Saturday, November 6, 2021

UNO ने भी कहा मीडिया के खिलाफ सभी तरह की हिंसा निंदनीय

पत्रकारों पर हमले के दोषियों को मिले सज़ा:संयुक्त राष्ट्र

Photo Courtesy:UNESCO


नई दिल्ली: 6 नवंबर 2021: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन)::

मीडिया के खिलाफ हिंसा दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है। इस तरह का निंदनीय रुझान दुनिया के कई हिस्सों में बढ़ रहा है। इसकी गंभीरता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी इस तरह के हमलों की सख्त निंदा की है। 

संयुक्त राष्ट्र के एक प्रस्तावित मसौदे में पत्रकारों और मीडियाकर्मियों के खिलाफ सभी तरह के हमलों, प्रतिशोध और हिंसा की निंदा करने और सरकारों से इन अपराधों के दोषियों को दंडित करने के लिए कार्रवाई किये जाने का आग्रह किया गया है। महासभा के इस प्रस्तावित मसौदे में  उन पत्रकारों और मीडियाकर्मियों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई का आग्रह किया गया है जिन्हें मनमाने ढंग से गिरफ्तार या हिरासत में लिया गया है या बंधक बना लिया गया है या जिन्हें गायब कर दिया गया है। संयुक्त राष्ट्र के राजनयिकों के अनुसार,  प्रस्ताव यूनान, फ्रांस, ऑस्ट्रिया, कोस्टा रिका और ट्यूनीशिया द्वारा तैयार किया गया है और ब्रिटेन, जर्मनी और कई अन्य यूरोपीय और लैटिन अमेरिकी देशों के साथ-साथ आइवरी कोस्ट और लेबनान सहित 34 सह-प्रायोजकों की सूची में शामिल है। इस दिशा में दुनिया के हर हिस्से से ज़ोरदार आवाज़ उतनी चाहिए। पूरी तरह बुलंद आवाज़। 

आज के मीडिया पर रीतू कलसी की एक काव्य रचना

आज रुपया पत्रकारिता पर भारी पड़ गया क्या?


रीतू कलसी ने मीडिया में कुर्बानी का ज़माना देखा है। त्याग का ज़माना देखा है। साधना का ज़माना देखा है। अपनी कलम और सच के दम पर बड़ों बड़ों से आँख मिला कर बात करने का ज़माना देखा है। अफ़सोस अब वो बातें बहुत कम रह गई हैं। उस दर्द की बात करती है रीतू कलसी की यह रचना। वो दर्द जो हर सच्चे पत्रकार के मन में उठना चाहिए। -रेक्टर कथूरिया


बचपन से सुनते आये थे 

एक पत्रकार कितना महान होता 

रेडियो के स्टूडियो में रीतू कलसी 
कुछ भी हो जाए सच का साथ नहीं छोड़ता 

थैला लटकाये सच को भर उस में 

हर संभव कोशिश करता है हम सभी को बताने की 

गरीबी में जीता है 

मौत से हर समय आँख मिचोली खेलता है 

आज़ादी में भी पत्रकारों का अहम रहा योगदान 

पत्रकार का एक ही धर्म होता कर्म सच का कर्म 

पर अभी जो पत्रकारों को करते देखते हैं 

उनका कहा सुनते हैं क्या यह कर्म है 

सच को झूठ कैसे बनाना क्या यह काम हो गया 

क्या अब पैसा ही पत्रकार का धर्म हो गया।

 

राजनीति किसलिए हावी हो गयी पत्रकारिता पर 

या अब मौत से डर लगने लग गया।


कहाँ गए सीना तान कर चलने वाले 

कब कैसे पार किया रास्ता शालीनता से बतमीज़ी तक का 

चीखना चिलाना कब से हो गयी पत्रकारिता 

देखते ही देखते पत्रकारिता लोगों के लिए कॉमेडी हो गयी 

कैसे भूलें  पंडित जुगल किशोर सुकुल की पत्रकारिता 

 राम मोहन रॉय ने पत्रकारिता से किया कितनी कुरूतियो को दूर 

 बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, पर्दा प्रथा का किया अंत 

अजीमुल्ला खां ने ली सीधी टककर अंग्रेज़ों से 

हेमंत, शिशिर, वसंत और मोतीलाल ने नया प्रणाली पर उठाये प्रश्न 

भगत सिंह को कौन नहीं जानता 

थे अख़बार प्रताप के तेज़ तरार निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकार 

जाते थे लगातार अपने असूलों के लिए लगातार जेल 

कहाँ गए आज वह असूल 

आज रुपया पत्रकारिता पर भारी पड़ गया क्या 

क्या बताएं अपने बच्चों को 

कौन से कहानिया सुनाये कैसे समझाये उन्हें यह समय का हेर फेर 

कहाँ अँधेरे की तरफ बढ़ चले हैं हम 

जहाँ अब पत्रकार को इज़्ज़त की नज़र से नहीं देखा जा रहा।

                                  --रीतू कलसी 

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Friday, September 24, 2021

नहीं रहे आकाशवाणी के समाचार सुनाने वाले रामनुज प्रसाद सिंह

 दशकों तक जुड़े रहे रेडियो से रामानुज प्रसाद सिंह  

रेडियो की दुनिया//सोशल मीडिया : 23 सितंबर 2021: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन ब्यूरो)::


ये आकाशवाणी है! अब आप रामानुज प्रसाद सिंह से समाचार सुनिए! दशकों तक रेडियो समाचार के माध्यम से श्रोताओं को मुग्ध करने वाली ये दमदार, गहरी और ठहरी हुई आवाज़ आज थम गई। 

आकाशवाणी में समाचार वाचक कैडर के आखिरी स्तंभ और महाकवि रामधारी सिंह दिनकर के भतीजे रामानुज प्रसाद सिंह ने 86 साल की उम्र में आज यानी 22 सितंबर 21के दिन इस दुनिया को अलविदा कह दिया। 

आकाशवाणी में समाचार वाचक कैडर की आखिरी चौकड़ी देवकी नंदन पांडेय, विनोद कश्यप, अशोक वाजपेयी और रामानुज प्रसाद सिंह की ही रही. इसके बाद ये कैडर समाप्त हो गया और बाद के समाचार वाचक अनुवादक सह समाचार वाचक की श्रेणी में ही आए. यह जानकारी मीडिया और साहित्य की दुनिया से जुडी शख्सियत मनविंदर भिंबर ने कल अर्थात 22 सितंबर 2021 की रात को 11:02 बजे दी। उन्होंने वाया राजेश चड्ढ़ा यह जानकारी दी। 

रेडियो की यादें दिमाग में आते ही याद आ जाती है रामनुज प्रसाद सिंह जी की याद। बहुत ही अच्छा बोलते थे। उन्हें नमन। बहुत ही दमदार आवाज़ थी। भावों से भरी हुई प्रभावशाली आवाज़। समाचार सुनने को उत्सुक करती हु आवाज़। नींद से जगाती हुई आवाज़। हालात के चक्र की की दस्तक देती हुई आवाज़। आज तक ज़हन में सुनाई देती है। उनका जाना--एक युग का चले जाना है। उनका अतीत हो जाना सचमुच पीड़ादायिक है। रामानुज प्रसाद सिंह जी को श्रद्धासुमन अर्पित हैं। दिल भरा हुआ है। ऑंखें भीगी हुई हैं। अंतर्मन में रेडियो से जुडी यादों का बवंडर सा है। उन्हें एक बार फिर से नमन। काश जाने वालों से कभी दोबारा भेंट का कोई सुअवसर मिला करता। काश वहां भी आकाशवाणी होती और हम सुन पाते उनकी आवाज़ में वहां के समाचार। उनके जाने से जो सदमा हम कुछ लोग महसूस कर रहे हैं उस  महसूस करते हुए हमें मिलजुल कर एक प्रयास करना होगा। रेडियो की दुनिया से जुड़े जो लोग अभी भी हमारे दरम्यान हैं। उन्हें संभालना होगा। उनकी आवाज़ें, उनके अनुभव, उनके ख्याल, उनकी रचनाएं, उनकी तस्वीरें बहुत कुछः सहेजने वाला है। आवाज़ की दुनिया से जुड़े उनके गुर भी उनसे पूछने होंगें तांकि रेडियो की दुनिया अमीर बनी रहे। निश्चिन्त रहिए ,रेडियो समाप्त नहीं होगा हैं तकनीकी रूप चाहे बदलता रहे। रेडियो का जादू कुछ कम हुआ अवश्य लगता है लेकिन जल्द ही लौटेगा रेडियो का करिश्मा। लोग टीवी से अब ऊबने लगे हैं। आओ सुनते हैं ज़रा ध्यान दीजिए। आवाज़ आ रही है---ये आकाशवाणी है! अब आप रामानुज प्रसाद सिंह से समाचार सुनिए......!!!                     ---रेक्टर कथूरिया


Monday, August 16, 2021

दूरदर्शन ने "रग रग में गंगा" की दूसरी श्रृंखला का शुभारंभ किया

प्रविष्टि तिथि: 16 AUG 2021 6:32PM by PIB Delhi

 ‘रग रग में गंगा’की पहली श्रृंखला को 1.75 करोड़ लोगों ने देखा था 


नई दिल्ली
: 16 अगस्त 2021: (पीआईबी//मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन)::

केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री श्री अनुराग ठाकुर ने आज केंद्रीय जल शक्ति मंत्री श्री गजेंद्र सिंह शेखावत और केंद्रीय जल शक्ति एवं खाद्य प्रसंस्करण उद्योग राज्य मंत्री श्री प्रहलाद सिंह पटेल के साथ सफल यात्रा-वृत्तांत कार्यक्रम, ‘रग रग में गंगा’की दूसरी श्रृंखला का अनावरण किया।

इस अवसर पर मंत्री ने कहा कि दूसरी श्रृंखला का शुभारंभ ही अपने आप में पहली श्रृंखला की सफलता का पैमाना है, जिसे लगभग 1.75 करोड़ दर्शकों ने देखा था। मंत्री ने कार्यक्रम की टीम को बधाई दी और कहा कि दूसरी श्रृंखला से उम्मीदें अधिक हैं; यह सिर्फ एक कार्यक्रम नहीं है, बल्कि जनभागीदारी से जन आंदोलन तक का एक प्रयास है।

गंगा के कायाकल्प में योगदान देने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हुए मंत्री ने कहा कि गंगा का सभी भारतीयों के साथ भावनात्मक जुड़ाव है। भारतीयों के साथ गंगा का आध्यात्मिक संबंध होने के साथ-साथ इसका बहुत बड़ा आर्थिक महत्व भी है। मंत्री ने ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव की चर्चा करते हुए कहा कि आज की जलवायु चुनौतियों से निपटने के प्रयासों में बच्चों को भागीदार बनाया जाना चाहिए।         

मंत्री महोदय ने कहा कि अगले तीन-चार साल में दूरदर्शन सबसे अधिक देखा जाने वाला चैनल बन जाएगा। उन्होंने कहा कि चैनल दूरदर्शन के दर्शकों की संख्या को बढ़ाने के लिए उचित सामग्री का निर्माण करेगा।

श्री ठाकुर ने आज़ादी के अमृत महोत्सव से शताब्दी समारोह तक के लिए विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों के तहत किए जा रहे प्रयासों में भाग लेने के लिए लोगों को आमंत्रित करते हुए, सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास और सबका प्रयास के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान को दोहराया।

रग रग में गंगा यात्रा-वृत्तांत की दूसरी श्रृंखला में इस महान नदी के सांस्कृतिक, पौराणिक, ऐतिहासिक और सामाजिक-आर्थिक विवरणों को शामिल किया जाएगा तथा यह निर्मलता व अविरलता के विषय पर केंद्रित होगा। यात्रा वृत्तांत एनएमसीजी द्वारा गंगा को बचाने के लिए किए जा रहे कार्यों को भी स्थापित करेगा और एनएमसीजी के सहयोग से इसे दूरदर्शन पर एक यात्रा वृत्तांत श्रृंखला 'रग रग में गंगा' के दूसरे सीजन को फिर से लेकर आएगा। इस कार्यक्रम का उद्देश्य गंगा नदी की भव्यता और इसके संरक्षण की आवश्यकता की ओर ध्यान आकर्षित करना है। काव्यात्मक रूप से फिल्माई गई श्रृंखला नदी की भव्यता और उसके परिदृश्य को गंगा नदी की आध्यात्मिक, धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक विरासत और इसकी वर्तमान इकोलोजिकल स्थिति का लेखा-जोखा प्रस्तुत करेगी। यात्रा वृत्तांत, जिसमें 26 एपिसोड शामिल हैं, इस कार्यक्रम के एंकर जाने-माने अभिनेता राजीव खंडेलवाल है और 21 अगस्त 2021 से प्रत्येक शनिवार और रविवार को रात 8:30 बजे दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर प्रसारित किया जाएगा।

श्रोताओं को संबोधित करते हुए केन्द्रीय मंत्री श्री गजेन्द्र सिंह शेखावत ने कहा कि सरकार तीन साल की छोटी सी अवधि में इतनी लंबी गंगा नदी को दस सबसे अधिक स्वच्छ नदियों में स्थान दिलाने में सफल रही है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा शुरू किए गए सभी कार्यक्रमों ने अपने लक्ष्यों को समय से पहले हासिल कर लिया है और यह प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के 4 पी के मंत्र - राजनीतिक इच्छाशक्ति, सार्वजनिक खर्च, हितधारकों के साथ साझेदारी और लोगों की भागीदारी का परिणाम है।

श्री प्रहलाद सिंह पटेल ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि रग रग में गंगा की दूसरी श्रृंखला अर्थ-गंगा को समर्पित होगी, जिसने हमारी सभ्यता के विस्तार की नींव रखी। उन्होंने लोगों को अमृत महोत्सव की इस अवधि के दौरान गंगा के प्रति हुई अतीत की भूल को सुधारने के प्रयासों में योगदान देने का संकल्प लेने के लिए आमंत्रित किया।

पृष्ठभूमि:

राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) और दूरदर्शन ने गंगा की वर्तमान स्थिति तथा उसके अतीत के गौरव को फिर से जीवंत करने की जरूरत के बारे में व्यापक जागरूकता पैदा करने के लिए आपस में भागीदारी की है।

फरवरी, 2019 में 'रग रग में गंगा', जोकि भारत की सबसे पवित्र नदी- गंगा पर आधारित एक यात्रा वृत्तांत है, का राष्ट्रीय प्रसारक दूरदर्शन के राष्ट्रीय चैनल पर एक प्रमुख कार्यक्रम के रूप में शुभारंभ किया गया था। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) द्वारा शुरू की गई 21-कड़ियों वाली इस श्रृंखला में शक्तिशाली गंगा की 2525 किलोमीटर लंबी यात्रा को उसके उद्गम स्थल गोमुख ग्लेशियर से लेकर गंगासागर, जहां वह बंगाल की खाड़ी में मिल जाती है, तक कवर किया गया। जाने-माने अभिनेता राजीव खंडेलवाल की उद्घोषणा से लैस इस यात्रा वृत्तांत में गंगा के किनारे बसे सांस्कृतिक और सामाजिक-आर्थिक महत्व के 20 शहरों को शामिल किया गया था। इस नदी से जुड़े सांस्कृतिक, पौराणिक एवं ऐतिहासिक तथ्यों और इसके किनारे बसे लोगों से जुड़े विवरणों को कवर करने के क्रम में गंगा की सफाई से जुड़े संदेश, इस नदी को साफ रखने में जनता की भागीदारी और इस नदी की सफाई व इसका कायाकल्प करने के लिए एनएमसीजी द्वारा किए जा रहे कार्यों को इस यात्रा वृत्तांत की विषय-वस्तु और प्रारूप के रूप में गुंथकर प्रस्तुत किया गया।

पिछली श्रृंखला गंगासागर में समाप्त हुई थी, जहां गंगा बंगाल की खाड़ी में मिल गई थी। इस श्रृंखला का भाग-दो मुर्शिदाबाद जिले में समाप्त हो सकता है, जहां गंगा भारत को छोड़ती हुई बांग्लादेश में प्रवेश करती है और पद्मा नदी बन जाती है। 26 एपिसोड की इस श्रृंखला में दर्शकों को गंगा को फिर से जीवंत करने की जरूरत और इस नदी द्वारा सदियों से उन्हें दिए गए बहुमूल्य उपहारों के प्रति उनके कर्तव्यों का एहसास कराने से जुड़े कई संदेश अंतर्निहित हैं। व्यापक शोध पर आधारित, यह कार्यक्रम गंगा की स्वच्छता की दिशा में सरकार द्वारा किए गए विभिन्न उपायों के साथ-साथ इस संदर्भ में इसकी वर्तमान स्थिति के बारे में बतायेगा और लोगों से इसके लिए काम करने का आह्वान करेगा।

'रग रग में गंगा-II' में गंभीरता और मनोरंजन का एक संतुलित मिश्रण है। यह श्रृंखला शहरी और ग्रामीण, दोनों इलाके को दर्शकों को गंगा की समृद्ध विरासत का स्वाद लेने के लिए प्रेरित करेगी। 'रग रग में गंगा-I' की अपार लोकप्रियता को देखते हुए, यह उम्मीद की गई है कि अनूठी और उच्च गुणवत्ता वाली यह श्रृंखला एक बार फिर दर्शकों के साथ भावनात्मक तौर पर जुड़ पायेगी। एक यात्रा वृत्तांत होने के साथ-साथ यह श्रृंखला जल संरक्षण और जल स्वच्छता (अविरलता और निर्मलता) के संदेश को फैलाने में भी मदद करेगी, जोकि समय की मांग है।

प्रसारण का समय



Wednesday, August 11, 2021

सोशल मीडिया के महत्व को फिर पहचाना लोक संपर्क विभाग ने

 11th August 2021 at 9:26 PM

सरकार की उपलब्धियों को सोशल मीडिया के पर प्रसारित करने की ज़रूरत-अनिंदिता मित्रा


चंडीगढ़
: 11 अगस्त 2021: (गुरजीत बिल्ला//मीडिया स्क्रीन)::

कोई ज़माना था जब सोशल मीडिया से जुड़े लोगों और मंचों को बहुत छोटा करके देखा जाता था। उस दौर में इसे  इससे सबंधित वर्ग को बहुत ज़्यादा अंडरएस्टिमेट किया गया। इसी नज़रअंदाज़ी के चलते धीरे धीरे इसने इतना ज़ोर पकड़ा लिया की यह मुख्य धरा के मीडिया को प्रभावित करने लगा। आज टवीटर और फेसबुक जैसे मंचों को बेहद महत्वपूर्ण घोषणाओं के लिए इस्तेमाल किया जाता है। यूटयूब पर छोटी छोटी फ़िल्में और गीतों की एल्बम रिलीज़ होने लगी हैं। कहा जा सकता है कि सोशल मीडिया ने अपन अलोहा मनवा लिया है। मुख्य ड्सरा का मीडिया भी अपने प्रचार प्रसार के लिए इसका सहारा ले रहा है। व्हाटसअप्प ने तो इसकी लोकप्रियता को चार चाँद लगा दिए हैं। ऐसे में पंजाब सरकार के लोक सम्पर्क विभाग ने भी इसके जादू को स्वीकार किया है। इसके इस्तेमाल की बाकायदा सिफारिशें होने लगीं हैं। 

आज के दौर में पंजाब सरकार की उपलब्धियों को घर-घर पहुँचाने के लिए सूचना एवं लोक संपर्क विभाग को नये युग के प्रचार साधन सोशल मीडिया का अधिकतम प्रयोग करना चाहिए। उक्त विचार विभाग की डायरैक्टर श्रीमती अनिंदिता मित्रा ने आज यहां विभाग के अधिकारियों के साथ मीटिंग के दौरान व्यक्त किये। मीटिंग में इसकी चर्चा ने काफी समय लिया। इस सदुपयोग पर कई बातें हुईं। 

इस अवसर पर श्रीमती मित्रा ने कहा कि सूचना एवं लोक संपर्क विभाग सरकार और लोगों के बीच सेतु का काम करता है जो कि सरकार की जन कल्याण स्कीमें और सरकार द्वारा जनहित में लिए फ़ैसलें अखबारों, टी.वी., रेडियो के द्वारा प्रचार करता आ रहा है। परंतु अब दिन-प्रतिदिन सूचना प्रौद्यौगिकी के परिणामस्वरुप प्रचार साधनों में आ रही तबदीलियों को देखते हुए समय की मांग अनुसार सरकार के कामों का प्रचार सोशल मीडिया के द्वारा भी किया जाना चाहिए। इस तरह छुटपण या हिकारत की नज़र से देखा जाने वाला सोशल मीडिया अब सम्मान पा रहा है। सोशल मीडिया की अहमियत को एक तरह से मान्यता मिल रही है। 

श्रीमती मित्रा ने विभाग के अधिकारियों को हिदायत की कि वह लोगों की समस्याओं संबंधी  फीडबैक तुरंत विभाग को दें जिससे सरकार इन समस्याओं को जल्द दूर कर सके।

उन्होंने कहा कि पंजाब सरकार द्वारा जन-समर्थकी नीतियों को ज़मीनी स्तर तक पहुँचाने के लिए 100 से अधिक अलग-अलग स्थानों पर एल.एफ.डी. स्थापित की गई हैं। यह एल.एफ.डीज़. स्थापित करने का कार्य अगस्त महीने के अंत तक मुकम्मल कर दिया जायेगा।

अतिरिक्त सचिव सूचना एवं लोक संपर्क विभाग सेनू दुग्गल, आई.ए.एस. ने मीटिंग को संबोधन करते हुये कहा कि कोविड -19 के कारण पैदा हुई स्थिति में सरकार द्वारा इस महामारी से निपटने के लिए समय-समय पर जारी हिदायतों और ऐडवायज़रियों को सोशल मीडिया के द्वारा ही बहुत कम समय में अधिक से अधिक लोगों तक पहुंचाना संभव हो सका है।

मीटिंग में विशेष तौर पर अतिरिक्त डायरैक्टर ओपिन्दर सिंह लांबा, ज्वाइंट डायरैक्टर अजीत कंवल सिंह हमदर्द, ज्वाइंट डायरैक्टर रणदीप सिंह आहलूवालीया, ज्वाइंट डायरैक्टर हरजीत सिंह ग्रेवाल, डिप्टी डायरैक्टर पी.एस. कालड़ा, डिप्टी डायरैक्टर इशविन्दर सिंह ग्रेवाल, डी.सी.एफ.ए. गगनदीप बस्सी और समूह जि़ला लोक संपर्क अधिकारी और मुख्यालय में तैनात लोक संपर्क अधिकारी उपस्थित थे।

Saturday, July 17, 2021

JMI की VC प्रो. नजमा अख्तर दानिश के परिवार से मिलीं

Saturday 17 July 2021 at 5:29 PM

 शोक व्यक्त करने फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी के घर पहुंची 


नई दिल्ली
: 17 जुलाई 2021: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन):: 

हर संवेदनशील वर्ग दानिश सिद्दीकी साहिब के चले जाने से आहत है। हर तरफ शोक की लहर है। हर सच्चे कलमकार के मन में उदासी है। हालांकि कुछ  लोग जश्न भी मना रहे हैं लेकिन वक़्त उनका भी हिसाब रख रहा है। एक समय आएगा जब लोगों को इनके जश्न की खबरें बताएंगी कि ये लोग हत्यारों के साथ खड़े थे। हर वर्ग दानिश साहिब के परिवार के साथ संवेदना और शोक व्यक्त कर रहा है। 

जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) की कुलपति प्रो. नजमा अख्तर; अफगान सशस्त्र बलों और तालिबान के बीच संघर्ष को कवर करते हुए अफगानिस्तान में मारे गए जामिया के पूर्व छात्र एवं फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी के घर गईं। 

जामिया नगर स्थित उनके आवास पर उन्होंने दानिश के पिता प्रो. अख्तर सिद्दीकी और परिवार के अन्य सदस्यों से मुलाकात की। उनके साथ कुलसचिव और विश्वविद्यालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।


कुलपति ने प्रो. सिद्दीकी को सांत्वना दी और दानिश के बारे में उनसे लगभग 40 मिनट तक कई बातें कीं। उन्होंने दानिश को अपने पिता की तरह एक सच्चा फाइटर करार दिया, जिसे वह काफी लंबे समय से जानती हैं।

प्रो. अख्तर ने कहा कि दानिश ने सच्चाई को दुनिया के सामने लाने के लिए लगन से काम किया और हमेशा गलत के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कहा "दानिश का निधन न केवल उनके परिवार और जामिया बिरादरी के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है।"  

कुलपति ने प्रो. सिद्दीकी को बताया कि आने वाले मंगलवार को जामिया अपने विश्वविद्यालय परिसर में एक शोक सभा आयोजित करेगा| साथ ही उसी समय विश्वविद्यालय परिसर में दानिश के अनुकरणीय कार्यों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी ताकि छात्र इससे प्रेरणा ले सकें।


दानिश साहिब यहीं हैं हमारे आसपास-हमारे दरम्यान

 लानत है उनकी मौत का जश्न मनाने वालों पर 


नयी दिल्ली
: 17 जुलाई 2021: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन+मित्र लोग)::

प्रेस क्लब आफ इण्डिया ने दानिश सिद्दीकी साहिब के याद में आज रात करीब 7:25 पर कैंडल मार्च किया है। उनकी चर्चा करनी ज़रूरी है शायद इसी बहाने उन लोगों की अंतरात्मा जाग उठे जो खुद को पत्रकार समझते  हैं लेकिन साडी उम्र भांड बने रहते हैं। पत्रकारिता की समझ उन्हें उम्र भर समझ नहीं आ पाती। काश ऐसे लोग दानिश साहिब की कुर्बानी के इस मौके पर अपनी डयूटी के प्रति सजग हो सकें। 

दुःखद है लेकिन सच है कि जब खुद को मीडिया का सरगर्म और बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा समझने और कहने वाले बहुत से लोग अपने अपने राजनीतिक आकाओं की चमक दमक को दर्शाते हुए अपने अपने कैमरे और कलम   सेट करने में व्यस्त थे, उनके आगे पीछे घूम रहे थे उस समय भी दानिश सिद्दीकी एक गौरवशाली सच्चे मुस्लिम होने के के साथ साथ प्रतिबद्ध पत्रकार का फ़र्ज़ भी निभा रहे थे। 

अलग अलग मामलों  में अलग अलग जगहों पर अलग अलग वक़्तों में दानिश साहिब ने दिखाया कि अगर कलम और कैमरा पकड़ो तो उसकी लाज कैसे रखी जाती है। जान हथेली पर और हौंसला दिल व दिमाग में दानिश साहिब ने बहुत पहले सीख लिया था। दानिश साहिब ने 40 की उम्र तक पहुँचने से पहले ही बहुत कुछ ऐसा क्लिक किया जो दस्तावेज़ी की तरह है। आने वाले वक्तों में  और बढ़ जाएगी। 

उल्लेखनीय है कि पुलित्जर पुरस्कार पत्रकारिता के क्षेत्र का अमेरिका का सर्वोच्च पुरस्कार है। इसकी शुरुआत 1917 से हुई थी। 2021 के लिए भारतीय मूल की पत्रकार मेघा राजगोपालन को भी अंतरराष्ट्रीय रिपोटिंग के दिया जाएगा। दानिश सिद्दीकी साहिब को साल 2018 में  पुलित्जर पुरस्कार  से नवाजा गया था, ये अवॉर्ड उन्हें रोहिंग्या मामले में कवरेज के लिए मिला था। बहुत बड़ी कवरेज थी यह। 

गौरतलब है कि दानिश सिद्दीकी ने अपने करियर की शुरुआत एक टीवी जर्नलिस्ट के रूप में की थी, बाद में वह फोटो पत्रकार बन गए थे। आज भी बहुत से लोग मीडिया का कार्ड जेब में दाल कर और कैमरा उठा कर समझते हैं कि वे फोटोग्राफर बने हुए हैं लेकिन उन्हें कुछ भूलता है तो बस अपनी डयूटी। या फिर अपने अपने फ़र्ज़। अपने आकाओं की तरफ से होती आवभगत और सेवा सम्मान उन्हें सपनों में नहीं भूलता। 

बस यही फरक है दानिश साहिब ने हर वक़्त अपनी ड्यूटी याद रखी। जान तक कुर्बान कर दी और अमन हो गए। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने दानिश सिद्दीकी के निधन पर शोक जताया है। ठाकुर ने कहा कि वह अपने पीछे अपना शानदार काम छोड़ गए हैं। हकीकत भी यही है। 

उन्हें याद करते हुए, उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए पुलित्जर पुरस्कार विजेता भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को श्रद्धांजलि देने के लिए प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और जामिया मिलिया इस्लामिया में शनिवार को कैंडल लाइट मार्च निकाला गया। अन्य हमदर्द लोग भी इसमें पहुंचे। सब के मन में दर्द था। करीब 40 साल के सिद्दीकी की शुक्रवार को अफगानिस्तान के कंधार प्रांत में स्पिन बोल्डक जिले में अफगान बलों और तालिबान के बीच संघर्ष के दौरान मृत्यु हो गयी। वह कंधार के मौजूदा हालात की कवरेज कर रहे थे। बहुत से दुसरे मामलों की तरह यह भी उनका मिशन था। 

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में कैंडल लाइट मार्च के दौरान वर्किंग न्यूज कैमरामैन एसोसिएशन (डब्ल्यूएनसीए) के अध्यक्ष एस. एन. सिन्हा ने कहा कि युद्ध, दंगों और लोगों की तकलीफें तस्वीरों के जरिए सभी तक पहुंचा कर सिद्दीकी अपने पेशे में शीर्ष पर पहुंचे थे। शीर्ष सभी की किस्मत में भी नहीं होता। हर किसी के जज़्बे में दानिश साहिब जैसा जूनून भी नहीं होता। एस. एन. सिन्हा ने कहा कि उन्होंने पूरे जुनून और समर्पण के साथ सभी तस्वीरें लीं, खबरों का कवरेज किया और हमेशा मुश्किल में फंसे लोगों पर ध्यान दिया। जो कुछ सिन्हा साहिब ने कहा इससे बड़ा समान शायद कोई न हो। उनके मित्र और उनके पुराने साथी भी आहत हैं इस शहादत से। जामिया मिलिया के पुराने छात्र मोहम्मद मेहरबान ने मास कम्युनिकेशन के छात्र सृजन चावला के साथ मिलकर विश्वविद्यालय के गेट नंबर 17 पर कैंडल लाइट मार्च का आयोजन किया जिसमें 500 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया।मोहम्मद मेहरबान ने कॉलेज में अपने सीनियर दानिश सिद्दीकी को याद किया। कभी कभी सीनियर लोग   जो किताबों में भी नहीं मिलता। 

दानिश साहिब को आर्थिक स्थितियों की भी पूरी समझ थी। देश कीध जा रहा है उन्हें मालुम था। सिद्दीकी ने अर्थशास्त्र विषय से स्नातक की पढ़ाई की थी। उन्होंने 2007 में जनसंचार विषय में स्नात्कोत्तर किया था। दानिश सिद्दीकी 2011 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ बतौर फोटो पत्रकार काम कर रहे थे। उन्होंने अफगानिस्तान और ईरान में युद्ध, रोहिंग्या शरणार्थी संकट, हांगकांग में प्रदर्शन और नेपाल में भूकंप जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं की तस्वीरें ली थीं। इन कहानियों का सिलसिला काफी लम्बा है। दानिश साहिब तो रुखसत हो गए लेकिन ु का काम लगातार अपनी मौजूदगी दर्शाता रहेगा। 

आखिर में लानत उन लोगों पर ज़रूरी है जो दानिश साहिब की मौत का जश्न मना रहे हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे बेशर्म लोगों को। इस तरह के जश्न मना कर वे अपनी औकात ही दिखा रहे हैं। बता रहे हैं की वे सचमुच साम्प्रदायिकता की ज़हर से भरे हुए खतरनाक लोग हैं। इन लोगों को याद रखना कि  रहेंगे रंग बदल कर रूप बदल कर।  किसी न किसी के हाथ में कोई न कोई कैमरा  इन लोगों को डराता भी रहेगा और भी  बेनकाब भी करता रहेगा।  दानिश साहिब यहीं हैं हमारे आसपास। हमारे दरम्यान। 

जामिया ने दानिश सिद्दीकी की दुखद मौत पर शोक व्यक्त किया

अब पत्रकार कमेंटेटर बन गए हैं-डा. सिमरन सिद्धू

Saturday 17th July 2021 at 1:57 PM

 जीजीएन खालसा कालेज के वेबिनार में हुई बहुत ही अर्थपूर्ण बातें  

लुधियाना:16 जुलाई 2021: (कार्तिका सिंह//मीडिया स्क्रीन Online)::

इसे बढ़ा कर के देखने के लिए इस पर क्लिक करें 
गुरु नानक खालसा कॉलेज, गुजरांवाला, पत्रकारिता विभाग, लुधियाना ने "भारतीय पत्रकारिता:मुद्दे और चुनौतियां" पर एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। प्रो. जसमीत कौर, पी.जी. पत्रकारिता विभाग द्वारा वेबिनार शुरू किया गया था और विभाग के समन्वयक डॉ. सुषमिंदरजीत कौर ने इस वेबिनार के विषय और इसके महत्व से दर्शकों को अवगत कराने के लिए अपने दूरदर्शी शब्दों को बहुत ही खूबसूरती से उपयोग किया। 

गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के पूर्व कुलपति डॉ एस. पी. सिंह जो गुजरांवाला खालसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष भी हैं ने विशिष्ट अतिथियों, प्रख्यात वक्ताओं और ज्ञानवर्धक श्रोताओं का स्वागत किया। उन्होंने अपने स्वागत भाषण में महामारी के इस कठिन समय में ऐसे वेबिनार आयोजित करने में विभाग के प्रयासों की सराहना की। अपने बहुमूल्य विचार सभी  सांझे करते हुए उन्होंने कहा कि आज का परिदृश्य ऐसा है कि न केवल भारतीय पत्रकारिता बल्कि दुनिया भर की पत्रकारिता भी विभिन्न मुद्दों और चुनौतियों का सामना कर रही है। 

उन्होंने आगे कहा कि पत्रकारिता का क्षेत्र सूचना को 'संक्रमित' करने के बजाय तथ्यात्मक सूचना के प्रसार के अपने मूल मार्ग से भटक गया है। वेबिनार का नेतृत्व पत्रकारिता और जनसंचार विभाग, दोआबा कॉलेज, जालंधर की प्रमुख डॉ. सिमरन सिद्धू  ने बहुत ही समझदारीऔर दूरदर्शिता पूर्ण बातें कह कर किया और बहुत ही अर्थपूर्ण शब्दों के साथ बहुत ही काम की बातें कहीं।  

उन्होंने कहा कि पत्रकार कमेंटेटर बन गए हैं क्योंकि वे केवल 'दृश्य' की बहुत गहराई से व्याख्या करते हैं।  उसी व्याख्या में डॉ. अ. स. नारंग प्रोफेसर राजनीति विज्ञान और मानवाधिकार शिक्षा के पूर्व समन्वयक, इग्नू ने पत्रकारों के सामान्य दृष्टिकोण पर जोर दिया क्योंकि "पत्रकारों के लिए यह कहना आसान नहीं है कि क्या कहना है और क्या नहीं कहना है।" 

कारोबारी एप्रोच लगातार बढ़ने से सप्लिमेंटों का जो दबाव पत्रकारों और समाज पर बढ़ा है अक्सर उसकी चर्चा कम होती है। सभी अख़बारों को विज्ञापन चाहिएं। कोई भी उनसे नाराज़गी मौल नहीं लेना चाहता। इस लिए अक्सर इस पर ख़ामोशी छ जाती है। लेकिन कटु सत्य है की इसने खबर की निष्पक्षता और तलाश को प्रभावित किया है। किसी भी ऐसे इन्सान का पत्रकार बनना मुश्किल हो गया है जो विज्ञापन नहीं जुटा सकता। ऐसी निराशाजनक स्थिति के बावजूद आशाभरी बातें की मैडम चित्लीन सेठी ने। उन्होंने तकनीकी विकास का फायदा उठाने की सलाह दी। यह बहुत ही नई उम्मीद है। 

श्रीमती चितलीन कौर सेठी, एसोसिएट एडिटर, द प्रिंट ने टिप्पणी की कि जिनके हाथ में मोबाइल फोन है, वे वास्तव में एक संभावित पत्रकार हैं। युवाओं से ऐसी उम्मीद को सुसव्ग्तं कहना बनता है। आम नागरिकों को यह बात एक नहीं हिम्मत देगी। कुर्प्ष्ण के खिलाफ उनका हौंसला बढ़ाएगी। 

इसी बीच मिस्टर हरप्रीत सिंह, टीवी एंकर, द हरप्रीत सिंह शो, कनाडा ने बताया कि पत्रकार बनना चाहने वालों की ऊर्जा और प्रतिभा का उपयोग धीरे-धीरे किया जा सकता है। कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अरविंदर सिंह ने सभी गणमान्य वक्ताओं और दर्शकों का धन्यवाद किया. उन्होंने कहा कि सटीक जानकारी के प्रसार में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर देने के लिए विभाग ने हमेशा अथक और नए प्रयास किये हैं। 

Friday, July 16, 2021

जामिया ने दानिश सिद्दीकी की दुखद मौत पर शोक व्यक्त किया

 16 जुलाई, 2021

फोटो पत्रकार दानिश जामिया के पूर्व छात्र थे और पुरस्कार विजेता भी
नई दिल्ली: 16 जुलाई 2021: (मीडिया स्क्रीन Online)::
जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) ने कंधार के स्पिन बोल्डक जिले में हिंसा में मारे गए रॉयटर्स के फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी के दुखद और असामयिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। इस खबर से जामिया एजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर (एमसीआरसी) में शोक की लहर दौड़ गई, जहां दानिश ने 2005-2007 तक पढ़ाई की और मास कम्युनिकेशन में परास्नातक किया।
जामिया की कुलपति ने इसे पत्रकारिता और जामिया बिरादरी के लिए एक बड़ी क्षति बताया. इस दुखद घटना की खबर मिलते ही उन्होंने दानिश के पिता प्रो. अख्तर सिद्दीकी से बात की। उन्होंने बताया कि दानिश ने दो दिन पहले उन से बात की थी और अफगानिस्तान में वह जो काम कर रहा था, उसके बारे में चर्चा की थी।
जामिया से सेवानिवृत्त प्रो. अख्तर सिद्दीकी शिक्षा संकाय के डीन थे। वह राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के निदेशक भी थे।
2018 में एमसीआरसी ने दानिश को विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार से सम्मानित किया था। प्रोफेसर और कार्यवाहक निदेशक शोहिनी घोष कहती हैं: “यह एमसीआरसी के जीवन के सबसे दुखद दिनों में से एक है। दानिश हमारे हॉल ऑफ फ़ेम में सबसे चमकीले सितारों में से एक थे और एक सक्रिय पूर्व छात्र थे जो छात्रों के साथ अपने काम और अनुभवों को साझा करने के लिए अपने अल्मा मेटर में लौटते रहे। हम उनकी कमी पूरी नहीं क्र सकते लेकिन उनकी याद को जिंदा रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
दानिश ने अपने काम के लिए 2018 में पुलित्जर पुरस्कार सहित सात सदस्यीय रॉयटर्स टीम के हिस्से के रूप में अपने काम के लिए कई पुरस्कार जीते, जिसने म्यांमार के अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय द्वारा सामना की गई हिंसा और अगस्त 2017 से बांग्लादेश में उनके सामूहिक पलायन का दस्तावेजीकरण किया। एक शरणार्थी महिला को बंगाल की खाड़ी के तट पर अपने घुटनों के बल डूबते हुए, थका हुआ और उदास दिखाया गया है। कुछ ही दूरी पर, पुरुषों का एक समूह अपने साथ एक छोटी नाव में अपने साथ लाए गए सामानों को उतार देता है, जब वे म्यांमार में अपने घरों से सुरक्षा के लिए बांग्लादेश गए थे इस फोटो के लिए उन्हें पुलित्जर दिया गया था।
एमसीआरसी के छात्रों के साथ उनकी आखिरी बातचीत 26 अप्रैल, 2021 को हुई थी, जब सोहेल अकबर ने उन्हें कन्वर्जेंट जर्नलिज्म के छात्रों से बात करने के लिए आमंत्रित किया था। सोहेल अकबर याद करते हैं, "कोविड-19 दूसरे उछाल के घातक चरम पर था और दानिश बहुत व्यस्त था" लेकिन हमेशा की तरह, उन्होंने एमसीआरसी के छात्रों के लिए समय निकाला।
एक फोटो जर्नलिस्ट के रूप में, दानिश ने एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप में कई महत्वपूर्ण कहानियों को कवर किया है। उनके कुछ कार्यों में अफगानिस्तान और इराक में युद्ध, रोहिंग्या शरणार्थियों का संकट, हांगकांग विरोध, नेपाल भूकंप, उत्तर कोरिया में सामूहिक खेल और स्विट्जरलैंड में शरण चाहने वालों की रहने की स्थिति शामिल है। उन्होंने इंग्लैंड में धर्मान्तरित मुस्लिमों पर एक फोटो श्रृंखला भी तैयार की है। उनका काम व्यापक रूप से पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, स्लाइडशो और दीर्घाओं में प्रकाशित हुआ है - जिसमें नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका, न्यूयॉर्क टाइम्स, द गार्जियन, द वाशिंगटन पोस्ट, वॉल स्ट्रीट जर्नल, टाइम मैगज़ीन, फोर्ब्स, न्यूज़वीक, एनपीआर, बीबीसी, सीएनएन शामिल हैं। अल जज़ीरा, साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट, द स्ट्रेट्स टाइम्स, बैंकॉक पोस्ट, सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड, द एलए टाइम्स, बोस्टन ग्लोब, द ग्लोब एंड मेल, ले फिगारो, ले मोंडे, डेर स्पीगल, स्टर्न, बर्लिनर ज़ितुंग, द इंडिपेंडेंट, द टेलीग्राफ , गल्फ न्यूज, लिबरेशन और कई अन्य प्रकाशन शामिल हैं।
जनसंपर्क कार्यालय
जामिया मिल्लिया इस्लामिया

Wednesday, July 7, 2021

न्‍यूजऑनएयर रेडियो लाइव-स्ट्रीम ग्‍लोबल रैंकिंग

 07-जुलाई-2021 17:16 IST

जर्मनी और कुवैत ने शीर्ष 10 में अपनी जगह बनाई 

एआईआर न्‍यूज 24x7 अब एक पायदान ऊपर

Courtesy Photo
दुनिया के शीर्ष देशों (भारत को छोड़कर), जहां ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर ऑल इंडिया रेडियो लाइव-स्ट्रीम सबसे लोकप्रिय हैं, की नवीनतम रैंकिंग में फिजी 5वें स्थान से ऊपर चढ़कर दूसरे पायदान पर पहुंच गया है, जबकि सऊदी अरब ने शीर्ष 10 में अपनी वापसी कर ली है। कुवैत और जर्मनी ने शीर्ष 10 में अपनी जगह बना ली है, जबकि फ्रांस और न्यूजीलैंड अब शीर्ष 10 में नहीं हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका अब भी नंबर 1 बना हुआ है।

एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के तहत ऑल इंडिया रेडियो की तेलुगू और तमिल लाइव-स्ट्रीम सेवाएं संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकप्रिय हैं, जबकि एआईआर पंजाबी सेवा ब्रिटेन में लोकप्रिय है।

विश्व स्तर पर (भारत को छोड़कर) शीर्ष एआईआर स्ट्रीम की रैंकिंग में आए बड़े बदलावों के तहत एआईआर न्‍यूज 24x7 सातवें पायदान से एक स्‍थान ऊपर चढ़कर छठे पायदान पर पहुंच गई है, जबकि एआईआर तमिल छठे पायदान से काफी नीचे खिसक कर 10वें पायदान पर आ गई है।

आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) की 240 से भी अधिक रेडियो सेवाओं का ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर सीधा प्रसारण (लाइव-स्ट्रीम) किया जाता है, जो प्रसार भारती का आधिकारिक एप है। ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर उपलब्‍ध आकाशवाणी की इन स्ट्रीम के श्रोतागण बड़ी संख्या में हैं जो न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में 85 से भी अधिक देशों में और विश्‍व भर के 8000 शहरों में भी हैं।

यहां भारत के अलावा उन शीर्ष देशों की भी एक झलक पेश की गई है, जहां ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर एआईआर लाइव-स्‍ट्रीम सबसे लोकप्रिय हैं; दुनिया के बाकी हिस्सों में ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर उपलब्‍ध आकाशवाणी की शीर्ष स्ट्रीम की भी एक झलक पेश की गई है। आप इसका देश-वार विवरण भी देख सकते हैं। ये समस्‍त रैंकिंग 16 जून से लेकर 30 जून, 2021 तक के पाक्षिक आंकड़ों पर आधारित हैं। इस डेटा में भारत शामिल नहीं है।

शीर्ष रेडियो स्‍ट्रीम की ग्‍लोबल रैंकिंग देखने के लिए अंग्रेजी का अनुलग्‍नक यहां क्लिक करें

Thursday, May 20, 2021

पंचकूला: प्रेस कवरेज के लिए निमंत्रण

"हर्बल धूनी की आहूति" पर होगी चर्चा 

प्रतीकात्मक फोटो 

पंचकूला/लुधियाना: 20 मई 2021
(कार्तिका सिंह//मीडिया स्क्रीन Online):
धुप अगरबत्ती जलाई जाए या न जलाई जाए इस बात को लेकर अभी तक एक राय नहीं बन पा रही। एक बहुत बड़े वर्ग का कहना है कि इससे न केवल पर्यावरण प्रदूषित होता है बल्कि स्वास्थ्य पर भी इसका बुरा असर पड़ता है। 

इसके बावजूद जो वर्ग धुप, अगरबत्ती और हवन इत्यादि में आस्था रखता है उसका कहना है धुप अगरबत्ती से उनका ध्यान भी जुड़ता है और उनके मन को शांति भी मिलती है। इसलिए जो भी हो हम तो सदियों पुराणी इस परम्परा को नहीं छोड़ेंगे। 

ऐसे में सामने आया है तेज़ी से फ़ैल रहा एक धार्मिक संगठन विश्वास फाउंडेशन जिसने हर्बल धूनी की बात कही है। इस संगठन की पंचकूला इकाई की ओर से 21 मई 2021 दिन शुक्रवार को दिन में "हर्बल धूनी की आहूति" कार्यक्रम के जरिए वातावरण की शुद्धता के लिए जागरूकता का आह्वान शुरू किया जाएगा। 

कार्यक्रम बी के एम विश्वास स्कूल सेक्टर 9 पंचकूला से 11 बजे शुरू होगा। वातावरण में फैले कोरोना संक्रमण के अंशों को खत्म/कम करने की कोशिश में पंचकूलावासियों की भी भागीदारी हो सके।

सभी पत्रकार व छायाकार बंधु तय समय पर कवरेज के लिए सादर आमंत्रित हैं।

इस संबंध में सम्पर्क करने के लिए वहां आप को मिलेंगे साध्वी सुश्री नीलिमा विश्वास जी। जो विश्वास फाउंडेशन पंचकूला के जनरल सेक्रेटरी हैं।  


Saturday, April 3, 2021

बंधुआ मजदूरों के मुद्दे पर पंजाब के किसानों को दोषी नहीं कहा

 03-अप्रैल-2021 16:16 IST

मीडिया में छपी रिपोर्टों को भ्रामक कहा 


नई दिल्ली
: 03 अप्रैल 2021: (पीआईबी//पंजाब स्क्रीन)::

पंजाब के सीमावर्ती गाँवों में बंधुआ मजदूरों के मुद्दे पर पंजाब के किसानों को दोषी नहीं ठहराया गया। गृह मंत्रालय ने केवल ‘‘मानव तस्करी सिंडिकेट’’ के खिलाफ उचित कार्रवाई की मांग की है। 

मीडिया के एक वर्ग ने गलत तरीके से बताया है कि केंद्रीय गृह मंत्रालय ने पंजाब सरकार को पत्र लिखकर राज्य के किसानों के खिलाफ कथित रूप से गंभीर आरोप लगाए हैं। ये समाचार रिपोर्ट भ्रामक हैं और पंजाब के चार संवेदनशील सीमावर्ती जिलों में विगत दो वर्षों की अवधि में उभरने वाली सामाजिक-आर्थिक समस्या के बारे में एक साधारण अवलोकन की विकृत और अतिसंपादकीय राय प्रस्तुत करते हैं, जिसे संबंधित सीएपीएफ द्वारा इस मंत्रालय के संज्ञान में लाया गया है। गृह मंत्रालय hपहले तो इस मंत्रालय द्वारा किसी विशेष राज्य या राज्यों को जारी किए गए पत्र के लिए कोई प्रयोजन नहीं बताया जा सकता है क्योंकि यह कानून और व्यवस्था के मुद्दों पर नियमित संचार का हिस्सा है। सभी राज्यों में एक संवेदनशील अभ्यास करने के अनुरोध के साथ यह पत्र केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के सचिव को भी भेजा गया है, जिसका उद्देश्य कमजोर पीड़ितों का शोषण करने वाले असामाजिक तत्वों पर नकेल कसना है।

दूसरे, पत्र के बारे में कुछ तथ्‍यों की पूरी तरह से असंबंधित संदर्भ से तुलना की गई है ताकि यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि गृह मंत्रालय ने पंजाब के किसानों के खिलाफ "गंभीर आरोप" लगाए हैं और इसे वर्तमान में चल रहे किसान आंदोलन से भी जोड़ा गया है। पत्र में स्पष्ट रूप से और केवल यह कहा गया है कि "मानव तस्करी सिंडिकेट्स" द्वारा मजदूरों को किराए पर लिया जाता है और अधिक श्रम को निकालने के लिए ड्रग्स के लालच द्वारा उनके "शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य" को प्रभावित करने के साथ- साथ उनके साथ "अमानवीय व्यवहार किया जाता है"।

गृह मंत्रालय ने तेजी से बढती इस समस्या की गंभीरता को ध्यान में रखते हुए राज्य सरकार से "इस गंभीर समस्या के समाधान के लिए उपयुक्त उपाय करने" का केवल अनुरोध किया है।

***

एनडब्‍लू/आरके/पीके/एडी/डीडीडी

Tuesday, January 19, 2021

मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी से पूरा महिला वर्ग भी हुआ आहत

   सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के नाम एक महिला का पत्र 


मीडिया का एक बड़ा हिस्सा आज भी संसाधनों के मामले में सचमुच बहुत बड़ा है। चाहे यह बड़प्पन गोदी में बैठ कर ही मिला हो। इसी के चलते मीडिया के इस हिस्से को भरम हो जाता है कि शायद हम झूठ को सच और सच को झूठ बना कर दिखा सकते हैं। इस भरम को जनवादी मीडिया अपने सीमित साधनों-संसाधनों से तोड़ता ही रहता है। इसी सिलसिले को आगे बढ़ा रहा है जन चौक। इस पत्र ने एक बहादर महिला का एक पत्र भी प्रकाशित किया है।  जनचौक की टिप्पणी सहित इस पत्र को यहाँ भी साभार प्रकाशित किया जा रहा है। -सम्पादक:मीडिया स्क्रीन 

जन चौक सम्पादक ने भी साफ़ शब्दों में कहा है कि किसान आंदोलन में शामिल महिलाओं को लेकर सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की टिप्पणी ने पूरे देश को आहत किया है। खास कर महिलाओं को इससे गहरी पीड़ा हुई है। और लोकतांत्रिक देश में जहां हर नागरिक का बराबर का अधिकार है वहां महिलाओं को कमतर देखने का नजरिया ही बेहद परेशान करने वाला है। यह बात कोई और करता तो एकबारगी सोचा भी जा सकता था लेकिन जब देश की सर्वोच्च अदालत का मुखिया जिसके ऊपर इस देश के संविधान की रक्षा का कार्यभार है, ऐसा करता है तो मामला बेहद गंभीर हो जाता है। पढ़ी-लिखी महिलाओं के एक बड़े हिस्से ने इसका प्रतिकार किया है। और अलग-अलग तरीके से यह सिलसिला अभी भी जारी है। इतिहास की अध्यापिका और सामाजिक कार्यकर्ता आशु वर्मा ने इस मसले पर सीधे मुख्य न्यायाधीश को पत्र लिखा है। पेश है उनका पूरा पत्र-संपादक (जन चौक) 

पत्र लिखने वाली महिला आशु वर्मा 
देश की सबसे बड़ी अदालत के महामहिम, ये आपने क्या कह दिया? ये आपने क्यों कहा? किसने आपको यह अधिकार दिया महामहिम ? आप तो संविधान की रक्षा के लिए हैं, आप तो कानूनों की सही रोशनी में व्याख्या के लिए हैं। आपसे तो उम्मीद की जाती है कि आप दबे कुचले, सताए हुए, हाशिये के लोगों, की बात सुनेंगे, उनके बिना सुनाये ही उनकी पीड़ा समझ जायेंगे, उसे संज्ञान में लेंगे और उनके लिये बेहतर कानूनों की जमीन तैयार करेंगे।

महामहिम, आप से बेहतर कौन यह जानता है कि आलोचना, आन्दोलन और विरोध लोकतंत्र का एक महत्वपूर्ण अवयव है। वह तो लोकतंत्र की आत्मा है। उसी से लोकतंत्र लोकतंत्र बना रहता है। और जब किसी वर्गीय आन्दोलन में उस वर्ग की आधी आबादी यानि उस वर्ग की महिलाओं की भागेदारी भारी संख्या में हो रही हो तो मामला जरूर संगीन होगा, यह तो आप भी समझते होंगे। अब तक तो आप समझ ही गए होंगे कि मैं किस विषय पर बात कर रही हूँ।

आपने किसान आन्दोलन में शामिल महिला किसानों के बारे में कह दिया कि इन्हें आन्दोलन में नहीं शामिल होना चाहिए। इन्हें वहां से हटाया जाना चाहिए। आपने ऐसा कैसे कह दिया? महोदय, आपके इस सुझाव से मैं बेहद आहत और क्रुद्ध हूँ। आखिर न्यायापालिका के संरक्षक ने भी यही मान लिया कि ये ‘सामान्य महिलाएं’ हैं जो अपने-अपने पतियों के साथ की अर्धांगनी होने का फर्ज निभाने आई हैं। अधिकांश लोग तो यह मानते ही हैं कि ‘महिलाएं किसान नहीं होतीं’। लेकिन अफ़सोस कि आपने भी ऐसा ही माना।

आपने तो पूरा जीवन संविधान की सेवा में बिताया है। इस लम्बे न्यायिक सफ़र में तमाम समुदायों की तकलीफों भरी, न्याय मांगती याचिकाएं आपकी नजरों के सामने से गुजरी होंगी। आप से तो उम्मीद की जाती है कि ‘थोड़ा कहा ज्यादा समझना’। आप तो यह जानते ही होंगे की खेती का 75% काम महिलाएं करती हैं। अधिकांश के मन में उनके श्रम को पहचान नहीं दिए जाने का क्षोभ और गुस्सा होता है। भले ही सभी उसे व्यक्त न कर पाती हों। मैं यह सोचती थी कि संसद में बैठे लोग तो इस आकांक्षा को न तो समझ पाते हैं और न ही महसूस कर पाते हैं पर आप, एक लोकतांत्रिक संविधान, जिसकी आत्मा में समानता का मूल्य बसा है, उस संविधान के रक्षक हैं, आप कैसे इसे नहीं समझ पाए कि यहाँ आई महिलाएं सिर्फ पति का साथ निभाने नहीं आई हैं (और अगर आई भी है तो क्या? ये उनकी इच्छा और हक है) महोदय वे महिलाएं अपनी किसान होने की पहचान के नाते आई हैं, इस अहसास के साथ आई हैं कि वे किसान हैं।

वे समझ रही हैं कि किसानी कितना तकलीफदेह पेशा हो गया है। देश के धान्य-कोठारों को भरने में उनका भी पसीना बहता है। उनमें से तमाम के घरों में किसानी पर छाये संकट के कारण मौतें हुई हैं। उनके भी प्रियजनों ने इन्हीं मुसीबतों के कारण आत्महत्याएं की हैं। उनकी आत्महत्याओं के बाद कर्जे की वसूली के लिये आये बैंकों के आलिमों का यही सामना करती हैं या कर रही हैं। अधिकाँश को तो पति की मौत के बाद मुआवजा भी नहीं मिलता क्योंकि जमीन के कागजातों पर उनका नाम नहीं होता क्योंकि उन्हें किसान नहीं माना जाता। महामहिम, ये सारी बातें आपको तो पता ही होंगी। मेरा आपको बताना शोभा नहीं देता। आप बताइये कि क्या वे किसान नहीं हैं?

महोदय, ये महिलाएं खेती के तौर तरीकों पर किसी कृषि विश्वविद्यालय में पढ़ा सकती हैं, कृषि पर छाये संकट, उस संकट के आर्थिक-राजनीतिक-सामाजिक-सांस्कृतिक-पर्यावरण और धार्मिक पहलुओं के रेशे-रेशे पर किसी मीडिया हाउस में घंटों चर्चा कर सकती हैं क्योंकि खेती ही उनका जीवन है, उसी से उनका वजूद है।

महोदय मैं तो सोचती थी कि लोकतंत्र के शीर्ष पर होने के कारण जीवन के हर क्षेत्र में महिलाओं की बढ़ती मौजूदगी और हिस्सेदारी आपको तसल्ली देती होगी, आश्वस्त करती होगी। इसीलिये किसान आन्दोलन में उनकी मौजूदगी और उनकी स्वायत्तता आपको भा रही होगी। उनकी गंभीरता और आत्मविश्वास से आप खुश हो रहे होंगे। राजनीतिक रैलियों में ट्रक में भर कर आई महिलाओं और डेढ़ महीने से प्रदर्शन पर बैठीं इन किसान महिलाओं में आप अंतर कर पा रहे होंगे। खबरें तो आप तक भी पहुँच ही होंगी। आप समझ ही गए होंगे कि ये कुछ कहना चाहती हैं। ये खेती पर छाये संकट और अपनी पहचान के लिए भी आई हैं। आपको उन्हें सुनना चाहिए था महामहिम, यह उनका हक है। अपनी पहचान की उनकी लड़ाई का संज्ञान लेना चाहिए था। लेकिन अफ़सोस आपने तो उन्हें जाने के लिए कह दिया।

आप जानते ही हैं कि जिस संविधान के आप संरक्षक हैं उसे बनाने में दुर्गाबाई देशमुख, अम्मू स्वामीनाथन, बेगम एजाज़ रसूल, दाक्षायनी वेलायुधन जैसी 15 महिलाओं का भी सक्रिय योगदान रहा है। एक-एक आन्दोलन और संघर्ष से ही महिलाओं ने अधिकार हासिल किये हैं। अनेक कानूनी लडाइयां भी लड़ी हैं। किसान के रूप में उनकी पहचान को मान्यता सिर्फ उनकी ही जीत नहीं होगी बल्कि समस्त नारी समुदाय की जीत होगी और वह आगे बढ़ेंगी।

क्षमा चाहती हूँ, पर मैं खुद को रोक नहीं पाई। महामहिम, आपने हम महिलाओं को बहुत निराश किया।  

              –आशु वर्मा

Saturday, January 2, 2021

नहीं रहे रेडियो प्लेबैक वाले सक्रिय पत्रकार कृष्णमोहन मिश्रा

 टैक्स्ट के साथ आवाज़ और शब्दों के प्रयोग में भी बहुत ही कुशल थे 

लखनऊ//इंटरनेट: 2 जनवरी 2020: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन डेस्क):: 

देश के हालात की मायूसी और उदासी के इस माहौल में एक और उदास  खबर आई है राजू मिश्र की एक पोस्ट के रूप में। इसमें एक बहुत अच्छे पत्रकार के बिछुड़ जाने की सूचना है। यह खबर सोशल मीडिया पर सामने आई। उदास कर देने वाली यह पोस्ट है लखनऊ के एक  ऐसे कर्मयोगी पत्रकार के निधन से सबंधित जिन्होने टैक्स्ट के साथ साथ आवाज़ के जादू को भी ब्लॉग मीडिआ के तौर पर सक्रिय हो कर इस्तेमाल किया। उनके प्रयोग बेहद सफल रहे और ने टैक्स्ट और आवाज़ के समन्वय को बहुत ही खूबसूरती के साथ प्रस्तुत किया। रेडियो प्लेबैक उनका बहुत ही ज़बरदस्त प्रयोग रहा जो निकट भविष्य में ही हमें नए नए आर जे भी दिया करेगा। शब्दों और आवाज़ का संमिश्रण  जादू बिखेरता। एक पूरी टीम इस सारे प्रयोग पर नज़र रखती। रेडियो ब्लॉग की दुनिया में यह बहुत  लोकप्रिय हुआ।  Krishnamohan Mishra जी की पोस्टें हमें उनकी याद दिलाती  रहेंगी। राजनीतिक विचारों के भेदभाव से ऊपर उठ कर केवल समाज और विशुद्ध पत्रकारिता के धर्म को निभाते हुए हम उन्हें याद रखें  तो यही बात हमें आगे बढ़ने की शक्ति भी देगी।  

उनके मित्र  राजू मिश्रा बताते हैं-वरिष्ठ पत्रकार कृष्णमोहन मिश्र का गुरुवार की रात लखनऊ में हृदयाघात से निधन हो गया। वे लगभग 70 वर्ष के थे। श्री मिश्र ने अपने पीछे पत्नी और दो पुत्रियों को छोड़ा है। अपरान्ह दो बजे भैंसाकुंड स्थित श्मसान घाट पर उनकी अन्त्येष्टि हुई। श्री मिश्र को उनकी बेटी ने मुखाग्नि दी।कृष्ण मोहन जी का जन्म वाराणसी में हुआ था। उनकी शिक्षा दीक्षा वाराणसी में ही हुई। उन्होंने मिर्जापुर के पालिटेक्निक से शिक्षा ग्रहण की थी। इसके बाद लखनऊ के बांस मंडी स्थित आईटीआई में प्रशिक्षक रहे। यहीं से करीब दस वर्ष पूर्व वे सेवानिवृत्त हुए। श्री मिश्र सांस्कृतिक पत्रकार भी थे। सेवा में रहते हुए उन्होंने सांस्कृतिक पत्रकारिता की। वे दैनिक जागरण और हिन्दुस्तान में सांस्कृतिक संवाददाता भी रहे। इसके साथ ही वे संस्कृति और संगीत पर लगातार लेखन करते थे। सोशल मीडिया में वे लगातार संगीत और गायन की विभिन्न विधाओं पर लेखन कर रहे थे। वे उ.प्र. जर्नलिस्ट्स एसोशिएशन की पत्रिका उपजा न्यूज और संस्कार भारती की पत्रिका कला कुंज भारती के भी संपादक रहे। आजकल वे राजधानी में जानकीपुरम् क्षेत्र की इकाई के अध्यक्ष थे। गोमती नगर निवासी श्री मिश्र को बीती रात करीब नौ बजे हृदयाघात हुआ। परिवार के लोग उन्हें तत्काल डा. राम मनोहर लोहिया चिकित्सालय ले गए जहां डाक्टरों ने बताया कि तीव्र हृदयाघात से उनका निधन हो चुका है। विनम्र श्रद्धांजलि।

उनके एक और गहरे मित्र सुजॉय चटर्जी उन्हें बहुत ही स्नेह और सम्मान के स्मरण करते हुए कहते हैं-ख़ामोश हुआ "स्वरगोष्ठी" का स्वर, नहीं रहे कृष्णमोहन मिश्र जी। इस गहरे सदमे को उनके मित्र किस मुश्किल से सहन कर पा रहे हैं इसे बताना मुश्किल है। 

श्री चटर्जी कहते हैं: कृष्णमोहन जी लखनऊ के प्रसिद्ध एवम् वरिष्ठ सांस्कृतिक पत्रकार/ सम्पादक होने के साथ-साथ शास्त्रीय एवम् लोक-संगीत के विशिष्ट जानकार, विश्लेषक, समीक्षक, लेखक, जानेमाने मंच संचालक, साक्षात्कारकर्ता और ब्लॉगर भी थे। हमारे ’रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ नामक ब्लॉग में वे शास्त्रीय एवम् लोकसंगीत पर आधारित स्तम्भ ’स्वरगोष्ठी’ का पिछले दस वर्षों से निरन्तर संचालन करते चले आ रहे थे। इन्टरनेट पर शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, लोक, सुगम और फिल्म संगीत विषयक चर्चा का सम्भवतः यह एकमात्र नियमित साप्ताहिक स्तम्भ है, जो विगत दस वर्षों से निरन्तरता बनाए हुए है। आज उनके चले जाने से यह स्तम्भ अनाथ हो गया।

अपनी मित्रता और उनके साथ मीडिया और जीवन से जुड़े अनुभवों के आदान प्रदान का ज़िक्र करते हुए वह भरे मन से कहते हैं-मेरा कृष्णमोहन जी से पहला परिचय वर्ष 2011 में हुआ था। उन दिनों सेवानिवृत्ति के बाद वे इन्टरनेट पर सक्रिय हो रहे थे। उन्हीं दिनों शास्त्रीय संगीत पर आधारित एक स्तम्भ हमने शुरू किया था ’सुर संगम’, पर शास्त्रीय संगीत के जानकार न होने की वजह से हमारे लिए इसे लम्बे समय तक चला पाना मुश्किल हो रहा था। मेरे मित्र Sumit Chakravarty ने भी कुछ समय तक इसे आगे बढ़ाया। उन दिनों कृष्णमोहन जी इस स्तम्भ के पाठक हुआ करते थे। उनकी नियमित टिप्पणियों को पढ़ कर मुझे और सुमित को यह आभास हो गया था कि अगर कोई इस स्तम्भ को सही तरीके से आगे बढ़ा सकते हैं तो वो कृष्णमोहन जी ही हैं। उन्हें यह प्रस्ताव देते ही वे फ़ौरन राज़ी हो गए। और उस दिन से लेकर आज तक, उन्होंने ही इस साप्ताहिक स्तम्भ का संचालन किया ’स्वरगोष्ठी’ शीर्षक से और एक भी सप्ताह ऐसा नहीं बीता कि जब ’स्वरगोष्ठी’ का अंक प्रकाशित ना हुआ हो। आज इसके 495 अंक प्रकाशित हो चुके हैं। शास्त्रीय एवम् लोक संगीत के लेखों से सुसज्जित ये 495 अंक हिन्दी ब्लॉग जगत में किसी अनमोल ख़ज़ाने से कम नहीं है। इस धरोहर को हमें सहेज कर रखना है।

श्री चटर्जी बताते हैं कि कृष्णमोहन जी से मैंने बहुत कुछ सीखा है। लेखन शैली और प्रकाशनयोग्य formatting के बारे में उन्होंने तो बहुत कुछ बताया ही था, पर केवल उनको देख कर भी कई चीज़ें सीखने को मिली। वे पूरे perfection के साथ लेख लिखते थे, उनके लिखे पोस्ट्स पर किसी भी तरह की ग़लती ढूंढ पाना असम्भव सा था। वे कभी जल्दबाज़ी और shortcut में नहीं जाते थे, अगर समय ना हो तो साफ़ मना कर देते थे, पर quality के साथ कभी समझौता नहीं करते थे। वे इतने ईमानदार थे कि उनके लेखों के लिए जो भी कोई छोटी से छोटी जानकारी भी उन्हें देता था, वे उनका नाम लेख में उल्लेख करना कभी नहीं भूलते थे। ’स्वरगोष्ठी’ में जब भी कभी उन्हें किसी फ़िल्मी गीत से सम्बन्धित कोई रोचक जानकारी की आवश्यकता पड़ती थी तो वे मुझसे सलाह करते थे, और अगर मैं उन्हें कोई जानकारी उपलब्ध करवाता तो वे मेरा नाम लेख में “जानेमाने फ़िल्म इतिहासकार” के रूप में लिखते थे जिसे पढ़ कर मुझ हँसी आ जाती थी और embarrassment भी होता था क्योंकि मैं कोई फ़िल्म इतिहासकार नहीं हूँ। यह उनका बड़प्पन ही था बस! वे इतने विनयी थे कि जब भी कभी मैं उनसे कहता कि मैंने उनसे बहुत कुछ सीखा है तो फ़ौरन उनका जवाब होता था कि उन्होंने भी मुझसे बहुत कुछ सीखा है। प्रसिद्ध अभिनेता Pranay Dixit जी के मौसा जी लगते थे कृष्णमोहन जी। जब वर्ष 2013 में प्रणय जी की पहली फ़िल्म ’Roar’ रिलीज़ होने जा रही थी, तब कृष्णमोहन जी के ज़रिये मुझे प्रणय जी का साक्षात्कार लेने का मौका मिला। उन्होंने यह दायित्व मुझे सौंप कर मेरा सम्मान बढ़ाया था।

हालांकि दोनों मित्रों में उम्र  का अंतर भी काफी था। चटर्जी साहिब बताते हैं उम्र में मैं कृष्णमोहन जी से करीब 30 साल छोटा हूँ, पर उनसे बात करते समय कभी इसका अहसास नहीं हुआ। हमेशा ऐसा ही लगा कि जैसे हम हम-उम्र हों। वे ऐसे बात करते थे कि जैसे अपने किसी हम-उम्र दोस्त के साथ बतिया रहे हों। उन्हें जब भी कभी मेरे द्वारा लिखा कोई पोस्ट पसन्द आता था तो फ़ोन करके बधाई देते थे। मुझे याद है एक बार मैंने जब अपने किसी लेख में “साज़िन्दों” की जगह “वाद्य-वृन्द” शब्द का प्रयोग किया था, उन्हे यह इतना अच्छा लगा कि केवल यही बताने के लिए उन्होंने मुझे फ़ोन किया। वे कभी फ़ोन पर व्यक्तिगत बात या इधर-उधर की बात नहीं करते थे, सीधे काम की बात करते थे, professionalism उनमें कूट-कूट कर भरा हुआ था। कुछ वर्ष पूर्व एक बार मैंने उनसे कहा कि मेरा बेटा शास्त्रीय संगीत सीख रहा है पर वो रियाज़ ही नहीं करता। तब कृष्णमोहन जी ने बताया कि दस वर्ष की आयु से पहले बच्चे से ज़्यादा रियाज़ ना करवाऊँ वरना आवाज़ ख़राब हो सकती है। यह बेहद महत्वपूर्ण बात उनसे जानने को मिली थी। एक बार मैंने उनसे कहा कि आपने लम्बे समय से एक ही profile pic लगा रखी है, इसे बदलते क्यों नहीं, तो बोले तो यह उनका प्रिय फ़ोटो है और उनका सबसे अच्छा फ़ोटो है। जितना मुझे याद है यह तसवीर किसी ने संगीत नाटक अकादमी में खींची थी। 

फेसबुक वाली प्रोफ़ाइल तस्वीर की तरह ही उन्होने अपने  मित्र भी नहीं बदले। जिससे मित्रता लगाई उसके साथ आखिर तक निभाया। 

कुछ सप्ताह पूर्व जब आख़िरी बार उनसे बात हुई थी तब वे काफ़ी उत्साहित थे इस बात को लेकर कि ’स्वरगोष्ठी’ के ना केवल दस वर्ष पूरे हो रहे हैं बल्कि इसके 500 अंक भी पूरे हो रहे हैं। और संयोग देखिए कि इसी सप्ताह ’स्वरगोष्ठी’ के दस वर्ष पूरे हो रहे हैं 495-वें अंक के साथ। ब्लॉगर में उन्होने इस सप्ताह का पोस्ट शेड्युल कर रखा है और इस पोस्ट में उन्होंने ’स्वरगोष्ठी’ के दस वर्ष पूर्ति पर इसके प्रथम अंक के लिए मेरे लिखे हुए लेख का एक अंश भी प्रस्तुत किया है, जिसे पढ़ कर निर्वाक् हो गया हूँ। आज कृष्णमोहन जी के इस तरह अचानक चले जाने से ऐसा लग रहा है कि जैसे एक महाशून्य सा उत्पन्न हुआ है। अभी तो उनके साथ बहुत काम करना बाकी था। उनसे बहुत सारी बातें करनी थीं। सब एक ही झटके में समाप्त हो गया। शायद इसी क्षणभंगुरता का नाम जीवन है। कृष्णमोहन जी मुझे हमें हमेशा याद रहेंगे। उनको श्रद्धांजलि स्वरूप और उनके 500-वें अंक के सपने को साकार करने हेतु हमने ’स्वरगोष्ठी’ के अन्तिम पाँच अंकों को लिखने का निर्णय लिया है। यही उनके लिए हमारी श्रद्धांजलि होगी।