Wednesday, January 29, 2020

तब आपका एंकर, अपने स्टूडियो में क्या कर रहा था?

Posted on 29th January 2020 at 10:51 AM 
जब आप अपनी रोजी-रोटी छोड़कर,सड़कों पर लड़ रहे थे
जब आप अपनी रोजी-रोटी छोड़कर, सड़कों पर लड़ रहे थे, तब आपका एंकर, अपने स्टूडियो में क्या कर रहा था-
●मुद्दा- तमिलनाडु के किसानों का पानी और सूखे के मुद्दे पर प्रदर्शन।  
एंकर-किसानों के लिए इतने दिनों तक खाने-पीने के पैसे कहाँ से आ रहे हैं? ग्रीनपीस और विदेशी NGO फंडिंग कर रहे हैं। 
●मुद्दा- SSC परीक्षा में घपलों के खिलाफ आम छात्रों का प्रदर्शन
एंकर- कांग्रेस पार्टी छात्रों को सरकार के खिलाफ भड़का रही है.
● मुद्दा- SC-ST Act में छेड़छाड़ के खिलाफ दलितों का भारत बन्द
एंकर- कुछ नेता राजनीतिक रोटियां सेंकना चाहते हैं, राजनीतिक फायदे के लिए देश को जला रहे हैं।
●मुद्दा- MSP को लेकर महाराष्ट्र के किसानों का दिल्ली की तरफ पैदल मार्च
एंकर- इनकी लाल टोपियों, पानी के बोतलों की फंडिंग कहां से हो रही है?
●मुद्दा- 8 साल की बच्ची आसिफा के साथ हुए रेप के खिलाफ देश भर में नागरिकों के प्रदर्शन 
एंकर- जब हिन्दू लड़कियों का रेप होता है तब कोई कैंडल मार्च क्यों नहीं करता?
●मुद्दा- JNU में अप्रत्याशित फीस वृद्धि के खिलाफ छात्रों का प्रदर्शन.
एंकर- जेनएयू में भारत के टुकड़े टुकड़े गैंग के लोग पढ़ते हैं
●मुद्दा- NRC-CAA के खिलाफ मुसलमानों, प्रगतिशील नागरिकों का देशभर में प्रदर्शन
एंकर- शाहीनबाग की औरतों को 500-500 रूपये प्रतिदिन मिल रहे हैं.

आप सड़क पर भूखे-प्यासे लड़ते हैं। काम छोड़ते हैं, तख्तियों पर अपनी समस्याएं लिखते हैं, नारे लगाते हैं, आपकी पूरी मेहनत को शाम होते-होते ही आपका एंकर न्यूट्रलाइज कर देता है। न्यूट्रलाइज ही नहीं करता बल्कि नेगेटिव कर देता है। आपको दंगाई की तरह पेश करेगा। आरोप लगाएगा, आपका चरित्र-चित्रण करेगा, अंततः आपको देशद्रोहियों की तरह पेश करेगा। 

आपकी चीखें, आपके नारे, आपके एंकर की तेज़ आवाज़ में कहीं दबकर रह जाते हैं। आप दिल्ली में लड़ते हैं, एंकर टीवी पर। आपके नारे एक गली से दूसरी गली नहीं पहुंच पाते, एक मोहल्ले से दूसरे मोहल्ले नहीं पहुंच पाते लेकिन आपका एंकर उड़ीसा के कालाहांडी के सबसे दूर गांव तक पहुंचा हुआ है। 

आपका एंकर आपके बैडरूम तक पहुंचा हुआ है। मोबाइल और इंटरनेट के थ्रू आपके घर की संडास, रसोई, मंदिर, मस्जिद, स्कूल, कॉलेज, बस, दुकान, शोरूम, हर जगह पहुंचा हुआ है। हर रोज वह आपके लोकतांत्रिक अधिकारों को कुचल रहा है। हर रोज वह आपकी नागरिकता को खत्म कर रहा है। हर रोज वह आपके पिता, आपके चाचा, भाई, रिश्तेदारों को मिसइन्फॉर्म कर रहा है, दूसरे मजहबों के प्रति उनमें घृणा भर रहा है। एंकर जो क्षति पहुंचा रहा है, वह इतनी स्थायी है कि इस देश में वर्षों तक पुनर्जागरण काल रहे तब भी इस क्षति को भरा नहीं जा सकता। ये नागरिकों की बर्बादी है। लोकतंत्र की बर्बादी है, एक पूरे देश की बर्बादी है। 

ऐसा करने के लिए ज़िम्मेदार एंकरों का प्रतिकार क्यों न किया जाना चाहिए? ऐसे न्यूज चैनलों के मालिकों का विरोध क्यों न किया जाना चाहिए?

क्या आप अपने मुल्क, अपने देश के नागरिकों, अपने परिवारों को बर्बाद होते हुए, सिर्फ देखते ही रहेंगे?

क्योंकि चुप रहना है हमारी सभ्यता है, चुप रहना ही हमारा सहूर है।  आपके देश को मूर्ख बनाने वालों से से, एक अदब सवाल भी न किया जाए?

मैं सच बता रहा हूँ असली बैटल यूनिवर्सिटीयों में नहीं है, दिल्ली में नहीं है, पीएमओ में नहीं है, पुलिस कार्यालय में नहीं है, सच कहूं तो आपके गांव में भी नहीं है, क्योंकि गांव गांव पहुंचने के लिए आपके पास संसाधन नहीं हैं। 

असली बैटल आपके घर की टीवी में है। असली बैटल नोएडा फ़िल्म सिटी के दफ्तरों में है जहां से ये एंकर आपके घरों में जहर सींचते हैं। 

आपके घरों, आपके मुल्क को बर्बाद करने वाले के प्रति, बिल्कुल भी लिहाज करने की जरूरत नहीं है, बिल्कुल भी सभ्य बने रहने की आवश्यकता नहीं है, ऐसे एंकरों का नाम न ले लेकर दलाल कहिए, इनके नाम लीजिए, उसके नीचे लानते लिखिए, शेम कहिए, जहां मिलें उन्हें अहसास कराइए कि वो इस देश के नागरिकों के साथ क्या कर रहे हैं।  --Shyam Meera Singh
श्याम मीरा सिंह की फेसबुक प्रोफ़ाइल से साभार