्‍य से ऊर्ध्‍वाधर एकीकरण के मुद्दे का निदान करने हेतु किए जाने वाले उपायों का सुझाव दे सकता है। 
• एक अन्‍य परिदृश्‍य में कंपनियों का प्रिंट, टीवी और रेडियो पर नियंत्रण/स्‍वामित्‍व है जिसके फलस्‍वरूप क्षैतिज एकीकरण संभव होता है। इस समय किसी भी कंपनी द्वारा रेडियो, टेलीविजन और प्रिंट माध्‍यमों पर स्‍वामित्‍व रखने हेतु कोई प्रतिबंध नहीं है। ऐसी स्‍थिति से समाचारों एवं विचारों की बहुलता पर रोक लग सकती है और इसके अनेक संभावित परिणाम हो सकते हैं जिनमें उचित कीमतों पर स्‍तरीय सेवाओं का सुनिश्‍चि‍त कि‍या जाना शामिल है। ट्राई इस मुद्दे की भी जांच कर सकता है और इस संबंध में उपयुक्‍त उपायों के बारे में सुझाव दे सकता है। 
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वि. कासोटिया/संजीव/राजीव-1462

कॉपीराइट नियम 2013

18-मार्च-2013 19:48 IST
वैधानिक लाइसेंस के वास्‍ते नए नियम उपलब्‍ध कराए गए
मानव संसाधन विकास मंत्रालय में उच्‍च शिक्षा विभाग की कॉपीराइट डिविजन ने 14 मार्च, 2013 को कॉपीराइट नियम, 2013 अधिसूचित कर दिए हैं। कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के मौजूदा प्रावधानों में संशोधन तथा कॉपीराइट संशोधन अधिनियम, 2012 के तहत नए प्रावधानों की शुरुआत (जो 21 जून, 2012 को प्रभावी हुए थे) कॉपीराइट नियम, 1958 में संशोधन के लिए आवश्‍यक हो गई थी। नियमों का मसौदा 28 अगस्‍त, 2012 को कॉपीराइट कार्यालय की वेबसाइट पर जारी किया गया था। इस पर सभी हितधारकों और विशेषज्ञों से सुझाव मांगे गए थे। सुझाव देने की अंतिम तिथि 20 सितंबर, 2012 थी। मंत्रालय ने नियमों के मसौदे पर सुझाव के लिए विभिन्‍न हितधारकों और कॉपीराइट विशेषज्ञों के साथ 8 अक्‍तूबर, 2012 को बैठक की। 

कॉपीराइट नियम 2013 के तहत शामिल संस्‍करण और साहित्यिक एवं संगीत कार्य के प्रसारण और ध्‍वनि रिकार्डिंग के लिए वैधानिक लाइसेंस के वास्‍ते नए नियम उपलब्‍ध कराए गए हैं। 

विविध कार्यों के वास्‍ते कॉपीराइट के पंजीकरण के लिए शुल्‍क तथा कॉपीराइट बोर्ड के निर्देशों/आदेशों के तहत कॉपीराइट के रजिस्‍ट्रार की ओर से जारी किए गए लाइसेंस के लिए शुल्‍क कॉपीराइट नियम 2013 के तहत बढ़ाए गए हैं। प्र‍त्‍येक कार्य के पंजीकरण के लिए न्‍यूनतम शुल्‍क 50 रुपये से बढ़ाकर 500 रुपये कर दिया गया है तथा अधिकतम शुल्‍क 600 रुपये से बढ़ाकर 5,000 रुपये कर दिया गया है। लाइसेंस के लिए शुल्‍क प्रति कार्य 200 रुपये से बढ़ाकर 2,000 रुपये और अधिकतम शुल्‍क 400 रुपये प्रति कार्य से बढ़ाकर 40,000 रुपये कर दिया गया है। शुल्‍क की नई संरचना नियमों की दूसरी अनुसूची के तहत उपलब्‍ध कराई गई है जो कॉपीराइट नियम 2013 के लागू होने की तिथि अर्थात 14 मार्च, 2013 से प्रभावी होंगे। नियमों की प्रति कॉपीराइट कार्यालय की वेबसाइट (copyright.gov.in) पर उपलब्‍ध कराई गई है। 


वि कासौटिया/प्रदीप -1424

Tuesday, March 12, 2013

मीडिया: कोयले की दलाली से कोयले के व्यापार तक

बड़ी-बड़ी बहस चलाने वाला मीडिया चुप्पी साधे खड़ा है
भारत में कोयला घोटाले ने एक बार फिर तथाकथित लोकतांत्रिक संस्थाओं के चेहरे से नकाब हटाने के काम किया है। एक लाख छियासी हजार करोड़ की कोयले की दलाली में केंद्र और राज्य सरकारों के साथ पक्ष-विपक्ष के कई नेता तो कटघरे में हैं ही, लोकतंत्र के चौथे स्तंभ का दम भरने वाला समाचार मीडिया भी इससे अछूता नहीं है। इस घोटाले में दैनिक भास्कर चलाने वाली कंपनी डीबी कॉर्प लिमिटेड, प्रभात खबर की मालिक कंपनी ऊषा मार्टिन लिमिटेड, लोकमत समाचार समूह और इंडिया टुडे समूह में बड़ी हिस्सेदारी रखने वाले आदित्य बिड़ला समूह का नाम सामने आया है। छोटी-छोटी बातों पर बड़ी-बड़ी बहस चलाने वाला सरकारी और कॉरपोरेट मीडिया इन कंपनियों की करतूत पर या तो चुप्पी साधे खड़ा है या खबर को घुमा-फिराकर पेश कर रहा है।
इसी मार्च में सरकारी ऑडिटर, भारत के नियंत्रक-महालेखापरीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट में कोयला खदान आवंटन में हुई गड़बड़ी सामने आई तो इसमें कई मीडिया कंपनियों के शामिल होने की चर्चाएं भी थीं। आखिरकार इंटर मिनिस्टीरियल ग्रुप (अंतर मंत्रिमंडलीय समूह) की बैठक में यह साफ हो गया कि कौन-कौन सी मीडिया कंपनियां इस घोटाले में शामिल हैं। इस घटना से एक बार फिर यह भी छिपा नहीं रहा है कि किस तरह कॉरपोरेट मीडिया जनता के साथ धोखेबाजी करता है। पहले भी टू जी स्पेक्ट्रम घोटाले और कॉमनवेल्थ घोटाले में मीडिया की आपराधिक भूमिका सामने आ चुकी है। यह इस बात का भी उदाहरण है कि किस तरह भारतीय लोकतंत्र का प्रहरी (वॉच डॉग) खुद लूट में शामिल होकर लोकतंत्र का मजाक बना रहा है। सीएजी की रिपोर्ट से पता चलता है कि दो हजार चार से दो हजार नौ के दौरान हुए कोयला खदानों के आवंटन में भारी घोटाला किया गया। रिपोर्ट कहती है कि सरकार ने को औने-पौने दामों में कोयला खदानों को निजी कंपनियों के हवाले कर दिया। इस भ्रष्टाचार से सरकारी खजाने को एक लाख छियासी हजार करोड़ की रकम का नुकसान हुआ। यह घोटाला इस बात का भी पुख्ता सबूत है कि देश के बहुराष्ट्रीय व्यापारी घराने सरकारी नीतियों को मन मुताबिक तोडऩे-मोडऩे में किस तरह जुटे हुए हैं।

यह बात जग जाहिर है कि विज्ञापन और अन्य प्रलोभनों के चलते समाचार मीडिया लगातार पूंजीपतियों के हाथ की कठपुतली बना रहता है। पूंजीपति भी अपने पक्ष में जनमत बनाने और सत्ता पर प्रभाव जमाने में मीडिया की भूमिका से अनजान नहीं हैं, इसलिए कई पूंजीपति सीधे मीडिया को अपने नियंत्रण में ले लेते हैं। कोयला घोटाले में फंसी कंपनियों ने भी इसी रणनीति के तहत मीडिया को अपने कब्जे में लिया है, उनके गैरकानूनी काम इस बात की खुलेआम गवाही देते हैं। यह कॉरपोरेट मीडिया का ही कमाल है कि कोयला घोटाले की पोल खुलने के बाद भी बहस सिर्फ कोयला खदानों के आवंटन में हुई गड़बड़ी पर केंद्रित है। यह सवाल नहीं उठाया जा रहा है कि आखिर कोयला खदानों को निजी हाथों में सौंपने की जरूरत ही क्या है? इस तरह के नीतिगत सवाल कॉरपोरेट मीडिया के खिलाफ जाते हैं इसलिए वह मरे मन से सिर्फ आवंटन का सवाल उठा रहा है (ऐसा करना उसकी विश्वसनीयता को बरकरार रखने के लिए जरूरी है)।

कोयला घोटाले में शामिल चार मीडिया कंपनियों का जायया लिया जाए तो यह बात साबित हो जाएगी कि किस तरह कॉरपोरेट, मीडिया और सरकार को चला रहे हैं। इससे कॉरपोरेट साजिशों को समझना भी और आसान होगा। पहले बात करते हैं लोकमत समूह की। यह अखबार अपने प्रसार के हिसाब से मराठी का सबसे बड़ा अखबार है। महाराष्ट्र के कई जिलों से इसका प्रकाशन होता है। मराठी के अलावा हिंदी में भी लोकमत समाचार प्रकाशित होता है। इस कंपनी का रिश्ता मुकेश अंबानी-राघव बहल-राजदीप सरदेसाई से भी है, मराठी न्यूज चैनल आइबीएन-लोकमत इसका उदाहरण है। लोकमत के मालिक विजय दर्डा कांग्रेस पार्टी के सांसद भी हैं और कंपनी के दूसरे मालिक और विजय के भाई राजेंद्र दर्डा महाराष्ट्र की कांग्रेस सरकार में शिक्षा मंत्री हैं। विजय दर्डा पत्रिकारिता के उसूलों की धज्जियां उड़ाते हुए पत्रकार, व्यापारी और राजनीतिज्ञ एक साथ हैं। उन्हें 1990-91 में फिरोज गांधी मेमोरियल अवॉर्ड फॉर एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म मिल चुका है। इसके अलावा 1997 में जायंट इंटरनेशनल जर्नलिज्म अवॉर्ड और दो हजार छह में ब्रिजलालजी बियानी जर्नलिज्म अवॉर्ड भी मिला हुआ है।

विजय दर्डा मीडिया मालिकों के प्रभाव वाली संस्था ऑडिट ब्यूरो ऑफ सर्कुलेशन के अध्यक्ष रहने के अलावा इंडियन न्यूज पेपर सोसायटी के अध्यक्ष भी रह चुके हैं। ये दोनों संस्थाएं मीडिया मालिकों के प्रभाव और उनका हित देखने वाली संस्थाएं हैं। दर्डा साउथ एशियन एडिटर्स फोरम के अध्यक्ष रहकर भी उसे धन्य कर चुके हैं। भारत में प्रेस की नैतिकता को बनाये रखने वाली संस्था प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया (पीसीआइ) के सदस्य रहकर भी उन्होंने पत्रकारीय नैतिकता की रक्षा की है! वल्र्ड न्यूज पेपर एसोसिएशन के सदस्य होने के साथ और भी कई अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों के सदस्य हैं। कुल मिलाकर पत्रकारिता के नाम पर मालिक होकर भी जितने फायदे हो सकते हैं उन्होंने दोनों हाथों से बटोरे हैं। फिर, कोयले पर तो उनका हक बनता ही था! जब पेड न्यूज का मामला जोर-शोर से उठ रहा था तब लोकमत का नाम उसमें सबसे ऊपर था। अब कोयला घोटाले में भी विजय दर्डा और राजेंद्र दर्डा आरोपी कंपनी जेडीएस यवतमाल कंपनी के मालिक/डायरेक्टर होने के साथ ही दूसरी आरोपी कंपनी जैस इंफ्रास्ट्रक्चर के भी सात फीसदी के मालिक हैं।

दूसरी मीडिया कंपनी है दैनिक भास्कर अखबार को प्रकाशित करने वाली कंपनी डीबी कॉर्प लिमिटेड। दैनिक भास्कर के उत्तर भारत के सात राज्यों से कई संस्करण प्रकाशित होते हैं। यह हिंदी का दूसरा सबसे बड़ा अखबार है। डीबी स्टार, बिजनेस भास्कर, गुजराती में दिव्य भास्कर और अहा जिंदगी पत्रिका भी इसी के प्रकाशन हैं। चार राज्यों से निकलने वाले अंग्रेजी अखबार डीएनए में भी इसकी हिस्सेदारी है। भोपाल के गिरीश, रमेश, सुधीर और पवन अग्रवाल कंपनी के मालिक हैं। पिछले कुछ वर्षों में दैनिक भास्कर मीडिया बाजार में अपनी प्रतिद्वंद्वी कंपनियों को किनारे लगाते हुए बड़ी तेजी से उभरा है। मार्केटिंग का हर हथकंडा अपनाते हुए इसने उत्तर भारत में अपने लिए एक खास जगह बनाई है लेकिन इसके कर्मचारियों और पत्रकारों पर छंटनी की तलवार हमेशा लटकी रहती है। प्रबंधन की नीतियों के मुताबिक उनकी नौकरी कभी भी छीनी जा सकती है। डीबी कॉर्प के चार भाषाओं में प्रकाशित होने वाले अखबारों के उनहत्तर संस्करण और एक सौ पैंतीस उप-संस्करण जनता के बीच पहुंचते हैं। कंपनी माई एफएम नाम से देश के सत्रह शहरों से रेडियो भी संचालित करती है।

डीबी कॉर्प का धंधा सिर्फ मीडिया ही नहीं है। इसकी मौजूदगी और भी कई धंधों में है। भारतीय बाजार के रेग्युलेटर सेक्योरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने इस कंपनी की वित्तीय स्थिति के बारे में कहा है कि इसके पास उनहत्तर अन्य कंपनियों का मालिकाना भी है। जिनमें खनन, ऊर्जा उत्पादन, रियल एस्टेट और टैक्सटाइल जैसे कई धंधे शामिल हैं। कहा जाता है कि कंपनी ने भोपाल में जो मॉल बनाया है वैसा भव्य मॉल एशिया में और कहीं नहीं है। मुनाफा कमाने के लिए जहां भी इस कंपनी को रास्ता दिखता है ये वहीं चल पड़ती है और रास्ते में कोई दिक्कत आ गई तो मीडिया का इतना बड़ा साम्राज्य किस दिन के लिए है! डीबी कॉर्प के कामों को आगे बढ़ाने में दैनिक भास्कर लगातार उसके साथ रहता है। जहां-जहां कंपनी को धंधा करना होता है वहां से वो अखबार निकालना नहीं भूलती ताकि जनमत और सत्ता को साधने में आसानी रहे। कोयला घोटाले में नाम आने से पहले ही छत्तीसगढ़ के रायगढ़ में जनता के विरोध के बावजूद भाजपा सरकार ने इसे 693.2 हेक्टेयर जमीन स्वीकृत कर दी, वहां जनता का आक्रोश फूट पड़ा और आखरिकार छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने पाया कि कंपनी ने पर्यावरण के मानकों का बुरी तरह उल्लंघन किया है। कोर्ट ने आदेश दिया कि आगे से इस कंपनी को पर्यावरण मानकों को लेकर हरी झंडी न दी जाए। हाईकोर्ट में कंपनी के खिलाफ याचिका डालने वाले डीएस मालिया का कहना है कि दैनिक भास्कर ने उनके तथ्यों को झुठलाने के लिए अपने अखबार के कई पृष्ठ रंग डाले और सही खबर को दबाने के लिए हर संभव कोशिश की। दैनिक भास्कर ने राहुल सांस्कृत्यायन के ‘भागो नहीं, दुनिया को बदलो’ की तर्ज पर ‘अपने लिए जिद करो, दुनिया बदलो’ की टैग लाइन चुनी है। जिस तरह से भास्कर देश के संसाधनों की लूट में शामिल है उससे जाहिर है कि वह कैसी बेशर्म जिद का शिकार है! लोकमत समाचार की तरह ही यह कंपनी भी पेड न्यूज छापकर अपना नाम कमा चुकी है! पेड न्यूज पर भारतीय प्रेस परिषद की परंजॉय गुहा ठकुरता और के श्रीनिवास रेड्डी वाली रिपोर्ट में इन दोनों कंपनियों का नाम दर्ज है।

कोयले की दलाली में शामिल तीसरा अखबार प्रभात खबर है। बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल से इसके कई संस्करण निकलते हैं। इसका प्रकाशन उन्नीस सौ चौरासी में खनन उद्योग से जुड़ी कंपनी उषा मार्टिन लिमिटेड ने शुरू किया। उषा मार्टिन समूह के और भी कई धंधे हैं। अपने राजनीतिक संपर्कों के लिए पहचाने जाने वाले हरिवंश उन्नीस सौ नवासी से इसके संपादक हैं। चंद्रशेखर के प्रधानमंत्रित्व काल में वह प्रधानमंत्री ऑफिस में पब्लिक रिलेशन का काम भी कर चुके हैं। ऊषा मार्टिन कंपनी का मुख्य धंधा बिहार, झारखंड और पश्चिम बंगाल में ही चलता है। कंपनी पर आरोप लगता रहा है कि इस इलाके में अपने धंधे के पक्ष में माहौल बनाने के लिए ही उसने अखबार का भी सहारा लिया है। कोयला घोटाले में नाम आने से इस सच्चाई पर पक्की मोहर लग जाती है।

चौथी दागी कॉरपोरेट आदित्य बिड़ला समूह है। यह एक बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनी है जिसका धंधा देश-विदेश में कई क्षेत्रों में फैला हुआ है। यह समूह खाद, रसायन सीमेंट रीटेल, टेलीकॉम जैसे अनगिनत धंधों से जुड़ा हुआ है। हिंडाल्को, आइडिया सेल्यूलर और अल्ट्राटेक सीमेंट इसकी कुछ कंपनियों के नाम हैं। इस समूह ने अरुण पुरी के लिविंग मीडिया इंडिया ग्रुप में 27.5 फीसदी की हिस्सेदारी है। अरुण पुरी इंडिया टुडे के विभिन्न प्रकाशनों और टीवी टुडे समूह के चैनलों के मालिक हैं, जिनमें आजतक और हेडलाइंस टुडे जैसे चैनल भी शामिल हैं। आदित्य बिड़ला समूह ने मीडिया में क्यों पैसा लगाया है इसके लिए किसी शोध की जरूरत नहीं है!

जिन भी कंपनियों का नाम कोयला घोटाले में आया है क्या उनसे उम्मीद की जा सकती है कि वे अपने मालिकाने वाले मीडिया में कोयला घोटाले को सही तरह से रिपोर्ट कर पाएंगे? इस सरल से सवाल के जवाब को आज का मीडिया परिदृश्य काफी कठिन बना देता है जिससे हकीकत पर हमेशा के लिए पर्दा पड़ा रहे। बाजार अर्थव्यवस्था जन-पक्षधर नियमों को ढीला किए बिना चल ही नहीं सकती। सरकारें भी कॉरपोरेट दबाव में मीडिया नियमन के सवाल को लगातार अनदेखा करती रहती हैं। इस मौके का फायदा उठाते हुए बड़े-बड़े बिजनेस समूह मीडिया को खरीदकर उसकी आड़ में अपने बाकी धंधों को चमका रहे हैं। उन्हें ऐसा कदम उठाने से रोकने वाला कोई कानून नहीं है, यही वजह है कि चावल से लेकर सीमेंट का धंधा करने वाली और बिल्डरों से लेकर कोयला बेचने वाली कंपनियां तक मीडिया में पैसा लगा रही हैं। नई आर्थिक नीतियों को अपनाने और तथाकथित सूचना क्रांति के अस्तित्व में आने के बाद सरकारें निजी कंपनियों के सामने ज्यादा आत्मसमर्पण की मुद्रा में हैं। कॉरपोरेट अपराधों के खिलाफ कोई नियम बनाने से उन्हें लगता है कि इससे देश की विकास दर मंदी पड़ जाएगी, विदेशी निवेश घट जाएगा।

वैसे आजादी के बाद से ही व्यापारिक घरानों द्वारा मीडिया को इस्तेमाल करने की शुरुआत हो चुकी थी, इसलिए उस दौरान भारतीय प्रेस को जूट प्रेस भी कहा जाता था। टाइम्स ऑफ इंडिया और हिंदुस्तान टाइम्स जैसे अखबारों के मालिक तब जूट मिलें चलाया करते थे। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और उनके रक्षा मंत्री कृष्णा मेनन जूट प्रेस की आलोचना करते रहे लेकिन उन्होंने कभी मीडिया में दूसरे धंधों के मालिकों के आने के खिलाफ कोई नियम नहीं बना पाए। बाद में भारतीय प्रेस को स्टील प्रेस भी कहा जाने लगा क्योंकि टाटा जैसी कंपनी का तब के प्रभावशाली अखबार द स्टेट्समैन में पैसा लगा था। इसी तरह इंडियन एक्सप्रेस के मालिक रामनाथ गोयनका ने भी पिछली सदी के साठ के दशक में इंडियन आयरन एंड स्टील कंपनी का नियंत्रण अपने हाथ में लेने की कोशिश की थी। ये कंपनियां हमेशा से अपने व्यापारिक हितों की रक्षा व उन्हें बढ़ाने के लिए मीडिया का इस्तेमाल करती रही हैं। कुछ समय पहले जिस तरह मुकेश अंबानी की कंपनी रियायंस इंडस्ट्रीज ने नेटवर्क 18 और तेलुगू अखबार समूह इनाडु का अधिग्रहण किया है उसे भी इसी क्रम में देखा जा सकता है। इसी तरह कहा जाता है कि कई मीडिया कंपनियों में मुकेश के भाई अनिल अंबानी और रतन टाटा का भी पैसा लगा हुआ है।

भारत में मीडिया के मालिकाने पर बात करते हुए इस बात को ध्यान में रखना जरूरी है कि बड़ी पूंजी का मीडिया पर कब्जा बढ़ता जा रहा हैं। अखबार, टेलीविजन, रेडियो और इंटरनेट से लेकर सभी प्रकार के मीडिया को वे अपने नियंत्रण में ले रहे हैं। मीडिया संकेंद्रण और एकाधिकार की यह प्रवृत्ति धीरे-धीरे छोटी पूंजी के बल पर निकलने वाले स्वतंत्र समाचार मीडिया को खत्म कर रही है। मीडिया के मालिकाने का केंद्रीकरण लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। इसका उपाय यही है कि क्रास मीडिया होल्डिंग यानी एक ही मीडिया कंपनी के सभी तरह के मीडिया में पैसा लगाने पर रोक लगाई जाए। बहुसंस्करणों पर रोक हो। अमेरिका और ब्रिटेन जैसे पूंजीवादों देशों में भी मीडिया में पूंजी निवेश को लेकर कोई न कोई नियम हैं लेकिन भारत सरकार इस मामले में अब तक सोयी हुई है। फिलहाल देश के प्रिंट मीडिया पर 9 बड़े मीडिया घरानों का प्रभुत्व हो चुका है। टाइम्स (ऑफ इंडिया) समूह, हिंदुस्तान टाइम्स समूह, इंडियन एक्सप्रेस समूह, द हिंदू समूह, आनंद बाजार पत्रिका समूह, मलयाला मनोरमा समूह, सहारा समूह, भास्कर समूह और जागरण समूह ने लगभग पूरे मीडिया बाजार पर कब्जा कर रखा है। इसी तरह इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में स्टार इंडिया, टीवी 18, एनडीटीवी, सोनी, जी समूह, इंडिया टुडे समूह और सन नेटवर्क का बोलबाला है। यही हाल रहा तो जल्दी ही देश में पूरी तरह से मीडिया एकाधिकार (मोनोपली) के हालात पैदा हो सकते हैं। दो हजार नौ में टेलीकॉम रेग्युलेटरी अथॉरिटी ऑफ इंडिया (ट्राइ) ने क्रॉस मीडिया ऑनरशिप संकेंद्रण को लेकर अपनी चिंता जताई थी। अपने आधार पत्र में उसने सख्त नियम बनाने की वकालत भी की थी लेकिन कमजोर राजनीतिक इच्छा शक्ति की वजह से इसको लेकर कोई ठोस कानून नहीं बन पाया है।

जिस तरह कई मीडिया समूहों के नाम कोयला घोटाले में आये हैं उससे सबक लेते हुए ऐसे नियम बनाने की जरूरत है जिससे देश में मीडिया स्वामित्व को अन्य उद्योगों से मालिकाने से स्वतंत्र रखा जा सके।

(समयांतर)


मीडिया की काली करतूत//अमलेन्दु उपाध्याय