Saturday, July 17, 2021

JMI की VC प्रो. नजमा अख्तर दानिश के परिवार से मिलीं

Saturday 17 July 2021 at 5:29 PM

 शोक व्यक्त करने फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी के घर पहुंची 


नई दिल्ली
: 17 जुलाई 2021: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन):: 

हर संवेदनशील वर्ग दानिश सिद्दीकी साहिब के चले जाने से आहत है। हर तरफ शोक की लहर है। हर सच्चे कलमकार के मन में उदासी है। हालांकि कुछ  लोग जश्न भी मना रहे हैं लेकिन वक़्त उनका भी हिसाब रख रहा है। एक समय आएगा जब लोगों को इनके जश्न की खबरें बताएंगी कि ये लोग हत्यारों के साथ खड़े थे। हर वर्ग दानिश साहिब के परिवार के साथ संवेदना और शोक व्यक्त कर रहा है। 

जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) की कुलपति प्रो. नजमा अख्तर; अफगान सशस्त्र बलों और तालिबान के बीच संघर्ष को कवर करते हुए अफगानिस्तान में मारे गए जामिया के पूर्व छात्र एवं फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी के घर गईं। 

जामिया नगर स्थित उनके आवास पर उन्होंने दानिश के पिता प्रो. अख्तर सिद्दीकी और परिवार के अन्य सदस्यों से मुलाकात की। उनके साथ कुलसचिव और विश्वविद्यालय के अन्य वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद थे।


कुलपति ने प्रो. सिद्दीकी को सांत्वना दी और दानिश के बारे में उनसे लगभग 40 मिनट तक कई बातें कीं। उन्होंने दानिश को अपने पिता की तरह एक सच्चा फाइटर करार दिया, जिसे वह काफी लंबे समय से जानती हैं।

प्रो. अख्तर ने कहा कि दानिश ने सच्चाई को दुनिया के सामने लाने के लिए लगन से काम किया और हमेशा गलत के खिलाफ आवाज उठाई। उन्होंने कहा "दानिश का निधन न केवल उनके परिवार और जामिया बिरादरी के लिए बल्कि पूरे देश के लिए एक अपूरणीय क्षति है।"  

कुलपति ने प्रो. सिद्दीकी को बताया कि आने वाले मंगलवार को जामिया अपने विश्वविद्यालय परिसर में एक शोक सभा आयोजित करेगा| साथ ही उसी समय विश्वविद्यालय परिसर में दानिश के अनुकरणीय कार्यों की प्रदर्शनी भी लगाई जाएगी ताकि छात्र इससे प्रेरणा ले सकें।


दानिश साहिब यहीं हैं हमारे आसपास-हमारे दरम्यान

 लानत है उनकी मौत का जश्न मनाने वालों पर 


नयी दिल्ली
: 17 जुलाई 2021: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन+मित्र लोग)::

प्रेस क्लब आफ इण्डिया ने दानिश सिद्दीकी साहिब के याद में आज रात करीब 7:25 पर कैंडल मार्च किया है। उनकी चर्चा करनी ज़रूरी है शायद इसी बहाने उन लोगों की अंतरात्मा जाग उठे जो खुद को पत्रकार समझते  हैं लेकिन साडी उम्र भांड बने रहते हैं। पत्रकारिता की समझ उन्हें उम्र भर समझ नहीं आ पाती। काश ऐसे लोग दानिश साहिब की कुर्बानी के इस मौके पर अपनी डयूटी के प्रति सजग हो सकें। 

दुःखद है लेकिन सच है कि जब खुद को मीडिया का सरगर्म और बहुत महत्वपूर्ण हिस्सा समझने और कहने वाले बहुत से लोग अपने अपने राजनीतिक आकाओं की चमक दमक को दर्शाते हुए अपने अपने कैमरे और कलम   सेट करने में व्यस्त थे, उनके आगे पीछे घूम रहे थे उस समय भी दानिश सिद्दीकी एक गौरवशाली सच्चे मुस्लिम होने के के साथ साथ प्रतिबद्ध पत्रकार का फ़र्ज़ भी निभा रहे थे। 

अलग अलग मामलों  में अलग अलग जगहों पर अलग अलग वक़्तों में दानिश साहिब ने दिखाया कि अगर कलम और कैमरा पकड़ो तो उसकी लाज कैसे रखी जाती है। जान हथेली पर और हौंसला दिल व दिमाग में दानिश साहिब ने बहुत पहले सीख लिया था। दानिश साहिब ने 40 की उम्र तक पहुँचने से पहले ही बहुत कुछ ऐसा क्लिक किया जो दस्तावेज़ी की तरह है। आने वाले वक्तों में  और बढ़ जाएगी। 

उल्लेखनीय है कि पुलित्जर पुरस्कार पत्रकारिता के क्षेत्र का अमेरिका का सर्वोच्च पुरस्कार है। इसकी शुरुआत 1917 से हुई थी। 2021 के लिए भारतीय मूल की पत्रकार मेघा राजगोपालन को भी अंतरराष्ट्रीय रिपोटिंग के दिया जाएगा। दानिश सिद्दीकी साहिब को साल 2018 में  पुलित्जर पुरस्कार  से नवाजा गया था, ये अवॉर्ड उन्हें रोहिंग्या मामले में कवरेज के लिए मिला था। बहुत बड़ी कवरेज थी यह। 

गौरतलब है कि दानिश सिद्दीकी ने अपने करियर की शुरुआत एक टीवी जर्नलिस्ट के रूप में की थी, बाद में वह फोटो पत्रकार बन गए थे। आज भी बहुत से लोग मीडिया का कार्ड जेब में दाल कर और कैमरा उठा कर समझते हैं कि वे फोटोग्राफर बने हुए हैं लेकिन उन्हें कुछ भूलता है तो बस अपनी डयूटी। या फिर अपने अपने फ़र्ज़। अपने आकाओं की तरफ से होती आवभगत और सेवा सम्मान उन्हें सपनों में नहीं भूलता। 

बस यही फरक है दानिश साहिब ने हर वक़्त अपनी ड्यूटी याद रखी। जान तक कुर्बान कर दी और अमन हो गए। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर ने दानिश सिद्दीकी के निधन पर शोक जताया है। ठाकुर ने कहा कि वह अपने पीछे अपना शानदार काम छोड़ गए हैं। हकीकत भी यही है। 

उन्हें याद करते हुए, उन्हें श्रद्धा सुमन अर्पित करते हुए पुलित्जर पुरस्कार विजेता भारतीय फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी को श्रद्धांजलि देने के लिए प्रेस क्लब ऑफ इंडिया और जामिया मिलिया इस्लामिया में शनिवार को कैंडल लाइट मार्च निकाला गया। अन्य हमदर्द लोग भी इसमें पहुंचे। सब के मन में दर्द था। करीब 40 साल के सिद्दीकी की शुक्रवार को अफगानिस्तान के कंधार प्रांत में स्पिन बोल्डक जिले में अफगान बलों और तालिबान के बीच संघर्ष के दौरान मृत्यु हो गयी। वह कंधार के मौजूदा हालात की कवरेज कर रहे थे। बहुत से दुसरे मामलों की तरह यह भी उनका मिशन था। 

प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में कैंडल लाइट मार्च के दौरान वर्किंग न्यूज कैमरामैन एसोसिएशन (डब्ल्यूएनसीए) के अध्यक्ष एस. एन. सिन्हा ने कहा कि युद्ध, दंगों और लोगों की तकलीफें तस्वीरों के जरिए सभी तक पहुंचा कर सिद्दीकी अपने पेशे में शीर्ष पर पहुंचे थे। शीर्ष सभी की किस्मत में भी नहीं होता। हर किसी के जज़्बे में दानिश साहिब जैसा जूनून भी नहीं होता। एस. एन. सिन्हा ने कहा कि उन्होंने पूरे जुनून और समर्पण के साथ सभी तस्वीरें लीं, खबरों का कवरेज किया और हमेशा मुश्किल में फंसे लोगों पर ध्यान दिया। जो कुछ सिन्हा साहिब ने कहा इससे बड़ा समान शायद कोई न हो। उनके मित्र और उनके पुराने साथी भी आहत हैं इस शहादत से। जामिया मिलिया के पुराने छात्र मोहम्मद मेहरबान ने मास कम्युनिकेशन के छात्र सृजन चावला के साथ मिलकर विश्वविद्यालय के गेट नंबर 17 पर कैंडल लाइट मार्च का आयोजन किया जिसमें 500 से ज्यादा लोगों ने हिस्सा लिया।मोहम्मद मेहरबान ने कॉलेज में अपने सीनियर दानिश सिद्दीकी को याद किया। कभी कभी सीनियर लोग   जो किताबों में भी नहीं मिलता। 

दानिश साहिब को आर्थिक स्थितियों की भी पूरी समझ थी। देश कीध जा रहा है उन्हें मालुम था। सिद्दीकी ने अर्थशास्त्र विषय से स्नातक की पढ़ाई की थी। उन्होंने 2007 में जनसंचार विषय में स्नात्कोत्तर किया था। दानिश सिद्दीकी 2011 से समाचार एजेंसी रॉयटर्स के साथ बतौर फोटो पत्रकार काम कर रहे थे। उन्होंने अफगानिस्तान और ईरान में युद्ध, रोहिंग्या शरणार्थी संकट, हांगकांग में प्रदर्शन और नेपाल में भूकंप जैसी महत्वपूर्ण घटनाओं की तस्वीरें ली थीं। इन कहानियों का सिलसिला काफी लम्बा है। दानिश साहिब तो रुखसत हो गए लेकिन ु का काम लगातार अपनी मौजूदगी दर्शाता रहेगा। 

आखिर में लानत उन लोगों पर ज़रूरी है जो दानिश साहिब की मौत का जश्न मना रहे हैं। शर्म आनी चाहिए ऐसे बेशर्म लोगों को। इस तरह के जश्न मना कर वे अपनी औकात ही दिखा रहे हैं। बता रहे हैं की वे सचमुच साम्प्रदायिकता की ज़हर से भरे हुए खतरनाक लोग हैं। इन लोगों को याद रखना कि  रहेंगे रंग बदल कर रूप बदल कर।  किसी न किसी के हाथ में कोई न कोई कैमरा  इन लोगों को डराता भी रहेगा और भी  बेनकाब भी करता रहेगा।  दानिश साहिब यहीं हैं हमारे आसपास। हमारे दरम्यान। 

जामिया ने दानिश सिद्दीकी की दुखद मौत पर शोक व्यक्त किया

अब पत्रकार कमेंटेटर बन गए हैं-डा. सिमरन सिद्धू

Saturday 17th July 2021 at 1:57 PM

 जीजीएन खालसा कालेज के वेबिनार में हुई बहुत ही अर्थपूर्ण बातें  

लुधियाना:16 जुलाई 2021: (कार्तिका सिंह//मीडिया स्क्रीन Online)::

इसे बढ़ा कर के देखने के लिए इस पर क्लिक करें 
गुरु नानक खालसा कॉलेज, गुजरांवाला, पत्रकारिता विभाग, लुधियाना ने "भारतीय पत्रकारिता:मुद्दे और चुनौतियां" पर एक दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया। प्रो. जसमीत कौर, पी.जी. पत्रकारिता विभाग द्वारा वेबिनार शुरू किया गया था और विभाग के समन्वयक डॉ. सुषमिंदरजीत कौर ने इस वेबिनार के विषय और इसके महत्व से दर्शकों को अवगत कराने के लिए अपने दूरदर्शी शब्दों को बहुत ही खूबसूरती से उपयोग किया। 

गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के पूर्व कुलपति डॉ एस. पी. सिंह जो गुजरांवाला खालसा शिक्षा परिषद के अध्यक्ष भी हैं ने विशिष्ट अतिथियों, प्रख्यात वक्ताओं और ज्ञानवर्धक श्रोताओं का स्वागत किया। उन्होंने अपने स्वागत भाषण में महामारी के इस कठिन समय में ऐसे वेबिनार आयोजित करने में विभाग के प्रयासों की सराहना की। अपने बहुमूल्य विचार सभी  सांझे करते हुए उन्होंने कहा कि आज का परिदृश्य ऐसा है कि न केवल भारतीय पत्रकारिता बल्कि दुनिया भर की पत्रकारिता भी विभिन्न मुद्दों और चुनौतियों का सामना कर रही है। 

उन्होंने आगे कहा कि पत्रकारिता का क्षेत्र सूचना को 'संक्रमित' करने के बजाय तथ्यात्मक सूचना के प्रसार के अपने मूल मार्ग से भटक गया है। वेबिनार का नेतृत्व पत्रकारिता और जनसंचार विभाग, दोआबा कॉलेज, जालंधर की प्रमुख डॉ. सिमरन सिद्धू  ने बहुत ही समझदारीऔर दूरदर्शिता पूर्ण बातें कह कर किया और बहुत ही अर्थपूर्ण शब्दों के साथ बहुत ही काम की बातें कहीं।  

उन्होंने कहा कि पत्रकार कमेंटेटर बन गए हैं क्योंकि वे केवल 'दृश्य' की बहुत गहराई से व्याख्या करते हैं।  उसी व्याख्या में डॉ. अ. स. नारंग प्रोफेसर राजनीति विज्ञान और मानवाधिकार शिक्षा के पूर्व समन्वयक, इग्नू ने पत्रकारों के सामान्य दृष्टिकोण पर जोर दिया क्योंकि "पत्रकारों के लिए यह कहना आसान नहीं है कि क्या कहना है और क्या नहीं कहना है।" 

कारोबारी एप्रोच लगातार बढ़ने से सप्लिमेंटों का जो दबाव पत्रकारों और समाज पर बढ़ा है अक्सर उसकी चर्चा कम होती है। सभी अख़बारों को विज्ञापन चाहिएं। कोई भी उनसे नाराज़गी मौल नहीं लेना चाहता। इस लिए अक्सर इस पर ख़ामोशी छ जाती है। लेकिन कटु सत्य है की इसने खबर की निष्पक्षता और तलाश को प्रभावित किया है। किसी भी ऐसे इन्सान का पत्रकार बनना मुश्किल हो गया है जो विज्ञापन नहीं जुटा सकता। ऐसी निराशाजनक स्थिति के बावजूद आशाभरी बातें की मैडम चित्लीन सेठी ने। उन्होंने तकनीकी विकास का फायदा उठाने की सलाह दी। यह बहुत ही नई उम्मीद है। 

श्रीमती चितलीन कौर सेठी, एसोसिएट एडिटर, द प्रिंट ने टिप्पणी की कि जिनके हाथ में मोबाइल फोन है, वे वास्तव में एक संभावित पत्रकार हैं। युवाओं से ऐसी उम्मीद को सुसव्ग्तं कहना बनता है। आम नागरिकों को यह बात एक नहीं हिम्मत देगी। कुर्प्ष्ण के खिलाफ उनका हौंसला बढ़ाएगी। 

इसी बीच मिस्टर हरप्रीत सिंह, टीवी एंकर, द हरप्रीत सिंह शो, कनाडा ने बताया कि पत्रकार बनना चाहने वालों की ऊर्जा और प्रतिभा का उपयोग धीरे-धीरे किया जा सकता है। कॉलेज के प्राचार्य डॉ. अरविंदर सिंह ने सभी गणमान्य वक्ताओं और दर्शकों का धन्यवाद किया. उन्होंने कहा कि सटीक जानकारी के प्रसार में पत्रकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका पर ज़ोर देने के लिए विभाग ने हमेशा अथक और नए प्रयास किये हैं। 

Friday, July 16, 2021

जामिया ने दानिश सिद्दीकी की दुखद मौत पर शोक व्यक्त किया

 16 जुलाई, 2021

फोटो पत्रकार दानिश जामिया के पूर्व छात्र थे और पुरस्कार विजेता भी
नई दिल्ली: 16 जुलाई 2021: (मीडिया स्क्रीन Online)::
जामिया मिल्लिया इस्लामिया (जेएमआई) ने कंधार के स्पिन बोल्डक जिले में हिंसा में मारे गए रॉयटर्स के फोटो पत्रकार दानिश सिद्दीकी के दुखद और असामयिक निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया। इस खबर से जामिया एजेके मास कम्युनिकेशन रिसर्च सेंटर (एमसीआरसी) में शोक की लहर दौड़ गई, जहां दानिश ने 2005-2007 तक पढ़ाई की और मास कम्युनिकेशन में परास्नातक किया।
जामिया की कुलपति ने इसे पत्रकारिता और जामिया बिरादरी के लिए एक बड़ी क्षति बताया. इस दुखद घटना की खबर मिलते ही उन्होंने दानिश के पिता प्रो. अख्तर सिद्दीकी से बात की। उन्होंने बताया कि दानिश ने दो दिन पहले उन से बात की थी और अफगानिस्तान में वह जो काम कर रहा था, उसके बारे में चर्चा की थी।
जामिया से सेवानिवृत्त प्रो. अख्तर सिद्दीकी शिक्षा संकाय के डीन थे। वह राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परिषद (एनसीटीई) के निदेशक भी थे।
2018 में एमसीआरसी ने दानिश को विशिष्ट पूर्व छात्र पुरस्कार से सम्मानित किया था। प्रोफेसर और कार्यवाहक निदेशक शोहिनी घोष कहती हैं: “यह एमसीआरसी के जीवन के सबसे दुखद दिनों में से एक है। दानिश हमारे हॉल ऑफ फ़ेम में सबसे चमकीले सितारों में से एक थे और एक सक्रिय पूर्व छात्र थे जो छात्रों के साथ अपने काम और अनुभवों को साझा करने के लिए अपने अल्मा मेटर में लौटते रहे। हम उनकी कमी पूरी नहीं क्र सकते लेकिन उनकी याद को जिंदा रखने के लिए प्रतिबद्ध हैं।”
दानिश ने अपने काम के लिए 2018 में पुलित्जर पुरस्कार सहित सात सदस्यीय रॉयटर्स टीम के हिस्से के रूप में अपने काम के लिए कई पुरस्कार जीते, जिसने म्यांमार के अल्पसंख्यक रोहिंग्या समुदाय द्वारा सामना की गई हिंसा और अगस्त 2017 से बांग्लादेश में उनके सामूहिक पलायन का दस्तावेजीकरण किया। एक शरणार्थी महिला को बंगाल की खाड़ी के तट पर अपने घुटनों के बल डूबते हुए, थका हुआ और उदास दिखाया गया है। कुछ ही दूरी पर, पुरुषों का एक समूह अपने साथ एक छोटी नाव में अपने साथ लाए गए सामानों को उतार देता है, जब वे म्यांमार में अपने घरों से सुरक्षा के लिए बांग्लादेश गए थे इस फोटो के लिए उन्हें पुलित्जर दिया गया था।
एमसीआरसी के छात्रों के साथ उनकी आखिरी बातचीत 26 अप्रैल, 2021 को हुई थी, जब सोहेल अकबर ने उन्हें कन्वर्जेंट जर्नलिज्म के छात्रों से बात करने के लिए आमंत्रित किया था। सोहेल अकबर याद करते हैं, "कोविड-19 दूसरे उछाल के घातक चरम पर था और दानिश बहुत व्यस्त था" लेकिन हमेशा की तरह, उन्होंने एमसीआरसी के छात्रों के लिए समय निकाला।
एक फोटो जर्नलिस्ट के रूप में, दानिश ने एशिया, मध्य पूर्व और यूरोप में कई महत्वपूर्ण कहानियों को कवर किया है। उनके कुछ कार्यों में अफगानिस्तान और इराक में युद्ध, रोहिंग्या शरणार्थियों का संकट, हांगकांग विरोध, नेपाल भूकंप, उत्तर कोरिया में सामूहिक खेल और स्विट्जरलैंड में शरण चाहने वालों की रहने की स्थिति शामिल है। उन्होंने इंग्लैंड में धर्मान्तरित मुस्लिमों पर एक फोटो श्रृंखला भी तैयार की है। उनका काम व्यापक रूप से पत्रिकाओं, समाचार पत्रों, स्लाइडशो और दीर्घाओं में प्रकाशित हुआ है - जिसमें नेशनल ज्योग्राफिक पत्रिका, न्यूयॉर्क टाइम्स, द गार्जियन, द वाशिंगटन पोस्ट, वॉल स्ट्रीट जर्नल, टाइम मैगज़ीन, फोर्ब्स, न्यूज़वीक, एनपीआर, बीबीसी, सीएनएन शामिल हैं। अल जज़ीरा, साउथ चाइना मॉर्निंग पोस्ट, द स्ट्रेट्स टाइम्स, बैंकॉक पोस्ट, सिडनी मॉर्निंग हेराल्ड, द एलए टाइम्स, बोस्टन ग्लोब, द ग्लोब एंड मेल, ले फिगारो, ले मोंडे, डेर स्पीगल, स्टर्न, बर्लिनर ज़ितुंग, द इंडिपेंडेंट, द टेलीग्राफ , गल्फ न्यूज, लिबरेशन और कई अन्य प्रकाशन शामिल हैं।
जनसंपर्क कार्यालय
जामिया मिल्लिया इस्लामिया

Wednesday, July 7, 2021

न्‍यूजऑनएयर रेडियो लाइव-स्ट्रीम ग्‍लोबल रैंकिंग

 07-जुलाई-2021 17:16 IST

जर्मनी और कुवैत ने शीर्ष 10 में अपनी जगह बनाई 

एआईआर न्‍यूज 24x7 अब एक पायदान ऊपर

Courtesy Photo
दुनिया के शीर्ष देशों (भारत को छोड़कर), जहां ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर ऑल इंडिया रेडियो लाइव-स्ट्रीम सबसे लोकप्रिय हैं, की नवीनतम रैंकिंग में फिजी 5वें स्थान से ऊपर चढ़कर दूसरे पायदान पर पहुंच गया है, जबकि सऊदी अरब ने शीर्ष 10 में अपनी वापसी कर ली है। कुवैत और जर्मनी ने शीर्ष 10 में अपनी जगह बना ली है, जबकि फ्रांस और न्यूजीलैंड अब शीर्ष 10 में नहीं हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका अब भी नंबर 1 बना हुआ है।

एक महत्वपूर्ण उपलब्धि के तहत ऑल इंडिया रेडियो की तेलुगू और तमिल लाइव-स्ट्रीम सेवाएं संयुक्त राज्य अमेरिका में लोकप्रिय हैं, जबकि एआईआर पंजाबी सेवा ब्रिटेन में लोकप्रिय है।

विश्व स्तर पर (भारत को छोड़कर) शीर्ष एआईआर स्ट्रीम की रैंकिंग में आए बड़े बदलावों के तहत एआईआर न्‍यूज 24x7 सातवें पायदान से एक स्‍थान ऊपर चढ़कर छठे पायदान पर पहुंच गई है, जबकि एआईआर तमिल छठे पायदान से काफी नीचे खिसक कर 10वें पायदान पर आ गई है।

आकाशवाणी (ऑल इंडिया रेडियो) की 240 से भी अधिक रेडियो सेवाओं का ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर सीधा प्रसारण (लाइव-स्ट्रीम) किया जाता है, जो प्रसार भारती का आधिकारिक एप है। ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर उपलब्‍ध आकाशवाणी की इन स्ट्रीम के श्रोतागण बड़ी संख्या में हैं जो न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में 85 से भी अधिक देशों में और विश्‍व भर के 8000 शहरों में भी हैं।

यहां भारत के अलावा उन शीर्ष देशों की भी एक झलक पेश की गई है, जहां ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर एआईआर लाइव-स्‍ट्रीम सबसे लोकप्रिय हैं; दुनिया के बाकी हिस्सों में ‘न्यूजऑनएयर एप’ पर उपलब्‍ध आकाशवाणी की शीर्ष स्ट्रीम की भी एक झलक पेश की गई है। आप इसका देश-वार विवरण भी देख सकते हैं। ये समस्‍त रैंकिंग 16 जून से लेकर 30 जून, 2021 तक के पाक्षिक आंकड़ों पर आधारित हैं। इस डेटा में भारत शामिल नहीं है।

शीर्ष रेडियो स्‍ट्रीम की ग्‍लोबल रैंकिंग देखने के लिए अंग्रेजी का अनुलग्‍नक यहां क्लिक करें