राष्ट्र को सावधानी, लोगों को चेतावनी
यह कुछ भी नहीं था कि मोदी सरकार ने योजना आयोग को खत्म कर दिया। उनके लिए जवाहरलाल नेहरू से जुड़ी हर चीज एक अभिशाप थी। नीति आयोग आरएसएस नियन्त्रित भाजपा की देन था जो योजना आयोग के विकल्प की अवधारणा के रूप में आया है। क्योंकि उन्हें लगता था कि योजना शब्द ही समाजवाद की ओर एक कदम था।
नीति आयोग एक चमचमाती हुई प्रोफाइल का प्रतिनिधित्व करता है- ‘नेशनल इंस्टीट्यूट फाॅर ट्रांसफार्मिंग इंडिया‘। कुछ ही समय में यह संस्थान मोदी सरकार के विचारों और कामों का आईना बन गया। कई बार नीति आयोग मोदी सरकार की नीतिगत दिशाओं का एक सिद्ध अग्रदूत था। आज वे जिसकी चर्चा करते हैं कल वह एक विचार के रूप में सरकार का मार्गदर्शक सिद्धांत बन जाएगा। वास्तव में यही कारण है कि देश ने हाल ही में नीति आयोग के सीईओ द्वारा दिए गए बयान का बैचेनी के साथ संज्ञान लिया। वह स्वराज पत्रिका द्वारा आयोजित एक वेबिनार, ‘द रोड टू आत्मनिर्भर भारत‘ को संबोधित कर रहे थे। उनके अनुसार ‘बहुत अधिक लोकतंत्र भारत की प्रगति के लिए मुख्य बाधा है‘। यह एक दर्शन का रहस्योद्घाटन था जो लोकतंत्र को आत्मनिर्भर भारत के लिए एक काउंटर करंट के रूप में रेखांकित करता है। जबकि पूरा देश उन किसानों के पीछे एकजुट है जो कृषि में न तथाकथित सुधारों के खिलाफलड़ रहे हैं। तो नीति अयोग प्रमुख रोना रो रहे हैं कि भारत में कठिन सुधार मुश्किल हैं। उन्होंने अपनी सरकार की प्रशंसा में कोई शब्द नहीं कहे जिसने सभी क्षेत्रों कोयला, श्रम, कृषि में सुधार लाने में हठपूर्ण कुशलता दिखाई है। भारत में हर राष्ट्र को सावधानी, लोगों को चेतावनी कोई जानता है कि देश में सुधार के नाम पर क्या हो रहा है। जीवन के सभी क्षेत्रों में एफडीआई सरकार के लिए मुक्ति मंत्र बन गया है। उनकी आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना स्वयं ही विदेशी पंूजी के पास गिरवी है। लगभग सभी सुधार जिनकों उन्होंने बढाया है लोकतंत्र की नींव पर चोट हैं। भारत में आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक लोकतंत्र लगातर इन हठी सुधारों को शुरू करने वालों से खतरे में है। संगठित होने, मतान्तर रखने और विरोध करने के बुनियादी अधिकारों का दमन किया जा रहा है। राष्ट्रीय राजधानी की सीमा पर दस्तक दे रहे देश के अन्नदाताओं को लोतंत्र के उस दुर्ग में प्रवेश से रोक दिया गया है जहां चुनी हुई सरकारें बैठती हैं। भारत में लोकतंत्र के बारे में बोलने के सामने सीमेंट की बाधाएं, कंटीली तारें, पानी की बौछारें और आंसू गैस के गोले हजारो अर्धसैनिक बलों के साथ तैनात कर दिये गये हैं। नीति आयोग उस राह को समझता होगा जिससे धारा 370 को खत्म किया गया है, सीएए, एनआरसी सुधार लागू किये गये, और देश में श्रम सुधार थोपे गये। उन्हें संविधान के अनुच्छेद 14, 29 और 21 में समाहित अधिकारों की बुनियादी समझ होगी। किसान, मजदूर, छात्र, दलितों और समाज के दूसरे वंचित तबको को इन हठी सुधारों पर सवाल करने के अधिकार हैं। यह सुधार एक लोकतान्त्रिक देश में गरिमापूर्ण जीवने जीने के उनके अविच्छेद अधिकारों को प्रभावित करते हैं। बहस करने, असहमति रखने और विरोध कराने का अधिकार इसका हिस्सा है। नीति आयोग को भारतीय जनता के बीच चल रहे असंतोष को समझना चाहिए। इसके पीछे का कारण लोकतंत्र की प्रचुरता नहीं है बल्कि धन और जीवन की बढ़ती विषमता है। महामारी के दिनों में प्रोत्साहन पैकेज ने गरीबों के लिए कोई न्याय नहीं किया था। प्रवासी मजदूर, घरेलू सहायक और सफाई मजदूरों को भूला दिया गया था। यह तुच्छ लाभ जिन्हें दिये गये उनमें से अधिकांश तक नहीं पहुंचे। अर्थव्यवस्था का संकट ‘ईश्वर के कृत्य के कारण‘ या बहुत अधिक लोकतंत्र के कारण नहीं था। नीति अयोग द्वारा विकसित की गई नीतियां और सरकार द्वारा कार्यान्वित भारत के गहरे संकट के पीछे का कारण है। सत्तारूढ़ हलकों का इरादा विलफुल डिफाल्टर्स और विदेशी पूंजी को रियायतें प्रदान करके इसे हल करना है। हर जगह एक और एकसमान ही सवाल है कि मुनाफा अथवा जनता? यहां नीति आयोग दूरगामी प्रभाव वाले खतरनाक प्रस्तावों के साथ आ रहा है। यह सरकार का मागदर्शन अधिक से अधिक भयावह कानून अपनाने के लिए कर रहा है। यह लोगों के प्रतिरोध का गला घोंटने के लिए हैं ताकि बडों के लिए पूंजी की मस्ती बिना रूकावट के चलती रहे। सीईओ ने अपने भाषण में भारी मात्रा में राजनीतिक दृढ़ संकल्प के लिए आग्रह किया। यह सरकार से अधिक से अधिक दमनकारी कानूनों के साथ आगे बढ़ने का आह्वान है। राष्ट्र के लिए सावधानी और लोगों को चेतावनी।
मुक्ति संघर्ष के तारीख 13 से 19 दिसंबर 2002 अंक में से साभार
किसानों पर आरोप लगाने वालों को खुद किसान ही दे रहे हैं जवाब
श्याम मीरा सिंह की तरफ से किसान धरने के दौरान क्लिक की गई एक तस्वीर
जिस पर अलग से भी एक विशेष पोस्ट दी जा रही है--रेक्टर कथूरिया
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