Wednesday, June 24, 2015

मीडिया फिर संवेदनशील संघर्ष के दौर में

लगातार बढ़ रही है जन मीडिया और कार्पोरेट मीडिया में खायी 
लुधियाना: 23 जून  2015  (रेक्टर कथूरिया//मीडिया स्क्रीन):
मीडिया फिर संवेदनशील संघर्ष के दौर में है।  देश और दुनिया के अलग अलग हिस्सों में यह संघर्ष फैसलाकुन दौर की और बढ़  रहा है। सबसे अधिक दबाव मीडिया की उस विधा से जुड़े पत्रकारों पर है जिन्हे मुख्य धारा मीडियासे जुड़े लोग पत्रकार ही नहीं मानते।  सोशल मीडिया से जुड़े ब्लागरों/पत्रकारों पर लगातार दमन हो रहा है। उनकी हत्याएं की जा रही हैं। उन्हें प्रताड़ित किया जा रहा है लेकिन दुखद इत्तफ़ाक़ कि मुख्य धारा का मीडिया जाने अनजाने उस पाले में जा खड़ा हुआ है जहाँ ब्लागरों और सोशल मीडिया पत्रकारों के हत्यारे खड़े हैं। शाहजहाँपुर में जगेंद्र सिंह को जला कर मार दिया जाता है और उसके कुछेक तथाकथित संगी साथी उसकी शहादत पर द्रवित होने की बजाये जलाने वालों से मिलीभगत करते हैं और गुपचुप तरीके से  कहते हैं वह तो पत्रकार था ही नहीं। उस जघन्य हत्या को लेकर संघर्ष के लिए बहुत ही कम पत्रकार आगे आते हैं जिनका ज़मीर अभी मरा नहीं था वो इस बात पर अड़ गए कि हम अपने साथी जगेंद्र के बलिदान को व्यर्थ नहीं जाने देंगें।  सत्य और सिद्धांत की जीत हुई और शहीद जगेंद्र सिंह के परिवार को इन्साफ दिलाने के लिए बड़ी बड़ी अख़बारों ने सम्पादकीय लिखे और मुख्यमंत्री अखिलेश को खुद आगे आना पड़ा। यह घटना एक वानगी मात्र है। 
वास्तव में इस तरह का घटनाक्रम पूरे विश्व में जारी है। मीडिया जाने अनजाने दो भागों में बंट चूका है और यह विभाजन रेखा लगातार गहरी होती जा रही है।
दूसरी तरफ जन मीडिया अपने सिद्धांत पर चलने के कारण मुश्किलों के बावजूद लोकप्रिय हो रहा है। आम जनता से जुडी समस्यायों को लगातार उजागर करता हुआ यह जन मीडिया उस बड़े मीडिया के लिए खौफ भी बन रहा है को बड़े बड़े घोटालों और बड़ी बड़ी जन समस्यायों को छूना भी उचित नहीं समझता क्यूंकि उससे विज्ञापन नहीं मिलते।  बहुत ही कम संसधानों के बावजूद इसका जनाधार बढ़ता जा रहा है।  दूसरी ओर कार्पोरेट मीडिया अपने कार्पोरेट घरानों और सियासी निशानों के नफा नुक्सान की गिनती मिनती करता हुआ खबरों का चयन करता है। इस नफे नुक्सान के चक्र में पिस रही है आम जनता जो अपनी खबर के साथ विज्ञापन नहीं दे पाती और वह लगातार ज़ुल्म की चक्की में पिसती चली जा रही है। 
इस विभाजन रेखा को और गहरा किया जा रहा है संगठनों के नाम पर। पदों को बाँट कर इसे अपने हाथ में भी किया जा रहा है। पंजाब में चुनावी वर्ष से एन पहले इस तरह के अंगठनों का निर्माण और पदों का बटवारा कुछ गहरे संकेत दे रहा है जिन्हें समझने की ज़रूरत है।
कलमकारों के दरम्यान पैदा की जा रही इस साजिशी फुट और कन्फ्यूज़न  का असर पंजाब, यूपी और अन्य भागों में भी देखने को मिल रहा है। पंजाब के जाने माने पत्रकार गौतम जालंधरी के नाम से एक संदेश सोशल मीडिया पर लगातार देखने को मिल रहा है। इस संदेश में गौतम जी ने कुछ सवाल उठाये हैं जिन्हें यहाँ भी दिया जा रहा है।
क्या आप भी पत्रकारों के हितों की रक्षा के लिए बन रहे "वर्किंग जर्नलिस्ट क्लब" के मेंबर बने हैं पर आपको भी इन सवालों का जवाब नहीं मिल रहा 
1. क्लब के मेंबर्स कौन हैं ? मेम्बरशिप देने के क्या मापदंड रखे गए ? 200 मेंबर्स की लिस्ट जारी क्यों नहीं की गयी ?
2. कितने और कौन से मेंबर्स की  रजामंदी से इस पारदर्शी स्क्रूटिनी कमेटी का चयन हुआ ? क्या मापदंड रखे गए ?
3. पहले दिन से ही वर्किंग जर्नलिस्ट ओनली का ढिंढोरा पीटने वाले लोगों ने नॉन वर्किंग जर्नलिस्ट को कमेटी में कैसे शामिल कर लिया ?
4. केवल मेम्बरशिप फॉर्म चेक करने के लिए बनाई स्वयंभू नेताओं की इस कमेटी को क्लब के इलेक्शन और मेम्बरशिप फीस तय करने का अधिकार किसने दिया ?
5. अभी तक इस लोकतान्त्रिक स्क्रूटिनी कमेटी ने अपनी सारी मीटिंग चोरी छुपे क्यों की ? अगर यह क्लब ट्रांसपेरेंट हैं तो ऐसा पर्दा क्यों रखा जा रहा है? 
दोस्तों जिन लोगों ने पारदर्शिता और डेमोक्रेसी का हवाला देकर  तानाशाही से स्क्रूटिनी कमेटी बना दी ,चुनाव की डेट फाइनल कर ली,मेम्बरशिप फीस तय कर ली तो क्या गारंटी है कि वे लोग निष्पक्ष चुनाव करवाएंगे ? क्या गारंटी है इस क्लब के होने वाले प्रधान,सेक्रेटरी,चेयरमैन पहले से ही "फिक्स" नहीं हैं?
आपसे गुजारिश है कि इसी तरह चुप बैठ कर खुद के साथ ही हो रहे षडयंत्र के भागीदार ना बनें।
अपना शोषण न होने दें और अपनी आवाज जरूर उठाएं। इस मेसेज पर कमेंट जरूर करें और इसे ज्यादा से ज्यादा शेयर करें 
हम पत्रकार हैं लाचार नहीं। आपके सुझाव / सवाल अपेक्षित हैं।
भवदीय - गौतम जालंधरी,जर्नलिस्ट
+91 81 46 200161‬

पोस्ट स्क्रिप्ट: एक पुराना शेयर याद आ गया-हीरो की डायरी में पढ़ा था.…-----
माना कि तबाही में कुछ हाथ है दुश्मन का;
पर चाल क्यामतकी अपने भी तो चलते हैं।