Thursday, January 19, 2023

नहीं रहे मित्र कुलदीप सिंह कोकी लेकिन छोड़ गए कई सवाल

Monday:16th January 2023 at 03:47 PM Via Mobile call 

पत्रकारों की आर्थिकता मज़बूत बनाने लिए समाज भी आगे आए   


लुधियाना: 18 जनवरी 2023: (रेक्टर कथूरिया//मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन)::

आज बाद दोपहर ही पता चला कि पत्रकार कुलदीप जी नहीं रहे। पुराने मित्र और सुख दुःख के साथी रहे अजय कोहली जी ने उनके देहांत की खबर दी। उन्होंने और कुछ अन्य मित्रों ने बताया कि सुबह तक ठीक लग रहे थे। साढ़े सात बजे तक तो अपनी अख़बार मालवा प्वाइंट के लिंक सोशल मीडिया पर पोस्ट भी करते रहे। इसी बीच सुबह ही 09 और 09:30 के दरम्यान ही अचानक उनकी तबियत बिगड़ी। कहने लगे चक्कर से आ रहे हैं। उन्हें फवारा चौंक वाले न्यूरो अस्पताल पहुँचाया गया लेकिन अस्पताल के अंदर पहुँचने से पहले ही वह इस दुनिया से जा चुके थे। सुबह करीब 11 बजे तक उनके न रहने की खबर सभी मित्रों को मिलनी शुरू हुई। वरिष्ठ पत्रकार मित्र अश्वनी जेतली ने भी बहुत से लोगों को सूचित किया। 

बहुत दुखद है कुलदीप जी का यूं चले जाना। हम सभी मित्र प्यार से उन्हें कोकी कहा करते थे। हर रोज़ अक्सर मिलने मिलाने वाले और उनके ज़्यादा नज़दीक रहने वाले मित्रों ने बताया कि कामकाज को लेकर आजकल बहुत बेहद चिंतित थे। उसी चिंता और टेंशन के चलते शायद दिमाग की नाड़ी फट गई। बाद में उनके बेटे दमनप्रीत  सिंह ने  भी ब्रेन हैमरेज की पुष्टि की।  

अभी शायद उम्र के साठ साल ही मुश्किल से पूरे कर पाए थे कि मौत उन्हें देखते ही देखते हमसे छीन ले गई। हम सभी का स्नेही मित्र हमारे दरम्यान नहीं रहा। आर्थिक तंगियों के बावजूद ज़रूरत  पड़ने पर मित्रों का हर संभव सहायक साबित होना। जेब खाली होने पर भी संकटग्रस्त मित्र के लिए कोई रास्ता सुझा देना। खुद को भी अगर कभी कोई बेबसी जैसी हालत घेर ले तो भी दोस्तों को कठिन घड़ियों में हौंसला देना शायद कुलदीप को ही आता था। कोई खुद को तीसमारखां समझ कर कुछ ज़्यादा ही हवा करने लगे तो उसकी हवा पल भर में निकालना भी कुलदीप के लिए चुटकी का काम रहता। किसी की बात पर आशंका होनी तो झट से मोबाईल निकालना औए बात की पुष्टि कर के हकीकत का पता लगा लेना। 

ज़िंदगी और वक्त ने उन्हें बहुत जाने माने लोगों से मिलवाया और बहुत बड़े बड़े घटनाक्रमों का साक्षी भी बनाया।समाज और सियासत में जिन लोगों ने कई कई बार आंधियों के खिलाफ स्टैंड ले कर दिखाया था उनका साथ भी कुलदीप जी को मिलता रहा। क्लीन शेव्ड रहे लेकिन पंथ और सिख धर्म के हर दर्द से अवगत रहते थे। सिख शहादत पत्रिका पर उनका नाम भी प्रिंट लाईन में छपता रहा। कई कई दुर्लभ किताबों का अनुवाद भी हिंदी और अंग्रेज़ी से किया और करवाया। 

किसी को कोई भी समस्या हो तो उनके कंप्लेंट सैल का दरवाज़ा हमेशां उनके लिए खुला रहता। नैशनल रोड पर स्थित काली सी बिल्डिंग--सूर्य आर्केड की सीढ़ियां चढ़ कर उनका दफ्तर आ जाता था। जेब की हालत कैसी भी हो, माहौल का मिजाज़ कुछ भी हो वह अपने पास आने वाले हर व्यक्ति की आवभगत करते और उसका दुःख दर्द सुनते। कोशिश करते संकट का समाधान भी तुरंत बता सकें। 

घर को चलाने में पिता का साथ देते थे। इसी म्हणत मशक्कत ने उनका बचपन भी उनसे छीन लिया था। उनके बचपन का वह मासूम सा चेहरा भी अब तक याद है मुझे। सर पर जुड़ा और उस पर रबड़ के साथ सफ़ेद रुमाल किसी फूल की तरफ सजा लगता था। जब गली मोहल्ले के अन्य बच्चे खेल रहे होते तब वह पिता की प्रिंटिंग प्रेस पर मेहनत कर रहे होते। कभी कंपोज़िंग, कभी फर्मा बांधना और उठवाना, कभी प्रिंटिंग प्रेस पर काम करना। बस साड़ी उम्र काम में ही निकल गई। 

गौरतलब है कि छोटी सी उम्र में ही पिता के साथ लुधियाना के प्रसिद्ध पुराने इलाके इस्लामगंज//अमरपुरा में प्रिंटिंग प्रेस के ज़रिए मेहनत मुशक्कत करते हुए उनकी शख्सियत का दृश्य रह रह कर आंखों के सामने उभर रहा है। उन दिनों पत्र-पत्रिकाओं की छपाई के लिए एक एक अक्षर--एक एक मात्रा जोड़ कर कोई खबर या रचना तैयार होती थी। फिर उन सभी रचनाओं को जोड़ कर पूरा पेज बांधा जाता था और उसके बाद सभी पेज जोड़ कर कोई अख़बार या किताब छपा करती थी। 

उनके पिता बच्चों से बहुत सख्ती के साथ काम करवाया करते थे। उनके भाई भी पूरा सहयोग देते थे। प्रिंटिंग प्रेस नीचे वाले ग्राउंड फ्लोर पर चला  करती थी ऊपर रिहायश हुआ करती थी। थोड़ी थोड़ी देर बाद ऊपर से चाय बन कर आती रहती।  फिर कोशिश होती चाय भी खाली न हो। साथ बिस्कुट या कुछ और भी रहता। साथ ही उनके पिता बातों बातों में अपने सभी क्लाइंटस को बिठाए रखते। बिजली चली जाती तो सब को  मुसीबत ही लगती। कुछ देर के लिए काम रुक सा जाता। अँधेरे में भी कुलदीप कम्पोजिंग करते रहते। अतीत के वे सभी दृश्य अब इतने सालों बाद ज़हन में घूमने लगे हैं। ऐसा लगता है जैसे कोई फिल्म कल्पना के पर्दे पर चल रही हो। 

सत्तर का दशक शायद उस समय समाप्त हो चुका था। अस्सी का दशक शुरू भी हो चुका था। अस्सी के दशक का यह वही दौर था जब पंजाबी में भी आधुनिक प्रिंटिंग अपना रंग ढंग ज़ोरशोर से दिखाने की दस्तक दे रही थी। कम्प्यूटर के ज़रिए कॉमसेट की आधुनिक कम्पोज़िंग चर्चा का विषय बन गई थी। ऑफसेट की तेज़ रफ़्तार प्रिंटिंग हम सभी को हैरान करने लगी थी। 

छोटी प्रिंटिंग प्रेस बस छोटे छोटे जॉब वर्क तक सिमटने लगी थी। लगता था यह सब जल्द ही अतीत बन जाएगी लेकिन सलेमटाबरी और नाली मोहल्ला में अभी भी उनकी झलक मिल जाती है। उस दौर की कई मशीनें ज़ोर शोर से बहुत से लोगों का रोज़गार बनी हुई हैं। इसके बावजूद इस दौर में कइयों की किस्मत पर मंदहाली ने दस्तक दी। कुलदीप कोकी के पिता की प्रिंटिंग प्रेस पर भी इस का असर पड़ा। लेकिन आर्थिक मंदहालियों से जूझते हुए भी उन्होंने न तो कभी अच्छे साहित्य का अध्यन ही छोड़ा और न ही सृजन का सिलसिला बंद होने दिया। इसके साथ ही नई तकनीक से भी वाकिफ होते रहे। सीमित से संसाधनों के बावजूद वह किसी न किसी बहाने मीडिया में सक्रिय रहे। यह सक्रियता पैसे कमाने के लिए नहीं थी बल्कि एक मिश्र को लेकर थी। वह बड़े बड़े समूहों में रह कर और उनसे दूर हो कर भी इस मिशन को समर्पित रहे। 

आज उनके जाने की खबर सुन कर मन बहुत उदास हो गया है।

फिर बहुत से सवाल उठ रहे हैं क्या यही है ज़िंदगी? कभी भी किसी भी वक्त किसी मित्र से बिछड़ जाना और कुछ न कर पाना!

कितने बेबस से हैं हम लोग हैं।  मित्रों  देखते रहते हैं लेकिन उन्हें बचाने का कोई ठोस कदम नहीं उठा सकते। समाज को राह दिखने वाला मीडिया अभी तक अंधेरे में है। 

जो वास्तविक ज़िंदगी में काम करते हैं लेकिन तिकड़मबाज़ी नहीं करते वे क्यूं इतने गुमनाम रह जाते हैं। क्यूं  उन पर खुशहाली की कृपा नहीं होती? लक्ष्मी क्यूं उन पर मेहरबान नहीं होती? हम दोनों के एक नज़दीकी मित्र बलवीर सिद्धू (पंजाबी अख़बार-जस्टिस न्यूज़ के मालिक,संपादक और प्रकाशक) ने बताया कि बार उन्हें सरकारी कार्डों और फायदों के लिए कहा लेकिन वह हर बार हंसते हुए बात को टाल जाते। यूं लगने लगता जैसे वह उनकी ख़ामोशी और रहस्यमय हंसी में शायद एक पुराना गीत गुनगुना रहे हों--

सब कुछ सीखा हमने न सीखी होशियारी

सच है दुनिया वालों कि हम हैं अनाड़ी!

अब कुलदीप कोकी जी हमारे दरम्यान नहीं रहे। ज़िंदगी भर संघर्ष करने वाला शख्स अब मौत की आगोश में  चला गया। सब संघर्ष बीच में ही छूट गए। सभी इरादे भी अधर में ही रह गए। लेकिन उनका जाना बहुत से सवाल छोड़ गया है कि क्या यह सब यूं ही चलता रहेगा? मेहनत, मुशक्कत, ईमानदारी और प्रतिबद्धता इसी तरह दम तोड़ती रहेगी। 

सत्ता बदलती रहती है लेकिन सरकारों को चाहिए कि कलमकारों को मान्यता, सहायता और आवश्यक सहयोग देने के लिए नियमों को आसान करे। जान सम्पर्क विभाग की शक्तियों को बढ़ाया जाए। कलमकारों की तलाश के लिए एक विशेष सैल बनाया जाए जो अपने स्तर पर खोज करके सही लोगों को सत्ता की तरफ से बनती सहायता दे सके। कलमकारों के स्वास्थ्य की जाँच और अवस्य्हक उपचार तो हर छह महीने बाद होना ही चाहिए। नियमों की सख्ती की बजाए असली कलमकार बचने की तरफ पहल होनी चाहिए।  

यह सब लिखते हुए मैं उनकी कमज़ोरियों, खामियों और मजबूरियों से भी अवगत हूं लेकिन जब तक समाज कलमकारों के प्रति उदासीन और गैर-ज़िम्मेदार बना रहेगा तब तक यह सब होता रहेगा। हमारे पत्रकार, लेखक, बुद्धिजीव, कलाकार अलप आयु में ही दम तोड़ते रहेंगे। 

जब यह समाज अपनी वाहवाही के  आयोजन करता है तो उस समय आयोजक लोग चाय बनाने वाले को भी पैसे देते हैं, चाय परोसने और ले कर आने वाले  को भी पैसे दिए जाते हैं, दरियां बिछाने और कुर्सियां लाने लेजाने वालों को भी पैसे मिलते हैं लेकिन उसकी कवरेज के लिए दूर दराज से पहुंचे मीडिया वालों कोआयोजक नहीं  पूछते कि उनके वाहन में पैट्रोल है या नहीं? 

अगर कोई मजबूरी वश मांग भी ले तो उसे दे भी देते हैं लेकिन बाद में बदनाम करते हैं।  कोई सरकार से विज्ञापन मांग ले तो उसे सरकारिया कह कर बुरा भला कहते हैं लेकिन स्वयं की ज़िम्मेदारी का अहसास कभी नहीं करते। कवरेज की खबरों के ज़रिए अधिक से अधिक स्पेस और टाइमं बटोरने वाले ये चालाक लोग भी कलमकारों के जल्द देहांत के लिए कम ज़िम्मेदार नहीं हैं। सभी पत्रकार संगठनों को इस तरफ भी ध्यान देना होगा। 

आखिर में गोपाल दास नीरज जी का शेयर याद आ रहा है:

वो और ही थे जिन्हें थी ख़बर सितारों की;

मेरा ये देश तो रोटी की ही ख़बर में रहा - गोपालदास नीरज

स्नेह के साथ// बिछड़े हुए मित्रों की यादों के साथ//बिछड़ने की कगार पर खड़े और बहुत से कलमकारों के जाने के अंदेशे की चिंता के साथ आप सभी का--रेक्टर कथूरिया

Monday, January 9, 2023

यह सब प्रसारण कोड के खिलाफ हैं--सूचना और प्रसारण मंत्रालय

प्रविष्टि तिथि: 09 JAN 2023 2:38 PM by PIB Delhi

परेशान करने वाले दृश्यों  पर टीवी चैनलों को किया सुचेत 

*रक्तमय, शवों, शारीरिक हमले की तस्वीरें दर्दनाक और प्रोग्राम कोड के खिलाफ हैं

*चैनलों द्वारा सोशल मीडिया से लिए जाने वाले हिंसक वीडियो में कोई संपादन नहीं किया जा रहा है

*टीवी रिपोर्ट बच्चों पर मनोवैज्ञानिक असर डालती हैं, पीड़ितों की निजता का हनन करती हैं

नई दिल्ली: 9 जनवरी 2023: (पीआईबी//मीडिया स्क्रीनऑनलाइन)::

पिछले कुछ दश्कों में टी वी ख़बरों और टीवी सीरियलों ने अपनी अलग जगह बनाई है। फिल्मों के पैटर्न पर ही इन्हें बनाया भी जाता रहा है। टीवी सीरियलों ने फिल्मों के बराबर कद भी निकाला और  इनमें काम करने वालों ने अपनी अलग पहचान भी बनाई। इससे बहुत से लोगों को रोज़गार भी मिला। टीवी की दुनिया फिल्मों की तरह ही रोज़गार और एक्सपोज़र के बहुत से सुअवसर लेकर भी आई लेकिन इसके साथ ही लोगों की मानसिक सेहत के साथ जाने अनजाने खिलवाड़ भी हुआ। लोग घरों और परिवारों से टूट कर इन सीरियलों में काम करने वाले पात्रों के साथ जुड़ते चले गए। 

अपनी वास्तविक ज़िंदगी की मुसीबतों, चुनौतियों और ज़िम्मेदारियों को भूल कर इन सीरियलों के पत्रों और परिवारों की चिंता बहुत ज़्यादा करने लगे। इसके साथ ही इन सीरियलों के दर्शकों में अवसाद, उदासी, चिंता और निराशा भी बढ़ने लगी। जब तक सरकारी टीवी अर्थात दूरदर्शन था तब तक काफी हद तक सब कुछ बहुत ज़िम्मेदारी से होता रहा। निजी चैनलों के आने सब नीतियां और आदर्श व्यापर और कारोबार की भेंट चढ़ गए। 

सीरियलों के बाद खबरों के प्रसारण में भी खबरों को सनसनीभरी कहानी की तरह दिखने का रिवाज तेज़ी से बढ़ा।  खबरों के प्रसारण में भी ज़रूरी एहतियात काम होती चली गई। अब इस सब का गंभीर नोटिस लिया है सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने। 

टीवी सीरियलों के परिणामों का गंभीर नोटिस लेते हुए सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने आज सभी टेलीविजन चैनलों को दुर्घटनाओं, मौतों और महिलाओं, बच्चों एवं बुजुर्गों के खिलाफ होने वाली हिंसा सहित हिंसा की विभिन्न घटनाओं की वैसी रिपोर्टिंग के खिलाफ एक परामर्श जारी किया है, जो “अरुचिकर और अशोभनीय" होती हैं। मंत्रालय द्वारा यह परामर्श टेलीविजन चैनलों द्वारा विवेकहीनता दर्शाए जाने के कई मामलों के संज्ञान में आने के बाद जारी किया गया है।

इस संबंध में सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने कहा है कि टेलीविजन चैनलों ने लोगों के शवों और रक्तरंजित घायल लोगों, महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों सहित लोगों को बेरहमी से पीटे जाने, एक शिक्षक द्वारा पिटे जा रहे एक बच्चे के लगातार रोने – चिल्लाने की तस्वीरें/वीडियो धुंधला किए या उन्हें दूर के शॉट्स में दिखाने की सावधानी बरतते बगैर उन हरकतों को घेरकर और भी भयानक बनाते हुए निकट के शॉट्स में कई मिनटों तक बार-बार दिखाए हैं। यह बात भी प्रकाश में आई है कि ऐसी घटनाओं की रिपोर्टिंग का यह तरीका दर्शकों के लिए अरुचिकर और उन्हें परेशान करने वाला है। गौरतलब है कि बच्चों से लेकर बज़ुर्गों तक इनका भावुक असर बहुत गहराई से अपना प्रभाव छोड़ता रहा। 

इस मामले में दिए गए इस परामर्श में विभिन्न दर्शकों पर इस तरह की रिपोर्टिंग से पड़ने वाले असर पर प्रकाश डाला गया है। इसमें कहा गया है कि ऐसी खबरों का बच्चों पर विपरीत मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी पड़ सकता है। परामर्श ने इस तथ्य को भी रेखांकित किया है कि इसमें निजता के हनन का एक महत्वपूर्ण मुद्दा भी है जो संभावित रूप से निंदनीय और मानहानि करने वाला हो सकता है। 

उल्लेखनीय है कि आमतौर पर घरों में परिवार के सभी वर्ग के लोगों-वृद्ध, मध्यम आयु वर्ग, छोटे बच्चे आदि और विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि वाले लोगों-के साथ देखा जाने वाला एक मंच होने के नाते, टेलीविजन प्रसारकों पर जिम्मेदारी और अनुशासन की एक खास भावना पैदा करते हैं, जिन्हें प्रोग्राम कोड और विज्ञापन कोड में संकलित किया गया है। इसे विस्तार से पढ़ा जाए तो बहुत कुछ स्पष्ट भी हो जाता है। 

मंत्रालय ने यह पाया है कि ज्यादातर मामलों में वीडियो सोशल मीडिया से लिए जा रहे हैं और प्रोग्राम कोड के अनुपालन और निरंतरता सुनिश्चित करने के संपादकीय विवेक एवं संशोधनों के बिना प्रसारित किए जा रहे हैं।

हाल ही में प्रसारित ऐसे कंटेंट के उदाहरणों की सूची नीचे दी गई है:

हाल ही में 30 दिसंबर 2022 को दुर्घटना में घायल हुए एक क्रिकेटर की दर्दनाक तस्वीरें और वीडियो बिना धुंधला किए दिखाये गये।

इसी तरह 28 अगस्त 2022 को एक पीड़ित के शव को घसीटते एक व्यक्ति और चारों ओर खून के बिखरे छींटे तथा पीड़ित के चेहरे पर केंद्रित एक दर्दनाक फुटेज दिखाया गया।

यह सिलसिला काफी देर से जारी है। कुछ महीने पूर्व ही 06 जुलाई 2022 की एक दर्दनाक घटना में बिहार के पटना स्थित एक कोचिंग कक्षा में एक शिक्षक को पांच वर्ष के एक बच्चे को बेरहमी से तब तक पीटते हुए देखा जा सकता है जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गया। क्लिप को म्यूट किए बिना चलाया गया था जिसमें दया की भीख मांगते बच्चे की दर्दनाक चीखें सुनी जा सकती हैं और इसे 09 मिनट से अधिक समय तक दिखाया गया।

इससे पहले 04 अप्रैल 2022 को एक पंजाबी गायक के मृत शरीर की दर्दनाक तस्वीरों को बिना धुंधला किए दिखाया गया।

इस तरह 25 मई 2022 को असम के चिरांग जिले में एक व्यक्ति द्वारा दो नाबालिग लड़कों को डंडे से बेरहमी से पीटने की दिल दहला देने वाली घटना को दिखाया गया। वीडियो में उस शख्स को बेरहमी से लड़कों को लाठी से पीटते देखा जा सकता है। क्लिप को बिना धुंधला या म्यूट किए चलाया गया जिसमें लड़कों के रोने की दर्द भरी आवाज साफ सुनाई दे रही है।

16 मई 2022 को कर्नाटक के बागलकोट जिले में एक महिला अधिवक्ता के साथ उसके पड़ोसी ने बेरहमी से मारपीट की, जिसे बिना संपादन के लगातार दिखाया गया।

दक्षिण भारत में ही 04 मई 2022 को तमिलनाडु के विरुधुनगर जिले के राजापलायम में एक व्यक्ति को अपनी ही बहन की हत्या करते हुए दिखाया गया है।

इसी तरह 01 मई 2022 को छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले में एक व्यक्ति को पेड़ से उल्टा लटका कर पांच लोगों द्वारा बेरहमी से लाठियों से पीटने की घटना के बारे में दिखाया गया।

12अप्रैल 2022 को एक दुर्घटना में पांच शवों के दर्दनाक दृश्य लगातार बिना धुंधला किए दिखाए गए।

11 अप्रैल 2022 की एक घटना में केरल के कोल्लम में एक व्यक्ति को अपनी 84 वर्षीय मां पर बेरहमी से हमला करते, उसे घसीटते हुए और लगातार बेरहमी से पीटते हुए लगभग 12 मिनट तक बिना धुंधला किए दिखाया गया।

07 अप्रैल 2022 को बंगलुरू में एक बूढ़े व्यक्ति द्वारा अपने बेटे को आग लगाने का एक बेहद परेशान कर देने वाला वीडियो दिखाया गया। बूढ़े व्यक्ति द्वारा माचिस की तीली जलाकर उसे अपने बेटे पर फेंके जाने का असंपादित फुटेज बार-बार प्रसारित किया गया।

22 मार्च 2022 को असम के मोरीगांव जिले में एक 14 वर्षीय नाबालिग लड़के की पिटाई का वीडियो बिना धुंधला या म्यूट किए चलाया गया जिसमें लड़के को बेरहमी से पीटे जाने के दौरान रोते और गिड़गिड़ाते हुए सुना जा सकता है।

इस तरह के प्रसारण पर चिंता जताते हुए और इसमें शामिल व्यापक जनहित को ध्यान में रखते हुए और बुजुर्गों, महिलाओं और बच्चों सहित टेलीविजन चैनलों के दर्शकों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए, मंत्रालय ने सभी निजी टेलीविजन चैनलों को कड़ाई से यह सलाह दी है कि वे अपनी प्रणाली और मृत्यु सहित अपराध, दुर्घटना एवं हिंसा की घटनाओं की रिपोर्टिंग के तौर - तरीकों को प्रोग्राम कोड के अनुरूप बनायें।

परामर्श की विस्तृत जानकारी के लिए यहां क्लिक करें

****** एमजी/एएम/आर/डीवी         (रिलीज़ आईडी: 1889817)

Friday, January 6, 2023

28 क्षेत्रीय दूरदर्शन चैनल एचडी कार्यक्रम निर्माण में सक्षम होंगे

Posted On: 06 January 2023 at 3:52 PM by PIB Delhi

तेज़ी से फैलेगा आकाशवाणी और दूरदर्शन का दायरा 

बीआईएनडी योजना के तहत एफएम कवरेज का विस्तार 80 प्रतिशत से अधिक आबादी तक

नई दिल्ली: 06 जनवरी 2023: (पीआईबी//मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन)::

भारत सरकार ने सरकारी मीडिया से जुड़े सबसे पुराने संस्थानों आकाशवाणी और दूरदर्शन के विस्तार कार्य की घोषणाएं की हैं। इससे इनका दायरा बहुत ज़्यादा बढ़ जाएगा। ऐसा होने से कवरेज का विस्तार जम्मू-कश्मीर की सीमाओं के साथ 76 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा और भारत-नेपाल सीमा के साथ इसका दायरा 63 प्रतिशत तक विकसित हो जाएगा। 

इस विस्तार को और अधिक प्रभावी बनाने के लिए प्रसार भारती सुदूर, जनजातीय, एलडब्ल्यूई और सीमावर्ती क्षेत्रों में 8 लाख से अधिक डीडी डीटीएच रिसीवर सेटों का निःशुल्क वितरण भी करेगा। 

कैबिनेट ने 4 जनवरी, 2023 को ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन के आधुनिकीकरण, उन्नयन और विस्तार के लिए 2539.61 करोड़ रुपये के परिव्यय के साथ "प्रसारण अवसंरचना नेटवर्क विकास (बीआईएनडी)" योजना को मंजूरी दी। यह योजना 2025-26 तक, अर्थात पांच साल की अवधि के लिए है। इस योजना में आकाशवाणी और दूरदर्शन की प्राथमिक परियोजनाएं शामिल हैं, जिनमें एफएम रेडियो नेटवर्क और मोबाइल टीवी कार्यक्रम निर्माण सुविधाओं के विस्तार और मजबूती पर ध्यान केंद्रित किया गया है, जिनके लिए 950 करोड़ रुपये निर्धारित किये गए हैं। इन परियोजनाओं को फास्ट-ट्रैक मोड पर पूरा किया जाएगा।

इस योजना का उद्देश्य एलडब्ल्यूई, सीमावर्ती और रणनीतिक क्षेत्रों में बेहतर अवसंरचना तैयार करना और सार्वजनिक प्रसारक की पहुंच को बढ़ाना है। घरेलू और अंतरराष्ट्रीय दर्शक -  दोनों के लिए उच्च गुणवत्ता वाली सामग्री का विकास तथा अधिक चैनलों को समायोजित करने के लिए डीटीएच प्लेटफॉर्म की क्षमता के उन्नयन के जरिये विविध सामग्री की उपलब्धता, दर्शकों के लिए उपलब्ध विकल्पों का विस्तार करेगी। योजना का उद्देश्य मुख्य रूप से एलडब्ल्यूई और आकांक्षी जिलों पर ध्यान केंद्रित करते हुए टियर II और टियर-III शहरों में एफएम नेटवर्क का विस्तार करना है।

प्रसार भारती के दो प्रमुख स्तंभों में, आकाशवाणी, देश में 501 आकाशवाणी प्रसारण केंद्रों के माध्यम से 653 आकाशवाणी ट्रांसमीटरों (122 मीडियम वेव, 7 शोर्ट वेव और 524 एफएम ट्रांसमीटर) के साथ विश्व सेवा, पड़ोस सेवाएं, 43 विविध भारती चैनल, 25 रेनबो चैनल और 4 एफएम गोल्ड चैनल की सुविधा देते हुए अपने श्रोताओं को सेवाएं प्रदान करता है।      

दूरदर्शन अपने दर्शकों को 66 दूरदर्शन केंद्रों के माध्यम से 36 डीडी चैनलों का प्रसारण करता है, जो विभिन्न वितरण प्लेटफार्मों, जैसे केबल, डीटीएच, आईपीटीवी "न्यूजऑनएयर" मोबाइल ऐप, विभिन्न यूट्यूब चैनलों और 190+ देशों में वैश्विक उपस्थिति वाले अपने अंतरराष्ट्रीय चैनल डीडी इंडिया के माध्यम से कार्यक्रम प्रसारित करते हैं।

बीआईएनडी योजना के तहत निम्नलिखित प्रमुख गतिविधियों की योजना बनाई गई है

आकाशवाणी

भौगोलिक क्षेत्र और आबादी के हिसाब से देश में एफएम कवरेज को क्रमशः 58.83 प्रतिशत और 68 प्रतिशत से बढ़ाकर 66.29 प्रतिशत और 80.23 प्रतिशत करना।

भारत-नेपाल सीमा पर आकाशवाणी के एफएम के कवरेज को मौजूदा 48.27 प्रतिशत से बढ़ाकर 63.02 प्रतिशत करना।

जम्मू एवं कश्मीर सीमा पर आकाशवाणी के एफएम के कवरेज को 62 प्रतिशत से बढ़ाकर 76 प्रतिशत करना।

30,000 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र को कवर करने के लिए रामेश्वरम में 300 मीटर उंचे टावर पर 20 किलोवाट क्षमता का एक एफएम ट्रांसमीटर स्थापित किया जाएगा।

दूरदर्शन

प्रसार भारती के केन्द्रों में नवीनतम प्रसारण एवं स्टूडियो उपकरण स्थापित करके दूरदर्शन और आकाशवाणी के चैनलों को नया स्वरूप देना।

डीडीके विजयवाड़ा और लेह स्थित अर्थ स्टेशनों का 24 घंटे प्रसारण वाले चैनलों के रूप में उन्नयन।

प्रतिष्ठित राष्ट्रीय समारोह/कार्यक्रमों और वीवीआईपी कवरेज को कवर करने के लिए फ्लाई अवे यूनिटों की शुरुआत।

28 क्षेत्रीय दूरदर्शन चैनलों को हाई-डेफिनिशन प्रोग्राम प्रोडक्शन में सक्षम केंद्रों के रूप में विकसित किया जाएगा।

पूरे दूरदर्शन नेटवर्क में 31 क्षेत्रीय समाचार इकाइयों को कारगर तरीके से समाचार एकत्र करने के लिए नवीनतम उपकरणों के साथ उन्नत एवं आधुनिक बनाया जाएगा।

एचडीटीवी चैनलों को अपलिंक करने हेतु डीडीके गुवाहाटी, शिलांग, आइजोल, ईटानगर, अगरतला, कोहिमा, इंफाल, गंगटोक और पोर्ट ब्लेयर के अर्थ स्टेशनों का उन्नयन और प्रतिस्थापन।

इस योजना की कुछ प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित हैं: 

देश के छह लाख वर्गमीटर से अधिक इलाके, मुख्य रूप से श्रेणी- II और श्रेणी - III शहरों, एलडब्ल्यूई और सीमावर्ती इलाकों तथा आकांक्षी जिलों में एफएम कवरेज को बढ़ाने के लिए 100 वाट  क्षमता वाले 100 ट्रांसमीटरों के अलावा 10 किलोवाट एवं उच्च क्षमता के 41 एफएम ट्रांसमीटर।

फ्री डिश की डीडी क्षमता को मौजूदा 116 चैनलों से बढ़ाकर लगभग 250 चैनलों तक पहुंचाना ताकि चैनलों का एक समृद्ध एवं विविध गुलदस्ता निशुल्क उपलब्ध कराया जा सके।

यहां यह बताना प्रासंगिक है कि डीडी फ्री डिश प्रसार भारती का फ्री-टू-एयर डायरेक्ट टू होम (डीटीएच) प्लेटफॉर्म है, जिसके अनुमानित 4.30 करोड़ कनेक्शन हैं (फिक्की और ई एंड वाई रिपोर्ट 2022 के अनुसार) जो इसे भारत का सबसे बड़ा डीटीएच प्लेटफॉर्म बनाते हैं। डीडी फ्री डिश के दर्शकों को इस प्लेटफॉर्म के चैनल देखने के लिए किसी मासिक या वार्षिक शुल्क का भुगतान करने की जरूरत नहीं है। इस प्लेटफॉर्म के पास 167 टीवी चैनलों का समृद्ध गुलदस्ता है जिसमें 49 दूरदर्शन और संसद चैनल, प्रमुख प्रसारकों के 77 निजी टीवी चैनल (11 जीईसी, 14 मूवी, 21 समाचार, 7 संगीत, 9 क्षेत्रीय, 7 भोजपुरी, 1 खेल, 5 भक्ति चैनल, 3 विदेशी चैनल), 51 शैक्षिक चैनल और 48 रेडियो चैनल शामिल हैं।

आपदा या प्राकृतिक आपदा की स्थिति में निर्बाध डीटीएच सेवा सुनिश्चित करने के लिए डीडी फ्री डिश डिजास्टर रिकवरी सुविधा की स्थापना।

सहज और कुशल निर्माण एवं प्रसारण के लिए फील्ड स्टेशनों की प्रसारण सुविधाओं का स्वचालन और आधुनिकीकरण। इसमें स्वचालित प्लेआउट सुविधाएं, न्यूज प्रोडक्शन प्रणाली के लिए समाचार कक्ष में कंप्यूटर प्रणाली, रियल टाईम प्रोडक्शन में संपादन और प्रसारण को पूरा करने के लिए फ़ाइल आधारित कार्य प्रवाह, नवीनतम स्टूडियो कैमरे, लेंस, स्विचर्स, राउटर्स आदि तथा पूरे देश भर में दूरदर्शन के फील्ड स्टेशनों के लिए अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के प्रावधान शामिल हैं। यह क्षमता निर्माण उपाय दूरदर्शन को समय के अनुरूप प्रौद्योगिकी और आधुनिक टीवी स्टूडियो प्रोडक्शन की तकनीक से ताममेल करने में सक्षम बनाएगा।

मनोरंजन, स्वास्थ्य, शिक्षा, युवा, खेल और अन्य सार्वजनिक सेवा सामग्री पर ध्यान देने के साथ क्षेत्रीय भाषाओं सहित समृद्ध सामग्री उपलब्ध करना।

त्वरित प्रतिक्रिया क्षमताओं के साथ समाचार एकत्र करने की सुविधाओं को मजबूत बनाना और स्थानीय समाचार कवरेज की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए अर्ध-ग्रामीण क्षेत्रों में इसका विस्तार करना।

दृष्टिगत रूप से आकर्षक कार्यक्रमों के कंटेंट निर्माण के लिए ऑगमेंटेड रियलिटी और वर्चुअल रियलिटी जैसी नई तकनीकों का समावेश।

उपग्रह ट्रांसपोंडरों के कुशल उपयोग के लिए स्पेक्ट्रम कुशल प्रौद्योगिकी के साथ मौजूदा अप-लिंक स्टेशनों को अपग्रेड करना।

ऑल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन नेटवर्क में डेटा प्रवाह के प्रभावी प्रबंधन के साथ गवर्नेंस में दक्षता और पारदर्शिता लाना।

घरेलू और वैश्विक दर्शकों दोनों के लिए डिजिटल पहुंच में महत्वपूर्ण बढ़ोत्तरी करना।

दूरस्थ, जनजातीय, एलडब्ल्यूई और सीमावर्ती क्षेत्रों में 8 लाख से अधिक डीडी डीटीएच रिसीवर सेटों के मुफ्त वितरण की योजना बनाई गई है ताकि इन क्षेत्रों में दर्शकों को टेलीविजन और रेडियो सेवाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाया जा सके।

यह योजना प्रसारण उपकरणों की आपूर्ति और स्थापना से संबंधित विनिर्माण और सेवाओं के माध्यम से अप्रत्यक्ष रोजगारों का सृजन भी करेगी। विभिन्न मीडिया क्षेत्रों के सामग्री उत्पादन क्षेत्र में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रोजगार भी उपलब्ध होंगे।

*** एमजी/एएम/जेके/आर/आईपीएस/ओपी (रिलीज़ आईडी: 1889219)