Wednesday, September 5, 2018

डीएम ने पकड़े "फर्जी पत्रकार", सूचना अधिकारी ने लिखाया मुकदमा

मामला रायबरेली का-निशाने पर आये संगठन करेंगे जवाबी करवाई ?
रायबरेली: 4 सितंबर 2018: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन):: 
कौन पत्रकार है और कौन नहीं इसका विवाद गहराता जा रहा है।  फैसला किसी पत्रकार संगठन के हाथों में हो तो बात सही मार्ग पर आगे भी बढ़े लेकिन फैसला करने की " शक्ति" आ गयी है उनके हाथों में जिनके खुद भी पत्रकार होने पर संदेह हो सकता है। कुछ संगठन कुछ शुल्क ले कर लोगों को पत्रकारिता का प्रमाणपत्र और पहचानपत्र दोनों ही देने में लगे हैं। ऐसा नहीं है कि बड़े संगठन शुल्क नहीं लेते। उनका तौर तरीका और है। वे सप्लीमेंट पर ज़ोर देते हैं। इस सरे माहौल में कुछ लोग बिना पत्रकारिता की एबीसी सीखे धड़ल्ले से गलियों बाज़ारों में घुमते हैं। दूसरी तरफ सरकारी विभाग के साथ अगर इनमें से किसी की न बने तो विभागीय अधिकारी इन्हें पत्रकार मानने से साफ़ इंकार कर देते हैं।  
बहुत से सही लोग भी हैं जिनका नाम पत्रों और पत्रिकाओं में छपता है लेकिन उनके पास इतफ़ाक़ से कोई भी कार्ड या पहचान पत्र नहीं होता। क्यूंकि उनकी कार्ड बनवाने की तिकड़म नहीं।  उनकी कोई सिफारिश भी नहीं होती। वे चमचागिरी भी नहीं कर पाते। न वे किसी तथाकथित संगठन को उनका शुल्क दे पाते हैं और न ही किसी बड़े पत्र का सप्लीमेंट निकलने की शर्त पूरी कर सकते हैं। 
दूसरी तरफ बहुत से लोग पत्रकारिता तो नहीं जानते लेकिन वे शुल्क और सप्लीमेंट की शर्तें पूरी करके पत्रकार होने की प्रमाणिकता पूरी कर लेते हैं। ऐसी हालत में दब कर रह जाते हैं वास्तविक पत्रकार। अब टकराव की स्थिति बनने की खबर आई है रायबरेली से। 
सुना है "पत्रकारिता के पवित्र पेशे को दागदार करने वालों" पर रायबरेली जिला प्रशासन की नजरें टेढ़ी हो गई हैं। सोशल मीडिया पर वायरल हुई जानकारी के मुताबिक एक लोकल न्यूज ग्रुप की आईडी बनाकर करीब आधा दर्जन संख्या में तहसील दिवस पहुंचे पत्रकारों को जिलाधिकारी ने पुलिस के हवाले कर दिया। इस मामले में जिला सूचना अधिकारी की तहरीर पर ऊंचाहार कोतवाली पुलिस ने मुकदमा दर्ज करके जांच शुरू कर दी है। 
मंगलवार को ऊंचाहार तहसील में तहसील समाधान दिवस का आयोजन किया गया था। आयोजित समाधान दिवस में जिलाधिकारी संजय कुमार खत्री और पुलिस अधीक्षक सुजाता सिंह भी मौजूद थीं। जिस समय डीएम और एसपी जनसमस्याओं की सुनवाई कर रहे थे उसी समय पांच लोग एक न्यूज चैनल की आईडी लेकर सभागार में पहुंच गए। 
वहां पहुंचे पत्रकारों ने जब इधर-उधर कैमरा चलाना शुरु किया तो जिलाधिकारी की नज़र उन पर पड़ी। उनकी गतिविधियां देखते ही जिलाधिकारी पहचान गए कि यह पत्रकारों की फौज नहीं बल्कि उनकी ‘फोटो काॅपी’ में आए कुछ "संदिग्ध लोग" हैं। 
डीएम ने एसपी से वार्ता की और फिर दोनों अधिकारियों ने क्षेत्राधिकारी डलमऊ विनीत सिंह व ऊंचाहार कोतवाल धनंजय सिंह को इन पांचों संदिग्धों को गिरफ्तार करने के निर्देश दे दिए। 
पकड़े गए लोगों से जब पुलिस ने पूछताछ की तो वह सही बातें नहीं बता सके। पुलिस ने जिला सूचना अधिकारी से तस्दीक की और जब उनके पत्रकार होने का कोई ठोस प्रमाण नहीं मिला तो जिला सूचना अधिकारी की तहरीर पर पुलिस ने मुकदमा दर्ज करके जांच शुरु कर दी। क्षेत्राधिकारी डलमऊ सिंह ने बताया कि जिला सूचना अधिकारी की तहरीर पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। अब आज के व्यापारिक युग में कौन पत्रकार हैं और कौन नहीं? कौन करेगा इसका फैसला? इसकी सच्चाई जानने के लिए जांच की जा रही है। कुल मिला कर पत्रकार की परिभाषा एक बार फिर चर्चा में है? यदि यह चर्चा सभी वास्तविक पत्रकारों को एकजुट कर सके तो यह एक बहुत बड़ी बात होगी।