देश पे संकट आन पड़ा तो जान न्योछावर कर भी रहे हैं
सोशल मीडिया: 26 फरवरी 2022: (मीडिया स्क्रीन ऑनलाइन डेस्क)::
श्याम मीरा सिंह |
ज़ुबां पर सच रखने की ज़िद जारी रखनी हो तो इसका खमियाज़ा भी भुगतना पड़ता है।युग कोई भी हो सत्ता कोई भी हो यह सिलसिला नहीं बदला। जानेमाने पत्रकार श्याम मीरा सिंह ने बार बार सच बोला और इसका खमियाज़ा कई कई बार भुगता भी है लेकिन सच का साथ नहीं छोड़ा। सच भी वही जो खुद को सच लगे। अब जबकि रूस ने यूक्रेन पर हमला किया तो जंग का विरोध बुलंद आवाज़ में करने वाले वामपंथी भी बहुत ही संकोच के बाद बहुत ही सोच सोच कर बोले। इस जंग पर श्याम मीरा सिंह ने जो नज़रिया सामने रखा उसे पढ़ कर साहिर लुधियानवी साहिब याद आने लगते हैं। श्याम को पढ़ते हुए लगता है जैसे कोई जंग के मैदान में खड़ा हो कर कविता लिख रहा हो। वैसे शांति की बात सबसे ज़रूरी जंग के मैदान में ही होती है जहां एक दुसरे पर गोलियां चलाने वाले एक दुसरे को जानते भी नहीं होते लेकिन दुश्मनी की भावना उन्हें जान लेने पर उतारू बना देती है। यही है पूंजीवाद। यही है सियासत। श्याम साहिब लिखते हैं बहुत पते की बात है।
यूक्रेन अपने सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है, उसके छोटे-छोटे बच्चे भी संकट में हैं, निर्दोष लोगों की आँखों में अपमान की टीस और डर दोनों हैं। इस मुल्क में रहने वाले लोग, प्रवासियों को अपने-अपने जहाज़ पकड़ते हुए भी देख रहे होंगे। जिन्हें कभी चाय पिलाई होगी, जिन्हें बुनकर कपड़े दिए। जिनके बाथरूम साफ़ किए। आज वे अपने-अपने देश के झंडों वाले वाहनों में चल लिए। वे अपराधी नहीं हैं। असली अपराधी तो हमलावर देश है। पर खून से लथपथ यूक्रेन को देख बचपन की एक कविता अनायास ही याद आ गई। बचपन में कंठ पर ज़ोर लगा-लगाकर इस कविता को याद किया, जो आज लौट-लौट कर कानों तक आ रही है। कविता ऐसे ही किसी मुश्किल वक्त की थी-
"आग लगी इस वृक्ष में, जले डाल और पात,
तुम पंछी क़्यू जलो, जब पंख तुम्हारे पास।"
तब जलते हुए वृक्ष की डाली पर बैठे पक्षियों ने कहा-
"फल खाए इस वृक्ष के, गंदे कीने पात,
धर्म हमारा है यही, जलें इसी के साथ।"
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ऐसा नहीं है युद्ध ग्रस्त देश में बने रहना बुद्धिमानी है. लेकिन दो दिन से ये आँखें एक कम समझदार, थोड़े से बुद्धु, एक अकड़ूँ से आदमी की तलाश कर रहीं हैं। कोई एक ही आदमी थोड़ा बुद्धु सा निकल आता तो उस पर दिल भर आता। कोई एक आदमी ही कह देता कि मेरे मुल्क को कहना संकट की इस घड़ी में यूक्रेन छोड़ने का जी नहीं आ रहा। जन्म लिया ही देश क्या, जिसका पानी पिया, हवा ली, छत ओढ़ी, वही अपना देश. इस युद्ध में कमजोर आदमी की तरफ़ से गिलहरी का भी काम करने का अवसर मिले तो कर जाऊँ। अगर कोई आदमी ये दो-एक बात कह देता तो आज दिल चौड़ा हो जाता।
एक आदमी भी यूक्रेन रुक जाता तो इस कविता को सदियों बाल कंठों से गाए श्रम पर नाज़ हो आता। जैसे कि उस एक आदमी को देखने के लिए ही ये कविता अब तक जीवित थी। मगर यूक्रेन से अपने-अपने देशों के हवाई जहाज़ पर चढ़ते प्रवासियों को देख इस कविता की उमर कुछ और बढ़ गई, यह बढ़ी हुई उम्र ही इस कविता की मौत है। आदमी कभी अपनी लिखी कविताओं को सही नहीं होने देते। हर बार उम्मीद पर खरे उतरते हैं। इस दुनिया को चलते रहने के लिए कभी कभी एक बुद्धु की तलाश होती है।
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श्याम मीरा सिंह की यह पोस्ट याद दिलाती है सन 1947 की बंटवारे की जब पंजाब दो हिस्सों में बांट दिया गया था। दोनों तरफ रहने वाले अपने अपने भरे भराए घरों से उजड़ कर निकले तो बहुत से लोगों ने घरों की चाबियां अपने ही पड़ोसियों के हवाले कर दी थी। बहुत से इसी भूमि के साथ प्रेम करते हुए मर भी मिठे थे। लेकिन बंटवारा हो कर रहा। साम्राज्यवादी सियासतदान यही चाहते ठगे। उसकी तीस आज भी महसूस की जा सकती है। वृद्ध लोगों के मुँह से सुनी भी जा सकती है। इस दर्द को उनकी आँखों में देखा भी जा सकता है।
1947 के बाद भी ऐसे हालत बनते रहे अलग अलग हिस्सों में। लोग पलायन पर मजबूर होते रहे। राजनीति अट्हास करती रही। पीड़ित लोग रोते रहे-बिलखते रहे। शायद वही कुछ यूक्रेन में भी हो रहा है। इस बार कारण बना है रूस का हमला। रूस का हमला हुआ अमेरिकी-नाटो उकसाहट के कारण लेकिन इसमें यूक्रेन के नागरिकों का कोई कसूर नहीं था। बहुत से लोग डरे भी होंगें लेकिन बहुत से लोग डटने वालों में भी रहे।
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79 वर्षीय वृद्धा वेलेंटीना कोन्स्टेंटिनोवस्का, ऐसे ख़ास लोगों में विशेष है। मारियुपोल, डोनेट्स्क क्षेत्र पूर्वी यूक्रेन में आता है। रविवार, 13 फरवरी, 2022 को यूक्रेन के नेशनल गार्ड के विशेष बल यूनिट आज़ोव द्वारा आयोजित नागरिकों के लिए बुनियादी युद्ध प्रशिक्षण के दौरान इस वृद्धा ने भी जोश दिखाया। वह पूरे जोश के हथियार रखती है। इस फोटो को क्लिक किया जानीमानी एजेंसी एपी के फोटोग्राफर वादिम घिरदा ने और यह लगातार वायरल होती है रही है। दुनिया भर में इस की चर्चा हो रही है।
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एक और तस्वीर सोशल मीडिया पर सामने आई है। यूक्रेन के एक मेयर की। पूर्व हैवीवेट मुक्केबाजी चैंपियन विटाली क्लिट्स्को ने कहा कि वह अपने भाई और साथी हॉल ऑफ फेमर व्लादिमीर क्लिट्स्को के साथ हथियार उठा रहे हैं ताकि रूस के अपने देश यूक्रेन पर आक्रमण के चलते "खूनी युद्ध" में डट कर लड़ सकें।
लोग 80-80 वर्ष की उम्र में भी सेना में शामिल होने चले आ रहे हैं। वहां की महिलाएं भी नेतागिरी छोड़ कर बंदूक उठा कर सेना के साथ आ खड़ी हुई हैं। उनके जज़्बे को सलाम तो कहना ही पड़ेगा। इसको कहते हैं राष्ट्रवाद। इसको कहते हैं देशभक्ति। इसको कहते हैं मातृभूमि के लिए मर मिटने का जज़्बा।
कुछ और तस्वीरें भी सामने आई हैं जिनकी चर्चा हम अलग अलग पोस्टों में करते रहेंगे।
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