Saturday, November 6, 2021

आज के मीडिया पर रीतू कलसी की एक काव्य रचना

आज रुपया पत्रकारिता पर भारी पड़ गया क्या?


रीतू कलसी ने मीडिया में कुर्बानी का ज़माना देखा है। त्याग का ज़माना देखा है। साधना का ज़माना देखा है। अपनी कलम और सच के दम पर बड़ों बड़ों से आँख मिला कर बात करने का ज़माना देखा है। अफ़सोस अब वो बातें बहुत कम रह गई हैं। उस दर्द की बात करती है रीतू कलसी की यह रचना। वो दर्द जो हर सच्चे पत्रकार के मन में उठना चाहिए। -रेक्टर कथूरिया


बचपन से सुनते आये थे 

एक पत्रकार कितना महान होता 

रेडियो के स्टूडियो में रीतू कलसी 
कुछ भी हो जाए सच का साथ नहीं छोड़ता 

थैला लटकाये सच को भर उस में 

हर संभव कोशिश करता है हम सभी को बताने की 

गरीबी में जीता है 

मौत से हर समय आँख मिचोली खेलता है 

आज़ादी में भी पत्रकारों का अहम रहा योगदान 

पत्रकार का एक ही धर्म होता कर्म सच का कर्म 

पर अभी जो पत्रकारों को करते देखते हैं 

उनका कहा सुनते हैं क्या यह कर्म है 

सच को झूठ कैसे बनाना क्या यह काम हो गया 

क्या अब पैसा ही पत्रकार का धर्म हो गया।

 

राजनीति किसलिए हावी हो गयी पत्रकारिता पर 

या अब मौत से डर लगने लग गया।


कहाँ गए सीना तान कर चलने वाले 

कब कैसे पार किया रास्ता शालीनता से बतमीज़ी तक का 

चीखना चिलाना कब से हो गयी पत्रकारिता 

देखते ही देखते पत्रकारिता लोगों के लिए कॉमेडी हो गयी 

कैसे भूलें  पंडित जुगल किशोर सुकुल की पत्रकारिता 

 राम मोहन रॉय ने पत्रकारिता से किया कितनी कुरूतियो को दूर 

 बाल विवाह, सती प्रथा, जातिवाद, कर्मकांड, पर्दा प्रथा का किया अंत 

अजीमुल्ला खां ने ली सीधी टककर अंग्रेज़ों से 

हेमंत, शिशिर, वसंत और मोतीलाल ने नया प्रणाली पर उठाये प्रश्न 

भगत सिंह को कौन नहीं जानता 

थे अख़बार प्रताप के तेज़ तरार निर्भीक एवं निष्पक्ष पत्रकार 

जाते थे लगातार अपने असूलों के लिए लगातार जेल 

कहाँ गए आज वह असूल 

आज रुपया पत्रकारिता पर भारी पड़ गया क्या 

क्या बताएं अपने बच्चों को 

कौन से कहानिया सुनाये कैसे समझाये उन्हें यह समय का हेर फेर 

कहाँ अँधेरे की तरफ बढ़ चले हैं हम 

जहाँ अब पत्रकार को इज़्ज़त की नज़र से नहीं देखा जा रहा।

                                  --रीतू कलसी 

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