Wednesday, September 6, 2017

वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की वहशियाना हत्या-कई गोलियां चलायीं

जन विरोधी तत्वों के लिए गौरी लंकेश एक चुनौती थी
बेंगलुरु: 5 सितम्बर 2017: (मीडिया स्क्रीन ब्यूरो)::   
बेंगलुरु से बुरी खबर आई है।  साथ ही खतरनाक भी। देश में बढ़ रहे असुरक्षा और असहनशीलता के माहौल को दर्शाती हुई खबर। वहशत और दहशत की हद हो गयी है।  अधिकारों के शोर में महिला कलमों पर भी हमले तेज़ कर दिए गए हैं। वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की आज बेंगलुरु स्थित उनके घर के बाहर गोली मार कर हत्या कर दी गई। मीडिया के तकरीबन सभी प्रबुद्ध वर्गों ने इस जघन्य हत्या की निंदा की है। इसके साथ ही चेतावनी भी दी है कि बुलंद आवाज़ों को खामोश करने के इस अभियान का हम सब मुँह तोड़ जवाब देंगें। हत्यारे मोटरसाइकल पर सवार थे और उनके इस अकस्मात हुए हमले में कम से कम तीन गोलिया गौरी लंकेश के सीने में लगीं। विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया है। बुधवार 6 सितम्बर को शाम 6 बजे मुम्बई में एक शौक सभा का आयोजन भी रखा गया है। देश भर में गम और गुस्से की लहर है। 
गौरतलब है कि पत्रकार गौरी लंकेश का घर राजाराजेश्वरी नगर में था। उनके शरीर पर गोलियों के कई निशान हैं, जिससे साफ़ जाहिर होता है कि उनकी हत्या के लिए उन पर कई बार गोलियां चलायीं गयीं। गौरी लंकेश को हिंदुत्ववादी राजनीति का घोर आलोचक माना जाता था। डीसीपी वेस्ट एनएन अनुचेथ ने इस हत्या की पुष्टि करते हुए कहा कि आज शाम गौरी के घर पर हमला हुआ और उनपर गोलियां चलाई गयी जिसमें उनकी मौत हो गई। उनका शव घर के वरांडा में पाया गया।  इस बारे में ज्यादा जानकारी का इंतजार है। उनकी साप्ताहिक कन्नड़ पत्रिका जन विरोधी तत्वों की आँखों में बुरी तरह से अखर रही थी। 
पीपुल्स मीडिया लिंक और जनवादी मीडिया मंच ने इस बर्बर और वहशियाना हत्या की सख्त निंदा करते हुए सभी कलमकारों को इस मुद्दे पर एकजुट होने की अपील की है। इन दोनों संगठनों ने कहा है कि इस तरह बुलंद और जनवादी आवाज़ों को खामोश करने का अभियान चलाने वाले जल्द ही नाकाम होंगें।  अपने साथियों की आवाज़ बनेगें हुए बताएंगे कि हम सब रक्तबीज हैं। जितना मिटाओगे उतना ही बढ़ेंगे। 
इसी बीच पंजाबी कलमकारा पाल कौर, शशि समुंद्रा, बलबीर संघेड़ा, धीदो गिल, जगविंदर जोधा, कुलविंदर कौर रूहानी, मनीषा सूद, कर्मजीत सिंह, रमन विर्क, दर्शन सिंह ढिल्लों, कमलजीत दोसांझ नत्त, राजविंदर कौर बाजवा, इंद्रजीत सिंह पुरेवाल, दमनजीत सिन घ और के अन्यों ने इस की सख्त निंदा करते हुए इस ट्रेंड पर गहरी चिंता व्यक्त की है। 
 मीडिया को दबाने, खरीदने या मिटाने पर उतारू जन विरोधी तत्वों के लिए गौरी लंकेश एक चुनौती थी। एक मज़बूत चुनौती। गौरी लंकेश का काम करने का तरीका पूरी तरह जन शक्ति पर केंद्रित और आधारित था। कन्नड़ भाषा की साप्ताहिक गौरी लंकेश अपनी इस पत्रिका की संपादक थीं। उसमें होते खुलासों से उस विचारधारा के विरोधी चिंतित भी थे और बौखलाए हुए भी थे। उन्हें निर्भीक और बेबाक पत्रकार माना जाता था। गौरी लंकेश कर्नाटक की सिविल सोसायटी की चर्चित और लोकप्रिय चेहरा थीं। गौरी की पत्रिका के हर अंक की इंतज़ार होती थी। गौरी कन्नड़ पत्रकारिता में एक नए मानदंड स्थापित करने वाले पी. लंकेश की बड़ी बेटी थीं। पिता के गुणों को समाहित करके वह अपनी खूबियों को भी सहेज रही थी। शायद उसका बहुत बड़ा कसूर था की वह वामपंथी विचारधारा से प्रभावित थीं और ऊपर से हिंदुत्ववादी राजनीति की मुखर आलोचक भी थीं। गौरी लंकेश कई समाचार पत्र-पत्रिकाओं में कॉलम भी लिखा करती थी। पूरी दुनिया जानती है कि गौरी लंकेश राइट विंग की मुखर आलोचक मानी जाती थी। यही वजह थी कि वैचारिक मतभेद को लेकर गौरी लंकेश कुछ कटटर और संकीर्ण लोगों के निशाने पर थी। जनूनी लोग आखिर उसकी जान के दुश्मन हो गए। नवरात्र में देवी के ९ रूपों की पूजा करने वाले देश में सरस्वती की एक पुजारिन की हत्या कर दी गयी। 
दिलचस्प बात थी कि गौरी लंकेश जिस साप्ताहिक पत्रिका का संचालन करतीं थी उसमे कोई विज्ञापन नहीं लिया जाता था। यही सिद्धांत गौरी की शक्ति बना हुआ था। उसे खरीदा या दबाया नहीं जा सकता था। वास्तव में उस पत्रिका को 50 लोगों का एक ग्रुप चलाता था अपनी मेहनत की कमाई से। पिछले वर्ष भाजपा  सांसद प्रह्लाद जोशी की तरफ से दायर मानहानि मामले में गौरी लंकेश को दोषी करार दिया गया था, जिन्होंने उनके टैब्लॉयड में भाजपा नेताओं के खिलाफ एक खबर पर आपत्ति जताई थी। गौरी लंकेश मीडिया की आजादी की पक्षधर थीं। आखिर इस आवाज़ को खामोश कर दिया गया। यह एक हमला नहीं ऐलान है कि हम आज़ादी के पक्षधरों को ज़िंदा नहीं छोड़ेंगे। जो बिक न सकेगा उसे मिटना होगा। क्या आप सब कुछ चुपचाप देखेंगे। 
कम से कम हम तो नहीं देखेंगे। इंतज़ार कीजिये कल तक आप तक एक ठोस प्रोग्राम पहुंचेगा। एक जुट होना अब एक नारा नहीं एक आवश्यकता बन गयी है। सांत्वना की एक बात ज़रूर है कि अब सच की रह पर चलने वाले और बिकने की मंडी में खड़े होने वालों के दरम्यान एक रेखा गहरी हो जाएगी।  फैसला आपके हाथ कि आप किस तरफ हैं। 

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