Saturday, July 17, 2021

दानिश साहिब यहीं हैं हमारे आसपास-हमारे दरम्यान

 लानत है उनकी मौत का जश्न मनाने वालों पर 


नयी दिल्ली
: 17 जुलाई 2021: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन+मित्र लोग)::

प्रेस क्लब आफ इण्डिया ने दानिश सिद्दीकी साहिब के याद में आज रात करीब 7:25 पर कैंडल मार्च किया है। उनकी चर्चा करनी ज़रूरी है शायद इसी बहाने उन लोगों की अंतरात्मा जाग उठे जो खुद को पत्रकार समझते  हैं लेकिन साडी उम्र भांड बने रहते हैं। पत्रकारिता की समझ उन्हें उम्र भर समझ नहीं आ पाती। काश ऐसे लोग दानिश साहिब की कुर्बानी के इस मौके पर अपनी डयूटी के प्रति सजग हो सकें। 

दुःखद है लेकिन सच है कि जब खुद को मीडिया का सरगर्म और बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा समझने और कहने वाले बहुत से लोग अपने अपने राजनीतिक आकाओं की चमक दमक को दर्शाते हुए अपने अपने कैमरे और कलम   सेट करने में व्यस्त थे, उनके आगे पीछे घूम रहे थे उस समय भी दानिश सिद्दीकी एक गौरवशाली सच्चे मुस्लिम होने के के साथ साथ प्रतिबद्ध पत्रकार का फ़र्ज़ भी निभा रहे थे। 

अलग अलग मामलों  में अलग अलग जगहों पर अलग अलग वक़्तों में दानिश साहिब ने दिखाया कि अगर कलम और कैमरा पकड़ो तो उसकी लाज कैसे रखी जाती है। जान हथेली पर और हौंसला दिल व दिमाग में दानिश साहिब ने बहुत पहले सीख लिया था। दानिश साहिब ने 40 की उम्र तक पहुँचने से पहले ही बहुत कुछ ऐसा क्लिक किया जो दस्तावेज़ी की तरह है। आने वाले वक्तों में  और बढ़ जाएगी। 

उल्लेखनीय है कि पुलित्जर पुरस्कार पत्रकारिता के क्षेत्र का अमेरिका का सर्वोच्च पुरस्कार है। इसकी शुरुआत 1917 से हुई थी। 2021 के लिए भारतीय मूल की पत्रकार मेघा राजगोपालन को भी अंतरराष्ट्रीय रिपोटिंग के दिया जाएगा। दानिश सिद्दीकी साहिब को साल 2018 में  पुलित्जर पुरस्कार  से नवाजा गया था, ये अवॉर्ड उन्हें रोहिंग्या मामले में कवरेज के लिए मिला था। बहुत बड़ी कवरेज थी यह। 

गौरतलब है कि दानिश सिद्दीकी ने अपने करियर की शुरुआत एक टीवी जर्नलिस्ट के रूप में की थी, बाद में वह फोटो पत्रकार बन गए थे। आज भी बहुत से लोग मीडिया का कार्ड जेब में दाल कर और कैमरा उठा कर समझते हैं कि वे फोटोग्राफर बने हुए हैं लेकिन उन्हें कुछ भूलता है तो बस अपनी डयूटी। या फिर अपने अपने फ़र्ज़। अपने आकाओं की तरफ से होती आवभगत और सेवा सम्मान उन्हें सपनों में नहीं भूलता। 

बस यही फरक है दानिश साहिब ने हर वक़्त अपनी ड्यूटी याद रखी। जान तक कुर्बान कर दी और अमन हो गए। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने दानिश सिद्दीकी के निधन पर शोक जताया है। ठाकुर ने कहा कि वह अपने पीछे अपना शानदार काम छोड़ गए हैं। हकीकत भी यही है। 

उन्हें याद करते हुए, उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए पुलित्जर पुरस्कार विजेता भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को श्रद्धांजलि देने के लिए प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और जामिया मिलिया इस्लामिया में शनिवार को कैंडल लाइट मार्च निकाला गया। अन्य हमदर्द लोग भी इसमें पहुंचे। सब के मन में दर्द था। करीब 40 साल के सिद्दीकी की शुक्रवार को अफगानिस्तान के कंधार प्रांत में स्पिन बोल्डक जिले में अफगान बलों और तालिबान के बीच संघर्ष के दौरान मृत्यु हो गयी। वह कंधार के मौजूदा हालात की कवरेज कर रहे थे। बहुत से दुसरे मामलों की तरह यह भी उनका मिशन था। 

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में कैंडल लाइट मार्च के दौरान वर्किंग न्यूज कैमरामैन एसोसिएशन (डब्ल्यूएनसीए) के अध्यक्ष एस. एन. सिन्हा ने कहा कि युद्ध, दंगों और लोगों की तकलीफें तस्वीरों के जरिए सभी तक पहुंचा कर सिद्दीकी अपने पेशे में शीर्ष पर पहुंचे थे। शीर्ष सभी की किस्मत में भी नहीं होता। हर किसी के जज़्बे में दानिश साहिब जैसा जूनून भी नहीं होता। एस. एन. सिन्हा ने कहा कि उन्होंने पूरे जुनून और समर्पण के साथ सभी तस्वीरें लीं, खबरों का कवरेज किया और हमेशा मुश्किल में फंसे लोगों पर ध्यान दिया। जो कुछ सिन्हा साहिब ने कहा इससे बड़ा समान शायद कोई न हो। उनके मित्र और उनके पुराने साथी भी आहत हैं इस शहादत से। जामिया मिलिया के पुराने छात्र मोहम्मद मेहरबान ने मास कम्युनिकेशन के छात्र सृजन चावला के साथ मिलकर विश्वविद्यालय के गेट नंबर 17 पर कैंडल लाइट मार्च का आयोजन किया जिसमें 500 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया।मोहम्मद मेहरबान ने कॉलेज में अपने सीनियर दानिश सिद्दीकी को याद किया। कभी कभी सीनियर लोग   जो किताबों में भी नहीं मिलता। 

दानिश साहिब को आर्थिक स्थितियों की भी पूरी समझ थी। देश कीध जा रहा है उन्हें मालुम था। सिद्दीकी ने अर्थशास्त्र विषय से स्नातक की पढ़ाई की थी। उन्होंने 2007 में जनसंचार विषय में स्नात्कोत्तर किया था। दानिश सिद्दीकी 2011 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ बतौर फोटो पत्रकार काम कर रहे थे। उन्होंने अफगानिस्तान और ईरान में युद्ध, रोहिंग्या शरणार्थी संकट, हांगकांग में प्रदर्शन और नेपाल में भूकंप जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं की तस्वीरें ली थीं। इन कहानियों का सिलसिला काफी लम्बा है। दानिश साहिब तो रुखसत हो गए लेकिन ु का काम लगातार अपनी मौजूदगी दर्शाता रहेगा। 

आखिर में लानत उन लोगों पर ज़रूरी है जो दानिश साहिब की मौत का जश्न मना रहे हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे बेशर्म लोगों को। इस तरह के जश्न मना कर वे अपनी औकात ही दिखा रहे हैं। बता रहे हैं की वे सचमुच साम्प्रदायिकता की ज़हर से भरे हुए खतरनाक लोग हैं। इन लोगों को याद रखना कि  रहेंगे रंग बदल कर रूप बदल कर।  किसी न किसी के हाथ में कोई न कोई कैमरा  इन लोगों को डराता भी रहेगा और भी  बेनकाब भी करता रहेगा।  दानिश साहिब यहीं हैं हमारे आसपास। हमारे दरम्यान। 

जामिया ने दानिश सिद्दीकी की दुखद मौत पर शोक व्यक्त किया

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