इस नाज़ुक मोड़ पर आप किसके साथ हैं?
फारवर्ड प्रेस पर पुलिस एक्शन के खिलाफ साहित्य और पत्रकारिता जगत में आक्रोश लगातार गर्माता जा रहा है। सोशल मीडिया के साथ साथ इस एक्शन से चिंतित कलमकार फोन पर भी एक दुसरे के सम्पर्क में हैं। आशा की जानी चाहिए कि यह मामला जल्द ही सुलझा लिया जायेगा पर अगर ऐसा नहीं हो पाया तो आक्रोश की आग बहुत जल्द देश के अन्य भागों में भी भड़क सकती है। इस तरह के बहुत से विचार आपको सोशल मीडिया पर मिलेंगे। ये एक आईना हैं---न केवल समाज के लिए या किसी एक दाल के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए। आप इस अवसर पर कहाँ खड़े हैं। जल्द फैसला कीजिये सवाल केवल फारवर्ड प्रेस का नहीं---बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का है। सोशल मीडिया पर आ रही प्रतिक्रियाओं में लोग तेज़ी से बढ़ रहे हैं। एक मित्र ने लिखा है:
Alok Kumar हिन्दुत्व और इस्लाम के ठेकेदारों किताबों को बैन करना बंद करो, अगर किताबों मे कुछ गलत लिखा है तो पढ़ने वाला तय करेगा , तुम तय नहीं करोगे हमारे लिए की हम क्या पढ़े और क्या नहीं। अगर तुम्हारी धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुंचती है तो , सबसे पेहले अपने ये मंदिर, मस्जिद और चर्च बंद करो। इनके होने से हम नास्तिको की अधार्मिक भावनाओ को भी ठेस पहुंचती है .
पढ़े इन दो लिंको पर कैसे हिन्दुत्व और इस्लाम के ठेकेदार तय कर रहे हैं की हम क्या पढ़े और क्या नहीं .
link 1
http://www.telegraph.co.uk/.../Salman-Rushdie-says-he-may...
link 2
http://time.com/.../sex-lies-and-hinduism-why-a-hindu.../
ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि धर्म के इन ठेकेदारों को पता चल जाये की वे हम युवा पीढी का प्रतिनिधित्व नहीं करते, और हम ऐसे संकीर्ण मानसिकता के लोगों को जोकर से ज्यादा कुछ मानते भी नहीं .
फारवर्ड प्रेस पर पुलिस एक्शन के खिलाफ साहित्य और पत्रकारिता जगत में आक्रोश लगातार गर्माता जा रहा है। सोशल मीडिया के साथ साथ इस एक्शन से चिंतित कलमकार फोन पर भी एक दुसरे के सम्पर्क में हैं। आशा की जानी चाहिए कि यह मामला जल्द ही सुलझा लिया जायेगा पर अगर ऐसा नहीं हो पाया तो आक्रोश की आग बहुत जल्द देश के अन्य भागों में भी भड़क सकती है। इस तरह के बहुत से विचार आपको सोशल मीडिया पर मिलेंगे। ये एक आईना हैं---न केवल समाज के लिए या किसी एक दाल के लिए बल्कि पूरे समाज के लिए। आप इस अवसर पर कहाँ खड़े हैं। जल्द फैसला कीजिये सवाल केवल फारवर्ड प्रेस का नहीं---बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का है। सोशल मीडिया पर आ रही प्रतिक्रियाओं में लोग तेज़ी से बढ़ रहे हैं। एक मित्र ने लिखा है:
Alok Kumar हिन्दुत्व और इस्लाम के ठेकेदारों किताबों को बैन करना बंद करो, अगर किताबों मे कुछ गलत लिखा है तो पढ़ने वाला तय करेगा , तुम तय नहीं करोगे हमारे लिए की हम क्या पढ़े और क्या नहीं। अगर तुम्हारी धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुंचती है तो , सबसे पेहले अपने ये मंदिर, मस्जिद और चर्च बंद करो। इनके होने से हम नास्तिको की अधार्मिक भावनाओ को भी ठेस पहुंचती है .
पढ़े इन दो लिंको पर कैसे हिन्दुत्व और इस्लाम के ठेकेदार तय कर रहे हैं की हम क्या पढ़े और क्या नहीं .
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ज्यादा से ज्यादा शेयर करें ताकि धर्म के इन ठेकेदारों को पता चल जाये की वे हम युवा पीढी का प्रतिनिधित्व नहीं करते, और हम ऐसे संकीर्ण मानसिकता के लोगों को जोकर से ज्यादा कुछ मानते भी नहीं .
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