वरिष्ठ पत्रकार सुप्रिया शर्मा के मुद्दे को NWMI ने ज़ोरदार ढंग से उठाया
नई दिल्ली: 20 जून 2020: (समकालीन जनमत)::
नेटवर्क ऑफ वुमेन इन मीडिया, इंडिया (एनडब्ल्यूएमआई) ने प्रधानमंत्री द्वारा 2018 में गोद लिये गये वाराणसी के पास के डुमरी गाँव के निवासियों की आजीविका छिन जाने और उनके भूख के बारे में स्क्रोल डॉट इन की कार्यकारी सम्पादक सुप्रिया शर्मा की रिपोर्ट को निशाना बनाते हुये उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा दर्ज की गयी एफआईआर की निन्दा की है और इसे प्रेस को खामोश करने का प्रयास बताया है। एनडब्ल्यूएमआई ने एफ.आई.आर. को वापस लेने और सुप्रिया शर्मा को गिरफ्तारी से बचाने की मांग की है।
शुक्रवार को जारी एक बयान में एनडब्ल्यूएमआई ने कहा कि नोवल कोरोना वायरस के प्रसार को रोकने के लिये लागू कठोर लाॅक डाउन ने भारत के ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में ठेका और दैनिक वेतनभोगी मजदूरों को घोर तंगी और अनिश्चितता में झोंक दिया है। ऐसे समय में सार्वजनिक बहसों और नीतिनिर्धारण के लिये ग्रामीण क्षेत्रों और संवेदनशील समुदायों की सूचनायें बहुत महत्वपूर्ण हो गयी हैं। फिर भी पूरे भारत में और खासतौर पर उत्तर प्रदेश में सरकार और पुलिस विभाग ने यह जरूरी कर्तव्य निभानेवाले पत्रकारों को निशाना बनाते हुये मार्च में जारी लाॅक डाउन की तिथि से अब तक कम से कम 55 शिकायतें दर्ज की हैं।
उत्तर प्रदेश पुलिस द्वारा एक सम्मानित वरिष्ठ पत्रकार सुप्रिया शर्मा को निशाना बनाते हुये एफ0आई0आर0 दर्ज किया जाना इसी कड़ी का ताज़ा उदाहरण है।
वाराणसी के हाशिये के दलित समुदायों और अनौपचारिक श्रमिकों पर लाॅक डाउन के प्रभावों के गहन शोधों के आधार पर सुप्रिया शर्मा ने आठ विस्तृत रिपोर्टें जारी की हैं। डुमरी के निवासियों, पंचायत के कर्मचारियों और जिले के अधिकारियों से साक्षात्कार पर आधारित उनकी रिपोर्ट में गाँव के लोगों की भयंकर भूख का वर्णन है और यह भी कहा गया है कि कैसे सरकार के वायदों के बावजूद उन्हें दोहरी मार झेलनी पड़ी है- उनकी जीविका छिन गयी और उन्हें सार्वजनिक वितरण प्रणाली से राशन भी नहीं मिल सका. जातीय पूर्वाग्रहों के चलते हालात और भी बिगड़ गये.
13 जून की एफ.आई.आर. में उन्हीं माला देवी को शिकायतकर्ता बनाया गया है जिनका साक्षात्कार सुश्री शर्मा ने किया था, और कहा गया है कि माला देवी ने लाॅक डाउन के दौरान भूखे रहने की शिकायत नहीं की थी। एफ.आई.आर. में माला देवी का आरोप है कि अपनी स्टोरी में सुप्रिया शर्मा ने अपना कर्तव्य और अपने लाॅक डाउन के अनुभव का ठीक ढंग से प्रतिनिधित्व नहीं किया है। एफ.आई.आर. में शिकायतकर्ता ने कहा है कि वह किसी नागरिक संगठन के लिये काम कर रही थी। सुश्री शर्मा के रिपोर्ट में उन्होंने कहा था कि उनका बेटा किसी नागरिक संगठन के लिये काम कर रहा था और वह एक घरेलू सहायिका थी।
पुलिस ने सुप्रिया शर्मा सुश्री के ऊपर पत्रकार बिरादरी को आतंकित करने के उद्देश्य से भा.द.वि. की धारा 501 (मानहानि) के अलावा अनुसूचित जाति एवं जनजाति (नृशंसता निवारण) कानून, 1989 के अन्तर्गत भी मुकदमा कायम किया है।
हाँलाकि, एफ.आई.आर. में उल्लिखित अनुसूचित जाति एवं जनजाति (नृशंसता निवारण) कानून की दो धाराओं का सुश्री शर्मा की रिपोर्ट से कोई सम्बन्ध नहीं है, और न ही उनमें ऐसा कुछ दिखायी देता है जिसका जिक्र माला देवी ने अपनी शिकायत में किया है। पुलिस ने एफ.आई.आर. में बिना किसी आधार के भा.द.वि. की धारा 269- लापरवाही की धारा, जिससे संक्रमण फैलता है, भी लगाया है।
सुश्री शर्मा की रिपोर्ट से इन धाराओं का कुछ भी लेना-देना नहीं है. आदिवासियों और दलित कार्यकर्ताओं के वर्षों के सतत संघर्ष से ही अनुसूचित जाति एवं जनजाति (नृशंसता निवारण) कानून में 2015 और 2018 के संशोधन अस्तित्व में आये हैं। एक ओर तो पुलिस अनवरत रूप से दलितों और आदिवासियों के विरुद्ध किये गये गम्भीर अपराधों पर एफ.आई.आर. दर्ज करने से मना करके उनका दमन और उनके प्रति शत्रुवत व्यवहार कर रही है और दूसरी ओर उनकी संवेदनशीलता की रिपोर्टिंग करने पर पत्रकारों के विरुद्ध उसी कानून का प्रयोग कर रही है, यह पत्रकारों के प्रति पुलिसिया अत्याचार और उनके दमन की ख़तरनाक़ नयी प्रवृत्ति है।
ऐसे मामले एक पत्रकार और स्क्रोल.इन जैसे छोटे मीडिया संगठनों के वित्तीय संसाधनों की बर्बादी का सबब बनते हैं। फिर भी स्क्रोल.इन अपनी साहसी रिपोर्टिंग पर ऐसे खुल्लमखुल्ला हमले की कोशिशों से बिना डरे अपनी रिपोर्ट के मन्तव्य पर अटल है।
नेटवर्क ऑफ वुमेन इन मीडिया इंडिया, सुप्रिया शर्मा और स्क्रोल डॉट इन के पक्ष में मजबूती के साथ खड़ा है और प्रेस को ख़ामोश करने और उसे समाज के सर्वाधिक वंचित तबके के हालात पर रिपोर्टिंग करने के कर्तव्य से रोके जाने के ऐसे प्रयासों की पुरजोर मजम्मत करता है. हम माँग करते हैं कि यह एफ0आई0आर0 वापस ली जाय और शर्मा को गिरफ्तारी से बचाया जाय. ---by समकालीन जनमत June 20, 2020
वरिष्ठ पत्रकार सुप्रिया शर्मा की रिपोर्ट को आप यहाँ पढ़ सकते हैं:
( नेटवर्क ऑफ वुमेन इन मीडिया के बयान का हिन्दी अनुवाद दिनेश अस्थाना ने किया है)
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