Tuesday, January 30, 2024

सुनो!! वो जीत गए.. मगर मैं नही हारा !

आखिर हारकर....मेरी समाधि पर सर झुकाए खड़े हो जाते हो


जन मीडिया की दुनिया से: 30 जनवरी 2024: (मीडिया लिंक रविंद्र//मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन)::

यह सच है कि शरीर तो नश्वर ही होता है इसकी हत्या की जा सकती है, किन अमरता इससे भी बढ़ा सच है। हत्या कर के भी कुछ लोगों को कभी मिटाया नहीं जा सका। आज जब असहनशीलता फिर ज़ोरों पर है। आज फिर अमरता की चर्चा आवश्यक लग रही है।  उनकी अमरता जिन शख्सियतों की जान ले कर भी उन्हें मारा नहीं जा सका। ऐसी ही अनुभूति की अभिव्यक्ति इस पोस्ट में भी है। इसमें काव्य का रंग भी है, फलसफे का रंग भी और  का ज़मीन के पाताल जैसी गहराई का भी और आसमानों की ऊंचाई का भी। मनीष सिंह उनका लोकप्रिय नाम है लेकिन आजकल वह स्वयं को रिबोर्न मनीष भी कहते हैं। वैसे थोडा समझने की बात है--ज्ञान और अनुभव के बाद एक तरह से पुनर्जन्म ही तो होते है। इंसान पहले कहां रह जाता है! मनीष लम्बे समय से बहुत कुछ ऐसा लिख रहे हैं जो आपको ऐसा ज्ञान देता है जिसे सहेजना और याद रखना फायदे में ही होगा। गांधी जी की पुण्य तिथि आज ही थी 30 जनवरी का दिन बहुत कुछ याद दिलाता है। आज़ादी के कुछ ही महीनों बाद चढ़े पहले साल 1948 की 30 जनवरी। उस दुःखद दिन पर इस विशेष पोस्ट का खास महत्व है:-रेक्टर कथूरिया 

सुनो!! कान खोलकर...॥

मोहन पैदा हुआ था, मोहन ही मरा हूँ। 

महात्मा तुम्हारे बापों और दादो ने जबरन बना दिया। मुझे ना महात्मा बनना था, न राष्ट्रपिता

न राष्ट्रपति, न प्रधानमंत्री ..। 

लेखक-मनीष सिंह 

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हां, तुम्हारे बड़े बूढों ने जो प्यार दिया था। जब वो "बापू" कहते तो बड़ा भला लगता। 

लगता.. सब मेरे बच्चे हैं, मेरी जिम्मेदारी हैं। जब सारा देश ही बापू कहने लगा, तो किसी ने उत्साह में राष्ट्रपिता कह डाला। मगर मैं तो मोहन था, मोहन ही रहा। 

सुनो!! तुम्हारे बड़े बूढ़े मुझे नेता कहते थे। मगर मैने कोई चुनाव नही लड़ा, चुनावी तकरीर नही की। 

कोई वादा नही किया, कोई सब्सिडी नही बांटी। मैं तो घूमता था, दोनो हाथ पसारे..  मांगता था बस प्रेम, शांति और एकता। 

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बहुतों ने दिया, तो कुछ ने इन बढ़े हुए हाथों को झटक भी दिया। उन्हें इस फकीर से डर लगता था। प्रेम से डर लगता था, शांति से डर लगता था.. एकता से डर लगता था।

उन्होंने लोगो को समझाया- 

नफरत करो.. तुम एक नही हो, ना कभी हो सकते हो। शांति झूठी है। लड़ो, आगे बढ़ो। मार डालो। जीत जाओ।

सुनो!! वो जीत गए। 

मुझे मार डाला। 

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और टुकड़े कर दिए ...हिन्दुओ के, मुसलमानों के, देश के.. दिलो के।

और वो जीतते गए है। 

साल दर साल, इंच इंच, कतरा कतरा.. धर्म का नाम लेकर, जाति की बात करके, गौरव का नशा पिलाकर वो तुम्हे मदहोश करते गए। वो जीत गए। 

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सुनो!! वो जीत गए.. मगर मैं नही हारा। 

मैं यहीं हूँ.. इस मिट्टी में घुला हुआ। वो रोज तुम्हे एक नया नशा देते है, और नशा फटते ही मैं याद आता हूँ। 

मैं तुम्हारी जागती आंखों का दुःस्वप्न हूँ। तुम हुंकार कर मुझे नकारते हो, उस नकार में ही स्वीकारते हो।

तुम्हें यकीन ही नही होता कि मैं मर चुका हूँ, तो सहमकर फिर से गोलियां चलाते हो। बार बार कब्र खोदते हो, फिर लेटकर देखते हो। कब्र छोटी पड़ती है, और खोदते हो। 

थक जाते हो, आखिर हारकर  .. मेरी समाधि पर सर झुकाए खड़े हो जाते हो। 

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तो सुनो ,कान खोलकर। न तो तुम्हारी इज्जत से महात्मा बना था, न तुम्हारी इज्जत से कोई महात्मा बन सकता है। 

असल तो ये है, जिसे तुम्हारी इज्जत हासिल हो.. वो महात्मा हो ही नही सकता।

तो मोहन की ये बात कान खोल कर सुन लो। तुमको, और तुम्हारे बाप को पीले चावल भेजकर राजघाट नही बुलाता। 

श्रद्धा से भरी अंजुली न हो, तो श्रद्धांजली लेकर आना भी मत। मोहनदास करमचंद गांधी का नाम ...

तुम्हारी इज्जत का मोहताज नही है।

मनीष जी से आप यहां क्लिक करके भी मिल सकते हैं और यहां क्लिक करके भी--आपको हर बार मिलेगा कुछ ऐसा जो आपको सोचने को मजबूर ज़रुर करेगा....  उनकी पोस्ट बिना  या  सही गलत का फैसला आप पर ही  देगी।  

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Wednesday, January 3, 2024

पत्रकारों की मांगों के लिए सामने आया यूनिवर्सल प्रेस क्लब

चार जनवरी को बुलाई विशेष बैठक लुधियाना में 

डा. डी.पी. खोसला, हरि सिंह और संदीप शर्मा हुए सक्रिय 

लुधियाना: 3 जनवरी 2024: (कार्तिका कल्याणी सिंह//मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन)::

आज के इस आधुनिक युग में सर्वाधिक शोषण मीडिया वालों का ही हो रहा है। पत्रकार संगठन और मीडिया संस्थानों के संचालक स्वयं तो किसी राजनीतिक दल के नेता से जुड़े होते हैं और आम दूसरे पत्रकारों से कहते हैं कि सियासत से ऊपर उठ कर काम करो। किसी बड़े सनसनीखेज़ खुलासे पर जब किसी पत्रकार पर दबाव पड़ता है तो उसका साथ देने वाले लोग बहुत कम रह जाते हैं। 

 मीडिया की हालत बेहद दयनीय है। स्थिति यह है कि देश भर के सभी पत्रकारों को न कोई सुनिश्चित वेतन, न पेंशन और  ज़रूरत पड़ने पर न ही कोई मेडिकल सहायता। पंजाब में पत्रकारों को निशुल्क बस सफर का एलान कई मुख्यमंत्रियों ने किया लेकिन आज तक लागू नहीं हो सका। एक्रिडिशन  की सुविधा बहुत कम लोगों को ही मिल पाई। आयुर स्वास्थ्य बीमा सुविधा भी बहुत कम लोगों तक पहुंच पाई। समाज  के लिए दिन रात एक कर के काम करने वाले कलम के इन मज़दूरों के लिए जीवन के लिए आवश्यक सुविधाओं का अभी भी बहुत बड़ी संख्या में अभाव है। खतरे लगातार बढ़ते जा रहे हैं। ऐसे में यूनिवर्सल प्रेस क्लब ने मीडिया कर्मियों के लिए ज़ोरदार आवाज़ उठाई है। इस संबंध में मिली एक  जरूरी सूचना में बताया गया है कि इन मुद्दों और मांगों पर विशेष बैठक चार जनवरी को बाद दोपहर तीन बजे हो रही है। इस बैठक में  होगी पत्रकारों से संबंधित मुद्दों और समस्याओ की विस्तृत चर्चा बिना किसी भेदभाव के और बिना किसी लिहाज़ के। अच्छा हो कि अगर आप भी  पत्रकारिता से जुड़े हैं तो इस आवाज़ में अपनी आवाज़ को भी स्वयं पहुँच कर शामिल कीजिए। अगर आपके साथ कुछ बेइंसाफी हुई है तो क्लब आपका साथ देगा पूरी दृढ़ता के साथ। 

यूनिवर्सल प्रेस क्लब (रजि:) पंजाब की ओर से  सभी आदरणीय पत्रकारों, छायाकारो तथा प्रेस कैमरामेनो को सूचित किया जाता है कि प्रेस क्लब की जनरलबॉडी की मीटिंग 4 जनवरी 2024 दिन गुरुवार बाद दोपहर समय 3:00 बजे  नगर निगम ए जोन (कार्यालय नगर निगम कर्मचारी संघ) बहुमंजिला पार्किंग के पीछे रखी गई है आप सभी समय पर पहुंचने की कृपा करें और अपने अपने साथ पत्रकारों को भी साथ लेकर आए कम से कम दो-दो मेंबर तो अवश्य होने चाहिए। धन्यवाद। 

इन्हें के संघर्ष  को मार्गदर्शन देने वालों में डॉ. डी.पी. खोसला अध्यक्ष भी उपलब्ध रहेंगे। हरि सिंह महासचिव भी इस बैठक में विशेष एलान करेंगे और करवाएंगे। इसकी सफलता के लिए क्लब की सचिव मैडम संदीप शर्मा भी पूरी तरह से सक्रिय है। पी आर ओ रिंकू भी सबसे सम्पर्क रखेंगे। 

सम्पर्क के लिए नंबर डायल कर सकते हैं-7986656077

उम्मीद है यह संगठन पत्रकारों की बहुत सी मांगें मनवाने में सफल रहेगा।   

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