Sunday, November 22, 2020

भाजपा महिला मोर्चा लुधियाना देगा सीपी को ज्ञापन

 जिला अध्यक्ष मनिंदर कौर घुम्मन करेंगी अगवानी 

प्रिय  बन्धुवर,

                                सभी मीडिया साथियों को नमस्कार !

       भाजपा महिला मोर्चा लुधियाना की जिला अध्यक्ष मनिंदर कौर घुम्मन के नेतृत्व में  एक मांग-पत्र लुधियाना के सी.पी.साहब को 23 नवम्बर 2020 दिन सोमवार दोपहर 12  बजे दिया जायेगा ! 

आप सब मीडिया साथियो से अनुरोध है की इस कार्यक्रम को कवरेज करने की कृपा करें।

          धन्यवाद ! 

                                                                                              दिनांक:-- 23 नवम्बर 2020 , समय :--दोपहर 12  बजे                                                            स्थान :-- सी पी दफ्तर ,फ़िरोज़पुर रोड,लुधियाना 

 * डॉ.सतीश कुमार  dr.skumar30@rediffmail.com 

 ☎ 9815413363 ,9815999909

Tuesday, November 17, 2020

जंग के खिलाफ अभियान की कहानी बता रहे हैं डा.अरुण मित्रा

 जंग की भयानक तस्वीर को साहिर साहिब ने भी दिखाया 

लुधियाना
: 17 नवंबर 2020: (कार्तिका सिंह//मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन)::
साहिर लुधियानवी साहिब अपनी लम्बी और संगीतमय काव्य रचना "परछाइयां" में युद्ध के पागलपन का ऐसा भयावह चित्र खींचते हैं की पढ़ते पढ़ते आँखों में आंसू आ जाते हैं। वह कहते हैं:
उस शाम मुझे मालूम हुआ, जब भाई जंग में काम आये
सरमाए के कहबाख़ाने में बहनों की जवानी बिकती है
सूरज के लहू में लिथड़ी हुई वह शाम है अब तक याद मुझे
चाहत के सुनहरे ख्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझे

इस  नज़्म के आखिर  साहिब कहते हैं:
हमारा खून अमानत है नस्ले-नौ के लिए,
हमारे खून पे लश्कर न पल सकेंगे कभी॥

कहो कि आज भी हम सब अगर खामोश रहे,
तो इस दमकते हुए खाकदाँ की खैर नहीं।

जुनूँ की ढाली हुई ऐटमी बलाओं से,
ज़मीं की खैर नहीं आसमाँ की खैर नहीं॥

गुज़श्ता जंग में घर ही जले मगर इस बार,
अजब नहीं कि ये तनहाइयाँ भी जल जायें।

गुज़श्ता जंग में पैकर जले मगर इस बार,
अजब नहीं कि ये परछाइयाँ भी जल जायें॥

डाक्टर अरुण मित्रा और उनके सक्रिय सहयोगी साथी इस नज़्म के मकसद को बहुत पहले ही अपना चुके थे। जवानी की उम्र में जब लोग मस्ती करते हैं उस उम्र में यह लोग जंग के खिलाफ जन चेतना जगाने लगे थे। जब देश और दुनिया के बड़े बड़े असरदायिक लोग जंग का जनून भड़काने में लगे हों और जंग की ही सियासत हो रही हो उस समय जंग के खिलाफ बात करना आंधियों में दिया जलाने जैसा ही होता है लेकिन इन लोगों ने बहुत बार ऐसी कोशिशें की। अब उन कोशिशों का सुखद परिणाम सामने आ रहा है। उसी परिणाम की चर्चा करती है यह वीडियो जो डाक्टर अरुण मित्रा से हुई एक भेंट पर आधारित है। डाक्टर अरुण मित्रा से इस भेंट की प्रेरणा देने वाले वाम पत्रकार और कहानीकार एम् एस भाटिया डाक्टर मित्रा की ऐसी कोशिशों पर एक पुस्तक भी तैयार करवा रहे हैं। आप इस वीडियो को देखिये और इस पर अपने विचार भी बताएं। यह वीडियो Dr Arun Mitra on War and Nuclear Treaty इस नाम से यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। --कार्तिका सिंह 

Monday, November 16, 2020

'उसने गांधी को क्यों मारा' का लोकार्पण यादगारी रहा

 साज़िशी हवाओं के खिलाफ जनचेतना जगाता एक सार्थक प्रयास  


नई दिल्ली: 5 अक्टूबर 2020: (कार्तिका सिंह//मीडिया स्क्रीन Online)::
महात्मा गांधी के खिलाफ निंदा प्रचार और अन्य साज़िशों का सिलसिला लगातार जारी रहा है। महात्मा गांधी की हत्या को जायज़ ठहराने  अभियान भी चलते रहे।  गांधी को लोगों के दिल दिमाग से निकला नहीं जा सका। गांधी लगातार प्रासंगिक बने रहे। उनकी आत्म कथा-सत्य के साथ मेरे प्रयोग अंग्रेजी में बिकती रही और हिंदी में भी। लोगों ने छह पुस्तकों के सेट की सौगात देना बंद नहीं किया अब गाँधी जी पर नई किताब आई है-"उसने गाँधी को क्यूं मारा।" इस पुस्तक पर एक विशेष चर्चा भी हुई। हम उसका साराँश राजकमल प्रकाशन से साभार यहां भी दे रहे हैं। गांधी पर चर्चा आज के असहनशील युग में फिर एक बहुत बड़ी ज़रूरत भी है। सत्य और सहनशीलता से दूर हो रहे समाज को गांधी एक बार फिर से राह दिखा सकते हैं। गांधी की पुस्तकों को सम्मान सहित पढ़ा जाया या फिर उनके बुतों पर कालख पोती जाए इससे फर्क गांधी को नहीं इस समाज को ही पढ़ने वाला है। गाँधी की शख्सियत इन सभी बातों से बहुत ऊंची उठ चुकी है। गांधी जी की हत्या के बाद उन पर जितने भी हमले हुए हैं उनसे गांधी जी की वैचारिक प्रतिमा और मज़बूत हो कर उभरी है।  प्रस्तुत है उस रिपोर्ट का सारांश:
2 अक्टूबर, 2020 को महात्मा गांधी की 151वीं जयंती के अवसर पर चर्चित कवि-इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय की पुस्तक ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ का लोकार्पण एवं उस पर बातचीत 'राजकमल' के फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रम में हुई। उल्लेखनीय है कि यह कार्यक्रम बहुत रोचक रहा। 

कार्यक्रम में चिन्तक-इतिहासकार सुधीर चन्द्र, इतिहासकार मृदुला मुखर्जी, राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा, हिन्दी के महत्त्वपूर्ण लेखक जयप्रकाश कर्दम और अशोक कुमार पांडेय शामिल रहे। किताब पर बात करते हुए मनोज कुमार झा ने कहा कि हिन्दी पाठक वर्ग के पास एक ऐसी किताब पहुँच रही है जो गांधी जी की प्रतिमा, चश्मा, पहनावे और उनके प्रतीकों से ऊपर उठकर कुछ बुनियादी सवालों पर है। आज के दौर में गांधी की प्रासंगिकता पर बात करते हुए जयप्रकाश कर्दम ने कहा कि गांधी का होना इतिहास की बहुत बड़ी घटना है। वह एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक ऐसा संस्थान हैं जो प्रेम, सद्भाव और अहिंसा के मूल्यों पर खड़ा है। यह प्रेम, सद्भाव और अहिंसा सिर्फ़ मूल्य ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र का आधार हैं।

अशोक कुमार पांडेय ने अपनी किताब के बारे में बताते हुए कहा कि मैंने ऐसे विषय पर किताब लिखी है जिस पर बहुत लोग लिख चुके हैं। मैंने आर्काइव्स, ख़ास तौर पर 'कपूर कमीशन' की रिपोर्ट में गहरे जाकर चीज़ों को सामने लाने की कोशिश की है। बातचीत को आगे बढ़ाते हुए सुधीर चन्द्र ने विचार व्यक्त किया कि आज हमें इस आधुनिक युग के ि‍ख़लाफ़ एक असहयोग आन्दोलन की ज़रूरत है। गांधी ने कहा था 'न' कहना सीखो, आज फिर हमें 'न' कहना सीखना होगा। अगर गांधी का कोई भी महत्त्व है हमारे जीवन में तो हमें यह सोचना होगा कि अगर हम इस महत्त्व की बातें करते रहें तो क्या होना है। अशोक कुमार पांडेय की किताब ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की ज़रूरत है और हमें यह सवाल भी उठाना है कि किस-किसने गांधी को मारा? और जब गांधी के मारे जाने की बात होती है, तब हमें यह भी याद रखना होगा कि गांधी किसी के मारे नहीं मरते हैं। गांधी तब तक जीवित रहेंगे जब तक यह सभ्यता है। इस सभ्यता के लिए गांधी के पास एक ऐसा सन्देश है,

जिस पर अमल करके मानव अपने आपको विकसित कर सकता है। कार्यक्रम का संचालन ऐश्वर्या ठाकुर ने किया।

ज्ञात हो कि इसी दिन एक अन्य कार्यक्रम जो ‘कलिंगा लिटरेरी फ़ेस्टिवल’ में आयोजित था, वहाँ भी 'उसने गांधी को क्यों मारा' पुस्तक पर बातचीत का आयोजन किया गया। अशोक कुमार पांडेय के साथ महत्त्वपूर्ण कथाकार वंदना राग ने पुस्तक पर बातचीत की। वंदना राग ने पुस्तक से कुछ अंशों का पाठ भी किया जो काफ़ी प्रभावशाली रहा।   

Sunday, November 15, 2020

केबीसी में मनुस्मृति दहन पर प्रश्न से मचा बवाल

15th November 2020 at 9:20 AM

 राम पुनियानी कर रहे हैं उस दिन के बवाल की चर्चा 

‘कौन बनेगा करोड़पति’ (केबीसी) सबसे लोकप्रिय टीवी कार्यक्रमों में से एक है।  इसमें भाग लेने वालों को भारी भरकम धनराशि पुरस्कार के रूप में प्राप्त होती है। हाल में कार्यक्रम के ‘कर्मवीर’ नामक एक विशेष एपीसोड में अमिताभ बच्चन ने पहले से तैयार स्क्रिप्ट के आधार पर यह प्रश्न पूछा कि उस पुस्तक का क्या नाम है जिसे डॉ अम्बेडकर ने जलाया था। सही उत्तर था ‘मनुस्मृति।’   उस दिन के कार्यक्रम के अतिथि थे वेजवाड़ा विल्सन। जो जानेमाने जाति-विरोधी कार्यकर्ता हैं और लंबे समय से हाथ से मैला साफ करने की घृणित प्रथा के विरूद्ध आंदोलनरत हैं। 

इस प्रश्न पर दर्शकों के एक हिस्से की त्वरित प्रतिक्रिया हुई। कुछ लोगों ने प्रसन्नता जाहिर की कि इस प्रश्न से उन्हें उस पुस्तक के बारे में जानकारी मिली जो भयावह जाति व्यवस्था को औचित्यपूर्ण ठहराती है। परंतु अनेक लोग इस प्रश्न से आक्रोशित हो गए। इन लोगों ने इसे हिन्दू धर्म का अपमान और हिन्दू समुदाय को विभाजित करने का प्रयास निरूपित किया। यह ट्वीट उनके विचारों को सारगर्भित ढ़ंग से प्रतिबिंबित करती है “ऐसा लगता है कि ये लोग किसी भी तरह बीआर अम्बेडकर को हिन्दू विरोधी बताना चाहते हैं जबकि यह सही नहीं है। ये लोग हिन्दू समाज को जाति के आधार पर विभाजित करने पर उतारू हैं....‘‘

लेखक डा. राम पुनियानी 
केबीसी के मेजबान और कार्यक्रम से जुड़े अन्य व्यक्तियों के विरूद्ध हिन्दुओं की भावनाएं आहत करने का आरोप लगाते हुए एक एफआईआर दर्ज करवाई गई है। हिन्दू राष्ट्रवादी विमर्श यह साबित करना चाहता है कि अम्बेडकर के विचार उससे मिलते हैं। ये लोग एक ओर अम्बेडकर का महिमामंडन करते हैं तो दूसरी ओर दलितों की समानता के लिए उनके संघर्ष और उनके विचारों को नकारना चाहते हैं। आरएसएस और उसके संगी-साथी बड़े पैमाने पर अंबेडकर जयंती मनाते हैं। सन् 2016 में ऐसे ही एक कार्यक्रम में बोलते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था कि वे अंबेडकर भक्त हैं। उन्होंने अंबेडकर की तुलना मार्टिन लूथर किंग जूनियर से की थी। इन्हीं मोदीजी ने एक पुस्तक लिखी थी जिसका शीर्षक था ‘कर्मयोग’. इस पुस्तक में कहा गया था कि वाल्मिीकियों द्वारा हाथ से मैला साफ करना, उनके (वाल्मिीकियों) लिए एक आध्यात्मिक अनुभव है। यह दिलचस्प है कि इस कार्यक्रम के अतिथि डॉ बेजवाड़ा विल्सन, हाथ से मैला साफ करने की अमानवीय प्रथा के विरूद्ध कई दशकों से संघर्ष कर रहे हैं।

यह भी दिलचस्प है कि जो लोग मनुस्मृति दहन की चर्चा मात्र को हिन्दू भावनाओं को ठेस पहुंचाना निरूपित करते हैं वे ही पैगम्बर मोहम्मद का अपमान करने वाले कार्टूनों के प्रकाशन को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बताते हैं। इन कार्टूनों के प्रकाशन के बाद हुए त्रासद घटनाक्रम में फ्रांस में चार लोगों की जान चली गई।  इन लोगों की हत्या करने वाले इसलिए उद्धेलित थे क्योंकि कार्टूनों के प्रकाशन से उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंची थी। 

अंबेडकर एक अत्यंत प्रतिभाशाली और उच्च दर्जे के बुद्धिजीवी थे। उन्होंने पूरे देश में जाति और अछूत प्रथा के खिलाफ लंबा संघर्ष किया और हिन्दू धर्म की खुलकर आलोचना की. वे हिन्दू धर्म की ब्राम्हणवादी व्याख्या के कड़े विरोधी थे। वे कबीर को अपना गुरू मानते थे। उनके जीवन और लेखन से हमें पता चलता है कि वे भक्ति परंपरा के पैरोकार थे परंतु उनका मानना था कि हिन्दू धर्म, ब्राम्हणवाद के चंगुल में फंसा हुआ है। वे हिन्दू धर्म को ब्राम्हणवादी धर्मशास्त्र कहते थे। उन्होंने दलितों को पीने के पानी के स्त्रोतों तक पहुंच दिलवाने (चावदार तालाब) और अछूतों को मंदिर में प्रवेष का अधिकार सुलभ करवाने (कालाराम मंदिर) के लिए आंदोलन चलाए थे। वे मनुस्मृति को ब्राम्हणवादी सोच की पैरोकार और प्रतीक मानते थे और इसलिए उन्होंने इस पुस्तक, जिसे हिन्दुओं का एक तबका पवित्र ग्रंथ मानता है, का सार्वजनिक रूप से दहन किया था। आज कुछ लोग यह तर्क देते हैं कि अब मनुस्मृति की चर्चा व्यर्थ है क्योंकि इस पुस्तक को न तो कोई पढ़ता है और ना ही उसमें कही गई बातों को मानता है। यह सही है कि इस संस्कृत पुस्तक को अब शायद ही कोई पढ़ता हो। परंतु यह भी सही है कि इसमें वर्णित मूल्यों में आज भी हिन्दुओं के एक बड़े तबके की आस्था है। गीता प्रेस पर अपनी पुस्तक में अक्षय मुकुल बताते हैं कि गोरखपुर स्थित इस प्रकाशन का हिन्दू समाज की मानसिकता और दृष्टिकोण गढ़ने में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गीता प्रेस के स्टाल देश के अनेक छोटे-बड़े रेलवे स्टेशनों पर हैं और इनमें इस प्रकाशन की पुस्तकें, जिनकी कीमत बहुत कम होती है, उपलब्ध रहती हैं। गीता प्रेस की पुस्तकें मनुस्मृति के मूल्यों का ही प्रसार करती हैं। महिलाओं के कर्तव्यों पर गीता प्रेस की एक पुस्तक को पढ़कर मुझे बहुत धक्का लगा क्योंकि इसमें मनुस्मृति के मूल्यों को ही आसानी से समझ आने वाली भाषा में वर्णित किया गया था। मुझे यह देखकर और धक्का लगा कि इस पुस्तक का मूल्य मात्र पांच रूपये था और इसकी मुद्रित प्रतियों की संख्या पांच लाख से अधिक थी। 

ऐसा दावा किया जाता है कि अंबेडकर हिन्दू-विरोधी थे. इस सिलसिले में हमें उनके स्वयं के शब्दों पर ध्यान देना चाहिए। उन्होंने कहा था “हिन्दू धर्म, जाति की अवधारणा पर केन्द्रित कुछ सतही सामाजिक, राजनैतिक और स्वच्छता संबंधी नियमों के संकलन के अलावा कुछ नहीं है।” अम्बेडकर का यह कथन तो प्रसिद्ध है ही कि “मैं एक हिन्दू पैदा हुआ था परंतु एक हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं।” हिन्दू राष्ट्र, जिसकी स्थापना हमारी वर्तमान सरकार का लक्ष्य है, के बारे में भी अंबेडकर के विचार स्पष्ट थे। देश के विभाजन पर अपनी पुस्तक में उन्होंने लिखा था, “अगर हिन्दू राज वास्तविकता बनता है तो वह इस देश के लिए सबसे बड़ी विपत्ति होगी। हिन्दू चाहे जो कहें, हिन्दू धर्म स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लिए बहुत बड़ा खतरा है और इस कारण वह प्रजातंत्र से असंगत है। हिन्दू राज को किसी भी कीमत पर रोका जाना चाहिए।”

इन सब मुद्दों पर अंबेडकर के इतने स्पष्ट विचारों के बाद भी नरेन्द्र मोदी और उनके साथी एक ओर अंबेडकर का महिमामंडन कर रहे हैं तो दूसरी ओर उनकी विचारधारा और उनकी सोच को समाज से बहिष्कृत करने के लिए हर संभव यत्न कर रहे हैं। मोदी कैम्प से अक्सर भारतीय संविधान के विरोध में आवाजें उठती रहती हैं। वे चाहते हैं कि इस संविधान के स्थान पर एक नया संविधान बनाया जाए। दलित समुदाय में घुसपैठ करने के लिए वे हर संभव रणनीति अपनाते रहे हैं। जहां अंबेडकर जाति के उन्मूलन के हामी थे वहीं संघ परिवार सामाजिक समरसता मंचों के जरिए यह प्रचार करता है कि जाति व्यवस्था ही हिन्दू धर्म की ताकत है और यह भी कि सभी जातियां बराबर हैं।  दलितों को हिन्दुत्व की विचारधारा से जोड़ने के लिए सोशल इंजीनियरिंग की जा रही है। कई कुटिल तरीकों से दलितों को हिन्दू राष्ट्रवादी राजनीति का प्यादा बना दिया गया है। कुछ दलित नेताओं को सत्ता का लालच देकर हिन्दू राष्ट्रवादी कैम्प में शामिल कर लिया गया है। हाल में चिराग पासवान ने कहा था कि वे मोदी के हनुमान हैं। 

अंबेडकर के वैचारिक और सामाजिक संघर्षों से प्रेरणा लेकर दलित नेताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक हिस्सा दलितों की गरिमा और उनकी सामाजिक समानता के लिए संघर्ष कर रहा है। समस्या यह है कि ऐसे नेताओं / कार्यकर्ताओं की संख्या बहुत कम है। इसके अतिरिक्त, उनमें परस्पर विवाद और बिखराव हैं। अगर इन समस्याओं पर काबू पाया जा सके तो बाबासाहेब के उन सपनों को साकार करने में हमें मदद मिलेगी जिन्हें साकार करने के लिए उन्होंने मनुस्मृति का दहन किया था।   (11 नवंबर 2020)

(अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया) (लेखक आईआईटी मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं। )

Tuesday, November 3, 2020

4 को अकालीदल करेगा मंत्री भारतभूषण आशु का घेराव

 बिक्रमजीत सिंह मजीठिया के नेतृत्व में होगा घेराव 

लुधियाना: 3 नवंबर 2020: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन)::

फाईल फोटो 
भाजपा का साथ छोड़ने के  बाद अकालीदल अधिक सक्रिय हो गया है। इसी सक्रियता को जारी रखते हुए अकाली दाल ने कल 4 नवंबर 2020 को सुबह 11:30 बजे पंजाब में कांग्रेस सरकार के सक्रिय मंत्री भारत भूषण आशु के घर का घेराव करना है। यह कदम राशन घोटाले को लेकर उठाया जा रहा है। 

अकाली दल के इस एक्शन की सारी बागडोर वरिष्ठ अकाली नेता गुरदीप सिंह गोशा के हाथ में दी गई है जबकि एक्शन का नेतृत्व करेंगे वरिष्ठ अकाली लीडर बिक्रम सिंह मजीठिया। 

इसी बीच गढ़शंकर में कांग्रेस पार्टी की नेत्री निमिषा मेहता कह चुकी हैं कि यदि अकाली दल सचमुच कृषि बिलों का विरोधी होता तो भाजपा नेताओं का घेराव कर रहा होता। 

इस अकाली घेराव और धरने के संबंध में किसी पत्रकार ने कोई जानकारी लेनी हो तो इस एक्शन के इंचार्ज जत्थेदार गुरदीप सिंह गोशा से ली जा सकती है उनका नंबर है:9646744444

इस धरने के बाद अकालीदल के केडर में नया जोश आने की संभावना बताई जा रही है। इस धरने के बाद स्थिति क्या रुख लेती है इसका सही पता तो वक़्त आने पर ही चलेगा। 


Monday, November 2, 2020

DGP पंजाब ने दिया पत्रकारों को निष्पक्ष जांच से न्याय का भरोसा

पत्रकारों की प्रतिनिधिता की अमरिंदर सिंह और हरप्रीत जस्सोवाल ने 


चंडीगढ़
//खरड़//कुराली: 2 नवम्बर 2020:  (मीडिया स्क्रीन Online टीम )::

समाज के समुचित विकास और सुरक्षा के लिए पुलिस भी अग्रसर रहती है और पत्रकार भी अपनी डयूटी तनदेही से निभाते हैं। प्रेस और पुलिस का यह रिश्ता कई बार नाज़ुक पड़ावों  गुज़रता है लेकिन खट्टे मीठे अनुभवों  के बावजूद कभी भी टूटता नहीं। एक बार फिर इसे टूटने से बचाया है डीजीपी दिनकर गुप्ता ने। 

इस तरह के वरिष्ठ पुलिस अधिकारीयों और की सुखद बातों के बावजूद अलग अलग स्थानों से पत्रकारों के साथ पुलिस द्वारा कुछ  ज़्यादती की खबरें आम होने लगीं हैं। कहीं किसी पत्रकार से कैमरा छीन लिया  जाता है और कहीं पर मोबाईल।  इसी तरह की बहुत सी बातों  के दरम्यान उभर कर सामने आई शहीद भगत सिंह प्रेस एसोसिएशन। पंजाब का शायद ही कोई इलाका बचा हो जहां इस संगठन की पहुंच न हुई हो।  उम्र और अनुभव  में छोटे बड़े सभी पत्रकार इस संगठन में सक्रिय हैं। इस संगठन का कार्यमन्त्र है-पहले विनम्रता और प्रेम से अपनी समस्या हल करने और करवाने का प्रयास करो अगर इसे कमज़ोरी समझा जाए तो फिर लोकतान्त्रिक राह अपनाते हुए एकजुटता की शक्ति का प्रदर्शन करो तांकि विजय प्राप्त हो सके। 

इस बार भी कुछ ऐसा ही हुआ।  पुलिस के साथ किसी मुद्दे पर बहस हुई तो मामला टूल पकड़ गया। दोनों तरफ की ज़िद। पत्रकारों के खिलाफ मामला दर्ज हुआ तो बात और बिगड़ गई। मामला पांच नवंबर को पुलिस अधिकारिओं के पुतले जलाने की घोषणा तक पहुँच गया। 

पंजाब के बहुत महत्वपूर्ण ज़िले फाजिल्का में भी पुलिस और प्रेस के दरम्यान टकराव जैसी स्थिति बन गई। संगठन से जुड़े सूत्रों के मुताबिक बात आर पार जैस जंग जैसी बन गई। 

भारत के और भी बहुत सारे राज्यों में पत्रकारों के साथ हो रही बे इंसाफी के खिलाफ आज शहीद भगत सिंह प्रेस एसोसिएशन का एक स्टेट लेवल का डेलिगेशन पंजाब के डीजीपी दिनकर गुप्ता से मिलने उनके चंडीगढ़ ऑफिस में गया जिसकी अगुवाई शहीद भगत सिंह प्रेस एसोसिएशन के राष्ट्रीय चेयरमैन अमरिंदर सिंह और राष्ट्रीय जनरल सेक्टरी हरप्रीत सिंह जस्सोवाल ने की ओर उनके साथ रितिष राजा सेक्टरी ट्राइसिटी, हरपाल सिंह भंगू-प्रधान जिला अमृतसर, हरमिंदर सिंह नागपालजनरल सेक्टरी ट्राइसिटी, धरमिंदर सिंगला एडवाइजर,  शमशेर सिंह बग्गा  प्रधान जिला रोपड़, मनीष शंकर प्रधान जिला मोहाली, कुलदीप कुमार वाइस प्रेसिडेंट ट्राइसिटी, विजय जिंदल जीरकपुर, रोहित कुमार सीनियर पत्रकार, अमित कुमार एडवाइजर ओर रवी शर्मा और जगदीश सिंह खालसा इत्यादिकई पत्रकार शामिल थे ।

हरप्रीत सिंह जस्सोवाल, रितिष राजा ओर कुलदीप कुमार ने कहा के देश भर के पत्रकारों के हक में स्टैंड लेने वाली एकमात्र पत्रकार संस्था शहीद भगत सिंह प्रेस एसोसिएशन जो कि हमेशा ही किसी भी पत्रकार के साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ पत्रकारों के साथ खड़ी होती है आज पंजाब के हर जिले समेत भारत के अलग-अलग राज्य में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान, जम्मू कश्मीर, यूपी, महाराष्ट्र, चेन्नई, वेस्ट बंगाल में और ओर भी कई राज्यों में लोकप्रियता के साथ आगे बढ़ रही है।

आज फील्ड में काम करने वाले हजारों पत्रकार इस प्रेस एसोसिएशन के परिवार का मेंबर बन चुके हैं ।

 डीजीपी पंजाब से बातचीत के दौरान शिष्टमंडल का नेतृत्व कर रहे चेयरमैन अमरिंदर सिंह, धरमिंदर सिंगला ओर हरपाल भंगू ने बताया कि पूरे भारत में पुलिस द्वारा पत्रकारों पर नाजायज झूठे पर्चे दर्द करके उन्हें परेशान किया जा रहा है और लोकतंत्र के चौथे स्तंभ को उनका कार्य करने से रोका जा रहा है जो कि भारत के संविधान के विरुद्ध है। इसी गलत सोच के चलते पंजाब के विभिन्न हिस्सों में पत्रकारों पर दर्ज किए जा रहे झूठे पर्चे दर्ज किए जा रहे है और यह सब राजनीतिक व अन्य दबाव के चलते हो रहा है। 

हरमिंदर सिंह नागपाल , शमशेर सिंह बग्गा ओर कुलदीप कुमार ने कहा कि पंजाब के महत्वपूर्ण ज़िले फाजिल्का में काम कर रहे दो पत्रकारों सुनील सैन और राजू आज़मवालिया पर जिला बार एसोसिएशन फाजिल्का के दबाव मे एक ही मामले मे दो मुकदमो को लेकर उच्च स्तरीय जांच करवाने और इसी मामले मे फाजिल्का सीआईए प्रभारी नवदीप भट्टी ने फोन कर बातचित के दोरान राष्ट्रिय प्रधान रंजीत सिंह मसौन से गाली गलौच कर उन्हे उकसाया और प्रधान मसोन पर गाली गलोच करने का फाजिल्का मे पर्चा दर्ज करने के मामले मे जांच करने व नवदीप भट्टी का डोप् टेस्ट करवाने की मांग करते हुए एक मांग पत्र भी सौंपा गया ।

जिस पर डीजीपी साहब ने मामले की गंभीरता को देखते हुए करवाने इस सारे मामले की निष्पक्ष जांच आई जी फरीदकोट को सोंपते हुए पत्रकारों को इंसाफ दिलवाने का आश्वासन देते हुए कहा की पत्रकारों और पुलिस के रिश्तों को किसी भी कीमत पर खराब नही होने दिया जाएगा ।

एसोसिएशन की ओर से डीजीपी पंजाब श्री दिनकर गुप्ता का मनीष शंकर, अमित कुमार, विजय जिंदल, रवी शर्मा, रोहित कुमार और जगदीश सिंह खालसा ने धन्यवाद किया। प्रेस को यह सारी जानकारी एसोसिएशन के प्रेस सेक्टरी अमरजीत रतन की तरफ से दी गई ।