लागा चुनरी पे दाग छुपायुं कैसे----------
आज़मगढ़ के अवनीश राय आजकल दिल्ली में बसे हुए हैं। पेशे से पत्रकार है और हर तरह से सैटल भी। अच्छा चैनल--अच्छी ज़िंदगी लेकिन सक बोलना--दलील से बात करना---जैसा सोचना वैसा करना---बहुत सी "बुरी आदतें" हैं। कुछ रोको तोको तो हंस कर ताल देते हैं। उनकी नयी पोस्ट फिर कि लिहाज़ वह अपने पेशे से जुड़े बहिचारे का भी नहीं करते। पूरा माजरा क्या है---आप खुद ही पढ़ लीजिये। स्थान दिल्ली का है और पोस्ट करने का समय 14 अप्रैल 2014 सोमवार को सांय 4:28 पर लेकिन इस हकीकत को आप कहीं भी देख सकते है---महसूस कर सकते हैं। आपके विचारों की इंतज़ार रहेगी ही। -रेक्टर कथूरिया
आज सुबह भाई को स्टेशन से लेने पुरानी दिल्ली पहुंचा। अंदर घुस ही रहा था कि सीढियों के पास खड़े टीटी पर नजर पड़ी। वे दो थे और एक सूटेड-बूटेड शख्स से बहस कर रहे थे। हालांकि बिना टिकट यात्रियों या पहली बार दिल्ली आने वाले यूपी बिहार के लोगों के झोरा - झंपट पकड़कर उनसे वसूली के लिए कुख्यात इन टीटियों की टें-पें से तो अब खूब वाकिफ हो चुके हैं लेकिन ये बहस कुछ अलग थी। मैं भी थोड़ा रूक गया।
आज सुबह भाई को स्टेशन से लेने पुरानी दिल्ली पहुंचा। अंदर घुस ही रहा था कि सीढियों के पास खड़े टीटी पर नजर पड़ी। वे दो थे और एक सूटेड-बूटेड शख्स से बहस कर रहे थे। हालांकि बिना टिकट यात्रियों या पहली बार दिल्ली आने वाले यूपी बिहार के लोगों के झोरा - झंपट पकड़कर उनसे वसूली के लिए कुख्यात इन टीटियों की टें-पें से तो अब खूब वाकिफ हो चुके हैं लेकिन ये बहस कुछ अलग थी। मैं भी थोड़ा रूक गया।
शख्स - सर मैं भी स्टाफ हूं। प्रेस से हूं।
टीटी - ना भाई...255 रूपये तो देने ही होंगे।
शख्स - सर, मैं प्रेस से हूं
टीटी - कौन से प्रेस से...
शख्स - इलेक्ट्रानिक मीडिया से हूं सर..
टीटी - तो क्या हुआ भाईइइइ...पैसे तो देने ही पड़ेंगे...
शख्स - सर, प्रेस....
टीटी - भाईइइ..ये बता आज कौन सा प्रेस वाला बिना पैसे लिए खबर छापता है...तू भी तो पैसे लेता होगा...क्यों?
शख्स - क्या बात करते हैं सर..हम पैसे नहीं लेते..
टीटी - ना भाईइइ...आज तो कोई प्रेस वाला ना है..जो बिना पैसे के खबर छापता हो
शख्स - अरेsss सर...
दूसरा टीटी - जा भाई...पर आज के बाद ना जाने दूंगा ऐसे...
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