Sunday, September 14, 2014

नामधारी विवाद: ठाकुर दिलीप सिंह की ओर से अहम ऐलान आज

कुली वालों के डेरे में विशेष प्रेस कांफ्रेंस बाद दोपहर दो बजे 
File Photoलुधियाना में भूख हड़ताल के आखिरी दिन 22 अगस्त को क्लिक की गयी तस्वीर 
लुधियाना: 13 सितम्बर 2014: (मीडिया स्क्रीन ब्यूरो)
नामधारी पंथ सतगुरु जगजीत सिंह के पंचतत्व में विलीन होने के बाद गहन संकट में है। गुर-गद्दी और जांनशीनी को लेकर ठाकुर उदय सिंह और ठाकुर दिलीप--दोनों भाई आमने सामने हैं। गौरतलब है कि  नामधारी पंथ की गद्दी पर ठाकुर उदय सिंह बिराजमान हैं।  उनके बड़े भाई ठाकुर दिलीप सिंह के समर्थक उनका विरोध कर रहे हैं। इस सारे विवाद में नाज़ुक मोड़ उस समय आया जब ठाकुर दिलीप सिंह  के समर्थकों ने लुधियाना में डीसी कार्यालय के सामने पहली अगस्त से 22 अगस्त तक लगातार सिलसिले वार भूख हड़ताल की। इस भूख हड़ताल से पूर्व और बाद में हिंसक टकराव भी हो चुके हैं। अब ठाकुर दिलीप सिंह 14 सितंबर को अमृतसर में महत्वपूर्ण ऐलान करने वाले हैं। इस आशय  की प्रेस कांफ्रेंस रविवार 14 सितम्बर को बाबा दर्शन सिंह कुली वालों के डेरे में बाद दोपहर दो बजे हो रही है। इस संबंध में अधिक विवरण श्री साहिब सिंह से मोबाईल नंबर--097813-59999 पर समरक करके लिया जा सकता है।  

Saturday, September 6, 2014

अब फिर लौट रहा है रेडियो का ज़माना

06-सितम्बर-2014 18:34 IST
प्रधानमंत्री ने रेडियो के जरिए जुड़ने के लिए लोगों से सुझाव मांगे
नई दिल्ली: 6 सितमबर 2014: (रेक्टर कथूरिया//मीडिया स्क्रीन):
कभी  रेडियो का ही ज़माना था। रेडियो ने हिंदी-पंजाबी के साथ साथ अन्य भारतीय भाषाओं के गीत संगीत को भी दूर दूर तक पहुँचाया।  वर्ष 1984 में हुए ब्ल्यू स्टार आप्रेशन जैसी संवेदनशील कार्रवाई तक भी लोग रेडियो पर ही निर्भर थे। विविध भारती हो या तामील-ए-इरशाद या फिर बिनाका गीत माला लोग पूरे ध्यान से सुनते थे। रेडियो की फरमायश में अपना नाम बुलवाने की एक होड़ सी रहती थी। पोस्ट कार्डों के बंडलों के बंडल इस फरमायश के लिए पोस्ट किये जाते थे। आल इंडिया उर्दू सर्विस  (तामील-ए-इरशाद) शमीम कुरैशी, अज़रा कुरैशी, जालंधर की चन्द्रकिरण, हेमराज शर्मा, जानकीदास भारद्धाज  और रेडियो सिलोन के अमीन सयानी से मिलना एक सपना समझा जाता था। रेडियो के रिसेप्शन रूम में मनाही के बावजूद लोग इनसे  मिलते थे। घंटों इनका इंतज़ार करते थे। श्रोता क्लब बनाने का रिवाज सा हो गया था पर दूरदर्शन के बाद रेडियो का जादू कुछ कम  होने लगा।  फिर केबल का ज़माना आते ही इसे ग्रहण लग गया।  अब रेडियो में उतनी भीड़ नहीं होती। इसके बावजूद रेडियो का ज़माना फिर से लौट रहा है। उसके कई कारण है। रेडियो को अपने सिरहाने रख कर आँखें बंद करके सुना जा सकता है। उसके लिए काम छोड़ने की तो कतई कोई आवश्यकता नहीं। ऍफ़ एम और मोबाईल फोन में रेडियो सुनने की सुविधा ने इसकी खूबियों को दोबारा उजागर किया है।
  
इसके साथ ही चमत्कार हुआ है सरकार की तरफ से। इसकी आशा नहीं थी लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने इस तरफ विशेष तवज्जो दी है। पीआईबी की एक सूचना के मुताबिक प्रधानमंत्री श्री मोदी ने रेडियो के जरिए जुड़ने के लिए लोगों से सुझाव मांगे हैं। प्रधानमंत्री ने लोगों से कहा है कि वे इस संबंध में अपने विचार माईगव प्‍लेटफॉर्म-www.mygov.in पर साझा करें। उम्मीद की जानी चाहिए कि अब रेडियो के अच्छे दिन आने वाले हैं। क्या आप रेडियो से जुड़ना चाहते हैं? अगर हाँ तो अब देर न कीजिये--तुरंत भेजिए अपने कीमती सुझाव। 
गौरतलब है कि रेडियो ने 1962, 1965  और 1971  में लोगों का मनोबल मज़बूत करने और सूचनाओं का आदान प्रदान करने में महत्वपूर्ण सूचना निभाई थी। सैनिक भाईयों के लिए फरमाइशी कार्यक्रम आज भी लोकप्रिय हैं। 
वि.कासोटिया/अर्चना/आरआरएस/एसएनटी-3569