साज़िशी हवाओं के खिलाफ जनचेतना जगाता एक सार्थक प्रयास
नई दिल्ली: 5 अक्टूबर 2020: (कार्तिका सिंह//मीडिया स्क्रीन Online):: महात्मा गांधी के खिलाफ निंदा प्रचार और अन्य साज़िशों का सिलसिला लगातार जारी रहा है। महात्मा गांधी की हत्या को जायज़ ठहराने अभियान भी चलते रहे। गांधी को लोगों के दिल दिमाग से निकला नहीं जा सका। गांधी लगातार प्रासंगिक बने रहे। उनकी आत्म कथा-सत्य के साथ मेरे प्रयोग अंग्रेजी में बिकती रही और हिंदी में भी। लोगों ने छह पुस्तकों के सेट की सौगात देना बंद नहीं किया अब गाँधी जी पर नई किताब आई है-"उसने गाँधी को क्यूं मारा।" इस पुस्तक पर एक विशेष चर्चा भी हुई। हम उसका साराँश राजकमल प्रकाशन से साभार यहां भी दे रहे हैं। गांधी पर चर्चा आज के असहनशील युग में फिर एक बहुत बड़ी ज़रूरत भी है। सत्य और सहनशीलता से दूर हो रहे समाज को गांधी एक बार फिर से राह दिखा सकते हैं। गांधी की पुस्तकों को सम्मान सहित पढ़ा जाया या फिर उनके बुतों पर कालख पोती जाए इससे फर्क गांधी को नहीं इस समाज को ही पढ़ने वाला है। गाँधी की शख्सियत इन सभी बातों से बहुत ऊंची उठ चुकी है। गांधी जी की हत्या के बाद उन पर जितने भी हमले हुए हैं उनसे गांधी जी की वैचारिक प्रतिमा और मज़बूत हो कर उभरी है। प्रस्तुत है उस रिपोर्ट का सारांश:
2 अक्टूबर, 2020 को महात्मा गांधी की 151वीं जयंती के अवसर पर चर्चित कवि-इतिहासकार अशोक कुमार पांडेय की पुस्तक ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ का लोकार्पण एवं उस पर बातचीत 'राजकमल' के फ़ेसबुक लाइव कार्यक्रम में हुई। उल्लेखनीय है कि यह कार्यक्रम बहुत रोचक रहा।
कार्यक्रम में चिन्तक-इतिहासकार सुधीर चन्द्र, इतिहासकार मृदुला मुखर्जी, राज्यसभा सांसद मनोज कुमार झा, हिन्दी के महत्त्वपूर्ण लेखक जयप्रकाश कर्दम और अशोक कुमार पांडेय शामिल रहे। किताब पर बात करते हुए मनोज कुमार झा ने कहा कि हिन्दी पाठक वर्ग के पास एक ऐसी किताब पहुँच रही है जो गांधी जी की प्रतिमा, चश्मा, पहनावे और उनके प्रतीकों से ऊपर उठकर कुछ बुनियादी सवालों पर है। आज के दौर में गांधी की प्रासंगिकता पर बात करते हुए जयप्रकाश कर्दम ने कहा कि गांधी का होना इतिहास की बहुत बड़ी घटना है। वह एक व्यक्ति नहीं बल्कि एक ऐसा संस्थान हैं जो प्रेम, सद्भाव और अहिंसा के मूल्यों पर खड़ा है। यह प्रेम, सद्भाव और अहिंसा सिर्फ़ मूल्य ही नहीं, बल्कि लोकतंत्र का आधार हैं।
अशोक कुमार पांडेय ने अपनी किताब के बारे में बताते हुए कहा कि मैंने ऐसे विषय पर किताब लिखी है जिस पर बहुत लोग लिख चुके हैं। मैंने आर्काइव्स, ख़ास तौर पर 'कपूर कमीशन' की रिपोर्ट में गहरे जाकर चीज़ों को सामने लाने की कोशिश की है। बातचीत को आगे बढ़ाते हुए सुधीर चन्द्र ने विचार व्यक्त किया कि आज हमें इस आधुनिक युग के िख़लाफ़ एक असहयोग आन्दोलन की ज़रूरत है। गांधी ने कहा था 'न' कहना सीखो, आज फिर हमें 'न' कहना सीखना होगा। अगर गांधी का कोई भी महत्त्व है हमारे जीवन में तो हमें यह सोचना होगा कि अगर हम इस महत्त्व की बातें करते रहें तो क्या होना है। अशोक कुमार पांडेय की किताब ‘उसने गांधी को क्यों मारा’ को एक व्यापक परिप्रेक्ष्य में देखने की ज़रूरत है और हमें यह सवाल भी उठाना है कि किस-किसने गांधी को मारा? और जब गांधी के मारे जाने की बात होती है, तब हमें यह भी याद रखना होगा कि गांधी किसी के मारे नहीं मरते हैं। गांधी तब तक जीवित रहेंगे जब तक यह सभ्यता है। इस सभ्यता के लिए गांधी के पास एक ऐसा सन्देश है,
जिस पर अमल करके मानव अपने आपको विकसित कर सकता है। कार्यक्रम का संचालन ऐश्वर्या ठाकुर ने किया।
ज्ञात हो कि इसी दिन एक अन्य कार्यक्रम जो ‘कलिंगा लिटरेरी फ़ेस्टिवल’ में आयोजित था, वहाँ भी 'उसने गांधी को क्यों मारा' पुस्तक पर बातचीत का आयोजन किया गया। अशोक कुमार पांडेय के साथ महत्त्वपूर्ण कथाकार वंदना राग ने पुस्तक पर बातचीत की। वंदना राग ने पुस्तक से कुछ अंशों का पाठ भी किया जो काफ़ी प्रभावशाली रहा।
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