मीडियाकर्मियों को अपना काम करने की पूरी आज़ादी हो
10 जून 2020:मानवाधिकार
संयुक्त राष्ट्र और अमेरिकी राष्ट्रों के संगठन (OAS) द्वारा नियुक्त स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञों ने नस्लभेद विरोधी आन्दोलनों की कवरेज कर रहे पत्रकारों के ख़िलाफ़ बल प्रयोग की निन्दा की है। उन्होंने ज़ोर देकर कहा है कि लोकतान्त्रिक समाज में प्रैस की अहम भूमिका है और विरोध प्रदर्शनों के दौरान मीडिया को आज़ादी से काम करने की व्यवस्था का सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
पहरेदार की भूमिका
यूएन और अन्तर-अमेरिकी आयोग के विशेषज्ञों ने कहा कि लोकतान्त्रिक समाजों में प्रैस की एक बेहद आवश्यक पहरेदार (वॉचडॉग) के रूप में अहम भूमिका है।
उनके मुताबिक अमेरिका में संघीय, प्रान्तीय और स्थानीय प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि मीडियाकर्मियों को अपना काम करने की पूरी आज़ादी हो और उन्हें पूर्ण सुरक्षा उपलब्ध कराई जाए।
क़ानून एजेंसियों का यह दायित्व है कि पत्रकारों के ख़िलाफ़ ताक़त के इस्तेमाल या फिर ऐसी धमकियाँ दिए जाने से परहेज़ किया जाए और किसी अन्य पक्ष द्वारा की जा रही हिन्सा के दौरान पत्रकारों की रक्षा की जाए।
“पत्रकारीय ज़िम्मेदारी को निभाने में जुटे मीडियकर्मियों को निशाना बनाए जाने पर अन्तरराष्ट्रीय मानवाधिकार क़ानूनों के अन्तर्गत पाबन्दी है और यह पुलिस के लिए निर्धारित सर्वश्रेष्ठ मानकों के भी विपरीत है।”
बयान में आगाह किया गया है कि अगर इन नियमों की अवहेलना होती है तो फिर जवाबदेही तय करने के लिए अनुशासनात्मक प्रक्रिया का पालन किया जाना चाहिए।
विशेषज्ञों ने अफ़सोस ज़ाहिर किया कि अमेरिकी राष्ट्रपति पिछले कई सालों से अपने बयानों में मीडिया को जनता का दुश्मन बताकर हमला करते रहे हैं जिससे टकराव और असहिष्णुता को बढ़ावा मिलता है।
साथ ही अमेरिका में पुलिस का सैन्यीकरण हो रहा है जिससे ना सिर्फ़ जनता के शान्तिपूर्ण ढँग से एकत्र होने का अधिकार प्रभावित होता है बल्कि विरोध-प्रदर्शनों की कवरेज करने की मीडिया की आज़ादी पर भी असर होता है।
इसी को ध्यान में रखकर विशेषज्ञों ने असैन्यीकरण को प्रोत्साहन देने और प्रदर्शनों से निपटने के लिए अन्तरराष्ट्रीय मानकों का पालन करने की बात कही है।
स्पेशल रैपोर्टेयर और वर्किंग ग्रुप संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद की विशेष प्रक्रिया का हिस्सा हैं. ये विशेष प्रक्रिया संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार व्यवस्था में सबसे बड़ी स्वतंत्र संस्था है। ये दरअसल परिषद की स्वतंत्र जाँच निगरानी प्रणाली है जो किसी ख़ास देश में किसी विशेष स्थिति या दुनिया भर में कुछ प्रमुख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है।
स्पेशल रैपोर्टेयर स्वैच्छिक रूप से काम करते हैं; वो संयक्त राष्ट्र के कर्मचारी नहीं होते हैं और उन्हें उनके काम के लिए कोई वेतन नहीं मिलता है. ये रैपोर्टेयर किसी सरकार या संगठन से स्वतंत्र होते हैं और वो अपनी निजी हैसियत में काम करते हैं।
अभिव्यक्ति की आज़ादी पर संयुक्त राष्ट्र के स्वतन्त्र मानवाधिकार विशेषज्ञ (विशेष रैपोर्टेयर) डेविड काए और मानवाधिकारों पर अन्तर-अमेरिकी आयोग के विशेषज्ञ एडीसन लान्ज़ा ने बुधवार को एक साझा बयान जारी करके पत्रकारों पर हमले, उनके उत्पीड़न, उन्हें हिरासत में रखने और गिरफ़्तार किए जाने पर चिन्ता जताई है।
ग़ौरतलब है कि अमेरिका के मिनियापॉलिस शहर में एक काले अफ़्रीकी व्यक्ति जियॉर्ज फ़्लॉयड की गर्दन पर एक श्वेत पुलिस अधिकारी ने कई मिनटों तक घुटना टिकाए रखा था और समझा जाता है कि दम घुटने और हालत बिगड़ने पर बाद में पुलिस हिरासत में ही उनकी मौत हो गई।
उनकी मौत के बाद बड़े पैमाने पर अमेरिका के कई शहरों और अन्य देशों में नस्लीय न्याय की माँग करते हुए प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतरे हैं।
संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने हाल ही में जानकारी देते बताया कि कम से कम 200 ऐसी घटनाएँ दर्ज की गई हैं जिनमें प्रदर्शनकारियों को कवर करने वाले पत्रकारों पर शारीरिक रूप से हमला किया गया, उन्हें डराया धमकाया गया या मनमाने तरीक़े से गिरफ़्तार किया गया, जबकि वो पत्रकार अपने प्रैस कार्ड पहने हुए थे।
ताज़ा बयान में कहा गया है कि पत्रकारों के साथ ऐसा बर्ताव तब हुआ जब वे अमेरिका में ढाँचागत नस्लवाद और पुलिस क्रूरता के विरोध में हो रहे प्रदर्शनों को कवर करने की अपनी ज़िम्मेदारी निभा रहे थे।
उन्होंने ध्यान दिलाया है कि विरोध-प्रदर्शनों की कवरेज कर रहे पत्रकारों की सुरक्षा सुनिश्चित करना क़ानून-व्यवस्था से जुड़ी एजेंसियों का कर्तव्य है।
साथ ही यह ज़रूरी है कि जनता तक ऐसे प्रदर्शनों से सम्बन्धित जानकारी पहुँच सके, यह उनका अधिकार है।
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