....जब तुम एक ही news को सारा दिन घुमा फिरा के दिखाते हो....
जब कोई इंसान या कोई वर्ग या कोई समाज खुद पर लतीफे कसने की हिम्मत दिखाए या अपनी गलतियों की स्वयं ही चर्चा शुरू कर दे तो समझ लो कि गलतियां सुधारने के बदलाव का स्वस्थ दौर शुरू हो चुका है। कुछ यही संकेत मिला है प्रेस क्लब लुधियाना (रजि) की एक पोस्ट से। इस क्लब में अजय चौहान विराट (98153 65793 ने एक छोटी सी रचना पोस्ट की है आज रात्रि 10:46 जो मीडिया का व्यापारीकरण होने के बाद पैदा हुई थी। संवेदनहीन होते जा रहे मीडिया की संवेदना को फिर से जागृत करने का प्रशंसनीय कार्य किया है इस पोस्ट ने। देखिये और बताईये आपको कैसी लगी यह पोस्ट? आपके विचारों की इंतज़ार अब भी बनी रहेगी। --रेक्टर कथूरिया
एक टी.वी. पत्रकार एक किसान का इंटरव्यू ले रहा था...
पत्रकार : आप बकरे को क्या खिलाते हैं...??
किसान : काले को या सफ़ेद को...??
पत्रकार : सफ़ेद को..
किसान : घाँस..
पत्रकार : और काले को...??
किसान : उसे भी घाँस..
पत्रकार : आप इन बकरों को बांधते कहाँ हो...??
किसान : काले को या सफ़ेद को...??
पत्रकार : सफ़ेद को..
किसान : बाहर के कमरे में..
पत्रकार : और काले को...??
किसान : उसे भी बाहर के कमरे में...
पत्रकार : और इन्हें नहलाते कैसे हो...??
किसान : किसे काले को या सफ़ेद को...??
पत्रकार : काले को..
किसान : जी पानी से..
पत्रकार : और सफ़ेद को...??
किसान : जी उसे भी पानी से..
पत्रकार का गुस्सा सातवें आसमान पर, बोला : कमीने ! जब दोनों के साथ सब कुछ एक जैसा करता है, तो मुझे बार-बार क्यों पूछता है.. काला या सफ़ेद...????
किसान : क्योंकि काला बकरा मेरा है...
पत्रकार : और सफ़ेद बकरा...??
किसान : वो भी मेरा है...
पत्रकार बेहोश...
होश आने पे किसान बोला अब पता चला कमीने जब तुम एक ही news को सारा दिन घुमा फिरा के दिखाते हो हम भी ऐसे ही दुखी होते है।
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