Tuesday, November 17, 2020

जंग के खिलाफ अभियान की कहानी बता रहे हैं डा.अरुण मित्रा

 जंग की भयानक तस्वीर को साहिर साहिब ने भी दिखाया 

लुधियाना
: 17 नवंबर 2020: (कार्तिका सिंह//मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन)::
साहिर लुधियानवी साहिब अपनी लम्बी और संगीतमय काव्य रचना "परछाइयां" में युद्ध के पागलपन का ऐसा भयावह चित्र खींचते हैं की पढ़ते पढ़ते आँखों में आंसू आ जाते हैं। वह कहते हैं:
उस शाम मुझे मालूम हुआ, जब भाई जंग में काम आये
सरमाए के कहबाख़ाने में बहनों की जवानी बिकती है
सूरज के लहू में लिथड़ी हुई वह शाम है अब तक याद मुझे
चाहत के सुनहरे ख्वाबों का अंजाम है अब तक याद मुझे

इस  नज़्म के आखिर  साहिब कहते हैं:
हमारा खून अमानत है नस्ले-नौ के लिए,
हमारे खून पे लश्कर न पल सकेंगे कभी॥

कहो कि आज भी हम सब अगर खामोश रहे,
तो इस दमकते हुए खाकदाँ की खैर नहीं।

जुनूँ की ढाली हुई ऐटमी बलाओं से,
ज़मीं की खैर नहीं आसमाँ की खैर नहीं॥

गुज़श्ता जंग में घर ही जले मगर इस बार,
अजब नहीं कि ये तनहाइयाँ भी जल जायें।

गुज़श्ता जंग में पैकर जले मगर इस बार,
अजब नहीं कि ये परछाइयाँ भी जल जायें॥

डाक्टर अरुण मित्रा और उनके सक्रिय सहयोगी साथी इस नज़्म के मकसद को बहुत पहले ही अपना चुके थे। जवानी की उम्र में जब लोग मस्ती करते हैं उस उम्र में यह लोग जंग के खिलाफ जन चेतना जगाने लगे थे। जब देश और दुनिया के बड़े बड़े असरदायिक लोग जंग का जनून भड़काने में लगे हों और जंग की ही सियासत हो रही हो उस समय जंग के खिलाफ बात करना आंधियों में दिया जलाने जैसा ही होता है लेकिन इन लोगों ने बहुत बार ऐसी कोशिशें की। अब उन कोशिशों का सुखद परिणाम सामने आ रहा है। उसी परिणाम की चर्चा करती है यह वीडियो जो डाक्टर अरुण मित्रा से हुई एक भेंट पर आधारित है। डाक्टर अरुण मित्रा से इस भेंट की प्रेरणा देने वाले वाम पत्रकार और कहानीकार एम् एस भाटिया डाक्टर मित्रा की ऐसी कोशिशों पर एक पुस्तक भी तैयार करवा रहे हैं। आप इस वीडियो को देखिये और इस पर अपने विचार भी बताएं। यह वीडियो Dr Arun Mitra on War and Nuclear Treaty इस नाम से यूट्यूब पर भी उपलब्ध है। --कार्तिका सिंह 

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